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राज्य का स्वरूप , प्रशासन और भूमि व्यवस्था

 राज्य का स्वरूप

 ¯ सिद्धांततः दिल्ली सल्तनत इस्लाम के पवित्र नियम शरा द्वारा संचालित होता था लेकिन राज्य का धर्मतांत्रिक स्वरूप केवल नाम मात्र के लिए था। व्यवहार में सुल्तानों ने अनेक अवसरों पर शरीयत के सिद्धांतों एवं इस्लाम के परम्पराओं का अतिक्रमण एवं उपेक्षा की। 
 ¯ भारत में मुस्लिम सुल्तानों की निरंकुशता तत्कालीन प्रचलित परिस्थितियों का अनिवार्य परिणाम थी। 
 ¯ सुल्तानों की शक्ति खलीफा अथवा जन भावनाओं में निहित नहीं थी। 
 ¯ ग्राम स्तर पर स्थानीय संस्थाएं एवं जाति पंचायतों को पूर्ववत चलने दिया गया। 
 ¯ सुल्तानों द्वारा कार्यान्वित करारोपण व्यवस्था शरीयत के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थी। 
 ¯ फीरोज तुगलक जैसे कुछ सुल्तानों ने इस्लाम के अनुरूप करारोपण व्यवस्था लागू की। कुरान द्वारा अनुमत सिर्फ चार करों - खराज, जकात, जजिया और खम्स को छोड़कर फीरोज ने बाकी करों को समाप्त कर दिया।

¯ दिल्ली के सुल्तानों और बगदाद व मिò के खलीफाओं के मध्य सम्बन्ध का स्वरूप धार्मिक सिद्धांतों की अपेक्षा तत्कालीन परिस्थितियां निर्धारित करती थीं। सिद्धान्त रूप में दिल्ली का सुल्तान खलीफा का प्रतिनिधि था लेकिन यथार्थ में वह पूर्णतया स्वतंत्र था। 
 ¯ कभी-कभी वे खलीफा से सम्बन्ध विच्छेद भी कर लेते थे जैसा कि मुबारक शाह ख़लजी ने किया था। 
 ¯ अलाउद्दीन जैसा सुल्तान उलेमाओं को चुप रहने के लिए विवश किया। 
 ¯ मुहम्मद-बिन-तुगलक ने न्याय के सिद्धान्त को उलेमाओं पर भी लागू किया। उसके पूर्व उलेमा कठोर दंड से मुक्त थे। 

स्मरणीय तथ्य
 ¯    लोदी वंश के शासक सिकन्दर लोदी ने सर्वप्रथम राजधानी को दिल्ली से आगरा स्थानान्तरित किया।
 ¯    मुहम्मद बिन तुगलक ने ‘दीवान-ए-अमीर कोही’ विभाग की स्थापना की।
 ¯    जलालुद्दीन खि़लजी ने ‘दीवाने वकूफ’ की स्थापना की।
 ¯    चारागाह कर एवं भवन कर की शुरुआत अलाउद्दीन खि़लजी ने की।
 ¯    इसामी के ग्रंथ ‘फतूह-उस-सलातीन’ में सर्वप्रथम चरखे का उल्लेख मिलता है।
 ¯    अलबरुनी की पुस्तक ‘तहकीकाते हिन्द’ अरबी भाषा में लिखी गयी है।
 ¯    सल्तनतकालीन मंत्रिपरिषद् को ‘मजलिस-ए-खलवत’ कहा गया।
 ¯    सम्पत्ति की न्यूनतम मात्रा को ‘निसाब’ कहा जाता था।
 ¯    सल्तनत काल में सर्वप्रथम सिंचाई कर फिरोज तुगलक ने लगाया।
 ¯    मंगोल सरदारों को ‘दलूचा’ कहा जाता था।
 ¯    सिंचाई के लिए सर्वप्रथम नहरें गयासुद्दीन तुगलक ने खुदवाया।
 ¯    इमारतों में गुम्बद एवं मेहराब का प्रयोग तुर्कों ने रोमवासियों से सीखा।
 ¯    भारत में प्रथम पूर्णतः इस्लामी परम्परा के आधार पर निर्मित मस्जिद ‘जमातखाना मस्जिद’ है।
 ¯    अलाउद्दीन द्वारा निर्मित ‘अलाई दरवाजा’ कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का प्रवेश द्वार है।
 ¯    शुद्ध रूप में मेहराब का प्रयोग सर्वप्रथम बलबन के मकबरे में हुआ।
 ¯    तुगलक वास्तुकला की विशेषता थी लिन्टल एवं शहतीर के साथ मेहराब का प्रयोग।
 ¯    लोदियों के समय में मकबरों का निर्माण ऊँचे चबूतरे पर किया जाने लगा।

उलेमाओं पर भी लागू किया। उसके पूर्व उलेमा कठोर दंड से मुक्त थे। 
 ¯ प्रारम्भ में तो मुहम्मद-बिन-तुगलक ने खलीफा की सत्ता को विशेष महत्व नहीं दिया लेकिन आगे चलकर जब उसे अनेक तरह के विद्रोहों को झेलना पड़ा तब उसने खलीफा से मान्यता प्राप्त करने की कोशिश की ताकि मुस्लिम समुदाय में उसकी प्रतिष्ठा बढ़े और अमीर उसकी आज्ञा की अवहेलना न करें।
 ¯ सैन्य संगठन की दृष्टि से विशुद्ध इस्लामी राज्य जैसी कोई चीज नहीं थी। सैन्य संगठन में सुल्तानांे ने तुर्क-मंगोल व्यवस्था को कार्यान्वित किया। 
 ¯ सुल्तानों की सेना में तुर्क, अफगान, मंगोल, फारस के निवासी एवं भारतीय सम्मिलित थे। 
 ¯ राजतन्त्र के सिद्धान्त को विकसित करने के लिए हिन्दू विचारों, भावनाओं एवं मान्यताओं को ग्रहण किया गया। 
 ¯ यद्यपि दिल्ली के सुल्तान तुर्क थे लेकिन वे राजतंत्र की फारसी परम्पराओं एवं मान्यताओं का अनुसरण करते थे। राजतंत्र के साथ दैविक शक्ति के सम्बन्ध की कुरान में स्वीकृति नहीं है। 
 ¯ इस्लामी सिद्धांतों में शासक के चुनाव की व्यवस्था है, लेकिन व्यवहार में शासक के किसी भी पुत्र को गद्दी का उत्तराधिकार मान लिया जाता था। ज्येष्ठाधिकार के सिद्धान्त को न तो कभी मुसलमानों ने माना और न हिन्दुओं ने। 
 ¯ इल्तुतमिश की इच्छा के विरुद्ध अमीरों ने उसकी पुत्री रजिया की जगह उसके पुत्र को गद्दी पर बैठाया। 
 ¯ इसी तरह अमीरों ने बलबन द्वारा मनोनीत उत्तराधिकारी कैखुसरो की जगह कैकूबाद को गद्दी पर बैठाया। 
 ¯ जनमत की उपेक्षा भी बहुत अधिक नहीं की जा सकती थी। जनमत के भय से ख़लजी शासक बलबन के उत्तराधिकारी को पदच्युत कर एक लम्बी अवधि तक दिल्ली में प्रवेश करने का साहस न कर सके और शासन के लिए उन्होंने सीरी नामक एक नया नगर बसाया।

प्रशासन

सुल्तान

 ¯ ‘सुल्तान’ की उपाधि तुर्की शासकों द्वारा शुरू की गई। महमूद गजनवी पहला शासक था जिसने ‘सुल्तान’ की उपाधि धारण की। 
 ¯ कार्यपालिका के सर्वोच्च प्रधान के रूप में वह उन अधिकारियों तथा मंत्रियों की सहायता से राज-काज चलाता था, जिन्हें वह स्वयं चुनता था। 
 ¯ राज्य मूलतः सैनिक प्रकृति का था तथा सुल्तान प्रधान सेनापति था। वह प्रमुख कानून òष्टा एवं अपील का अंतिम न्यायालय भी था। 

अमीर वर्ग

 ¯ सल्तनत काल में प्रायः सभी प्रभावशाली पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को सामान्यतः अमीर कहा जाता था। प्रशासन संचालन में इनका बहुत प्रभाव था। 
 ¯ अमीरों के प्रायः दो वर्ग थे - तुर्क तथा गैर-तुर्क। इल्तुतमिश के समय चालीस अमीरों का बहुत ही प्रभावशाली गुट था जो चहलगानी  कहलाता था। 
 ¯ बलबन के काल में अमीर वर्ग अधिक प्रभावशाली नहीं रहा। 
 ¯ अलाउद्दीन ने भी अमीर और उलेमाओं दोनों पर अंकुश लगाया।

केन्द्रीय शासन

 ¯ सुल्तान के मित्रों एवं विश्वसनीय अधिकारियों की परिषद् को मजलिस-ए-खल्वत कहा जाता था। लेकिन उनके द्वारा व्यक्त मत अथवा विचार से सुल्तान बाध्य नहीं था। 
 ¯ केन्द्रीय शासन का सर्वोच्च अधिकारी वज़ीर था, जिसके नियंत्रण में राज्य के अन्य विभाग थे। वह अन्य मंत्रियों के कार्य पर दृष्टि रखने के अलावा राजस्व तथा वित्त विभागों का काम स्वयं संभालता था। 
 ¯ तुगलक काल मुस्लिम भारतीय वज़ीरत का स्वर्ण-काल था और उत्तरगामी तुगलकों के समय में वज़ीर की शक्ति बहुत बढ़ गई पर सैय्यदों के समय में उसकी शक्ति घटने लगी और अफगानों के अधीन वज़ीर का पद अप्रसिद्ध हो गया। 
 ¯ वज़ीर की सहायता के लिए नायबे-वज़ीरे- ममालिक (सहायक वज़ीर) होता था, जो बहुत महत्वूपर्ण पद नहीं था। 
 ¯ वज़ीर के बाद राज्य का सबसे महत्वपूर्ण विभाग दीवान-ए-आरिज अथवा सैन्य विभाग था। इसका अध्यक्ष आरिज-ए-मुमालिक कहलाता था। लेकिन वह प्रधान
 सेनापति नहीं था, क्योंकि सुल्तान स्वयं सेना का प्रधान सेनापति होता था। 
 ¯ दीवान-ए-रसालत बहुत कुछ विदेश विभाग जैसा था और इसका अध्यक्ष दबीर-ए-मुल्क राज्य के पत्राचार तथा दरबार एवं प्रान्तीय अधिकारियों के सम्बन्धों के विभाग की देखरेख करता था। 
 ¯ धार्मिक मामलों, पवित्र स्थानों तथा योग्य विद्वानों और धर्मपरायण लोगों को वज़ीफा देने का काम दिवाने-ए-रियासत का अध्यक्ष सदर-उस्सदर करता था। 
 ¯ सामान्यतः वह प्रधान काज़ी भी होता था। न्याय विभाग के प्रमुख के रूप में वह काज़ी-उल-कुजात कहलाता था। उसकी सहायता के लिए मुफ्ती होते थे। साधारणतः कानून शरीयत पर आधारित था लेकिन हिन्दुओं के सामाजिक मामलों में मुकदमों का निर्णय पंचायतों में पंडित तथा विद्वानों द्वारा किया जाता था। 
 ¯ वकील-ए-दर - सुल्तान के वैयक्तिक सुख-सुविधा और राजपरिवार की आवश्यकता की देखरेख करने वाला प्रमुख पदाधिकारी।
 ¯ वरीद-ए-मुमालिक - गुप्तचर विभाग का अध्यक्ष।
 ¯ अमीर-ए-हाजिब - दरबारी शिष्टाचार के पालन की देखरेख करने वाला।
 ¯ सर-ए-जांदार - सुल्तान के अंगरक्षकों का नायक।
 ¯ अमीर-ए-आखुर - अश्वाध्यक्ष।
 ¯ शहना-ए-पी - गजाध्यक्ष।
 ¯ अमीर-ए-बहर - नावों का नियंत्रणकर्ता।
 ¯ बख्शी-ए-फौज - फौज को वेतन देनेवाला।
 ¯ खाजिन - कोषाध्यक्ष।
 ¯ मुश्रीफे-ममालिक - रुपयों के पाने का हिसाब रखता था।
 ¯ मुस्तौफि-ए-ममालिक - महालेखाकार।
 ¯ मजमुअदार - सरकार द्वारा दिए गए ऋणों के कागजात सुरक्षित रखता था।
 ¯ दीवान-ए-वकूफ - व्यय की कागजातों की देखभाल करने वाला विभाग (जलालुद्दीन द्वारा स्थापित)।
 ¯ दीवान-ए-मुस्तखरज - तहसीलदारों तथा प्रतिनिधियों की देखभाल करने और उनसे बकाया वसूल करने वाला विभाग (अलाउद्दीन द्वारा स्थापित)।
 ¯ दीवान-ए-अमीर कोही - कृषि व्यवस्था सम्बन्धी विभाग (मुहम्मद तुगलक द्वारा स्थापित)।
 ¯ दीवान-ए-बंदगान - गुलामों का विभाग (फीरोज तुगलक द्वारा स्थापित)।
 ¯ दीवान-ए-खैरात - दान विभाग (फीरोज तुगलक द्वारा स्थापित)।
 ¯ दीवान-ए-इस्तिहकाक - पेंशन विभाग।

प्रान्तीय व स्थानीय प्रशासन

 ¯ दिल्ली सल्तनत के प्रारम्भिक काल में प्रांतीय शासन का कोई व्यवस्थित रूप नहीं था। इस दिशा में पहला कदम इल्तुतमिश ने उठाया जब उसने इक्तादारी प्रथा का विकास किया। 
 ¯ जीते हुए प्रदेशों को कुछ क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया जो ‘इक्ता’ कहलाए। 
 ¯ सामरिक महत्व के क्षेत्र राजकुमारों या प्रभावशाली तुर्की सरदारों के अधीन होते थे। इन पर नजर रखने के लिए सुल्तान को विशेष सावधानी बरतनी पड़ती थी तथा कमजोर सुल्तानों के काल में ये लोग स्वतंत्र शासक जैसा व्यवहार करने लगते थे। 
 ¯ अन्य क्षेत्रों को भी अग्रणी तुर्की सरदारों के बीच बांटा जाता था, जो ‘मुक्ति’ या ‘बाली’ कहलाते थे। 
 ¯ मुहम्मद-बिन-तुगलक के काल में दिल्ली सल्तनत 23 प्रांतों में विभाजित थी। इन प्रांतों के मुक्ति अपनी इक्ता की आमदनी से सेना का गठन करते थे और उनसे अपने क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने की आशा की जाती थी। 
 ¯ धीरे-धीरे ये मुक्ति शक्तिशाली होते गए। अलाउद्दीन ने इनकी शक्ति को कम करने के लिए कई उपाय किए। इसमें घोड़े को दागने और सैनिकों का विस्तृत विवरण तैयार करने का प्रचलन प्रमुख था।
 ¯ प्रांतों के नीचे शिक और शिकों के नीचे परगने होते थे। 
 ¯ शिक और परगना क्रमशः शिकदार और अमिल  के अधीन होते थे। 
 ¯ संभवतः सौ या चैरासी गांवों के समूह को परगना कहते थे। 
 ¯ प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी। 
 ¯ गांव के प्रशासन को चलाने के लिए मुकद्दम, खुत, चैधरी, पटवारी आदि कर्मचारी होते थे। 
 ¯ गांवों में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए फौजदार उत्तरदायी होते थे।

भूमि व्यवस्था

 ¯ इस काल में मुख्यतः चार प्रकार की भूमि थी। पहले प्रकार की भूमि इक्ता कहलाती थी जो अधिकांशतः नकद वेतन के बदले दी जाने वाली भूमि थी। 
 ¯ इक्तादार को इस भूमि का सिर्फ राजस्व-संग्रह का अधिकार ही दिया जाता था, उसका स्वामित्व नहीं। इन अधिकारियों को मुक्ति, अमीर तथा कभी-कभी मलिक भी कहा जाता था। 
 ¯ भूमि की दूसरी श्रेणी ‘खालसा’ अथवा राजकीय भूमि होती थी। यह प्रत्यक्ष रूप से केन्द्र सरकार के नियंत्रण में होती थी। इससे प्राप्त होने वाली आय केन्द्र सरकार के लिए सुरक्षित रहती थी। 
 ¯ तीसरी श्रेणी के अंतर्गत वह भूमि थी जो परम्परागत राजाओं अथवा जमींदारों के पास थी। सुल्तान इनसे वार्षिक कर वसूलता था। 
 ¯ भूमि की अंतिम श्रेणी मिल्क, इनाम और वक्फ थी। ये भूमि पुरस्कार, उपहार, पेंशन अथवा धार्मिक अनुदान के रूप में दी जाती थी और इनको वंशानुगत बनाया जा सकता था। इस प्रकार की भूमि पर किसी प्रकार का कर नहीं लगता था।
 ¯ भू-राजस्व की वसूली बिचैलिये करते थे जिन्हें खुत, मुकद्दम और चैधरी कहा जाता था। इनका पद वंशानुगत होता था। 
 ¯ सल्तनत काल में भूमि-कर के रूप में राज्य का भाग समय-समय पर बदलता रहता था। सामान्यतः उपज का 33 प्रतिशत भू-राजस्व के रूप में लिया जाता था। 
 ¯ अलाउद्दीन ने इसे बढ़ाकर पचास प्रतिशत कर दिया। 
 ¯ मुहम्मद-बिन-तुगलक ने भी दोआब के क्षेत्र में भूमि-कर में वृद्धि कर इसे पचास प्रतिशत कर दिया। 
 ¯ अलाउद्दीन पहला मुस्लिम शासक था जिसने राजस्व को भूमि की नाप के आधार पर निर्धारित किया। इसके लिए ‘बिसवा’ को एक इकाई माना गया। 
 ¯ उसने एक नया विभाग दीवान-ए-मुस्तखरज की स्थापना की। यह विभाग अमिल और अन्य कर वसूल करने वालों के नाम जो बकाया रुपया होता था उसकी जांच करता था और जो कर्मचारी बकाया धन निर्धारित समय पर पूरे तौर पर अदा नहीं करता था, उसे दण्ड दिया जाता था। 
 ¯ अलाउद्दीन ख़लजी अनाज के रूप में भू-राजस्व के भुगतान को पसंद करता था जिससे मूल्य नियंत्रण के नियम सफलतापूर्वक कार्यान्वित हो सके।
 ¯ मुहम्मद-बिन-तुगलक ने पृथक कृषि विभाग दीवान-ए-कोही  की स्थापना की। इस विभाग का कार्य मालगुजारी व्यवस्था को ठीक करना और जिस भूमि पर खेती नहीं हो रही हो, उसे कृषि योग्य बनाना था। 
 ¯ भूमि सुधारों एवं भू-राजस्व के संदर्भ में फीरोज शाह तुगलक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान था। उसने निम्नलिखित तीन स्रोतों से राजस्व की आमदनी में वृद्धि की -
 (क) कृषि भूमि में गुणात्मक सुधार तथा उच्च कोटि के फसलों में वृद्धि कर आमदनी में वृद्धि की गई।
 (ख) भू-राजस्व के अतिरिक्त उन क्षेत्रों में सिंचाई कर का भी संग्रह किया जाता था जिनकी सिंचाई नहरों एवं राज्य द्वारा मुहैया कराए गए अन्य जल साधनों के द्वारा होती थी। इसकी दर कुल उपज का दसवां भाग थी।
 (ग) तीसरा स्रोत बृहत् पैमाने पर उद्यान का लगाया जाना था।
 ¯ लगान का निर्धारण ‘बटाई’ के आधार पर होता था। 
 ¯ बटाई के तीन रूप थे - खेत बटाई, लंक बटाई और रास बटाई। 
 ¯ खेत बटाई में खड़ी फसल के समय ही सरकार का हिस्सा निर्धारित हो जाता था। 
 ¯ फसल काटने के बाद अनाज और भूसा अलग किए बिना ही राज्य का हिस्सा निर्धारित करना लंक बटाई कहलाता था। 
 ¯ रास बटाई में भूसा अलग करने के बाद अनाज में राज्य का हिस्सा निर्धारित किया जाता था। 
 ¯ बटाई के अतिरिक्त ‘मुकतई’ और ‘मसाहत’ भी उपयोग में लाई जाती थी। 
 ¯ मुकतई एक मिश्रित प्रणाली थी जबकि मसाहत में भूमि के क्षेत्रफल के आधार पर उपज का निर्धारण होता था। 
 ¯ मुहम्मद-बिन-तुगलक के काल में सल्तनत का भूमि विस्तार सबसे अधिक हुआ था।

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FAQs on राज्य का स्वरूप , प्रशासन और भूमि व्यवस्था - दिल्ली सल्तनत, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. What was the administrative system during the Delhi Sultanate?
Ans. The Delhi Sultanate had a centralized administrative system. The Sultan was the supreme authority and all powers were concentrated in his hands. The Sultanate was divided into provinces, which were further divided into districts. The administration was carried out by the provincial governors, district officers, and revenue collectors. The Sultanate also had a well-organized army and a sophisticated intelligence network.
2. What is the significance of the Delhi Sultanate in Indian history?
Ans. The Delhi Sultanate was a significant period in Indian history as it marked the beginning of Muslim rule in India. It also saw the fusion of Indian and Islamic cultures, which gave rise to a unique Indo-Islamic architecture, art, and literature. The Delhi Sultanate was also important because it laid the foundation for the Mughal Empire, which went on to rule India for over three centuries.
3. What is the role of the Uttar Pradesh Public Service Commission (UPPSC) in the state administration of Uttar Pradesh?
Ans. The Uttar Pradesh Public Service Commission (UPPSC) is responsible for conducting recruitment exams for various posts in the state administration of Uttar Pradesh. It is also responsible for advising the state government on matters related to recruitment, promotions, and transfers of government employees. The UPPSC conducts exams for various posts such as the Uttar Pradesh Combined State/Upper Subordinate Exam, Assistant Conservator of Forest (ACF)/Range Forest Officer (RFO) Exam, and others.
4. What is the Indian Administrative Service (IAS) and how does it function in the Indian bureaucracy?
Ans. The Indian Administrative Service (IAS) is the premier civil service of India. It is responsible for carrying out the administrative work of the government at the central and state levels. The IAS officers are recruited through the Civil Services Examination conducted by the Union Public Service Commission (UPSC). The IAS officers are responsible for policy formulation and implementation, as well as overseeing the functioning of various government departments.
5. How does the land administration system function in India?
Ans. The land administration system in India is a complex network of laws and regulations that govern the ownership and transfer of land. The land revenue administration is carried out by the revenue department of the state government. The land records are maintained by the revenue department, which include details such as land ownership, area, soil type, and irrigation facilities. The land administration system also includes the registration of land transfers, which is carried out by the registration department of the state government. The land administration system in India is constantly evolving, with new laws and reforms being introduced to simplify the process of land ownership and transfer.
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