मराठा साम्राज्य एवं राज्यसंघ
शिवाजी (1630-80)
¯ शिवाजी का जन्म शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था।
¯ उनके पिता शाहजी, माता जीजाबाई और गुरु दादाजी कोंडदेव थे।
¯ धार्मिक नेताओं - रामदास व तुकाराम, तथा माता जीजाबाई की हिन्दू वैभव कथाओं से प्रभावित होकर उन्नीस वर्ष की अवस्था में अपने पिता की जागीर का काम सम्भालने के साथ ही आदिलशाही अत्याचारों के विरुद्ध शिवाजी मराठा सैनिकों को संगठित करने लगे।
¯ बीजापुर और गोलकुंडा की मुगलों से टक्कर ने मराठा शक्ति के उत्कर्ष के लिए अच्छा अवसर प्रदान किया।
¯ 1648 ई. में शिवाजी ने पुरन्दर, प्रतापगढ़ तथा कुछ अन्य किलों पर अधिकार कर लिया।
¯ 1656 में मराठा सरदार चन्द्रराव मोरे से जावली छीन लिया तथा आदिलशाह की मृत्यु होने पर शिवाजी ने कोंकण, डामोल, नाल, घोशाल और रायगढ़ पर भी अपना अधिकार कर लिया।
¯ इस समय औरंगजेब बीजापुर के सुल्तान के विरुद्ध सैनिक अभियान का नेतृत्व कर रहा था। शिवाजी ने उसकी सहायता का प्रस्ताव भेजा किन्तु औरंगजेब ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। फलतः शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों पर हमला करना शुरू कर दिया।
¯ 1659 ई. में शिवाजी ने बीजापुर के अमीर अफजल खान की हत्या कर दी।
¯ 1663 ई. में दक्षिण के मुगल गवर्नर शाइस्ता खान की छावनी में घुसकर उसे घायल कर दिया। उसने पहली बार 1664 ई. में सूरत को लूटा।
¯ 1665 ई. में मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में मुगल सैनिकांे ने महाराष्ट्र पर आक्रमण कर दिया।
¯ शिवाजी को 1665 ई. में मुगलों के साथ पुरन्दर की संधि करनी पड़ी।
¯ इस संधि के बाद 1666 ई. में शिवाजी अपने बेटे सम्भाजी के साथ औरंगजेब के दरबार में गए किन्तु वहां उचित सम्मान न मिलने पर दरबार के बीच से ही उठ कर चल दिए। औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया।
¯ शिवाजी बहुत चतुराई से कैद से निकलकर रायगढ़ पहुंचे।
¯ शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि के अंतर्गत मुगलों को सौंपे गए किलों को पुनः अधिकृत कर लिया।
¯ 1674 ई. में पुनः सूरत को लूटा।
¯ 1674 ई. में ही शिवाजी ने बीजापुर, बरार, खानदेश, गुजरात और कर्नाटक पर कई हमले कर अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के बाद पुणे में अपना औपचारिक राज्याभिषेक करवाया व ‘हैन्दव धर्मोद्धारक’ की उपाधि धारण की।
¯ राज्याभिषेक के दो ही वर्षों के बाद शिवाजी ने कर्नाटक में तंजौर तक अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
¯ जंजीरा के सिद्दी जाति के समुद्री डाकुओं को नियंत्रित करने के लिए मराठा नौ सेना को संगठित किया।
¯ उसने कन्हेरी में समुद्र तट पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए सशक्त किला बनवाया तथा सूरत में बसे अंग्रेजों को भी संधि करने के लिए विवश किया।
¯ 1678 ई. में शिवाजी को सम्भाजी के विद्रोह का सामना करना पड़ा।
¯ 1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु हो गई।
शिवाजी की शासन व्यवस्था
¯ मुगल शासन व्यवस्था की भांति शिवाजी की व्यवस्था में राज्य का शासन छत्रपति और मंत्रिमंडल के हाथों में था। शिवाजी के मंत्रिमंडल में आठ मंत्री थे, जिन्हें ‘अष्ट प्रधान’ कहा जाता था।
(i) पेशवा या मुख्य प्रधान: मराठा प्रशासन में पेशवा छत्रपति के बाद दूसरे स्थान पर था। वह राज्य का प्रधानमंत्री होता था।
(ii) सेनापति: सैन्य संचालन और लूट के माल का हिसाब रखने वाला।
(iii) अमात्य: वित्त तथा अर्थ विभाग का अध्यक्ष।
(iv) सचिव: वह गृह मंत्री के समान था।
(v) सुमंत: विदेश मंत्री।
(vi) मंत्री: गुप्तचर विभाग का अध्यक्ष।
(vii) पंडितराव: धर्मस्व विभाग का अध्यक्ष।
(viii) न्यायाधीश: न्याय विभाग का अध्यक्ष।
¯ शिवाजी ने अपने साम्राज्य को दो प्रदेशों में बांटा था - स्वराज्य प्रदेश और मुगल प्रदेश।
¯ स्वराज्य प्रदेश के चार प्रान्त थे -
(क) उत्तरी प्रान्त
(ख) दक्षिणी प्रान्त
(ग) दक्षिण-पूर्वी प्रान्त
(घ) नया जीता हुआ अव्यवस्थित प्रान्त
¯ मराठा राज्य के आय के प्रमुख साधन थे - भूमि कर, चैथ, सरदेशमुखी और चंुगी।
¯ भूमि कर तीस से चालीस प्रतिशत के बीच लिया जाता था।
¯ चैथ कर मुगल प्रदेश से लिया जाता था और सरदेशमुखी स्वराज्य प्रदेश के देशमुखों से।
¯ चैथ की वसूली केवल इस आश्वासन पर की जाती थी कि चैथ देने वाले प्रदेशों को मराठे नहीं लूटेंगे।
सैन्य व्यवस्था
पैदल सेना: एक टुकड़ी में नौ सैनिक होते थे। टुकड़ी का मुखिया नायक कहलाता था। पांच नायकों पर एक हवलदार, दो हवलदारों पर एक जुमलादार, दस जुमलादारों पर एक हजारी होता था। उसके बाद सप्तहजारी और सेनापति होते थे।
अश्वरोही सेना: ये दो प्रकार के होते थे - (क) पागा और (ख) सिलहदार। सबसे छोटी इकाई हवलदार की टुकड़ी थी। पांच हवलदारों पर एक जुमलादार, सात जुमलादारों पर हजारी और पांच हजारियों पर पंचहजारी होते थे। उसके ऊपर सनोबित और सेनापति होता था।
¯ तोपखाने का विशेष महत्व था। शिवाजी की सेना में 80 तोपें थी। तोपची विदेशी थे।
गज दल: इसके अंतर्गत 300 हाथी थे।
पहाड़ी दुर्ग: 300 दुर्ग थे। दुर्ग में एक मराठा हवलदार तथा एक सूबेदार होते थे।
नौसेना: शिवाजी ने नौसैनिक बेड़ा भी बनवाया।
शिवाजी के उत्तराधिकारी
¯ 1680 ई. में शिवाजी के पुत्र सम्भाजी उनके उत्तराधिकारी बने।
¯ 1689 ई. में औरंगजेब ने नवजात शिशु शाहु के साथ उनको तथा उनके परिवार को बंदी बना लिया और सम्भाजी को फांसी दे दी।
¯ सम्भाजी का छोटा भाई राजाराम 1689 ई. में राजा बना तथा जिन्जी को अपनी राजधानी बनाया। लेकिन मुगल सेना द्वारा जिन्जी पर अधिकार कर लिया गया।
¯ राजाराम वहां से भाग कर सतारा चला गया, जहां 1700 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
¯ इसके बाद राजाराम की विधवा ताराबाई ने अपने छोटे पुत्र शिवाजी द्वितीय की प्रतिनिधि बनकर शासन करना आरम्भ किया।
¯ 1707 ई. में बहादुर शाह के शासन कार्य सम्भालने के बाद शाहु को मुक्त कर दिया गया।
¯ ताराबाई ने अपने बेटे को एक प्रतिद्वन्द्वी राजा के रूप में कोल्हापुर की गद्दी पर बिठा दिया जबकि शाहु सतारा में शासन करने लगा।
¯ इससे मराठा राज्य के दो दावेदारों के बीच गृह-युद्ध छिड़ गया। आखिरकार शाहु का आधिपत्य दृढ़तापूर्वक स्थापित हो गया।
¯ इसके बाद ही पेशवाओं का नव-साम्राज्यवाद शुरू हुआ।
पेशवाओं का उदय
बालाजी विश्वनाथ (1713-1720): शाहु की सफलता में बालाजी विश्वनाथ का बड़ा हाथ था। उसे 1713 ई. में पेशवा बनाया गया और उसके साथ ही मराठा राज्य के विस्तार का युग शुरू हुआ। 1718 ई. में उसने सैय्यद बंधुओं में से हुसैन अली के साथ एक संधि की। इस संधि का 1719 में मुगल बादशाह रफी-उस दरजात ने अनुसमर्थन किया। इसके अनुसार शिवाजी के राज्य के सारे क्षेत्र शाहु को वापस मिल गए। उसे दक्कन के छह सूबों से चैथ और सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार भी मिल गया। बदले में मुगल साम्राज्य की सेवा के लिए पन्द्रह हजार घुड़सवारों की सेना रखना शाहु ने स्वीकार कर लिया। साथ ही मराठों को दक्कन में शांति व्यवस्था बनाए रखना था तथा दस लाख रुपये वार्षिक अदा करना था। 1719 ई. में पेशवा मराठा सेना लेकर सैय्यद बंधुओं की मदद के लिए दिल्ली गया और वहां फर्रुखसियार को गद्दी से हटा दिया गया। बालाजी अब दिल्ली से लौट गया तथा 1720 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
बाजीराव प्रथम (1720-1740): बालाजी की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बाजीराव पेशवा बना। उसने ‘हिन्दू पद पादशाही’ (हिन्दू साम्राज्य) की नीति के अनुसार उत्तर में चढ़ाई की व्यापक योजना बनाई। उसने 1723 ई. में एक विशाल सेना के साथ मालवा पर आक्रमण किया जिसमें उसने मुगल गवर्नर सैयद बहादुर शाह को स्थानीय जमींदारों की सहायता से पराजित किया और राजधानी उज्जैन पर कब्जा किया।
पालखेद में निजाम और मराठा सैनिकों का आमना-सामना हुआ जिसमें निजाम को संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। 1728 में हुई मुंशी शिवगांव की संधि के अनुसार निजाम ने स्वीकार किया कि -
(i) वह शाहु की प्रभुसत्ता स्वीकार करेगा और फिर कभी सम्भाजी का समर्थन नहीं करेगा;
(ii) वह दक्षिण में मराठों के चैथ व सरदेशमुखी के अधिकार को स्वीकार करेगा और अभी तक की शेष रकम भी प्रदान करेगा।
बाजीराव प्रथम ने जयपुर के शासक जयसिंह तथा बुंदेल शासक छत्रसाल से मित्रता की। उसने दिल्ली तक हमला किया, लेकिन दिल्ली पर कब्जा नहीं किया क्योंकि अभी भी मुगल बादशाह की काफी इज्जत थी। मराठों ने ये हमले राज्य-विस्तार के इरादे से नहीं किए थे। उनकी दिलचस्पी मुख्य रूप से उन इलाकों से भू-राजस्व का अधिकांश हिस्सा हथियाने की थी।
बालाजी बाजीराव (1740-1761): बाजीराव के पुत्र बालाजी बाजीराव ने अपने पिता की विस्तार की नीति को जारी रखा। वह अपने पिता से भी अधिक महत्वाकांक्षी था। उसने हिन्दू पद पादशाही का सिद्धान्त छोड़कर कई गैर-मराठाओं को भी सेना में सम्मिलित किया तथा युद्ध के पश्चिमी तरीकों का उपयोग किया। उसने गुरिल्ला युद्ध की पुरानी परम्परा को भी शुरू किया।
इसी के काल में पेशवा की विकसित होती पैतृक शक्ति को वैधानिक स्वीकृति प्राप्त हुई। संगोला समझौता (1750 ई.) के बाद मराठा राजा सिर्फ महल-प्रधान बनकर रह गया तथा पेशवा ‘मराठा परिसंघ’ का वास्तविक प्रधान बन बैठा। उसके पेशवा-काल में मराठे पूर्व में बिहार तथा उड़ीसा तक और उत्तर में पंजाब तक पहुंचे। 1757 में उसने दिल्ली पर आक्रमण किया तथा अहमद शाह अब्दाली के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त नजीउद्दौला को अपनी शर्तें मानने पर मजबूर कर दिया। वह मराठा शक्ति के महत्तम विस्तार का काल था। बालाजी बाजीराव को नानासाहब के नाम से भी जाना जाता है।
माधव राव (1761-1772): 1761 ई. में बाजीराव की मृत्यु के बाद उसका सत्रह वर्षीय द्वितीय पुत्र माधव राव पेशवा के रूप में उत्तराधिकारी हुआ। उसके उत्तराधिकार के समय राज्य कई कठिनाइयों से ग्रस्त था। थोड़े काल पूर्व पानीपत की पराजय ने मराठा भाग्य के सितारे को अत्यधिक नीचे ला दिया था। युवा पेशवा को अपने चाचा राघोबा और अन्य महत्वाकांक्षी सामंतों द्वारा प्रस्तुत आंतरिक कठिनाइयां भी भोगनी थीं और साथ ही उसने अपने सामने ही उत्तर से मराठा प्रभाव समाप्त होते हुए भी देखा जबकि दक्षिण में उसके शत्रु निजाम तथा हैदरअली ने मराठों के दुर्भाग्य से लाभ उठाने का प्रयास किया और उनकी कीमत पर राज्य के विस्तार की नीति अपनाई। 1772 ई. में माधवराव की मृत्यु हो गई।
मराठा राज्य-व्यवस्था की कमजोरियों
¯ मराठे एक ऐसी राज्य-व्यवस्था कभी विकसित नहीं कर पाए जो उन्हें अपनी विजयों को स्थायी बनाने और एक सुस्थिर प्रशासन कायम करने में सहायता दे सकती।
¯ वस्तुतः जिस नीति ने उन्हें अपनी सत्ता के विस्तार में मदद दी उसी ने उन्हें आखिर में बर्बाद भी किया।
¯ चैथ और सरदेशमुखी के रूप में राजस्व का एक निश्चित हिस्सा सतारा में मराठों की केन्द्रीय सरकार को भेज दिया जाता था।
महत्वपूर्ण संधियां (अंग्रेज-मराठा संघर्ष के अन्तर्गत) संधियां वर्ष सूरत की संधि 1775 पुरन्दर की संधि 1776 बड़गांव की संधि 1779 सालबाई की संधि 1782 बसीन की संधि 1802 देवगांव की संधि 1803 सुर्जी अर्जुनगांव की संधि 1803 राजापुर घाट की संधि 1804 नागपुर की संधि 1816 ग्वालियर की संधि 1817 पूना की संधि 1817 मंदसोर की संधि 1818 |
¯ शेष हिस्से को मराठा सरदार अपने पास रखते थे और उनकी अपनी-अपनी सेनाएं थीं।
¯ ये सरदार कहने को पेशवा के प्रतिनिधि थे, मगर उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में काफी हद तक अपनी स्वतंत्र सत्ताएं स्थापित कर ली थीं। वे सभी सतारा की सरकार के प्रति अपनी राजनिष्ठा से छुटकारा पाना चाहते थे।
¯ इस प्रकार अठारहवीं सदी के मध्यकाल तक पांच स्पष्ट मराठा शक्तियों का उदय हुआ। ये शक्तियां थीं - पुणे में पेशवा, बड़ौदा में गायकवाड, नागपुर में भोंसले, इन्दौर में होलकर और ग्वालियर में सिंधिया।
¯ मराठों ने अपनी खास ढंग की राज्य-व्यवस्था के कारण अन्य लोगों की सहानुभूति खो दी।
¯ उनके छापामार युद्धों के कारण दूसरे शासक उनके शत्रु बन गए।
¯ उनकी कर वसूली से आम जनता के, विशेषकर किसानों और व्यापारियों के कष्ट बढ़े।
¯ पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761 ई.) ने उनकी भीतरी कमजोरियों को और अन्य जगहों से उन्हें न मिलने वाले सहयोग को उजागर कर दिया।
पानीपत की तीसरी लड़ाई
¯ नादिर शाह ने अफगानिस्तान के जो इलाके जीते थे, वे उसके एक सेनापति अहमद शाह अब्दाली के हाथों में चले गए। अहमद शाह अब्दाली ने दुर्रानी वंश की स्थापना की।
¯ इस बीच मराठों ने दिल्ली और पंजाब में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया। मराठों और अब्दाली के बीच युद्ध अवश्यंभावी हो गया।
¯ मराठों के अलावा इस काल में उत्तर में अन्य शक्तियां थीं - अवध का नवाब, जाट और रुहेला। मुगल बादशाह की कोई पूछ नहीं थी।
¯ अब्दाली अवध के नवाब और रुहेलों का समर्थन प्राप्त करने में सफल हो गया।
¯ मराठों का साथ लगभग सभी ने छोड़ दिया था।
¯ जब 1761 ई. में पानीपत में निर्णायक लड़ाई हुई, तब न राजपूतों ने, न जाटों तथा सिक्खों ने और न ही अन्य किसी शक्ति ने मराठों की मदद की।
¯ मराठों की करारी हार हुई तथा उनके श्रेष्ठ नायक तथा सैकड़ों सैनिक मारे गए।
¯ अहमद शाह अब्दाली के साथ लड़ाई के नतीजे मराठों के लिए भयंकर साबित हुए।
¯ भारत में, विशेषकर उत्तरी क्षेत्रों में मराठों के आधिपत्य को गहरा धक्का लगा। उनके बीच जो कुछ एकता कायम थी, वह लड़ाई के बाद खत्म हो गई।
¯ मराठा सरदार आपस में झगड़ने लगे और अपने इस आंतरिक कलह में अन्य शक्तियों की मदद खोजने लगे।
¯ कुछ समय के लिए मराठे अपने खोए हुए इलाके पुनः प्राप्त करने में सफल हो गए, मगर उनकी वह स्थिति कुछ समय तक ही बनी रही।
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1. मराठा साम्राज्य क्या था? |
2. मराठा साम्राज्याचा इतिहास कसा होता? |
3. यूरोपीय वाणिज्य की शुरुआत कशी झाली? |
4. UPSC परीक्षेत यावे लागणारे महत्त्वपूर्ण विषय कोणते आहेत? |
5. आईएएस परीक्षेमध्ये किती पेपर आहेत आणि त्या पेपर्सची विषयवस्तु काय आहे? |
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