प्रस्तुत पाठ संस्कृतवाङ्मय के प्रसिद्ध नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचक अंक से सम्पादित कर लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग हैं। इस नाटकांश में राम कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं, किन्तु वे दोनों अतिशालीनतापूर्वक मना करते हैं। सिंहासनारूढ़ राम कुश और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बैठा लेते हैं और आनन्दित होते हैं। पाठ में शिशु स्नेह का अत्यन्त मनोहारी वर्णन किया गया है।
पाठसारः
प्रस्तुत नाटक संस्कृत वाङ्मय के प्रसिद्ध नाटक ‘कुन्दमाला’ के पञ्चमाङ्क से सम्पादित किया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग है। प्रस्तुत नाटक में रामकथा के करुण अवसाद पूर्ण उत्तरार्ध की हृदयस्पर्शी और मार्मिक भावनाओं को सरल व सुन्दर रूप से प्रस्तुत किया गया है।
सिंहासन पर स्थित राम लव-कुश को देखकर उन्हें राजसिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों शालीनतापूर्वक इन्कार कर देते हैं। लव-कुश के सौंदर्य से आकृष्ट राम उन्हें अपनी गोद में बैठाकर आनन्दित होते हैं।
प्रस्तुत पाठ में राम के हृदय में शिशु-प्रेम की भावना का अति मनोहारी वर्णन है। राम लव-कुश से उनके वंश, नाम, गुरु और माता-पिता के विषय में जानना चाहते हैं। प्रत्युत्तर में लव-कुश के कथनों से माता-पिता के प्रति सहानुभूति, गुरु के प्रति सम्मान और पिता के प्रति आक्रोश स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। अपना परिचय देते हुए दोनों बालक गुरु वाल्मीकिः, सूर्यवंश में जन्म, माता का नाम ‘देवी’ और वाल्मीकि ऋषि द्वारा दिया गया नाम वधू बताते हैं।
पिता का नाम ‘निरनुक्रोश’ कहते हैं विदूषक इस नाम का कारण माता का तिरस्कृत और अपमानित होना कहता है आहृत हुए राम विदूषक से कहते हैं कि इन कुमारों और उनका पारिवारिक वृत्तान्त एक रूप है। तभी लव-कुश गुरु के आदेश से वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का सुन्दर गान करते हैं।
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