‘जिससे न जाति-उद्धार हुआ’ — इस पंक्ति में कौन-सा भाव छिपा है?a)जातीय ग...
यहाँ कवि उस व्यक्ति को निरर्थक मानते हैं, जिससे न तो समाज और न ही राष्ट्र को कोई लाभ पहुँचा। उनका कहना है कि यदि व्यक्ति समाज-कल्याण में सहायक नहीं बना, तो उसका जीवन व्यर्थ है।
‘जिससे न जाति-उद्धार हुआ’ — इस पंक्ति में कौन-सा भाव छिपा है?a)जातीय ग...
भाव का विश्लेषण
इस पंक्ति "जिससे न जाति-उद्धार हुआ" में गहरा अर्थ निहित है। यह भाव सामाजिक ढांचे और जातिगत असमानता की ओर संकेत करता है, लेकिन इसके पीछे एक और महत्वपूर्ण संदेश है, जो 'राष्ट्र के प्रति निष्क्रियता' से संबंधित है।
राष्ट्र के प्रति निष्क्रियता
- यह पंक्ति उस स्थिति को दर्शाती है जहां जाति के उद्धार की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है।
- जब जाति-उद्धार नहीं होता, तो यह संकेत करता है कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मौजूद असमानता बनी रहती है, जो राष्ट्र के विकास में बाधा डालती है।
- यदि जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता को खत्म करने की दिशा में कदम नहीं उठाए जाते, तो यह समाज की प्रगति और समृद्धि में निष्क्रियता का परिचायक है।
समाज की जिम्मेदारी
- यह पंक्ति समाज के सभी सदस्यों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है।
- जाति-उद्धार के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि समाज में समता और एकता स्थापित हो सके।
निष्कर्ष
इस प्रकार, "जिससे न जाति-उद्धार हुआ" पंक्ति का सही उत्तर 'राष्ट्र के प्रति निष्क्रियता' है, क्योंकि यह समाज की प्रगति में योगदान करने की जिम्मेदारी की कमी को दर्शाती है।