Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij)  >  कविता की व्याख्या - पाठ 6 - संगतकार

कविता की व्याख्या - पाठ 6 - संगतकार | Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij) PDF Download

(1)
 मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
 वह आवाश सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी
 वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
 या उसका शिष्य
 या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
 मुख्य गायक की गरश में
 वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
 गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
 खो चुका होता है
 या अपने ही सरगम को लाँघकर
 चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
 तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
 जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
 जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
 जब वह नौसिखिया था

शब्दार्थ: संगतकार = मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला कलाकार, सहयोगी, गरश = उँची गंभीर आवाज़, अंतरा = स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण, जटिल = कठिन, तान = संगीत में स्वर का विस्तार, सरगम = संगीत के सात स्वर, अनहद = योग अथवा साधना की आनंददायक स्थिति, स्थायी = गीत का वह चरण, जो बार-बार गाया जाता है, टेक।, नौसिखिया = जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो, शिष्य = चेला, सीखने वाला।

व्याख्या: कवि कहते हैं कि मुख्य गायक के साथ संगत करने वाले यानी गाने वाले या बजाने वाले कुछ लोग होते हैं, उन्हें संगतकार कहते हैं। मुख्य या प्रधान गायक के गंभीर स्वर के साथ अपनी कमज़ोर किंतु मधुर आवाज़ से जब कोई गाता है तब अधिकांश स्थलों पर वह गायक का छोटा भाई, चेला या कोई रिश्तेदार होता है। कवि कहते हैं कि पुराने जमाने से ही ऐसी परंपरा चलती आ रही है कि जब मुख्य गायक गीत गाते हुए सुरों की मोहक दुनिया में खो जाता है, भाव-विभोर हो जाता है अथवा अंतरे की सुर-तान की बारीकियों में उलझता चला जाता है और उसी में रम जाता है तब संगतकार ही स्थायी या टेक को बार-बार गाकर समाँ बाँध रखता है। यहाँ कवि यह कहना चाहते हैं कि कभी-कभी मुख्य गायक अपनी सरगम से उत्पन्न होने वाले आनंद से भी परे किसी दिव्य लोक में स्वर्गिक आनंद की अनुभूति करने लगता है तब उसे बाह्य जगत की सुध नहीं रहती। योग-साधना की ऐसी आनंददायिनी स्थिति में श्रोताओं को संगीत से जोड़े रखने का काम संगतकार ही करता है। कवि यहाँ एक अनुपम उदाहरण देते हैं कि ऐसा लगता है कि किसी के चले जाने के बाद जैसे कोई उसका छूटा हुआ सामान सँजोकर रख रहा हो। कवि आगे यह भी कहते हैं कि संगतकार अपनी टेक से मुख्य गायक को यह याद दिलाता है कि कभी वह भी नया-नया सीखने वाला था, आज जैसा महान गायक न था। इस प्रकार वह अपनी आवाश के जादू से उसे उसके बचपन की याद दिलाता है।

2.
तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
 प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
 आवाश से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
 तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बँधाता
 कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
 कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
 यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
 और यह कि फिर से गाया जा सकता है
 गाया जा चुका राग
 और उसकी आवाश में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
 या अपने स्वर को उँचा न उठाने की जो कोशिश है
 उसे विफलता नहीं
 उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

शब्दार्थ: तारसप्तक = सप्तक का अर्थ है सात स्वरों का समूह, लेकिन ध्वनि या आवाज़ की उँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। साधारण या सामान्य ध्वनि को ‘मध्य सप्तक’ कहते हैं। मध्य सप्तक से उपर की ध्वनि को ‘तार सप्तक’ कहते है यानी कापफी उँची आवाश। और मध्य सप्तक से नीची आवाश को ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं, उत्साह अस्त होना = उत्साह खत्म होना, राख जैसा कुछ गिरता हुआ = बुझता हुआ स्वर , बेजा न आवाज़ , ढाँढ़स बँधाता = तसल्ली देता, सांत्वना देता, हिचक = झिझक, विफलता = पराजय, हार, मनुष्यता = मानवता।

व्याख्या: उपर्युक्त पंक्तियों में कवि कहना चाहते हैं कि जब तारसप्तक में यानी बहुत उँफची आवाश में गाते-गाते मुख्य गायक या गायिका का स्वर उखड़ने लगता है और गला बैठने लगता है, तब संगतकार अपनी कोमल आवाश का सहारा देकर उसे उस निराश-हताश अवस्था से उबारने का प्रयास करता है। लगातार उँफचे स्वर में गाते रहने से गायक की साँस जैसे उखड़ने लगती है, तब संगतकार अपनी टेक के द्वारा उसे सँभाल लेता है और उसे यह अनुभव कराता है कि इस अनुष्ठान में वह अकेला नहीं है। कवि यहाँ गायक की आवाश से ‘राख जैसा कुछ गिरता हुआ’ कहकर यह स्पष्ट करना चाह रहे हैं कि जब उसका स्वर बुझने-सा लगता है और पहले वाला उत्साह शेष नहीं रह जाता तब संगतकार अपनी कोमल आवाश की सहायता से उसे उबार लेता है। संगतकार तब उसे मानो सांत्वना देता है कि निराश मत हो, हम सब तुम्हारे साथ हैं और पहले की भाँति पूरे दम-खम के साथ दोबारा फिर से गाया जा सकता है।

यहाँ कवि एक बात की ओर संकेत करते हैं कि उस समय संगतकार की आवाश में एक प्रकार की झिझक साफ अनुभव की जा सकती है। मानो वह संकोच के साथ गा रहा है ताकि उसका स्वर मुख्य गायक या गायिका के स्वर से उपर न पहुँच जाए, वह हमेशा अपनी आवाश को नीची रखना चाहता है। कवि कहते हैं कि उसके ऐसा करने का मतलब उसकी असफलता या कमज़ोरी नहीं बल्कि वह तो मुख्य गायक का मान बनाए रखने के लिए ही ऐसा करता है। इसी को कवि ने उसकी मानवता और महानता बताया है।

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FAQs on कविता की व्याख्या - पाठ 6 - संगतकार - Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij)

1. कविता की व्याख्या क्या है?
उत्तर: कविता की व्याख्या एक कविता के मूलभूत भाव, अर्थ, और विषय को समझने की प्रक्रिया है। यह व्याख्या हमें कविता के प्रत्येक पंक्ति और शब्द के भीतर छुपे गहरे अर्थ को समझने में मदद करती है।
2. क्विता की व्याख्या क्यों महत्वपूर्ण होती है?
उत्तर: कविता की व्याख्या इसलिए महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इससे हमें कविता के मूलभूत भाव और अर्थ को समझने में मदद मिलती है। यह हमें कविता के जीवनदायी संदेश, रस, और शैली को समझने में भी मदद करती है।
3. कविता की व्याख्या कैसे की जाती है?
उत्तर: कविता की व्याख्या करने के लिए हमें कविता के संरचना, शब्दावली, छंद, ताल, रस, और भावों को समझना होता है। हमें कविता के पंक्ति-पंक्ति और शब्द-शब्द के भीतर छुपे गहरे अर्थ को खोजना और व्याख्या करना होता है।
4. कविता की व्याख्या करने के लिए कौन-कौन से मार्ग अपनाए जा सकते हैं?
उत्तर: कविता की व्याख्या करने के लिए हम विश्लेषणात्मक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, तात्विक, और लोगिकल मार्गों का उपयोग कर सकते हैं। हम कविता के रचना-शैली, रस, और भावों के आधार पर भी व्याख्या कर सकते हैं।
5. कविता की व्याख्या क्यों अनुवाद की जाती है?
उत्तर: कविता की व्याख्या को अनुवाद करने का मुख्य कारण यह है कि कविता का मूल रूप हमारी मातृभाषा में होता है, लेकिन हमें कविता के अर्थ को दूसरी भाषा में समझने की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए, कविता की व्याख्या को अनुवाद करके हम उसके अर्थ को अन्य भाषा के पाठकों के लिए सुलभ बना सकते हैं।
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