उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो-चान द्वारा यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बडा देखता तो वह ज़रूर डर के मारे चीख उठता। उसे वे सच में जोखिम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा भरोसा था और वह खुद भी यासुकी-चान के लिए भारी खतरा उठा रही थी। अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी-चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था।
काफी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, “मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।”
Q. यासुकी-चान और तोत्तो-चान को पेड़ पर देखकर कोई बड़ा व्यक्ति क्यों चीख उठता?
उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो-चान द्वारा यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बडा देखता तो वह ज़रूर डर के मारे चीख उठता। उसे वे सच में जोखिम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा भरोसा था और वह खुद भी यासुकी-चान के लिए भारी खतरा उठा रही थी। अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी-चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था।
काफी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, “मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।”
Q. ‘जोखिम’ शब्द का अर्थ होगा
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उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो-चान द्वारा यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बडा देखता तो वह ज़रूर डर के मारे चीख उठता। उसे वे सच में जोखिम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा भरोसा था और वह खुद भी यासुकी-चान के लिए भारी खतरा उठा रही थी। अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी-चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था।
काफी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, “मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।”
Q. पेड़ पर चढ़ते समय उन्हें धूप से कौन बचा रहा था?
उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो-चान द्वारा यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बडा देखता तो वह ज़रूर डर के मारे चीख उठता। उसे वे सच में जोखिम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा भरोसा था और वह खुद भी यासुकी-चान के लिए भारी खतरा उठा रही थी। अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी-चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था।
काफी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, “मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।”
Q. तोत्तो-चान ने यासुकी-चान का स्वागत किस प्रकार किया?
उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो-चान द्वारा यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बडा देखता तो वह ज़रूर डर के मारे चीख उठता। उसे वे सच में जोखिम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा भरोसा था और वह खुद भी यासुकी-चान के लिए भारी खतरा उठा रही थी। अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वह पूरी ताकत से यासुकी-चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था।
काफी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ की द्विशाखा पर थे। पसीने से तरबतर अपने बालों को चेहरे पर से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, “मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।”
Q. तोत्तो-चान कैसी लड़की थी?
जैसे ही यासुकी-चान ने तोत्तो-चान को देखा, वह पैर घसीटता हुआ उसकी ओर बढ़ा। उसके हाथ अपनी चाल को स्थिर करने के लिए दोनों ओर फैले हुए थे। तोत्तो-चान उत्तेचित थी। वे दोनों आज कुछ ऐसा करने वाले थे जिसका भेद किसी को भी पता न था। वह उल्लास में ठिठियाकर हँसने लगी। यासुकी-चान भी हँसने लगा।
तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद वह तुरंत चौकीदार के छप्पर की ओर भागी, जैसा उसने रात को ही तय कर लिया था। वहाँ से वह एक सीढ़ी घसीटती हुई लाई। उसे तने के सहारे ऐसे लगाया, जिससे वह द्विशाखा तक पहुँच जाए। वह कुरसी से ऊपर चढ़ी और सीढ़ी के किनारे को पकड़ किया। तब उसने पुकारा, “ठीक है, अब ऊपर चढ़ने की कोशिश करो।”
Q. तोत्तो-चान उत्तेजित क्यों थी?
जैसे ही यासुकी-चान ने तोत्तो-चान को देखा, वह पैर घसीटता हुआ उसकी ओर बढ़ा। उसके हाथ अपनी चाल को स्थिर करने के लिए दोनों ओर फैले हुए थे। तोत्तो-चान उत्तेचित थी। वे दोनों आज कुछ ऐसा करने वाले थे जिसका भेद किसी को भी पता न था। वह उल्लास में ठिठियाकर हँसने लगी। यासुकी-चान भी हँसने लगा।
तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद वह तुरंत चौकीदार के छप्पर की ओर भागी, जैसा उसने रात को ही तय कर लिया था। वहाँ से वह एक सीढ़ी घसीटती हुई लाई। उसे तने के सहारे ऐसे लगाया, जिससे वह द्विशाखा तक पहुँच जाए। वह कुरसी से ऊपर चढ़ी और सीढ़ी के किनारे को पकड़ किया। तब उसने पुकारा, “ठीक है, अब ऊपर चढ़ने की कोशिश करो।”
Q. द्विशाखा किसे कहते हैं?
तोत्तो-चान यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने का कौन-सा तरीका अपना रही थी?