UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  गोलमेज सम्मेलन, कम्यूनल अवार्ड एवं पूना समझौता (1932) - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

गोलमेज सम्मेलन, कम्यूनल अवार्ड एवं पूना समझौता (1932) - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

गोलमेज सम्मेलन

  • साइमन कमीशन द्वारा सुझाए गए सुधारों पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने नवंबर 1930 ई. में लंदन में पहला गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया। 
  • कांग्रेस ने उस सम्मेलन का बहिष्कार किया, मगर भारतीय राजाओं, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा तथा कुछ अन्य संगठनों के प्रतिनिधि उसमें शामिल हुए।
  • कांग्रेस के भाग न लेने के कारण यह सम्मेलन असफल रहा।
  • ब्रिटिश सरकार जानती थी कि यदि कांग्रेस की सहमति के बिना भारत में संविधानात्मक फेर-बदल के बारे में फैसले किए जाते हैं तो वे भारत की जनता को स्वीकार नहीं होंगे। 
  • वायसराय इरविन ने 1931 ई. के आरम्भ में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने के लिए कांग्रेस को राजी करने के प्रयास किए। 
  • गांधीजी और इरविन के बीएक समझौता हुआ। 
  • सरकार ने उन सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करना स्वीकार कर लिया जिनके खिलाफ हिंसा के आरोप नहीं थे। 
  • कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेना स्वीकार कर लिया। 
  • अनेक राष्ट्रीय नेता इस समझौते से संतुष्ट नहीं थे। 
  • मगर बल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में मार्1931 ई. में कराची में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में समझौते को मान लेने और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में सम्मिलित होने का निर्णय लिया गया। 
  • सम्मेलन के लिए गांधीजी को कांग्रेस का प्रतिनिधि चुना गया। 
  • कांग्रेस के इसी करांची अधिवेशन में मौलिक अधिकारों और कुछ उद्योगों के राष्ट्रीयकरण के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकार किए गए।
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन सितम्बर 1931 ई. में हुआ। इसमें भाग लेने वाले कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि गांधीजी थे। 
  • देशी रियासतों के राजाओं तथा हिन्दू, मुस्लिम और सिख संप्रदाय के नेताओं ने भी सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन इन नेताओं की दिलचस्पी भारत की आजादी में न थी। इसलिए कोई समझौता नहीं हो सका और दूसरा गोलमेज सम्मेलन असफल रहा। 
  • गांधीजी भारत लौटे और सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः शुरू कर दिया गया।
  • 1932 ई. में आयोजित तीसरे गोलमेज सम्मेलन में भी कांग्रेस ने भाग नहीं लिया।
  • सरकार का दमन-चक्र जारी रहा। गांधीजी और दूसरे नेताओं को रिगफ्तार कर लिया गया। 
  • आंदोलन को 1934 ई. में वापस ले लिया गया। 
  • 1934 ई. में कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास कर मांग किया कि वयस्क मताधिकार से जनता द्वारों चुनी गई विधान सभा स्थापित की जाए।

कम्यूनल अवार्ड एवं पूना समझौता (1932)

  • 1932 ई. में ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैक्डोनाल्ड ने साम्प्रदायिक घोषणा (कम्यूनल अवार्ड) द्वारा हरिजनों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की। 
  • इस घोषणा के विरोध में गांधीजी ने आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। 
  • 20 अगस्त, 1932 को अम्बेडकर तथा गांधीजी के बीपूना में एक समझौता हुआ। इसके द्वारा केन्द्रीय विधान मंडल में हरिजनों के लिए 18 प्रतिशत सीटों का आरक्षण तथा उनकी शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की व्यवस्था की गई। स्थानीय संस्थाओं एवं सार्वजनिक सेवा में भी उनके लिए उचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई।

देशी रियासतों के विरुद्ध आंदोलन

  • अंग्रेजों द्वारा शासित प्रदेशों के अलावा भारतीय नवाबों-राजाओं द्वारा शासित रियासतें भी थीं। इन रियासतों की संख्या करीब 562 थी और इनमें भारत की करीब 20 प्रतिशत आबादी बसी हुई थी। 
  • इसमें जम्मू व कश्मीर, मैसूर और हैदराबाद जैसे कुछ राज्य तत्कालीन यूरोप के कुछ राज्यों से भी बड़े थे, मगर कुछ अन्य रियासत चंद देहातों से अधिक बड़े नहीं थे। 
  • इनमें से अधिकांश राज्यों में जनता की दशा शेष देश की जनता की दशा से भी बदतर थी। 
  • ज्यादातर राजा अपनी रियासतों को अपनी निजी सम्पत्ति समझते थे और विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करते थे।
  • वर्तमान सदी के तीसरे दशक के आरम्भ से रियासतों के लोगों ने प्रशासन में सुधारों की मांग करने और शासकों के उत्पीड़न को खत्म करने के लिए अपने को संगठित करना शुरू किया। 
  • लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए इन राज्यों में प्रजा मंडल जैसे संगठन स्थापित किए गए। 
  • आरम्भिक प्रजा मंडल विजय सिंह पथिक, माणिक्यलाल वर्मा आदि के नेतृत्व में राजस्थान के रियासतों में स्थापित हुए। रियासतों की जनता के ये सभी संगठन आल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेस में एकीकृत हुए। 
  • बलवंत राय मेहता, जिन्होंने भावनगर (गुजरात) में प्रजा मंडल की स्थापना की थी, इस नए संगठन के सचिव बने। 
  • इस संगठन ने मांग की कि भारतीय रियासतों को भारतीय राष्ट्र का अंग माना जाना चाहिए।
  • वर्तमान सदी के चैथे दशक में भारतीय रियासतों की जनता का आंदोलन काफी शक्तिशाली बना। इन आंदोलनों के कुछ प्रमुख नेता थे - राजस्थान में जय नारायण व्यास तथा जमनालाल बजाज, उड़ीसा में सारंगधर दास, त्रावणकोर में एनि मस्करेने तथा पद्यमभानु पिल्लई और जम्मू तथा कश्मीर में शेख मुहम्मद अब्दुल्ला। 
  • हैदराबाद में आंदोलन का नेतृत्व स्वामी रामानंद तीर्थ ने किया। 
  • राजाओं ने दहशत फैलाकर आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए, पंजाब के प्रजा मंडल के एक प्रमुख नेता सेवा सिंह ठिक्रीवाला को पटियाला की जेल में डालकर यातनाएँ दी गईं, जिससे उनकी मृत्यु हुई। 
  • रियासतों के राजाओं ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को कुचलने में भी अंग्रेजों को मदद दी। 
  • रियासतों के आंदोलनों को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने राजाओं को मदद दी और कभी-कभी ब्रिटिश सेना भी भेजी। 
  • ब्रिटिश शासकों की तरह राजाओं-नवाबों ने भी धर्म के आधार पर लोगों में फूट डालने के प्रयास किए।
  • कांग्रेस ने कई सालों तक रियासतों के मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति अपनाई, यद्यपि कई कांग्रेसियों ने रियासतों के आंदोलनों में भी भाग लिया था और कांग्रेस ने रियासतों की जनता की मांगों का समर्थन किया था। 
  • कांग्रेस ने रियासतों में अपनी शाखाएँ खोलने की अनुमति भी नहीं दी थी। 
  • सुभाषचंद्र बोस की अध्यक्षता में 1939 ई. में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में घोषणा की गई कि पूर्ण स्वराज का लक्ष्य रियासतों सहित समूचे देश के लिए है।
  • कांग्रेस ने घोषणा की कि वह रियासतों को भारतीय राष्ट्र का हिस्सा मानती है और रियासतों की जनता को वही राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकार मिलेंगे जो कि शेष भारत की जनता को मिलेंगे। 
  • जवाहरलाल नेहरू को, जो कई सालों से रियासतों की जनता के संघर्ष को सहयोग दे रहे थे, आल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस का अध्यक्ष चुना गया।
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FAQs on गोलमेज सम्मेलन, कम्यूनल अवार्ड एवं पूना समझौता (1932) - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. गोलमेज सम्मेलन क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: गोलमेज सम्मेलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण इतिहासिक घटना है। यह 1930 में ब्रिटिश सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच हुआ एक समझौता था, जिसमें गोलमेज समझौता के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को कुछ राजनैतिक अधिकार प्रदान किए। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि इससे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आंदोलनिक स्वतंत्रता की अवधारणा को मजबूती मिली और यह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का महत्वपूर्ण मोड़ था।
2. कम्यूनल अवार्ड क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
उत्तर: कम्यूनल अवार्ड भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दिए गए अवार्डों में से एक है। इस अवार्ड का उद्देश्य था कि इसके माध्यम से लोगों के बीच सामाजिक एकता, सहयोग और समरसता के लिए प्रोत्साहित किया जाए। यह अवार्ड उन लोगों को प्रदान किया गया जो सामाजिक एकता को बढ़ावा देने में अपना योगदान देते थे।
3. पूना समझौता (1932) क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: पूना समझौता (1932) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण समझौता था, जो विद्रोही सत्याग्रह के एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में माना जाता है। इस समझौते के अनुसार, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार के साथ सहमति करके विदेशी वस्त्रों की बहिष्कार और भारतीय वस्त्रों की खरीदारी को प्रोत्साहित किया। इसके अलावा, यह समझौता भारतीय राजनीति में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार को बढ़ावा देने में मदद करने और स्वदेशी आंदोलन को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य रखता था।
4. क्या यह समझौते भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण थे?
उत्तर: हां, गोलमेज सम्मेलन, कम्यूनल अवार्ड और पूना समझौता (1932) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण थे। ये सभी घटनाएं भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं, जो स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन समझौतों ने स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती दी और लोगों के बीच समरसता और सहयोग को बढ़ावा दिया।
5. क्या गोलमेज सम्मेलन, कम्यूनल अवार्ड और पूना समझौता (1932) आईएएस परीक्षा के सिलेबस में शामिल हैं?
उत्तर: हां, गोलमेज सम्मेलन, कम्यूनल अवार्ड और पूना समझौता (1932) इतिहास के भाग के रूप में आईएएस परीक्षा के सिलेबस में शामिल हैं। ये घटनाएं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं और इत
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