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बौद्ध धर्म और जैन धर्म का पूरा सार - यूपीएससी, आईएएस Video Lecture | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

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FAQs on बौद्ध धर्म और जैन धर्म का पूरा सार - यूपीएससी, आईएएस Video Lecture - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. बौद्ध धर्म और जैन धर्म में मुख्य अंतर क्या हैं?
Ans. बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ही प्राचीन भारतीय धर्म हैं, लेकिन इनके सिद्धांतों और आचार-व्यवहार में प्रमुख अंतर हैं। बौद्ध धर्म की स्थापना सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) ने की थी, जबकि जैन धर्म की स्थापना महावीर ने की। बौद्ध धर्म में 'निरvana' की प्राप्ति के लिए 'अष्टांगिक मार्ग' का पालन किया जाता है, जबकि जैन धर्म में 'केवल ज्ञान' की प्राप्ति के लिए 'पंच महाव्रत' का पालन अनिवार्य है। बौद्ध धर्म में आत्मा की स्थायी पहचान नहीं होती, जबकि जैन धर्म में आत्मा को शाश्वत माना जाता है।
2. बौद्ध धर्म में ध्यान का क्या महत्व है?
Ans. बौद्ध धर्म में ध्यान का अत्यधिक महत्व है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर सकता है और मानसिक स्थिति को सुधार सकता है। ध्यान से व्यक्ति 'सत्य' और 'अवधारणा' को समझने में सहायता पाता है, जिससे वह 'दुख' से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। बौद्ध ध्यान विधियों में विपश्यना और समता ध्यान प्रमुख हैं।
3. जैन धर्म में 'पंच महाव्रत' क्या हैं?
Ans. जैन धर्म में 'पंच महाव्रत' पाँच प्रमुख नैतिक सिद्धांत हैं, जिन्हें जैन श्रद्धालुओं द्वारा पालन किया जाता है। ये हैं - 'अहिंसा' (हत्या न करना), 'सत्य' (सच बोलना), 'अस्तेय' (चोरी न करना), 'ब्रह्मचर्य' (शुद्धता बनाए रखना) और 'अपारिग्रह' (असंपत्ति से वंचित रहना)। ये व्रत जैनियों को आत्मा के शुद्धिकरण और मोक्ष की ओर अग्रसर करने में मदद करते हैं।
4. बौद्ध धर्म में 'चार आर्य सत्य' क्या हैं?
Ans. बौद्ध धर्म के अनुसार 'चार आर्य सत्य' इस प्रकार हैं: 1) 'दुख' (जीवन में दुख है), 2) 'दुख का कारण' (दुख का कारण तृष्णा है), 3) 'दुख का नाश' (दुख का नाश संभव है), और 4) 'दुख का नाश करने का मार्ग' (अष्टांगिक मार्ग)। ये सत्य व्यक्ति को दुख की वास्तविकता को समझने और उससे मुक्ति पाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
5. क्या बौद्ध धर्म और जैन धर्म में पुनर्जन्म का सिद्धांत समान है?
Ans. बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों में पुनर्जन्म का सिद्धांत मौजूद है, लेकिन इनके दृष्टिकोण में अंतर है। जैन धर्म में आत्मा का पुनर्जन्म उसके कर्मों के अनुसार होता है, और आत्मा सदा शाश्वत रहती है। जबकि बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म का विचार 'अनात्मा' के सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ कोई स्थायी आत्मा नहीं होती, बल्कि एक प्रक्रिया होती है, जो कर्मों के आधार पर चलती है।
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