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जैन दर्शन - यूपीएससी, आईएएस Video Lecture | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

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FAQs on जैन दर्शन - यूपीएससी, आईएएस Video Lecture - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. जैन दर्शन क्या है?
उत्तर: जैन दर्शन भारतीय दर्शनों में से एक है जो महावीर जयंती के पश्चात उत्पन्न हुआ। इसमें अहिंसा, अनेकान्तवाद और अपरिग्रह को महत्व दिया जाता है। यह एक धार्मिक, दार्शनिक और नैतिक प्रणाली है जिसमें मोक्ष को मुख्य लक्ष्य माना जाता है।
2. जैन दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर: जैन दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित हैं: 1. अहिंसा: यह सिद्धांत अहिंसा के प्रति समर्पण को प्रमुखता देता है। जैन दर्शन में अहिंसा को जीवों के प्रति और अपने आप के प्रति भी सम्मानित किया जाता है। 2. अनेकान्तवाद: यह सिद्धांत कहता है कि सत्य की पूर्णता का अनुभव करने के लिए हमें सभी पक्षों को समझना चाहिए। एकांतवाद और अनेकांतवाद को जैन दर्शन में महत्वपूर्ण माना जाता है। 3. अपरिग्रह: यह सिद्धांत संपत्ति के प्रति आसक्ति को रोकने का आह्वान करता है। जैन दर्शन में अपरिग्रह को मानसिक, भावनात्मक और वस्तुतात्मक स्तर पर व्यापार, धन और अन्य संपत्तियों से निपटने के लिए अपनाया जाता है।
3. जैन दर्शन में मोक्ष का महत्व क्या है?
उत्तर: जैन दर्शन में मोक्ष को महत्वपूर्ण माना जाता है। मोक्ष जैन दर्शन में आत्मा की मुक्ति है जो संसार के सभी बंधनों से मुक्त होते हुए आत्मा को अनंत ज्ञान, अनंत वीर्य, अनंत आनंद और अनंत चारित्र की प्राप्ति कराती है। मोक्ष को प्राप्त करने के लिए जैन दर्शन में अहिंसा, अनेकान्तवाद, अपरिग्रह और आचरण के नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
4. जैन दर्शन का इतिहास क्या है?
उत्तर: जैन दर्शन के इतिहास में महावीर जैन को माना जाता है जो ये दर्शन विकसित किया। महावीर जैन को तीर्थंकर (आदिनाथ) माना जाता है और उनके समय में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ। उनके बाद जैन धर्म अपनी विभिन्न शाखाओं में विभाजित हो गया, जिसमें श्वेतांबर और दिगंबर शाखा प्रमुख हैं।
5. जैन दर्शन के आचार्य कौन-कौन हैं?
उत्तर: जैन दर्शन के प्रमुख आचार्यों में बहुत से महान धार्मिक और दार्शनिक व्यक्तित्व शामिल हैं। कुछ प्रमुख आचार्यों में महावीर जैन, पार्श्वनाथ, गौतमस्, उपाध्याय अमितगति आदि शामिल हैं। इन आचार्यों ने जैन दर्शन के सिद्धांतों को समझाया और उनका प्रचार-प्रसार किया।
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