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पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी -यूरोपीय वाणिज्य की शुरुआत | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी

पुर्तगाली
¯ बार्थोलोम्यु डीआज 1487 ई. में उत्तरमासा अन्तरद्वीप पहुंचा जिसे उसने ‘तूफानी अन्तरद्वीप’ कहा। 
¯ वास्कोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के नए मार्ग का पता लगाया और ‘केप आॅफ गुड होप’ होते हुए कालीकट पहुंचा। 
¯ उसे कालीकट के हिन्दू राजा (पैतृक उपाधि जैमोरीन थी) से मैत्रीपूर्ण बर्ताव मिला।
¯ भारत में पुर्तगाली शक्ति की नींव डालने वाला अलबुकर्क था। वह 1503 ई. में भारत आया था तथा 1509 ई. में पुर्तगाली गवर्नर बना। 
¯ लेकिन पहला पुर्तगाली गवर्नर फ्रांसिस्को-डि-अल्मीडा था। 
¯ अलबुकर्क ने अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए 1510 ई. में बीजापुर के सुल्तान से गोआ जीत लिया और इसे अपना मुख्यालय बनाया। 
¯ 1515 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
¯ स्पेन और पुर्तगाल के राजमुकुट सन् 1580 ई. से 1640 ई. तक संयुक्त रहे। 
¯ इंग्लैंड ने 1604 ई. में स्पेन से संधि कर ली। 
¯ फारस के शाह से सन्धि कर अंग्रेजों ने पुर्तगालियों से सन् 1622 ई. में फारस की खाड़ी में स्थित ओरमुज ले लिया। 
¯ 1630 ई. में मेड्रिड की संधि हुई जिसके अनुसार पूरब में पुर्तगालियों और अंग्रेजों की शत्रुता बंद हो गई। 
¯ 1634 ई. में सूरत की अंग्रेज फैक्ट्री के अध्यक्ष मेथोलर्ड और गोआ के पुर्तगाली वायसराय ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार भारत में दोनों के बीच व्यापारिक अंतः संबंध की गारंटी मिली। 
¯ पुर्तगाल के राजा और इंग्लैंड के राजा चाल्र्स द्वितीय के बीच 1661 ई. में संधि हुई जिसके अनुसार चाल्र्स द्वितीय ने ब्रेगाजा की कैथरीन के दहेज के रूप में बम्बई द्वीप पुर्तगाली राजा से पाया और डचों के विरुद्ध पुर्तगालियों की सहायता की बात की। 
¯ पुर्तगालियों ने 1961 ई. तक गोआ, दमन और दीव को अपने कब्जे में रखा।
 

डच
¯ 1602 ई. में डच ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हुई। 
¯ 1605 ई. में डचों ने पुर्तगालियों से अंबायना एवं इंडोनेशिया (मसाला द्वीप समूह) ले लिया। 
¯ 1619 ई. में डचों ने जकार्ता जीत कर बेटेविया नामक नगर बसाया। 
¯ 1654 ई. में डचों ने पुर्तगाली बस्ती सिलोन पर अधिकार कर लिया। 
¯ भारत में डचों ने 1605 ई. मसुलीपट्टम में, 1610 ई. में पुलीकट में और 1616 ई. में सूरत में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। 
¯ पुलीकट में स्थापित फैक्ट्री से उन्हें सूती माल मिल जाता था। 
¯ सूरत से उन्हें काफी नील मिल जाता था। 
¯ बंगाल, बिहार, गुजरात एवं कोरोमंडल से डच कच्चा रेशम, बुने हुए कपड़े, शोरा, चावल एवं अफीम बाहर भेजते थे। 
¯ 1690 ई. में डचों ने पुलीकट के बदले कोरोमंडल तट पर नागपट्टम को अपना प्रमुख अड्डा बनाया।
¯ डचों और अंग्रेजों में 1713 ई. में एक सन्धि हुई जो सिर्फ दो वर्षों तक चली। 
¯ उनके बीच व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता सन् 1759 ई. तक तीव्र बनी रही, जब बेदारा की लड़ाई (1759 ई.) में डच अंग्रेजों से बुरी तरह पराजित हुए।
 

ब्रिटिश ईस्ट  इंडिया कम्पनी
¯ 1599 ई. में लंदन का एक व्यापारी जाॅन मिल्डेन होल स्थल मार्ग से भारत आया तथा 7 वर्षों तक पूर्व में रहा। 
¯ 31 दिसम्बर, 1600 ई. को ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ प्रथम से एक आज्ञापत्र प्राप्त किया, जिससे उसे पन्द्रह वर्षों के लिए पूर्वी व्यापार का एकाधिकार मिला। 
¯ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की प्रारम्भिक यात्रा मसाले के लिए सुमात्रा, जावा और मोलक्का के लिए हुई।
¯ भारत में ब्रिटिश फैक्ट्री स्थापित करने का पहला प्रयास 1608 ई. में सूरत में कप्तान हाॅकिन्स द्वारा हुआ, परन्तु वह असफल रहा। 
¯ 1609 ई. में हाॅकिन्स जहांगीर के दरबार में पहुंचा एवं अंग्रेजों के सूरत में बसने के लिए आवेदन किया। 
¯ पुर्तगालियों के व्यापार को ध्यान में रखकर तथा स्थानीय व्यापारियों के विरोध के कारण जहांगीर ने अंग्रेजों के आवेदन को नामंजूर कर दिया। 
¯ 1612 ई. में कप्तान वेस्ट के अधीन दो अंग्रेजी जहाज सूरत पहुंचे। वेस्ट ने पुर्तगालियों को हरा डाला। 
¯ 1613 ई. में जहांगीर ने एक फरमान जारी किया जिसमें उसने अंग्रेजों को सूरत में स्थायी रूप से एक फैक्ट्री खोलने की आज्ञा दे दी।
¯ 1615 ई. में इंग्लैंड के  राजा जेम्स प्रथम ने अपने राजदूत टामस रो को जहांगीर के दरबार में व्यापार संधि करने के लिए भेजा। 
¯ वह 1615-18 ई. तक जहांगीर के दरबार में रहा तथा 1619 ई. में वापस लौटा।

प्रमुख यूरोपीय कम्पनी
    कंपनी    स्थापना वर्ष

    पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी    1498
    अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी    1600
    डच ईस्ट इंडिया कंपनी    1602
    डैनिश ईस्ट इंडिया कंपनी    1616
    फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी    1664
    स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी    1731

¯ 1668 ई. में चाल्र्स द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को दस पौंड वार्षिक किराए पर बम्बई दे दी। 
¯ दक्षिण-पूर्व समुद्र तट पर अंग्रेजों ने 1611 ई. में मसुलीपट्टम में एक फैक्ट्री खोली। यह गोलकुंडा राज्य का मुख्य बन्दरगाह था। 
¯ 1612 ई. में अंग्रेजों ने सूरत में व्यापारिक फैक्ट्री खोली। 
¯ 1626 ई. में कम्पनी ने दक्षिण भारत में दूसरी फैक्ट्री अमीगांव में खोली। 
¯ 1632 ई. में अंग्रेजों को गोलकुण्डा के सुल्तान से एक फरमान मिला जिसके अनुसार 500 पगोडा सालाना पर उसे गोलकुण्डा राज्य के बन्दरगाहों से स्वतंत्रतापूर्वक व्यापार करने की आज्ञा मिल गई। 
¯ 1634 ई. में यह फरमान फिर दुहरा दिया गया।
¯ 1639 ई. में चंद्रगिरी के राजा से मद्रास पट्टे पर लेकर वहां एक किलाबंद बनाई गई जिसका नाम फोर्ट सेंट जार्ज पड़ा। 
¯ 1651 ई. में ब्रीजमैन ने हुगली में फैक्ट्री स्थापित की। 
¯ 1658 ई. में पूर्वी बंगाल, बिहार, उड़ीसा और कोरोमंडल की सारी बस्तियां फोर्ट सेंट जार्ज के अधीन कर दी गई।
¯ 1686 ई. में मुगलों ने अंग्रेजों के हुगली किलेबंदी पर आक्रमण कर दिया। 
¯ 1687 ई. में कम्पनी के जाॅन चार्नोक और मुगलों में समझौते के फलस्वरूप मुगलों ने अंग्रेजों को सुतानती लौटने की अनुमति दे दी। 
¯ इसी समय लंदन से कप्तान हीथ के अधीन एक नई जलसेना भेजी गई तथा युद्ध पुनः आरम्भ हो गया। 1690 ई. में बम्बई के प्रेसिडेंट और कौंसिल ने मुगल बादशाह से संधि कर ली। 
¯ 1690 ई. में ही जाॅन चार्नोक ने बंगाल के सुतानतीमें अंग्रेजी फैक्ट्री की स्थापना की। 
¯ 1691 ई. में इब्राहिम खां (शाइस्ता खां का उत्तराधिकारी) द्वारा एक फरमान जारी कर तीन हजार रुपये वार्षिक के बदले अंग्रेजों को चुंगी कर की अदायगी से मुक्ति दे दी गई। 
¯ 1698 ई. में सुतानती, कालिकता और गोविन्दपुर नामक गांवों की जमींदारी अंग्रेजों को दे दी गई और इसके बदले इन गांवों के मालिकों को 1200 रुपये दिए गए। 
¯ यह नवीन किलाबंद बस्ती अब से फोर्ट विलियम कहलाने लगी। 
¯ यहां एक प्रेसिडेंट और कौंसिल की स्थापना हुई। 
¯ सर चाल्र्स आयर फोर्ट विलियम का पहला प्रेसिडेंट हुआ।
¯ 1694 ई. में ब्रिटिश लोकसभा (हाउस आॅफ कामन्स) ने यह प्रस्ताव पारित किया कि इंग्लैंड की सारी जनता को भारत में व्यापार करने का समान अधिकार है, यदि उसे किसी कानून द्वारा ऐसा करने से नहीं रोका जाए। 
¯ 1698 ई. में इंग्लैंड में एक नई कम्पनी ‘जनरल सोसाइटी’ की स्थापना हुई। 
¯ 1707 ई. में पुरानी ईस्ट इंडिया कम्पनी का उसमें विलय हो गया और दोनों के मिलने से ‘इंगलिश कम्पनी आॅफ मर्चेन्ट्स’ बनी। 
¯ इसी के आसपास नई कम्पनी ने व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त करने के उद्देश्य से सर विलियम नोर्टिस को औरंगजेब के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा।
¯ 1715 ई. में अंग्रेजों द्वारा मुगल दरबार में एक दूतमंडल भेजा गया, जिसका उद्देश्य था समग्र मुगल भारत में विशेषाधिकार प्राप्त करना तथा कलकत्ता के आसपास कुछ गांव पाना। 
¯ फर्रुखसियार ने फरमान जारी किए एवं सूबे के सूबेदारों को इसे मानने को बाध्य किया। 

स्मरणीय तथ्य

  • फ्रांसिस्को डी अल्मेडा भारत में नियुक्त प्रथम पुर्तगाली गवर्नर था।
  • भारत में पुर्तगाली सत्ता का वास्तविक संस्थापक अल्बुकर्क को माना जाता है, वह 1503 में एक छोटी जहाज के नायक के रूप में भारत आया था।
  • अल्बुकर्क ने 1510 में गोवा को बीजापुर के सुल्तान से छीन लिया जिस ‘ऐस्तादो डि इण्डिया’ या गोवा के नाम से जाना गया।
  • अल्बुकर्क ने ‘कैसाडोस’ लोगों को भारत में पुर्तगालियों की आबादी बढ़ाने के लिए भारतीय óियों से विवाह के लिए प्रोत्साहित किया।
  • फ्रंसिस्को डी अल्मेडा ‘नीलापानी’ नीति के लिए प्रसिद्ध था।
  • 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने सुरक्षित व्यापार के लिए ‘काफिला प्रणाली’ की शुरुआत की।
  • पुर्तगाली दूत अन्तानियो कैब्राल अकबर के समय में भारत आया।
  • हालैण्ड की डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1602 में की गई।
  • अंग्रजों ने डचों को 1757 तक भारतीय व्यापार से बेदखल कर दिया।
  • अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक फैक्टरी 1608 में सूरत में खोली।
  • अंग्रेजों की ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ को सिक्का ढालने का अधिकार पहली बार 1617 में मिला।
  • 1632 में गोलकुण्डा के सुल्तान द्वारा कम्पनी के लिए जारी किये गये फरमान को ‘सुनहरा फरमान’ कहा गया।
  • 1639 में मद्रास में की गयी किलेबन्दी को ‘फोर्ट सेण्ट जार्ज’ नाम दिया गया।
  • दक्षिण में अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक कोठी की स्थापना 1611 में मसुलीपट्टम में की।
  • ब्रिटेन के राजकुमार चाल्र्स द्वितीय द्वारा 1668 में बम्बई को दस पौण्ड वार्षिक किराये पर कम्पनी को दे दिया गया।
  • 1690 में जाॅब चार्नाक ने आधुनिक कलकत्ता की नींव डाली।
  • 1698 में अंग्रेजों ने सुतानटी, कालीकट एवं गोविन्दपुर की जमींदारी 1200 रु. में प्राप्त कर ‘फोर्ट विलियम’ की स्थापना की। इसके पहले अध्यक्ष ‘सर चाल्र्स आयर’ थे।
  • फ्रैंको कैरो ने सूरत में 1668 में पहली फ्रेंच फैक्टरी खोली।
  • रीजवीक संधि द्वारा फ्रांसीसियों को 1697 में पुनः पाण्डिचेरी पर अधिकार प्राप्त हुआ।
  • पाण्डिचेरी फ्रांसीसियों का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था।
  • डेनिश कम्पनी (डेनमार्क) की स्थापना भारत में 1661 में हुई। 

¯ इस फरमान के अंतर्गत कम्पनी को निम्नलिखित छूटें मिलीं -
(i) अंग्रेजों को तीन हजार वार्षिक कर के अतिरिक्त बिना कोई चुंगी दिए बंगाल में व्यापार का जो विशेषाधिकार मिला हुआ था, वह पुष्ट हो गया।
(ii) कम्पनी को किराए पर कलकत्ता के आसपास अतिरिक्त जमीन लेने की अनुमति मिल गई।
(iii) हैदराबाद में चुंगी में छूट कायम रही।
(iv)  केवल मद्रास में किराया देना लाजिमी रहा।
(v) दस हजार रुपये वार्षिक देकर सूरत में भी चुंगी से मुक्ति।
(vi) बम्बई में कम्पनी द्वारा ढाले गए सिक्कों को सारे राज्य में चलाने की अनुमति मिल गई।
¯ 1716-17 ई. में फिर दूसरे फरमान द्वारा कम्पनी को और छूट दी गई। इसे ‘कम्पनी का मैगना कार्टा’ (महान अधिकार पत्र) कहा गया। 

पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी -यूरोपीय वाणिज्य की शुरुआत | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

¯ 1715-22 के बीच मराठों के आक्रमण से बचने के लिए चाल्र्स बुन की सरकार ने बम्बई को चारों ओर से घेरने के लिए दीवार बनवाई।
 

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी
¯ कोलबर्ट के अनुरोध पर सन् 1664 ई. में ‘कम्पनी द इंद ओरिएंताल’ की स्थापना हुई। 
¯ 1667 ई. में फ्रैंको कैरों के नेतृत्व में एक दल फ्रांस से चला। 
¯ भारत में फ्रांसीसियों की पहली फैक्ट्री फ्रैंको कैरों द्वारा सूरत में सन् 1668 ई. में स्थापित की गई। 
¯ 1669 ई. में फ्रांसीसियों ने मसुलीपट्टम में एक दूसरी फैक्ट्री स्थापित करने में सफलता पाई। इसे स्थापित करने का आदेश मर्कारा ने गोलकुण्डा के सुल्तान से प्राप्त किया। 
¯ 1672 ई. में फ्रांसीसियों ने मद्रास के निकट सानथोमो को भी ले लिया। 
¯ फिर 1673 ई. में डचों ने सानथोमो ले लिया। 
¯ 1673 ई. में फ्रैंको मार्टिन और बेलांग द लेस्पिन ने वालिकोकापुरम के मुस्लिम सूबेदार से एक छोटा सा गांव प्राप्त किया, जहां पांडिचेरी की नींव पड़ी। 
¯ फ्रैंको मार्टिन ने 1674 ई. में पांडिचेरी का भार संभाला।
¯ सन् 1674 ई. में फ्रांसीसियों को बंगाल के नवाब शाइस्ता खां ने एक जगह दी, जहां 1690-92 में फ्रांसीसियों ने चंदरनगर की प्रसिद्ध फ्रांसीसी फैक्ट्री बनाई। 
¯ 1693 ई. में डचों ने पांडिचेरी को फ्रांसीसियों से ले लिया। 
¯ पुनः 1697 ई. में रिजविक की संधि द्वारा पांडिचेरी फ्रांसीसियों को लौटा दिया गया। 
¯ 1720 ई. में फ्रांसीसी कम्पनी का इंडीज की चिरस्थायी कंपनी के रूप में निर्माण हुआ। 
¯ फ्रांसीसियों ने 1721 ई. में मारीशस, 1725 ई. में मालाबार समुद्र तट पर माही और 1739 ई. में करीकला पर अधिकार कर लिया। 
¯ फ्रांसीसियों का प्रधान कार्यालय पांडिचेरी में था।

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FAQs on पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी -यूरोपीय वाणिज्य की शुरुआत - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. क्या पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत के वाणिज्य के लिए महत्वपूर्ण थीं?
उत्तर. हां, पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत के वाणिज्य के लिए महत्वपूर्ण थीं। ये कम्पनियां भारत से वस्तुओं का व्यापार करती थीं और भारत का व्यापार विदेशों में बढ़ाती थीं।
2. क्या ये कम्पनियां भारत में अपना शासन स्थापित करने की कोशिश करती थीं?
उत्तर. हां, ये कम्पनियां भारत में अपना शासन स्थापित करने की कोशिश करती थीं। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में अपने समर्थकों की सहायता से अपने शासन का संचालन किया था।
3. ये कम्पनियां कब तक भारत में व्यापार करती रहीं?
उत्तर. पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में व्यापार करना कई दशकों तक जारी रखा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1858 में भारत में अपना शासन समाप्त कर दिया था।
4. क्या ये कम्पनियां भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर. हां, पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं। इन कम्पनियों ने भारत के व्यापार को विदेशों में बढ़ावा दिया था और भारत के समृद्धि की ओर बढ़ते कदम उठाये थे।
5. क्या भारत के व्यापार में ये कम्पनियां अभी भी शामिल हैं?
उत्तर. नहीं, भारत के व्यापार में पुर्तगाली, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी अब शामिल नहीं हैं। ये कम्पनियां अपने शासन के दौर में भारत में व्यापार करती थीं।
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