Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  Chapter Notes for Class 10  >  पाठ का सार - पाठ 15 - स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10

पाठ का सार - पाठ 15 - स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 | Chapter Notes for Class 10 PDF Download

पाठ का संक्षिप्त परिचय
 
द्विवेदी जी की यह प्रमुख विशेषता रही है कि समय एवं परिस्थितियों के अनुसार वे अपने विचारों में परिवर्तन करते रहे हैं, जैसे लड़कियों की शिक्षा के प्रश्न पर उनके विचार एवं तर्क सकारात्मक थे। उनकी मान्यता थी कि लड़कियों की शिक्षा प्रारंभिक काल से ही आवश्यक थी, जिसे समय-समय पर कुछ प्रखर प्रबुद्ध् लोगों द्वारा अनुभव भी किया जाता रहा है। उनका लेख ‘स्त्राी-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन’ एक शोधपरक लेख है। इसमें उन्होंने परंपराओं के सुधर को आवश्यक माना है, साथ ही नारी-शिक्षा की आवश्यकता पर विशेष बल दिया है। इस पाठ से उनकी प्रखर तार्किक क्षमता का भी पता चलता है। लेख का सार इस प्रकार है

पाठ का सार

जब पढ़े-लिखे लोगों द्वारा स्त्राी-शिक्षा के कार्य की अनेक कुतर्कों द्वारा निंदा की जाती है, तो लेखक दुखी हो उठता है। इन शिक्षित लोगों में वे लोग शामिल हैं, जो धर्म-शास्त्रों के ज्ञाता, शिक्षक, विचारक, सुमार्गगामी, पथप्रदर्शक आदि हैं। लेखक का विचार है कि संस्कृत के नाटकों में पढ़ी-लिखी या कुलीन स्त्रिायों को गँवारों की भाषा का प्रयोग करते दिखाया गया है। स्त्रिायों को शिक्षित करना अनर्थकारी समझा गया है। शकुंतला का उदाहरण इस रूप में दिया गया है कि उसने दुष्यंत को कापफी कठोर शब्द कहे हैं। लेखक तर्वफ देता है कि विद्वानों द्वारा ऐसा करना गलत है। क्या कोई सुशिक्षित नारी प्राकृत भाषा नहीं बोल सकती? बुद्ध् से लेकर भगवान महावीर तक ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में ही दिए। तो क्या वे अपढ़ या गँवार थे? इतने समृद्ध् प्राकृत साहित्य के रचयितागण क्या गँवार थे? आज भी एक सुशिक्षित व्यक्ति आपसी बातचीत अपनी क्षेत्राीय भाषा-- मराठी, बांग्ला, पंजाबी, कन्नड़, मलयालम आदि में करता है तो क्या वह गँवार है? इन सबका उत्तर है  नहीं।

जिस समय नाट्य-शास्त्रिायों ने नाट्य-संबंधी नियम बनाए थे, उस समय सर्वजन की भाषा संस्कृत न थी। अतः उन्होंने स्त्रिायों तथा सामान्य जनों की भाषा ‘प्राकृत’ रखी तथा पढ़े-लिखों की भाषा संस्कृत। लेखक अपना यह अकाट्य तर्वफ देता है कि शास्त्रों में बड़े-बड़े विद्वानों की चर्चा मिलती है, किंतु क्या उनके सीखने से संबद्ध् कोई पुस्तक या पांडुलिपि आज तक मिली है? उसी प्रकार यदि पा्र चीन समय में र्कोइ  भी बालिका (नारी) विद्यालय की जानकारी नहीं मिलती है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि सभी स्त्रिायाँ गँवार थीं? लेखक विविध कालों की अनेकानेक स्त्रिायों- शीला, विज्जा एवं बौद्ध कालीन स्त्रिायों के अनेक उदाहरण देकर उनके शिक्षित होने की बात की पुष्टि करता है। द्विवेदी जी कहते हैं कि जब प्राचीन रूप में स्त्रिायों को नाच-गान, फूल चुनने, हार बनाने तक की आजादी मिली हुई थी, तो यह बात विश्वास एवं तर्वफ दोनों से परे लगती है कि उन्हें शिक्षा नहीं दी जाती थी।

उपर्युक्त तर्कों के अलावा लेखक समीक्षात्मक ढंग से कहता है कि यदि मान भी लिया जाए कि प्राचीन काल में सभी स्त्रिायाँ अपढ़ थीं। हो सकता है, उस समय उन्हें पढ़ाने की आवश्यकता न रही हो। किंतु समय की वर्तमान माँग के अनुसार स्त्रिायों को अवश्य शिक्षित करना चाहिए।

लेखक दकियानूसी विचारधराओं वाले विद्वानों से कहते हैं कि उन्हें पुरानी मान्यताओं से उबरकर सोच में नयापन ले आना चाहिए। इस सदंर्भ में वे कहते हैं कि जो लोग पुराणों में पढी़ -लिखी स्त्रिायों के हवाले माँगते हैं, उन्हें श्रीमद्भागवत, दशमस्कंध के उत्तरार्ध का तिरेपनवाँ अध्याय पढ़ना चाहिए। उसमें रुक्मिणी-हरण की कथा है। उसमें रुक्मिणी ने एक लंबा-चैाड़ा पत्र एकांत में लिखकर श्रीकृष्ण को भेजा था, वह तो प्राकृत में न था। लेखक आगे कहते हैं कि अनर्थ कभी नहीं पढ़ना चाहिए। वे सीता, शकुंतला आदि के उन प्रसंगों के उदाहरण देते हैं, जो उन्होंने अपने-अपने पतियों को कहे थे। इसलिए लेखक सार रूप में कहते हैं कि हमें दकियानूसी विचारों से आगे निकलकर देश-काल की माँग के अनुसार सबको शिक्षित करने का प्रयत्न करना चाहिए। स्त्राी-शिक्षा को प्राचीन मान्यताओं का हवाला देकर उन्हें शिक्षा से वंचित करना बहुत बड़ा मानसिक भ्रम है।

लेखक परिचय

महावीर प्रसाद दिवेदी
इनका जन्म सन 1864 में ग्राम दौलतपुर, जिला रायबरेली, उत्तर प्रदेश में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होने रेलवे में नौकरी कर ली। बाद में नौकरी से इस्तीफा देकर सन 1903 में प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती का संपादन शुरू किया तथा 1920 तक उससे जुड़े रहे। सन 1938 में इनका देहांत हो गया।

प्रमुख कार्य
निबंध संग्रह – रसज्ञ, रंजन, साहित्य-सीकर, साहित्य- संदर्भ, अद्भुत अलाप
अन्य कृतियाँ – संपत्तिशास्त्र , महिला मोद अध्यात्मिकी।
कवितायेँ – दिवेदी काव्य माला।

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. धर्मतत्व – धर्म का सार
  2. दलीलें – तर्क
  3. सुमार्गगामी – अच्छी राह पर चलने वाले
  4. कुतर्क – अनुचित तर्क
  5. प्राकृत – प्राचीन काल की भाषा
  6. कुमार्गगामी – बुरी राह पर चलने वाले
  7. वेदांतवादिनी – वेदान्त दर्शन पर बोलने वाली
  8. दर्शक ग्रन्थ – जानकारी देने वाली पुस्तकें
  9. प्रगल्भ – प्रतिभावान
  10. न्यायशीलता – न्याय के अनुसार आचरण करना
  11. विज्ञ – समझदार
  12. खंडन – किसी बात को तर्कपूर्ण ढंग से गलत कहना
  13. नामोल्लेख – नाम का उल्लेख करना
  14. ब्रह्मवादी – वेद पढ़ने-पढ़ाने वाला
  15. कालकूट – विष
  16. पियूष – सुधा
  17. अल्पज्ञ – थोड़ा जानने वाला
  18. नीतिज्ञ – नीति जाने वाला
  19. अपकार – अहित
  20. व्यभिचार – दुराचार
  21. ग्रह ग्रस्त – पाप ग्रह से प्रभावित
  22. परित्यक्त – छोड़ा हुआ
  23. कलंकारोपण – दोष मढ़ना
  24. दुर्वाक्य – निंदा करने वाला वाक्य
  25. बात व्यथित – बातों से दुखी होने वाले
  26. गँवार -असभ्य
  27. तथापि – फिर भी
  28. बलिहारी – न्योछावर
  29. धर्मावलम्बी – धर्म पर निर्भर
  30. गई बीती – बदतर
  31. संशोधन – सुधार
  32. मिथ्या – झूठ
  33. सोलह आने – पूर्णतः
  34. संद्वीपान्तर – एक से दूसरे द्वीप जाना
  35. छक्के छुड़ाना – हरा देना
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FAQs on पाठ का सार - पाठ 15 - स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 - Chapter Notes for Class 10

1. स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन क्या है?
उत्तर: स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन एक प्रकार का तर्क है जिसमें विभिन्न विचारों द्वारा स्त्री शिक्षा को गलत और अनुचित ठहराया जाता है। इन कुतर्कों का खंडन करके हम स्त्री शिक्षा के महत्व और आवश्यकता को समझ सकते हैं।
2. स्त्री शिक्षा क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: स्त्री शिक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से महिलाओं को समाज में अपनी पहचान और सम्मान प्राप्त होता है। स्त्री शिक्षा उन्नति और समृद्धि की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है और समाज के लिए एक विकास का आधार बनती है। स्त्री शिक्षा के द्वारा महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में स्वावलंबी बनने का अवसर मिलता है और उन्हें समाज में अधिकारों और मौकों की दृष्टि से समानता प्राप्त होती है।
3. स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्क द्वारा क्या दावा किया जाता है?
उत्तर: स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्क द्वारा दावा किया जाता है कि स्त्री शिक्षा समाज के लिए अनुचित और अप्रासंगिक है। इन कुतर्कों के अनुसार, स्त्री शिक्षा महिलाओं के परिवार और गृह कार्यों में वक्त और ध्यान की कमी का कारण बनती है और उन्हें शादी के बाद घर में ही रहना चाहिए।
4. स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्क का खंडन कैसे किया जा सकता है?
उत्तर: स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्क का खंडन करने के लिए हमें स्त्री शिक्षा के महत्व, लाभ, और समाज के लिए इसकी आवश्यकता के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। हमें स्त्री शिक्षा के सामर्थ्य को प्रमाणित करना चाहिए जैसे कि महिला शिक्षा के माध्यम से समाज के कई क्षेत्रों में सफलता की गवाही होती है। हमें स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों को तर्कबद्धता और तर्कों के माध्यम से खंडन करना चाहिए।
5. समाज के किस क्षेत्र में स्त्री शिक्षा की आवश्यकता होती है?
उत्तर: स्त्री शिक्षा समाज के कई क्षेत्रों में आवश्यक होती है। इनमें से कुछ मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं: - राजनीतिक क्षेत्र: स्त्री शिक्षा के द्वारा महिलाओं को राजनीतिक जगत में सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर मिलता है। - आर्थिक क्षेत्र: स्त्री शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन की योजनाएं और कौशल प्राप्त होते हैं। - सामाजिक क्षेत्र: स्त्री शिक्षा से महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा, समानता, और समाज में अधिकार मिलते हैं। - स्वास्थ्य क्षेत्र: स्त्री शिक्षा के द्वारा महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूकता होती है और उन्हें अपनी सेहत की देखभाल करने का ज्ञान प्राप्त होता है।
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