गद्य की विधाओं में निबंध-लेखन एक प्रमुख विधा है। ‘नि’ + ‘बंध’ यानी नियोजित ढंग से बँधा होना। यह अपने विचारों को प्रकट करने के लिए उत्तम साधन है। लेखक किसी भी विषय पर स्वतंत्र, मौलिक तथा सारगर्भित विचार क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करता है।
निबंध चार प्रकार के होते हैं:
निबंध लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें:
1. मोबाइल फ़ोन सुविधा या असुविधा
आज के युग को विज्ञान युग कहा जाता है। वैज्ञानिक आविष्कारों ने आज जीवन के हर क्षेत्र में क्रांति ला दी है। इसीलिए महाकवि दिनकर जी ने कहा है।
पूर्व युग-सा आज का जीवन नहीं लाचार,
आ चुका है दूर वार से बहुत संसार।
यह समय विज्ञान का, सब भाँति पूर्ण समर्थ
खुल गए हैं गूढ़ संसुति के अंमित गुरु अर्थ।
दिनकर जी का उपर्युक्त कथन अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं लगता क्योंकि वैज्ञानिक आविष्कारों ने मानव-जीवन की काया ही पलट दी है। मोबाइल फ़ोन विज्ञान की आश्चर्यजनक अद्भुत देन है।
आज हर व्यक्ति के हाथ में इसे देखा जा सकता है। हो भी क्यों नहीं यह है ही इतना लाभदायक। आज मोबाइल एक मित्र की भाँति हमारे साथ रहता है और अकेलापन महसूस नहीं होने देता।
मोबाइल फ़ोन के कई लाभ हैं; जैसे- इसके द्वारा कहीं से भी, किसी से बात की जा सकती है, फिर चाहे वह व्यक्ति विदेश में ही क्यों न हो। किसी प्रकार की विपत्ति पड़ने पर मोबाइल फ़ोन एक सहायक के रूप में काम आता है। किसी दुर्घटना में फँसने पर मोबाइल फ़ोन के द्वारा अपने परिवारजनों को सूचित किया जा सकता है। किसी भी विपत्ति में मोबाइल फ़ोन एक वरदान बनकर हमारी सहायता करता है।
इसके अलावा इस फ़ोन के द्वारा समाचार, चुटकुले तथा बहुत-सी अन्य सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। इसके द्वारा संदेश भिजवाया जा सकता है। इस पर संगीत भी सुना जा सकता है। आजकल मोबाइल फ़ोन पर कंप्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। इस पर लगे फोटो कैमरे का प्रयोग करके किसी घटना को स्मृति रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है।
मोबाइल फ़ोन इतना सुविधाजनक होते हुए भी कभी-कभी असुविधा का कारण भी बन जाता है। कभी-कभी गलत नंबर मिलने पर यह गलत समय पर बजे जाता है। कभी-कभी बैठकों, सम्मेलनों तथा गोष्ठियों में मोबाइल फ़ोन के कारण बाधा पहुँचती है। आजकल अधिकांश बैंक तथा ऋण देने वाली कंपनियाँ लोगों के मोबाइल नंबरों का पता लगाकर उन्हें अनावश्यक रूप से ऋण लेने, क्रेडिट कार्ड बनवाने आदि के संबंध में फ़ोन करते हैं, जो असुविधा का कारण बन जाता है। गाड़ी चलाते समय जब लोग मोबाइल फ़ोन पर बात करते हैं, तो इससे दुर्घटना होने की संभावना हो जाती है।
कुछ भी हो मोबाइल फ़ोन विज्ञान का अद्भुत उपहार है, यदि इसका सही उपयोग किया जाए, तो यह किसी वरदान से कम नहीं।
2. कंप्यूटर और दूरदर्शन
कहा जाता है- ‘आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।’ जब-जब मनुष्य को आवश्यकता महसूस हुई तब-तब आविष्कार हुए है। जंब मनुष्य आदिमानव था, तब उसने पत्थर को रगड़कर आग का आविष्कार किया। इस प्रकार नित नए आविष्कार होते रहे, युग बदलते रहे। विज्ञान के क्षेत्र में मनुष्य ने नए-नए आविष्कार कर जीवन को सरल बना दिया है। कंप्यूटर और दूरदर्शन – ये दोनों विज्ञान की आवश्चर्यजनक एवं अद्भुत देन है।
आज जीवन के लगभग हर क्षेत्र में कंप्यूटर का प्रवेश हो गया है। आज कंप्यूटर हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। यह एक ऐसा मस्तिष्क है जो लाखों गणनाएँ पलक झपकते ही कर सकता है और वह भी त्रुटिरहित। कंप्यूटर के द्वारा रेल तथा वायुयान का आरक्षण किया जाता है। बैंकों और दफ्तरों का हिसाब-किताब रखा जाता है तथा अनेक प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं।
मुद्रण और दूरसंचार में तो क्रांति ला दी है। अब मुद्रण बहुत सरल तथा कलात्मक हो गया है तथा अत्यंत त्वरित गति से किया जा सकता है। दूर संचार में इंटरनेट पर विश्व की कोई भी जानकारी घर बैठे प्राप्त की जा सकती है। कंप्यूटर का उपयोग रक्षा उपकरणों विज्ञान संचालन आदि में भी सफलतापूर्वक किया जा रहा है। आधुनिक युद्ध कंप्यूटर के सहारे ही लड़े जाते हैं। अब कंप्यूटर का उपयोग ज्योतिषी भी करने लगे हैं। इस प्रकार कंप्यूटर का सकारात्मक पक्ष अत्यंत उज्ज्वल है।
कंप्यूटर के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी है। कंप्यूटर के प्रयोग से भारत जैसे देश में बेकारी बढ़ी है। साथ ही कंप्यूटर पर वायरस डालकर दुरुपयोग किया जा रहा है। कभी-कभी कुछ अश्लील सामग्री भी डाल दी जाती है।
दूरदर्शन ने मनोरंजन के क्षेत्र में क्रांति उपस्थित की है। दूरदर्शन से देश-विदेश की जानकारी घर बैठे मिल जाती है। घर बैठे-बैठे संसार के किसी कोने में हो रहे कार्यक्रमों समारोहों तथा उत्सवों को अपनी आँखों के सामने देखा जा सकता है। दूरदर्शन पर आकाश की ऊँचाइयों, समुद्र की गहराइयों तथा प्रकृति के रहस्यों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। आजकल इसका प्रयोग छात्रों को पढ़ाने में भी किया जा रहा है। दूरदर्शन जन जागरण का साधन भी बन गया है। दूरदर्शन का नकारात्मक पक्ष भी है- जो दूरदर्शन स्वस्थ मनोरंजन प्रदान कर सकता है, वही सांस्कृतिक प्रदूषण भी फैला रहा है। दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर अनेक कार्यक्रम ऐसे होते हैं, जिन्हें सारा परिवार एक साथ बैठकर नहीं देख सकता। इस पर दिखाई जाने वाली फ़िल्में युवा वर्ग को दिग्भ्रमित करके अपनी संस्कृति से विमुख कर रही है। फैशन तथा अपराधों को बढ़ाने में दूरदर्शन की भूमिका असंदिग्ध है।
इस प्रकार निष्कर्ष तौर पर हम कह सकते हैं कि कंप्यूटर और दूरदर्शन के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए, हमें ऐसी बातों का विरोध करना होगा जो इन दोनों को हानिकारक बनाते हैं। हमें ऐसे कार्यक्रमों का विरोध करना होगा जो हमारी संस्कृति, परंपरा तथा अवस्थाओं के विरुद्ध है। इसी प्रकार कंप्यूटर पर वायरस डालने का भी पता लगाना होगा।
3. पेड़-पौधे और हम
मनुष्य और प्रकृति का संबंध सनातन है। प्रकृति मनुष्य की सहचरी है। दोनों एक-दूसरे के पूरक तथा पोषक हैं। मनुष्य ने प्रकृति में जन्म लिया है तथा उसके संरक्षण में पला-बढ़ा है, इसी प्रकार पेड़-पौधे भी मनुष्य के संरक्षण में पलते-बढ़ते हैं। प्रकृति ने मनुष्य की अनेक प्रकार की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति की है। मनुष्य जीवन पर्यन्त वृक्षों पर आश्रित रहता है।
पेड़-पौधे मनुष्य के लिए लाभदायक ही नहीं आवश्यक हैं। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ, मनुष्य की रहने, खाने-पीने की आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। पेड़-पौधे ही जीवन को झूले पर झुलाते हैं, तो पेड़-पौधे ही बुढ़ापे की लाठी बनकर सहारा प्रदान करते हैं। अनाज फल-फूल, जड़ी-बूटियाँ, ईंधन, इमारती लकड़ियाँ, जैसी वस्तुएँ हमें पेड़-पौधों से ही मिलती हैं। पेड़ पौधे हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। वे कार्बन-डाई ऑक्साइड को ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। वृक्ष न केवल प्रदूषण को नियंत्रित करते हैं बल्कि मिट्टी कटाव को भी रोकता है। ये वर्षा में मददगार होते हैं। भूमि को उर्वरा बनाए रखते हैं। जंगली जानवरों को संरक्षण प्रदान करते हैं तथा भूस्खलन सूखा, भूकंप जैसे प्राकृतिक विपदाओं को रोकने में भी सहायक होते हैं। पेड़-पौधों की लकड़ी से बने खिलौने बच्चों का मन बहलाते हैं।
आज बढ़ती हुई जनसंख्या की आवास संबंधी कठिनाई के कारण तथा उद्योग धंधों के लिए भूमि की कमी पूरा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। दूसरी ओर ईंधन के लिए लकड़ी का प्रयोग बढ़ने लगा। घरों के लिए इमारती लकड़ी की जरूरत बढ़ने लगी और धड़ाधड़ पेड़ काटे जाने लगे। संसार में कोई ऐसा घर न होगा जहाँ लकड़ी का प्रयोग न हो। पेड़ पौधों, के न रहने से अब चारों तरफ़ प्रदूषण बढ़ रहा है। हवा, धुएँ तथा अन्य गंदगी से भरी रहती है जिससे मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। चारों तरफ़ तरह-तरह की बीमारियाँ जन्म ले रही हैं।
पहाड़ी इलाकों में हुई वृक्षों की कटाई ने संपूर्ण संतुलन को ही बिगाड़ डाला है। अब तापक्रम में परिवर्तन से कभी बारिश नहीं होती तथा कभी बहुत अधिक होती है। वृक्षरहित पहाड़ों की धरती पर जब वर्षा होती है तो ढलान की मिट्टी भी अपने साथ बहा ले जाता है और यह मिट्टी नदियों में जल का मार्ग रोककर बाढ़ का कारण बनती है। इससे पर्वत ढहने जैसी दुर्घटनाएँ भी होती हैं।
इस प्रकार पेड़-पौधे मानव जीवन को कई प्रकार से प्रभावित करते हैं। वृक्ष पृथ्वी को हरा-भरा तथा आकर्षक बनाए रखते हैं। इन पर पक्षियों की प्रजातियाँ पलती हैं। यही कारण है कि हमारे यहाँ वेदों में प्रकृति की अराधना की गई है। पहले मंदिरों में वट, पीपल आदि के पेड़ लगाए जाते थे तथा उनकी पूजा की जाती थी। यह पूजा वृक्षों का महत्त्व व उसके प्रति मनुष्य की श्रद्धा प्रकट करती है।
वृक्षों के महत्त्व को समझकर अब प्रतिवर्ष वन महोत्सव’ मनाए जाते हैं। जगह-जगह पौधे लगाए जाते हैं। अतः मनुष्य का कर्तव्य है कि वृक्षों का सम्मान करें, उनकी कटाई न करे तथा इस बात को समझ ले कि वृक्ष मानव जीवन की संजीवनी हैं।
4. विद्यार्थी जीवन
मानव जीवन की चार अवस्थाओं में से ब्रह्मचर्य आश्रम जन्म से लेकर 25 वर्ष तक की आयु के काल को कहा जाता है। यही जीवन विद्यार्थी जीवन भी है। प्राचीन काल में विद्यार्थी को गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था।
विद्यार्थी शब्द दो शब्द के मेल से बना है- विद्या + अर्थी। जिसका अर्थ है विद्या प्राप्ति की इच्छुक। जीवन के प्रारंभिक काल का लक्ष्य विद्या प्राप्ति है, यह जीवन का स्वर्णिम काल कहा जाता है।
जिस प्रकार सुदृढ़ भवन निर्माण में कार्यरत कारीगर सावधानीपूर्वक नींव का निर्माण करता है, उसी प्रकार मानव जीवन रूपी भवन के सुदृढ़ निर्माण के लिए विद्यार्थी जीवन का सुव्यवस्थित होना नितांत आवश्यक है। सरल, छलरहित, उत्साहयुक्त आशावादी लहरों में उमंगपूर्ण तरंगित होता यह काल उसके भविष्य को निर्धारित करता है। इसी अवस्था में शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक शक्तियों का विकास होता है। शिक्षा द्वारा जीवन लक्ष्यों का निर्धारण होता है।
सफल विद्यार्थी इसी काल में सामाजिक, धार्मिक नैतिक नियमों, आदर्शों व संस्कारों को ग्रहण करता है लेकिन आजकल गुरुकुलशिक्षा प्रणाली नहीं है। आज का विद्यार्थी विद्यालयों में विद्याध्ययन करता है। आज गुरुओं में कठोर अनुशासन का अभाव है। आज शिक्षा का संबंध धने से जोड़ा जाता है। विद्यार्थी यह समझता है कि वह धन देकर विद्या प्राप्त कर रहा है। उसमें गुरुओं के प्रति आदर के भाव की कमी पाई जाती है। साथ ही कर्मठ, कर्तव्यनिष्ठ शिक्षकों का भी अभाव हो गया है। शिक्षा में नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इसका उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना रह गया है। इन्हीं कारणों से आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन, फैशन का दीवाना, पश्चिमी सभ्यता का अनुनायी तथा भारतीय संस्कृति से दूर हो गया है। आदर्श विद्यार्थी के गुणों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि-
काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी गृह त्यागी विद्यार्थिनः पंच लक्षणं ।।
अर्थात् विद्यार्थी को कौए के समान चेष्टावान व जिज्ञासु होना चाहिए। विद्यार्थी को बगुले के समान ध्यान लगाकर अध्ययन में रत रहना चाहिए। उसे कुत्ते की भाँति सोते हुए भी जागरूक रहना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।
आज के विद्यार्थी वर्ग की दुर्दशा के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन आवश्यक है। इसलिए विद्यार्थियों में विनयशीलता, संयम, आज्ञाकारिता जैसे गुणों का विकास किया जाना चाहिए। विद्यार्थी को स्वयं भी इन गुणों के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। अत: शिक्षाविदों का दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ।
5. जनसंख्या वृधि एक समस्या
भारत की बढ़ती जनसंख्या एक गंभीर समस्या है। भारत जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद दूसरा देश है। अभी वर्तमान समय में अनुमानित एक सौ तीस करोड़ के आँकड़े को भी पार कर गई है। यदि इसी गति से बढ़ती गई, तो एक दिन चीन को भी पीछे छोड़ देगी। जनसंख्या वृद्धि की समस्या अत्यंत विकराल है। यह ऐसी समस्या है जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक लगातार बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान में यह समस्या गंभीर चिंता का विषय बन गई है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि के अनेक कारण हैं, इनमें सबसे प्रमुख है भारतीयों की धार्मिक भावनाएँ, अंधविश्वास तथा अशिक्षा। भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है। गाँवों में रहने वाले लोग अंधविश्वासी, अशिक्षित तथा धार्मिक मान्यताओं को मानने वाले होते हैं। वे संतान को ईश्वर का दिया हुआ वरदान मानते हैं। परिवार नियोजन के साधनों को धर्म विरोधी तथा अनैतिक बताते हैं। इसीलिए गाँवों में जनसंख्या का विस्तार तेजी से हुआ है और हो रहा है। जनसंख्या की वृद्धि का अन्य कारण है बाल विवाह। गाँवों में लड़कियों की शादी अल्पायु में यानी चौदह-पंद्रह वर्षों में कर दी जाती है। इस कारण वे जल्दी माँ बन जाती हैं। इससे उनको संतानोत्पत्ति के लिए लंबा समय मिल जाता है। पुत्र की चाहत में कई-कई बेटियाँ होना सामान्य बात है। जनसंख्या की वृधि के अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। इसी के प्रभाव से बेकारी की समस्या बढ़ रही है। बेकारी की समस्या बढ़ने के कारण इससे संबंधित अनेक प्रकार की समस्याएँ जैसे अपराध, भ्रष्टाचार, गरीबी, जीवन स्तर में कमी, कुपोषण आदि की समस्याएँ भी उपस्थित हो गई हैं। जनसंख्या की अधिकता के कारण गाँवों के लोगों का पलायन शहरों की ओर हो रहा है। आज महानगरों में बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवास योग्य भूमि का इतना अभाव हो गया है कि लोगों को झुगी-झोपड़ियों, स्लम आदि में रहने को विवश होना पड़ रहा है। यद्यपि भारत ने औद्योगिक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है, परंतु जनसंख्या की निरंतर वृद्धि के कारण यह प्रगति बहुत कम लगती है। बेरोजगारी को बढ़ाने में भी सर्वाधिक योगदान जनसंख्या की वृधि ही है। बेरोजगार होने के कारण युवकों में अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ती रहती है। जिससे देश में शांति और व्यवस्था भंग हो जाती है।
जनसंख्या की वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए गाँवों के लोगों में जागृति लाना आवश्यक है। उन्हें परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहित किया जाना अनिवार्य है। इसके लिए विवाह कानून को भी कठोरता से लागू किया जाना चाहिए। इसके लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार बहुत आवश्यक है। सरकार को इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे, एक या दो संतान वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। तथा अधिक संतान वालों पर कर आदि लगाकर या उन्हें मिलने वाली सुविधाओं में कमी कर हतोत्साहित करना चाहिए।
6. सत्संगति
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी संगत बैठिए, तैसो ही फल दीन्ह।।।
सत्संगति अच्छी संगति को कहते हैं। जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, वैसे ही सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति श्रेष्ठ बन जाता है तथा उसके महान बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।
अच्छी या बुरी संगति व्यक्ति पर प्रभाव अवश्य डालती है। अच्छे मनुष्यों की संगति यदि मनुष्य को सत्मार्ग की ओर अग्रसर करती है तो कुसंगति पतन के गर्त में ढकेल देती है। कागज की कोठरी में कितना भी बुद्धिमान मनुष्य क्यों न जाए, उस पर काजल का कोई न कोई चिहन अवश्य अंकित हो जाता है, ठीक वैसे ही संगति के प्रभाव से बचा नहीं जा सकता। यदि मनुष्य अच्छी संगति में रहता है तो उस पर अच्छे संस्कार पड़ते हैं और यदि उसकी संगति बुरी है तो उसकी आदतें बुरी हो जाती हैं। सत्संगति से व्यक्ति असत्य से सत्य की ओर, कुमार्ग से सुमार्ग की ओर, कुप्रवृत्तियों से सद्प्रवृत्तियों की ओर तथा बुराई से अच्छाई की ओर प्रवृत्त होता है। इसलिए कबीर ने कहा है कि
कबिरा संगति साधु की ज्यों गंधी की बास।
जो कछु गंधी दे नहीं, तो भी बास सुबास ।।
सत्संगति बुधि की जड़ता हर लेती है, वाणी की सच्चाई लाती है, सम्मान है आदर का कारण बनती है, कीर्ति का विस्तार करती। है तथा जीवन को उन्नति के पथ की ओर अग्रसर करती है। बाल्मीकि जो पहले रत्नाकर डाकू थे, नारद मुनि के संपर्क में आने । पर बाल्मीकि बन गए। दुर्दीत डाकू अंगुलिमाल महात्मा बुद्ध का सान्निध्य प्राप्त करके अपनी क्रूरता खो बैठा और उसने बौद्ध धर्म अपना लिया।
मनुष्य, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, संगति से ही पहचाना जाता है। संगति की छाप उसके आचरण पर पड़ती है। एक अच्छा लड़का भी कुसंगति में पड़कर चोर और जेबकतरा बन सकता है। आजकल नशे की लत कुसंगत का ही परिणाम है। जन्म से कोई भी व्यक्ति न अच्छा होता है, न बुरा। यही कारण है कि अच्छे मनुष्यों के साथ रहने पर सुख और यश मिलता है। सत्संग के द्वारा अपने अंदर गुण अंकुरित एवं पल्लवित होते हैं। इसके विपरीत बुरे मनुष्यों की संगति में रहने से सुख तो मिलता नहीं, बल्कि जो प्राप्त है वह भी छिन जाता है।
सत्संगति अनेक गुणों की जननी है तो कुसंगति अनेक दुर्गुणों की पोषक। अत: व्यक्ति को चाहिए कि सदैव श्रेष्ठजनों की संगति करे और बुरे लोगों की संगति से बचे।
विद्यार्थी जीवन में संगति के प्रति सावधानी और भी आवश्यक है, क्योंकि इसी काल में भविष्य पर अच्छे-बुरे प्रभाव अंकित हो जाते हैं, जो जीवन भर चलते हैं। इसलिए विद्यार्थी को अपनी संगति के प्रति विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
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1. अर्थशास्त्र क्या है? |
2. अर्थशास्त्र क्यों महत्वपूर्ण है? |
3. अर्थशास्त्र के क्षेत्र क्या-क्या होते हैं? |
4. अर्थशास्त्र के बाद कौन-कौन से करियर विकल्प होते हैं? |
5. अर्थशास्त्र में सफलता पाने के लिए क्या करना चाहिए? |
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