Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)  >  कविता की व्याख्या: मनुष्यता

कविता की व्याख्या: मनुष्यता | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

व्याख्या

प्रस्तुत पाठ में कवि मैथलीशरण गुप्त ने सही अर्थों में मनुष्य किसे कहते हैं उसे बताया है। कविता परोपकार की भावना का बखान करती है तथा मनुष्य को भलाई और भाईचारे के पथ पर चलने का सलाह देती है।

(1)
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
हुई न यों सु-मृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या: 

कवि कहते हैं मनुष्य को ज्ञान होना चाहिए की वह मरणशील है इसलिए उसे मृत्यु से डरना नहीं चाहिए परन्तु उसे ऐसी सुमृत्यु को प्राप्त होना चाहिए जिससे सभी लोग मृत्यु के बाद भी याद करें। कवि के अनुसार ऐसे व्यक्ति का जीना या मरना व्यर्थ है जो खुद के लिए जीता हो। ऐसे व्यक्ति पशु के समान है असल मनुष्य वह है जो दूसरों की भलाई करे, उनके लिए जिए। ऐसे व्यक्ति को लोग मृत्यु के बाद भी याद रखते हैं।

(2)
उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती,
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या: 

 कवि के अनुसार उदार व्यक्तियों की उदारशीलता को पुस्तकों, इतिहासों में स्थान देकर उनका बखान किया जाता है, उनका समस्त लोग आभार मानते हैं तथा पूजते हैं।  जो व्यक्ति विश्व में एकता और अखंडता को फैलता है उसकी कीर्ति का सारे संसार में गुणगान होता है। असल मनुष्य वह है जो दूसरों के लिए जिए मरे।

(3)
क्षुदार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या: 

इन पंक्तियों में कवि ने पौरणिक कथाओं का उदारहण दिया है। भूख से व्याकुल रंतिदेव ने माँगने पर अपना भोजन का थाल भी दे दिया तथा देवताओं को बचाने के लिए दधीचि ने अपनी हड्डियों को व्रज बनाने के लिए दिया।  राजा उशीनर ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर का मांस बहेलिए को दे दिया और वीर कर्ण ने अपना शारीरिक रक्षा कवच दान कर दिया। नश्वर शरीर के लिए मनुष्य को भयभीत नही होना चाहिए।

(4)
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है वही,
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,
वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या :

कवि ने सहानुभूति, उपकार और करुणा की भावना को सबसे बड़ी पूंजी बताया है और कहा है की इससे ईश्वर भी वश में हो जाते हैं। बुद्ध ने करुणावश पुरानी परम्पराओं को तोड़ा जो कि दुनिया की भलाई के लिए था इसलिए लोग आज भी उन्हें पूजते हैं। उदार व्यक्ति वह है जो दूसरों की भलाई करे।

(5)
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में
सन्त जन आपको करो न गर्व चित्त में
अन्त को हैं यहाँ त्रिलोकनाथ साथ में
दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं
अतीव भाग्यहीन हैं अंधेर भाव जो भरे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या:

कवि कहते हैं की अगर किसी मनुष्य के पास यश, धन-दौलत है तो उसे इस बात के गर्व में अँधा होकर दूसरों की उपेक्षा नही करनी नहीं चाहिए क्योंकि इस संसार में कोई अनाथ नहीं है। ईश्वर का हाथ सभी के सर पर है। प्रभु के रहते भी जो व्याकुल है वह बड़ा भाग्यहीन है।

(6)
अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े।
परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸
अभी अमत्र्य–अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या :

कवि के अनुसार अनंत आकाश में असंख्य देवता मौजूद हैं जो अपने हाथ बढ़ाकर परोपकारी और दयालु मनुष्यों के स्वागत के लिए खड़े हैं। इसलिए हमें परस्पर सहयोग बनाकर उन ऊचाइयों को प्राप्त करना चाहिए जहाँ देवता स्वयं हमें अपने गोद में बिठायें। इस मरणशील संसार में हमें एक-दूसरे के कल्याण के कामों को करते रहें और स्वयं का उद्धार करें।

(7)
'मनुष्य मात्र बन्धु है' यही बड़ा विवेक है¸
पुराणपुरूष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या:

 सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई-बंधू है यह बहुत बड़ी समझ है सबके पिता ईश्वर हैं। भले ही मनुष्य के कर्म अनेक हैं परन्तु उनकी आत्मा में एकता है। कवि कहते हैं कि अगर भाई ही भाई की मदद नही करेगा तो उसका जीवन व्यर्थ है यानी हर मनुष्य को दूसरे की मदद को तत्पर रहना चाहिए।

(8)
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸
विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

व्याख्या:

अंतिम पंक्तियों में कवि मनुष्य को कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो बाधा पड़े उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ो। परन्तु इसमें मनुष्य को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका आपसी सामंजस्य न घटे और भेदभाव न बढ़े। जब हम एक दूसरे के दुखों को दूर करते हुए आगे बढ़ेंगे तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी और समस्त समाज की भी उन्नति होगी।

कवि परिचय
मैथिलीशरण गुप्त
इनका जन्म 1886 में झाँसी के करीब चिरगाँव में हुआ था। अपने जीवन काल में ही ये राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए। इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी पर इनका सामान अधिकार था। ये रामभक्त कवि हैं। इन्होने भारतीय जीवन को समग्रता और प्रस्तुत करने का प्रयास किया।

प्रमुख कार्य
कृतियाँ - साकेत, यशोधरा जयद्रथ वध।

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. मृत्य - मरणशील
  2. वृथा - व्यर्थ
  3.  पशु–प्रवृत्ति - पशु जैसा स्वभाव
  4. उदार - दानशील
  5. कृतार्थ - आभारी
  6.  कीर्ति - यश
  7. क्षुधार्थ - भूख से व्याकुल
  8. रंतिदेव -एक परम दानी राजा
  9. करस्थ - हाथ में पकड़ा हुआ
  10. दधीची - एक प्रसिद्ध ऋषि जिनकी हड्डियों से इंद्र का व्रज बना था
  11. परार्थ - जो दूसरे के लिए हो
  12.  अस्थिजाल - हड्डियों का समूह
  13. उशीनर - गंधार देश का राजा
  14. क्षितीश - राजा
  15. स्वमांस - शरीर का मांस
  16. कर्ण - दान देने के लिए प्रसिद्ध कुंती पुत्र
  17. अनित्य - नश्वर 
  18. अनादि - जिसका आरम्भ ना हो
  19.  सहानुभूति - हमदर्दी
  20. महाविभूति - बड़ी भारी पूँजी
  21.  वशीकृता - वश में की हुई
  22.  विरूद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा - बुद्ध ने करुणावश उस समय की पारम्परिक मान्यताओं का विरोध किया था।
  23. विनीत - विनय से युक्त
  24. मदांध - जो गर्व से अँधा हो।
  25. वित्त - धन-संपत्ति
  26. अतीव - बहुत ज्यादा
  27. अनंत - जिसका कोई अंत ना हो
  28. परस्परावलम्ब - एक-दूसरे का सहारा
  29.  अमृत्य–अंक - देवता की गोद
  30. अपंक - कलंक रहित
  31. स्वयंभू - स्वंय से उत्पन्न होने वाला
  32. अंतरैक्य - आत्मा की एकता
  33. प्रमाणभूत - साक्षी
  34.  अभीष्ट - इक्षित
  35. अतर्क - तर्क से परे
  36.  सतर्क पंथ - सावधानी यात्रा
The document कविता की व्याख्या: मनुष्यता | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) is a part of the Class 10 Course Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan).
All you need of Class 10 at this link: Class 10
16 videos|201 docs|45 tests

Top Courses for Class 10

FAQs on कविता की व्याख्या: मनुष्यता - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. "मनुष्यता" कविता का मुख्य विषय क्या है?
Ans."मनुष्यता" कविता का मुख्य विषय मानवता, सहानुभूति और एकता है। यह कविता मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है और यह संदेश देती है कि हमें एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए।
2. "मनुष्यता" कविता में कवि ने किन-किन भावनाओं को व्यक्त किया है?
Ans.कवि ने "मनुष्यता" कविता में प्रेम, करुणा, और भाईचारे की भावनाओं को व्यक्त किया है। कविता में यह दिखाया गया है कि मानवता की सच्ची पहचान प्रेम और सहयोग में है।
3. "मनुष्यता" कविता का संरचना और शैली क्या है?
Ans."मनुष्यता" कविता की संरचना सरल और प्रवाहमयी है। इसमें लय और छंद का विशेष ध्यान रखा गया है, जिससे पाठक को कविता का आनंद लेने में मदद मिलती है। कवि की भाषा भी सहज और प्रभावशाली है।
4. "मनुष्यता" कविता में दिए गए संदेश का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
Ans."मनुष्यता" कविता का संदेश समाज में प्रेम और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है। यह हमें याद दिलाती है कि मानवता का असली अर्थ एक-दूसरे की मदद करना और एकजुट होना है, जो समाज के विकास में सहायक होता है।
5. "मनुष्यता" कविता को पढ़ने से हमें क्या सीख मिलती है?
Ans."मनुष्यता" कविता को पढ़ने से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने आसपास के लोगों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। यह हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में सहानुभूति और करुणा का होना कितना महत्वपूर्ण है।
16 videos|201 docs|45 tests
Download as PDF
Explore Courses for Class 10 exam

Top Courses for Class 10

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Summary

,

past year papers

,

pdf

,

Semester Notes

,

mock tests for examination

,

Exam

,

कविता की व्याख्या: मनुष्यता | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

,

MCQs

,

Viva Questions

,

कविता की व्याख्या: मनुष्यता | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

,

study material

,

shortcuts and tricks

,

practice quizzes

,

कविता की व्याख्या: मनुष्यता | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

,

video lectures

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Important questions

,

ppt

,

Sample Paper

,

Objective type Questions

,

Extra Questions

,

Free

;