1. पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
‘संगम’ की अद्भुत सफलता ने राजकपूर में गहन आत्मविश्वास भर दिया और उसने एक साथ चार फिल्मों के निर्माण की घोषणा की -‘मेरा नाम जोकर’, ‘अजंता’, ‘मैं और मेरा दोस्त’ और ‘सत्यम शिवम् सुंदरम’। पर जब 1965 में राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ का निर्माण आरम्भ किया तब संभवतः उसने भी यह कल्पना नहीं की होगी कि इस फिल्म का एक ही भाग बनाने में छह वर्षों का समय लग जायेगा। इन छह वर्षों के अंतराल में राजकपूर द्वारा अभिनीत कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें सन 1966 में प्रदर्शित कवि शैलेंद्र कि ‘तीसरी कसम’ भी शामिल है। यह वह फिल्म है जिसमें राजकपूर ने अपने जीवन की सर्वोत्कृष्ट भूमिका अदा की। यही नहीं ‘तीसरी कसम’ वह फिल्म है जिसने हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा। ‘तीसरी कसम’ फिल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी। ‘तीसरी कसम’ शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फिल्म है। ‘तीसरी कसम’ को ‘राष्ट्रपति स्वर्णपदक’ मिला, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म और कई अन्य पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया। मास्को फिल्म फेस्टिवल में भी यह फिल्म पुरस्कृत हुई। इसकी कलात्मकता की लंबी-चौड़ी तारीफ़ें हुई। इसमें शैलेंद्र की संवेदनशीलता पूरी शिद्द्त के साथ मौजूद है। उन्होंने ऐसी फिल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
प्रश्न 1: ‘संगम’ की अद्भुत सफलता के बाद राजकपूर ने किन फिल्मों के निर्माण की घोषणा की –
(क) ‘मेरा नाम जोकर’, ‘अजंता’
(ख) ‘मैं और मेरा दोस्त’ ‘सत्यम शिवम् सुंदरम’
(ग) ‘मेरा नाम जोकर’, ‘तीसरी कसम’
(घ) (क) और (ख) दोनों
उत्तर: (घ) – (क) और (ख) दोनों
प्रश्न 2: राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ का निर्माण कब आरम्भ किया और इसे समाप्त होने में कितना समय लगा –
(क) 1964 में आरम्भ और समाप्ति में लगभग 6 वर्ष लगे
(ख) 1965 में आरम्भ और समाप्ति में लगभग 6 वर्ष लगे
(ग) 1955 में आरम्भ और समाप्ति में लगभग 6 वर्ष लगे
(घ) 1965 में आरम्भ और समाप्ति में लगभग 7 वर्ष लगे
उत्तर: (ख) 1965 में आरम्भ और समाप्ति में लगभग 6 वर्ष लगे
प्रश्न 3: निम्नलिखित कथन (A) तथा कारण (R) को ध्यानपूर्वक पढ़िए। उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुन कर लिखिए।
कथन (A) – तीसरी कसम में शैलेंद्र की संवेदनशीलता पूरी शिद्द्त के साथ मौजूद है। उन्होंने ऐसी फिल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
कारण (R) – ‘तीसरी कसम’ वह फिल्म है जिसने हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा। ‘तीसरी कसम’ फिल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी। ‘तीसरी कसम’ को ‘राष्ट्रपति स्वर्णपदक’ मिला, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म और कई अन्य पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया।
(क) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं
(ख) कथन (A) सही है तथा कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है
(ग) कथन (A) गलत है तथा कारण (R) सही है
(घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही है तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर: (घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही है तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 4: ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन से पुरुस्कार मिले –
(क) ‘राष्ट्रपति स्वर्णपदक’
(ख) बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म
(ग) मास्को फिल्म फेस्टिवल में भी यह फिल्म पुरस्कृत हुई
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5: गद्यांश से शैलेन्द्र के बारे में पता चलता है कि वे थे –
(क) बेहतरीन लेखक व् सच्चा कवि-हृदय
(ख) बेहतरीन लेखक
(ग) संगीतज्ञ
(घ) बेहतरीन कवि व् निर्देशक
उत्तर: (क) बेहतरीन लेखक व् सच्चा कवि-हृदय
2. पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया। पर वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार सम्पति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी। ‘तीसरी कसम’ कितनी ही महान फिल्म क्यों न रही हो, लेकिन यह एक दुखद सत्य है कि इसे प्रदर्शित करने के लिए बमुश्किल वितरक मिले। बावजूद इसके कि ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे नामज़द सितारे थे, शंकर-जयकिशन का संगीत था, जिनकी लोकप्रियता उन दिनों सातवें आसमान पर थी और इसके गीत भी फ़िल्म के प्रदर्शन के पूर्व ही बेहद लोकप्रिय हो चुके थे, लेकिन इस फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था। दरअसल इस फिल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने का गणित जानने वाले की समझ से परे थी। उसमें रची-बसी करुणा तराज़ू पर तौली जा सकने वाली चीज़ नहीं थी। इसीलिए बमुश्किल जब ‘तीसरी कसम’ रिलीज़ हुई तो इसका कोई प्रचार नहीं हुआ। फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा। ऐसा नहीं है कि शैलेंद्र बीस सालों तक फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे। परन्तु उन में उलझकर वे अपनी आदमियता नहीं खो सकते थे। ‘श्री 420’ का एक लोकप्रिय गीत है – ‘प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल।’ इसके अंतरे की एक पंक्ति- ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति की। उनका ख्याल था कि दर्शक ‘चार दिशाएँ तो समझ सकते हैं- ‘दस दिशाएँ’ नहीं। लेकिन शैलेंद्र परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हुए। उनका दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रूचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे। और उनका यकीन गलत नहीं था। यही नहीं, वे बहुत अच्छे गीत भी जो उन्होंने लिखे बेहद लोकप्रिय हुए। शैलेंद्र ने झूठे अभिजात्य को कभी नहीं अपनाया। उनके गीत भाव-प्रणव थे-दुरूह नहीं। ‘मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रुसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ -यह गीत शैलेंद्र ही लिख सकते थे। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई लिए हुए। यही विशेषता उनकी जिंदगी की थी और यही उन्होंने अपनी फिल्म के द्वारा भी साबित किया था।
प्रश्न 1 . राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को किससे आगाह किया –
(क) फ़िल्म की बेकार कहानी से
(ख) बेकार निर्देशन से
(ग) फ़िल्म की सफलता से
(घ) फिल्म की असफलता के खतरों से
उत्तर: (घ) फिल्म की असफलता के खतरों से
प्रश्न 2 . शैलेंद्र को किस चीज़ की इच्छा थी –
(क) अपार सम्पति
(ख) यश की अभिलाषा
(ग) आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (ग) आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा
प्रश्न 3: निम्नलिखित कथन (A) तथा कारण (R) को ध्यानपूर्वक पढ़िए। उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुन कर लिखिए।
कथन (A) – बावजूद इसके कि ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे नामज़द सितारे थे, शंकर-जयकिशन का संगीत था, जिनकी लोकप्रियता उन दिनों सातवें आसमान पर थी और इसके गीत भी फ़िल्म के प्रदर्शन के पूर्व ही बेहद लोकप्रिय हो चुके थे, लेकिन इस फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था।
कारण (R) – दरअसल इस फिल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने का गणित जानने वाले की समझ से परे थी। उसमें रची-बसी करुणा तराज़ू पर तौली जा सकने वाली चीज़ नहीं थी। इसीलिए बमुश्किल जब ‘तीसरी कसम’ रिलीज़ हुई तो इसका कोई प्चार नहीं हुआ। फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
(क) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं
(ख) कथन (A) सही है तथा कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है
(ग) कथन (A) गलत है तथा कारण (R) सही है
(घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही है तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर: (घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही है तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 4: ‘तीसरी कसम’ जब रिलीज़ हुई तो इसका प्रचार क्यों नहीं हुआ-
(क) उसमें रची-बसी करुणा तराज़ू पर तौली जा सकने वाली चीज़ नहीं थी
(ख) इसे प्रदर्शित करने के लिए बमुश्किल वितरक मिले
(ग) ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे नामज़द सितारे थे
(घ) शंकर-जयकिशन का संगीत था
उत्तर: (क) उसमें रची-बसी करुणा तराज़ू पर तौली जा सकने वाली चीज़ नहीं थी
प्रश्न 5: गद्यांश से राजकपूर के बारे में पता चलता है कि वे थे –
(क) बेहतरीन नायक व् नामज़द सितारे
(ख) बेहतरीन लेखक
(ग) एक अच्छे और सच्चे मित्र
(घ) बेहतरीन कवि व् निर्देशक
उत्तर: (क) और (ग) दोनों
3. पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
हमारी फिल्मों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है, लोक-तत्व का आभाव। वे जिंदगी से दूर होती है। यदि त्रासद स्थितियों का चित्रांकन होता है तो उन्हें ग्लोरिफ़ाई किया जाता है। दुख का ऐसा वीभत्स रूप प्रस्तुत होता है जो दर्शकों का भावनात्मक शोषण कर सके। और ‘तीसरी कसम’ की यह खास बात थी कि वह दुःख को भी सहज स्थिति में, जीवन-सापेक्ष प्रस्तुत करती है। मैंने शैलेंद्र को गीतकार नहीं, कवि कहा है। वे सिनेमा की चकाचौंध के बीच रहते हुए यश और धन-लिप्सा से कोसों दूर थे। जो बात उनकी जिंदगी में थी वही उनके गीतों में भी। उनके गीतों में सिर्फ करुणा नहीं, जूझने का संकेत भी था और वह प्रक्रिया भी मौजूद थी जिसके तहत अपनी मंजिल तक पहुँचा जाता है। व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संकेत देती है। शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ को अपनी भावप्रणवता का सर्वश्रेष्ठ तथ्य प्रदान किया। मुकेश की आवाज में शैलेंद्र का यह गीत तो अद्वितीय बन गया है –
सजनवा बैरी हो गए हमार चिठिया हो तो हर कोई बाँचै भाग न बाँचै कोय…..अभिनय के दृष्टिकोण से ‘तीसरी कसम’ राजकपूर की जिंदगी की सबसे हसीन फिल्म है। राजकपूर जिन्हें समीक्षक और कला-मर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते हैं, ‘तीसरी कसम’ में मासूमियत के चर्मोत्कर्ष को छूते हैं। अभिनेता राजकपूर जितनी ताकत के साथ ‘तीसरी कसम’ में मौजूद हैं, उतना ‘जागते रहो’ में भी नहीं। ‘जागते रहो’ में राजकपूर के अभिनय को बहुत सराहा गया था, लेकिन ‘तीसरी कसम’ वह फिल्म है जिसमें राजकपूर अभिनय नहीं करता। वह हिरामन के साथ एकाकार हो गया है। खालिस देहाती भुच्च गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं। जिसके लिए मोहब्बत के सीवा किसी दूसरी चीज़ का कोई अर्थ नहीं।
प्रश्न 1: गद्यांश के अनुसार हमारी फिल्मों की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है –
(क) वे जिंदगी से दूर होती है
(ख) लोक-तत्व का आभाव
(ग) उन्हें ग्लोरिफ़ाई किया जाता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (ख) लोक-तत्व का आभाव
प्रश्न 2: दुःख के विषय में ‘तीसरी कसम’ की यह खास बात थी कि –
(क) वह दुःख को भी सहज स्थिति में प्रस्तुत करती है
(ख) वह दुःख को जीवन-सापेक्ष प्रस्तुत करती है
(ग) दुख का कोई वीभत्स रूप प्रस्तुत नहीं करती
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3: निम्नलिखित कथन (A) तथा कारण (R) को ध्यानपूर्वक पढ़िए। उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुन कर लिखिए।
कथन (A) – मैंने शैलेंद्र को गीतकार नहीं, कवि कहा है। वे सिनेमा की चकाचौंध के बीच रहते हुए यश और धन-लिप्सा से कोसों दूर थे। जो बात उनकी जिंदगी में थी वही उनके गीतों में भी।
कारण (R) – क्योंकि उनके गीतों में सिर्फ करुणा ही नहीं थी , बल्कि जिंदगी की मुश्किलों से जूझने का संकेत भी था और वह प्रक्रिया भी मौजूद थी जिसके अनुसार कोई अपनी मंजिल तक पहुँचा जाता है।
(क) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं
(ख) कथन (A) सही है तथा कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है
(ग) कथन (A) गलत है तथा कारण (R) सही है
(घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही है तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर: (घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही है तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 4: ‘तीसरी कसम’ में हिरामन को कैसे प्रस्तुत किया गया है –
(क) खालिस देहाती भुच्च गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है
(ख) जिसके लिए मोहब्बत के सीवा किसी दूसरी चीज़ काकोई अर्थ नहीं।
(ग) वह दिमाग की बात नहीं सुनता
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5: गद्यांश से राजकपूर के बारे में पता चलता है कि वे थे –
(क) बेहतरीन समीक्षक और कला-मर्मज्ञ आँखों से बात करने वाले कलाकार हैं
(ख) राजकपूर जितनी ताकत के साथ ‘तीसरी कसम’ में मौजूद हैं, उतना ‘जागते रहो’ में भी नहीं
(ग) ‘तीसरी कसम’ वह फिल्म है जिसमें राजकपूर अभिनय नहीं करता। वह हिरामन के साथ एकाकार हो गया है।
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी
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