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दुर्बुद्धिः विनश्यति Chapter Notes | Chapter Notes For Class 7 PDF Download

प्रस्तुत पाठ की कथा पं. विष्णुशर्मा जी के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘पंचतंत्र’ में से ली गई है। इस कथा में बताया गया है कि उचित-अनुचित समय देखकर ही बोलना चाहिए तथा मित्रों की बात को मानना चाहिए। मगध देश में फुल्लोत्पल नामक तालाब था। उस तालाब में संकट और विकट नामक दो हंस तथा कम्बुग्रीव नामक उनका मित्र कछुआ रहता था।

एक बार मछुआरे वहाँ आए और कहने लगे-‘कल हम सभी जलचर प्राणियों को मार डालेंगे।’ यह सुन कर भयभीत कछुआ अपने दोनों मित्रों से सहायता के लिए विनती करने लगा।

कछुए के कहने पर उन हंसों ने एक डण्डे को दोनों किनारों से चोंच में पकड़ लिया तथा कछुए को उस डण्डे के मध्य भाग को मुख से पकड़ कर लटकने के लिए कहा। उन्होंने उसे समझाया कि वह मार्ग में बिल्कुल न बोले अन्यथा उसकी मृत्यु हो सकती है। कछुए ने उनकी बात मानी तथा उनके कहे अनुसार किया।

तब वे हंस उस कछुए को लेकर दूसरे तालाब में पहुँचाने के लिए उड़ चले। रास्ते में कुछ ग्वाले उस दृश्य को देख कर आश्चर्य प्रकट करने लगे और कहने लगे-‘देखो, हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।’ उनकी बात सुन कर ज्यों ही कछुए ने कुछ कहने के लिए अपना मुख खोला, त्यों ही वह पृथ्वी पर धड़ाम से गिरा और मर गया। शिक्षा-जो हितैषी व्यक्ति की बात को नहीं मानता है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।

Explanation and Word Meanings(अनुवाद और शब्दों के अर्थ)

(क) अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम सरः।
तत्र संकटविकट हंसौ निवसतः। कम्बुग्रीवनामकः
तयोः मित्रम् एकः कूर्मः अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।

अथ एकदा धीवराः तत्र आगच्छन्। ते अकथयन्- “वयं श्वः मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्यामः।

” एतत् श्रुत्वा कूर्मः अवदत्-“मित्रे! किं युवाभ्याम् धीवराणां वार्ता श्रुता? अधुना किम् अहं करोमि?

सरलार्थ: मगध देश में फुल्लोत्यल नामक तालाब है । वहाँ संकट तथा विकट नामक दो हंस रहते थे । उन दोनो का मित्र कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ भी वहॉं पर ही रहता था । तत्पश्चात् एक बार मछुआरे वहॉं आए । वे कहने लगे हमलोग कल मछलियो और कछुए आदि को मार डालेंगे । यह सुनकर कछुआ बोला- "हे मित्रो ! कया तुम दोनों ने मछुआरों की बात सुनी ? अब मैं क्या करुँ ?"


शब्दार्थाः

  • सरः-तालाब 
  • हंसौ-हंस (द्विव०) 
  • कूर्मः/कच्छपः-कछुआ 
  • तत्रैव (तत्र + एव)-वहाँ ही , प्रतिवसति स्म-रहता था 
  • धीवरा:-मछुआरे 
  • वार्ता-वार्तालाप 
  • श्व:-कल (आनेवाला)
  • मत्स्यकूर्मादीन्-मछली, कछुओं आदि को 
  • मारयिष्यामः-मारेंगे 

(ख) ” हंसौ अवदताम्-“प्रातः यद् उचितं तत्कर्त्तव्यम्।” कूर्मः अवदत्-“मैवम्। तद् यथाऽहम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरुतम्।” हंसौ अवदताम् “आवां किं करवाव?” कूर्मः अवदत्-“अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।”

सरलार्थ: दोनों हंस कहे-"सुबह जो उचित होगा वह करेंगे" । कछुआ कहा-"ऐसा (उचित) नहीं है । वैसा (उपाय) करो जिस प्रकार मैं दूसरे तालाब में चला जाऊँ ।" दोनो हंस बोले - "हम दोनो क्या करे ?" कछुआ बोला - मै तुम दोनों के साथ आकाशमार्ग से दूसरे स्थान पर जाने की इच्छा करता हूँ ।

शब्दार्थाः

  • मैवम् (मा + एवम् )-ऐसा नहीं 
  • हृदम्-तालाब को 
  • आकाशमार्गेण-आकाश मार्ग से

(ग) हंसौ अवदताम्-“अत्र कः उपायः?” कच्छपः वदति-“युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धारयताम्। अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयोः पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।” हंसौ अकथयताम्-“सम्भवति एषः उपायः। किन्तु अत्र एकः अपायोऽपि वर्तते। आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य जनाः किञ्चिद्वदिष्यन्ति एव। यदि त्वमुत्तरं दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम्। अतः त्वम् अत्रैव वस।"

सरलार्थ: दोनों हंस कहने लगे-"उपाय है ? " कछुआ बोला - "तुम दोनों एक लकडी के टुकड़े को चोंच से पकड़ लेना । मैं उस लकडी के दण्डे का मध्य भाग का सहारा लेकर तुम दोनों के पंख के बल से आराम से चला जाऊँगा ।" दोनों हंस कहने लगे-"यह उपाय संभव है , परंतु यहॉं एक खतरा भी है । " हमारे द्वारा ले जाए जाते हुए तुम्हें देखकर लोग कुछ कहेंगे ही । यदि तुम उत्तर दोगे तब तुम्हारी मृत्यु निशि्चत् है । इसलिए तुम यहॉं ही रहो ।


शब्दार्थाः 

  • चञ्च्वा – चोंच से 
  • धारयताम्-धारण करें (द्विव०)
  • अवलम्ब्य-नीचे लटककर/सहारा लेकर 
  • पक्षबलेन - पंखों के बल से 
  • अपायः-हानि
  • नीयमानम्-ले जाए जाते हुए को 

(घ) तत् श्रुत्वा क्रुद्धः कूर्मः अवदत्-“किमहं मूर्खः? उत्तरं न दास्यामि।किञ्चिदपि न वदिष्यामि।” अतः अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्। एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्म पौराः अपश्यन् पश्चाद् अधावन् अवदन् च-“हंहो! महदाश्चर्यम्।हंसाभ्याम् सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।”कश्चिद्वदति-“यद्ययं कूर्मः कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।” अपरः अवदत्-“सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि।” अन्यः अकथयत्-“गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि” इति।

सरलार्थ: यह सुनकर क्ररोधित कछुआ कहने लगा-" क्या मैं मूर्ख हूँ ? मै उत्तर नही दूंगा । कुछ भी नहीं बोलूंगा । " इसलिए जैसा मैं कहता हूँ वैसा तुम दोनों करो । इस प्रकार लकड़ी के दण्डे पर लटकते हुए कछुए को देखकर ग्वाले पीछे दौडे़ और बोले-"अरे-रे , महान् आश्चर्य है । दो हंस के साथ कछुआ भी उड़ रहा है । " कोई कहने लगा-"यदि यह कछुआ किसी प्रकार भी गिर जाता है तब यहां पर ही पकाकर खा लूंगा । " दूसरा कहने लगा - "तालाब के किनारे पकाकर खाऊँगा "। अन्य कहा-"घर ले जाकर खाऊँगा ।"

शब्दार्थाः

  • श्रुत्वा -सुनकर
  • उड्डीयते-उड़ रहा है 
  • पक्त्वा -पकाकर 
  • सरस्तीरे-तालाब के किनारे
  • दग्ध्वा -जलाकर
  • खादिष्यामि-खाऊँगा 
  • भक्षयिष्यामि-खाऊँगा
  • अधावन्-दौड़े 

(ङ) तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्म: क्रद्ध: जात: । मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य स: अवदत्- "यूयं भस्म खादत ।" तत्क्षणमेव कूर्म: दण्डात् भूमौ पतित: । गोपालकै: स: मारित: । अत एवोक्तम्-

सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति।
स कूर्म इव दुर्बुद्धिः काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति॥

सरलार्थ: उन (ग्वालों) के उस वचन को सुनकर कछुआ क्रोधित हो जाता है । दोनों मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर वह बोला-"तुम सभी राख खा लो । " उसी पल ही कछुआ डण्डे से पृथ्वी पर गिर पड़ा । ग्वालों के द्वारा उसे मार डाला गया । अथवा कहा गया है - भलाई चाहने वाले मित्र लोगों के वचन को जो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करता है , वह लकड़ी से गिरे हुए मूर्ख कछुए के समान नष्ट हो जाता है 


शब्दार्थाः

  • श्रुत्वा-सुनकर
  • विस्मृत्य- भूलकर 
  • भस्मं-राख 
  • पौरैः-नागरिकों के द्वारा 
  • मित्राभ्यां-मित्रों को/के लिए 
  • सुहृदाम्-अच्छे मित्रों के
  • हितकामानाम्-कल्याण की इच्छा रखनेवालों के 
  • अभिनन्दति-प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है/करती है 
  • दुर्बुद्धिः - दुष्ट बुद्धिवाला
  • काष्ठाद्-लकड़ी से
  • भूमौ-जमीन पर
  • भ्रष्टः -गिर गया
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FAQs on दुर्बुद्धिः विनश्यति Chapter Notes - Chapter Notes For Class 7

1. दुर्बुद्धिः विनश्यति का अर्थ क्या है?
उत्तर: दुर्बुद्धिः विनश्यति श्लोक का अर्थ होता है कि एक व्यक्ति यदि मूर्खतापूर्ण विचार करता है और गलती करता है, तो उसे नुकसान होता है और उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है।
2. दुर्बुद्धिः विनश्यति क्या कारणों से हो सकता है?
उत्तर: दुर्बुद्धिः विनश्यति कई कारणों से हो सकती है। कुछ मुख्य कारणों में शामिल हैं: मूर्खतापूर्ण विचार, गलत निर्णय लेना, अवधारणाओं पर आधारित दूसरों की बातें मानना, अनुभव और ज्ञान की कमी, लापरवाही, और स्वभाविक नष्ट या विपरीत गुणों के कारण।
3. दुर्बुद्धिः विनश्यति के प्रभाव क्या हो सकते हैं?
उत्तर: दुर्बुद्धिः विनश्यति के प्रभावों में शामिल हो सकते हैं: गलती करने का आधार बनना, नुकसान या हानि का कारण बनना, और निराशा या निरुत्साह के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं करना।
4. दुर्बुद्धिः विनश्यति को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर: दुर्बुद्धिः विनश्यति को रोकने के लिए हमें अपने विचारों को सावधानीपूर्वक चुनना और विचारों का विश्लेषण करना चाहिए। हमें सत्यापन करना चाहिए कि हमारे विचार सही और तार्किक हैं और उन्हें पहले गलतियों से सीखना चाहिए। विचारों को चुनते समय, हमें अपने अनुभवों और ज्ञान पर भी ध्यान देना चाहिए।
5. दुर्बुद्धिः विनश्यति का उदाहरण दीजिए।
उत्तर: एक उदाहरण के रूप में, यदि एक छात्र परीक्षा में गलत निर्णय लेता है और गलत उत्तर मार्क करता है, तो उसे अपनी बुद्धि का नष्ट होने का सामर्थ्य होता है। यह उदाहरण दुर्बुद्धिः विनश्यति का एक उदाहरण है जहां मूर्खतापूर्ण विचार और गलत निर्णय के कारण छात्र को नुकसान होता है।
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