निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. ‘आत्मत्राण’ शीर्षक का अर्थ बताते हुए उसकी सार्थकता, कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है-स्वयं अपनी सुरक्षा करना। इस कविता में कवि ईश्वर से सहायता नहीं माँगता। वह ईश्वर को हर दुःख से बचाने के लिए नहीं पुकारता। वह स्वयं अपने दुःख से बचने और उसके सामना करने योग्य बनना चाहता है। इसके लिए वह केवल स्वयं को समर्थ बनाना चाहता है। इसलिए यह शीर्षक विषय वस्तु के अनुरूप बिल्कुल सही और सटीक है।
प्रश्न 2. ‘आत्मत्राण’ कविता में कवि की प्रार्थना से क्या संदेश मिलता है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
व्याख्यात्मक हल:
‘आत्मत्राण’ कविता में कवि की प्रार्थना से आत्मनिर्भर जीवन जीने का संदेश मिलता है। कवि ईश्वर से अपने जीवन का भार स्वयं वहन कर सकने की क्षमता माँगता है। वह चाहता है कि सुख के समय में भी हम ईश्वर को निरन्तर याद करते रहें और ईश्वर की शक्ति और करुणा पर अपना अटूट विश्वास बनाये रखें। जीवन में आने वाली विपत्तियों व बाधाओं में हम अपना आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता बनाए रखें।
प्रश्न 3. आत्मत्राण कविता में किसी सहायक पर निर्भर न रहने की बात कवि क्यों कहता है? कविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
केन्द्रीय भाव:
व्याख्यात्मक हल:
‘आत्मत्राण’ कविता में किसी सहायक पर निर्भर न रहने की बात कवि इसलिए कहता है कि यदि ऐसी परिस्थिति आ जाए कि कोई सहायक न भी मिले अर्थात कोई सहायता करने वाला न हो तो भी उसमें आत्मबल, हिम्मत-साहस और बल पौरुष बना रहे। क्योंकि कवि स्वावलंबी है और वह अपने बलबूते जीवन की सभी बाधाओं और विपत्तियों का सामना करना चाहता है। ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है-स्वयं अपनी सुरक्षा करना। इस कविता में कवि ईश्वर से सहायता नहीं माँगता। वह ईश्वर को हर दुःख से बचाने के लिए नहीं पुकारता। वह स्वयं अपने दुःख से बचने और उसके योग्य बनना चाहता है। इसके लिए वह केवल स्वयं को समर्थ बनाना चाहता है।
प्रश्न 4. आत्मत्राण कविता के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ? उसका संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्याख्यात्मक हल:
आत्मत्राण कविता के द्वारा कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने हमें विपत्तियों से न घबराने का संदेश दिया है। भले ही कोई सहायक न मिले पर हम साहस बनाए रखें। यदि कोई हमें धोखा दे या छल-कपट करे तो भी मन में हमें हार नहीं माननी चाहिए। सुख के दिनों में भी सदैव ईश्वर को याद रखें और कभी ईश्वर के प्रति मन में अविश्वास और संदेह की भावना न लाएँ:यही संदेश इस कविता से हमें प्राप्त होता है।
प्रश्न 5. कवि ईश्वर पर संशय नहीं करना चाहता, क्यों ? कविता के संदर्भ में उत्तर दीजिए।
उत्तर: कवि ईश्वर पर सदैव विश्वास बनाए रखना चाहते हैं। दुख के दिनों में भी परमेश्वर के प्रति उनकी आस्था पर किसी प्रकार का संदेह या संशय न हो, क्योंकि ईश्वर पर उनके विश्वास का संबल ही उन्हें हर कठिनाई को सहने की शक्ति प्रदान करता है। ईश्वर पर पूर्ण विश्वास ही उन्हें कठिनाइयों में निर्भय होकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 6. कवि को ईश्वर के अतिरिक्त और किस पर भरोसा है और क्यों ?
उत्तर: कवि को ईश्वर के अतिरिक्त अपनी बुद्धि व कौशल पर विश्वास है। उन्हें अपनी शक्ति व कठिनाइयों का सामना करने के लिए बुद्धि के बल पर बनाई गई योजनाओं और कुशलता के बल पर उनका सामना करने की क्षमता पर विश्वास है, क्योंकि कवि का मानना है कि मनुष्य अपना उद्धार स्वयं ही कर सकता है, अपनी कठिनाइयों से खुद छुटकारा पा सकता है, कोई और उसकी सहायता नहीं कर सकता। वह जानता है कि वह यदि अपनी समस्त शक्तियों का उचित प्रयोग करेगा, तो कठिनाइयाँ निश्चय ही दूर होंगी।
प्रश्न 7. सामान्यतः मनुष्य कैसे दिनों में ईश्वर को भूल जाता है और क्यों? वर्णन कीजिए।
उत्तर: सामान्यतः मनुष्य सुख के दिनों में ईश्वर को भूल जाता है, क्योंकि वह स्वार्थी प्राणी है। जब-जब उसे किसी चीज की आवश्यकता होती है, तब-तब वह उसे पाने के लिए प्रयत्नशील होता है और ईश्वर से इच्छा-पूर्ति की कामना करता है और इच्छा-पूर्ति हो जाने पर भगवान को पूरी तरह भूल जाता है। फिर दुख के समय आपत्तियों से छुटकारा पाने के लिए पुनः ईश्वर का स्मरण करता है।
प्रश्न 8. हमें संकटों का सामना किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर: हमें संटकों का सामना डटकर करना चाहिए। आत्मसंघर्ष करके, संकटों से जूझकर ही विजय प्राप्त की जा सकती है। पुरुषार्थ के बल पर संकटों का सामना करने में ही भलाई है। कवि निर्भय बनकर जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष कर विजय पाने का प्रयत्न करना चाहता है। हमें ईश्वर पर विश्वास बनाए रखकर कठिनाइयों पर पार पाना चाहिए।
प्रश्न 9. कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर: ‘आत्मत्राण’ कविता में कवि की आकांक्षा सामान्य लोगों की आकांक्षा से भिन्न है। सामान्य रूप से लोग ईश्वर से दुःखों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। पर इस कविता में कवि दुःखों से विचलित न होकर अपने बुद्धि-बल और साहस के बल पर कठिनाइयों से त्राण पाना चाहता है। वह ईश्वर से इतनी शक्ति चाहता है कि विपत्तियाँ, हानि, धोखा सहन कर पाए। उसका ईश्वर पर सदैव विश्वास बना रहे। सुख-दुःख को समभाव से वहन कर सके। कवि ने जीवन में संघर्ष करने की शक्ति की कामना की है।
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1. आत्मत्राण क्या है? |
2. आत्मत्राण क्यों जरूरी है? |
3. आत्मत्राण के क्या फायदे हैं? |
4. आत्मत्राण के लिए कौन-कौन से उपाय हैं? |
5. आत्मत्राण का अभ्यास कैसे किया जा सकता है? |
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