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नित्यं पिबाम: सुभाषितरसम् Class 7 Notes Sanskrit Chapter 2 Free PDF

लेखकपरिचयः

सुभाषितानां लेखकाः प्रायः प्राचीनकवयः, विद्वांसश्च सन्ति। अस्मिन् पाठे विविधानि सुभाषितानि संकलितानि यानि जीवनस्य विभिन्नान् पक्षान् प्रकटयन्ति। लेखकानां निश्चितः परिचयः नास्ति, यतः सुभाषितानि लोकपरम्परायां संनाद्यन्ते। एतत् पुस्तकं कक्षा सप्तम्याः NCERT पाठ्यपुस्तकम् अस्ति।

सुभाषितों के लेखक मुख्यतः प्राचीन काल के कवि और विद्वान होते हैं। इस पाठ में ऐसे कई सुभाषितों का संग्रह किया गया है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं। इन सुभाषितों के लेखकों का स्पष्ट परिचय नहीं दिया गया है, क्योंकि ये सुभाषित लंबे समय से लोक परंपरा में बोले और सुने जाते रहे हैं। यह पाठ कक्षा 7 की एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक का हिस्सा है।

मुख्यविषयः

अस्मिन् पाठे सुभाषितानां माध्यमेन नैतिकमूल्यानि, जीवनाय उत्तमं मार्गदर्शनं च प्रदत्तानि। सुभाषितानि संक्षिप्तानि किन्तु गहनार्थानि भवन्ति, यानि जीवनस्य विभिन्नान् पक्षान् यथा—सम्मानं, परिश्रमः, सत्यं, विद्या, परोपकारः च शिक्षयन्ति।

इस पाठ में सुभाषितों के माध्यम से नैतिक मूल्यों और जीवन के लिए उत्तम मार्गदर्शन को प्रस्तुत किया गया है। ये सुभाषित भले ही छोटे हों, लेकिन इनमें गहरा अर्थ छिपा होता है। ये जीवन के विभिन्न पहलुओं को जैसे  सम्मान, परिश्रम, सत्य, विद्या और परोपकार  को समझने और अपनाने की प्रेरणा देते हैं।

कथासारः

अस्मिन् पाठे कथा नास्ति, किन्तु सुभाषितानां संकलनम् अस्ति। प्रत्येकं सुभाषितं स्वतंत्रं संदेशं वहति। एते सुभाषितानि जीवनस्य मूल्यानि यथा—उत्तमं वस्त्रं, स्वस्थं शरीरम्, मधुरं वचनम्, विद्या, विनयः, परिश्रमः, परोपकारश्च प्रोत्साहयन्ति। साथं च निद्रा, तन्द्रा, भयम्, क्रोधः, आलस्यं, दीर्घसूत्रता च त्यक्तुं प्रेरयन्ति।

इस पाठ में कोई कहानी नहीं है, बल्कि सुभाषितों का एक संग्रह दिया गया है। प्रत्येक सुभाषित अपने-आप में एक स्वतंत्र और महत्वपूर्ण संदेश को लेकर आता है। ये सुभाषित जीवन के उन मूल्यों को प्रोत्साहित करते हैं जैसे  अच्छा पहनावा, स्वस्थ शरीर, मीठा बोलना, शिक्षा, विनम्रता, मेहनत और दूसरों की मदद करना। साथ ही ये यह भी सिखाते हैं कि नींद, सुस्ती, डर, गुस्सा, आलस्य और टालमटोल जैसी बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए।

कथायाः मुख्याः घटनाः

यद्यपि अस्मिन् पाठे कहानी नास्ति, तथापि सुभाषितानां मुख्यं संदेशं संक्षेपेण दर्शति:

  • सम्मानस्य पञ्च गुणाः - उत्तमं वस्त्रं, स्वस्थं शरीरं, मधुरं वचनं, विद्या, विनयेन युक्तः नरः पूज्यति।
  • छः दोषाः त्याज्याः - निद्रा, तन्द्रा, भयं, क्रोधः, आलस्यं, दीर्घसूत्रता च जीवनस्य प्रगतौ अवरोधकाः।
  • शुद्धेः विविधाः उपायाः - स्नानेन शरीरस्य, सत्येन मनसः, विद्या-तपसा जीवस्य, ज्ञानेन बुद्धेः शुद्धिः भवति।
  • भारतवर्षस्य परिचयः - हिमालयात् आरभ्य हिन्द-महासागरपर्यन्तं भारतं विस्तीर्णं राष्ट्रं ख्यातं च अस्ति।
  • निरन्तर-अभ्यासस्य महत्त्वम् - यथा जलविन्दुनिपातेन घटः पूर्यति, तथैव अभ्यासेन विद्या, धर्मः, धनं च लभ्यति।
  • बुद्धेः विकासः - पठनं, लेखनं, दर्शनं, प्रश्नकरणं, विद्वज्जनसान्निध्यं बुद्धिं वर्धति।
  • परोपकारस्य महत्त्वम् - परोपकारः पुण्याय, परपीडनं पापाय च भवति।
  • सम्मान के पाँच गुण- उत्तम वस्त्र, स्वस्थ शरीर, मधुर वाणी, विद्या और विनम्रता – इन गुणों वाला व्यक्ति समाज में पूज्य होता हैI
  • छह त्याज्य दोष - नींद, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता जीवन की प्रगति में बाधा बनते हैं, इन्हें त्यागना चाहिएI
  • शुद्धता के विभिन्न उपाय-
    i) स्नान से शरीर की शुद्धि होती है
    ii) सत्य से मन की शुद्धि होती है
    iii) विद्या और तप से जीवन शुद्ध होता है
    iv) ज्ञान से बुद्धि की शुद्धि होती है
  • भारतवर्ष का परिचय-भारत एक विस्तृत और प्रसिद्ध देश है जो हिमालय से लेकर हिन्द महासागर तक फैला हुआ हैI
  • निरंतर अभ्यास का महत्व- जैसे जल की बूँदों से घड़ा भरता है, वैसे ही अभ्यास से विद्या, धर्म और धन की प्राप्ति होती हैI
  • बुद्धि का विकास - पठन, लेखन, दर्शन, प्रश्न पूछना और विद्वानों की संगति से बुद्धि का विकास होता हैI
  • परोपकार का महत्व-परोपकार पुण्य का कार्य है और परपीड़न पाप का कार्य है इसलिए सदा परोपकार करना चाहिएI

पाठः संदेशः

  • जीवनस्य कृते उत्तमं वस्त्रम्, स्वस्थं शरीरम्, मधुरं वचनम्, विद्या च विनयेन सह धारणीयानि।
  • निद्रा, तन्द्रा, भयम्, क्रोधः, आलस्यं, दीर्घसूत्रता च जीवनस्य शत्रवः भवन्ति , तस्मात् तान् त्यजेत्।
  • स्नानं, सत्यं, विद्या, परिश्रमः, ज्ञानम् च जीवनं शुद्धं कुर्वन्ति।
  • निरन्तर-अभ्यासेन सर्वं सम्भवति , यथा जलविन्दुनिपातेन घटः पूर्यते।
  • विद्वज्जन-सान्निध्यं, पठनं, लेखनं च बुद्धेः विकासाय अत्यावश्यकानि।
  • परोपकारः पुण्याय, परपीडनं पापाय भवति ,अतः सदा परोपकारः एव करणीयः।
  • जीवन के लिए अच्छा वस्त्र, स्वस्थ शरीर, मधुर वाणी, विद्या और विनम्रता आवश्यक होते हैंI
  • नींद, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और काम को टालते रहना ये सभी जीवन के शत्रु हैं, इसलिए इन्हें छोड़ देना चाहिएI
  • स्नान, सत्य, विद्या, परिश्रम और ज्ञान जीवन को शुद्ध करते हैंI
  • निरंतर अभ्यास से सब कुछ संभव है जैसे जल की बूँदों से घड़ा भर जाता हैI
  • पढ़े-लिखे विद्वानों की संगति, पढ़ना और लिखना बुद्धि के विकास के लिए बहुत आवश्यक हैंI
  • परोपकार पुण्य का कार्य है और दूसरों को कष्ट देना पाप है इसलिए हमेशा परोपकार ही करना चाहिएI

शब्दार्थः

नित्यं पिबाम: सुभाषितरसम् Class 7 Notes Sanskrit Chapter 2 Free PDF

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FAQs on नित्यं पिबाम: सुभाषितरसम् Class 7 Notes Sanskrit Chapter 2 Free PDF

1. लेखक कौन हैं और उनकी विशेषताएँ क्या हैं?
Ans. लेखक का परिचय कहानी में उनके अनुभव, विचार और लेखन शैली के माध्यम से मिलता है। उनकी विशेषताएँ जैसे कि सरल भाषा, गहन विचार और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल हैं।
2. कहानी का मुख्य विषय क्या है?
Ans. कहानी का मुख्य विषय मानवता, नैतिकता और जीवन के विभिन्न पहलुओं की समझ है। यह हमें जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।
3. कहानी का सार क्या है?
Ans. कहानी का सार यह है कि जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन हमें धैर्य और साहस के साथ उनका सामना करना चाहिए। यह हमें जीवन की सच्चाइयों से अवगत कराती है।
4. कहानी की मुख्य घटनाएँ कौन सी हैं?
Ans. कहानी की मुख्य घटनाएँ पात्रों के संघर्ष, उनके विकास और महत्वपूर्ण मोड़ हैं जो कहानी को आगे बढ़ाते हैं। ये घटनाएँ पाठक को कहानी में रुचि बनाए रखने में मदद करती हैं।
5. इस कहानी से हमें कौन सी शिक्षा मिलती है?
Ans. इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए और हमें अपने लक्ष्यों की ओर लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। यह प्रेरणा और सकारात्मकता की ओर ले जाती है।
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