प्रश्न 1. "सुनकर बोलीं और-और
कठपुतलियाँ
कि हां,”
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर: दुख से बाहर निकलने के लिए जब एक कठपुतली बगावत कर देती है , तो उसकी बात सभी कठपुतलियों को अच्छी लगती है ,और फिर सब कठपुतलियाँ उसके प्रतिध्वनि करती हैं और कहती है कि हमको भी मुक्त करो । हम सब अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते है। आशय है, कि जब एक कठपुतली स्वतंत्र होने बात करती है, तो सब कठपुलियो को उसकी बात ठीक लगती है , वो सब उसका समर्थन करती है ,ताकि वो सब भी स्वतंत्र हो जाए और स्वयं अपने पैरो पर खड़ी हो सके |अर्थात प्रत्येक जीव और वस्तु को आज़ादी से प्रेम होता है|कठपुतलिया स्वयं कि पहचान बनाना चाहती है ,और आज़ादी से बिना धागे के जीवन का आनंद लेना चाहती है |
प्रश्न 2. कठपुतलियों अपने पैरों पर खड़ा क्यों नहीं हो सकती है?
उत्तर: कठपुतलियाँ अपने पैरो इसलिए नहीं खड़ी हो सकती थी, क्यूँकि जैस की हम लोग जानते है, कि कठपुतलियाँ धागे से बंधी हुई होती है। इसलिए वह अपने पैरों पर खड़ा होंने में असमर्थ है | धागे से आजाद होने के बाद ही वो अपने पैरो पर खड़ी हो सकती है| उन्हें इस बात का बहुत दुःख है कि वे कब धागों से मुक्त होकर स्वयं अपने पैरो पर खड़ी होंगी |अतः धागे से मुक्ति ही उन्हें पैरो पर खड़ा कर सकती है |जब तक धागा उनको सहारा देता रहेगा तब तक वो स्वयं नहीं चल सकती |और उनकी पहचान केवल धागे से होगी ,धागे के अभाव में अधूरी होगी | इसलिए धागे से मिली पहचान से वो आज़ादी चाहती है |धागे से मुक्त होकर ही वो अपने पैरो पर खड़ी हो सकती है|
प्रश्न 3. आजादी की बात कहने के पश्चात् पहली कठपुतली क्या सोचने लगी?
उत्तर: पहले कठपुतली ने अपनी इच्छा व्यक्त तो कर दी थी| लेकिन बाद में सोचनेलगी, कि उसके पास स्वतंत्र होने की क्षमता है या नहीं। अकेले स्वतंत्र होना अलग बात है .और दूसरों को स्वतंत्र बनाना अलग बात है। उसे लगा कि उसकी आयु अभी इतनी नहीं है, कि वह सभी की जिम्मेदारी ले सके | इस प्रकार उसे लगा कि जो वो कर रही है ,वो ठीक भी है ,या नहीं| वो सब कि जिम्मेदरी उठा पाएगी या नही | ये उसके लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था|अतः वह सोच में पड गयी, कि जो वो करने जा रही वो उसको किस प्रकार कर पायेगी |सब सखियों के साथ आजाद होने कि खुशी भी थी| और साथ में ये दुःख भी था, कि हम सब आखिर आजाद हो भी पाएंगे |और यदि होंगे तो किस प्रकार इतनी आयु है, या नहीं |और सबसे बड़ी बात कि इतनी हिम्मत हम कर पयेंगे या नहीं |
प्रश्न 4. पहली कठपुतत्री ने दूसरी कठ्पुलियों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: पहली कठपुतल्री ने जब खुद को... आजाद करने की बात धागे से कहती है .. , तो उसकी बात सुनकर॒ दूसरी कठपुतलियों के मन में भी आजादी होने इच्छा जाग उठती है। इस तरह पहली कठपुतली दूसरों को प्रभावित करती है।कठपुतलियाँ ये सुनकर बहुत प्रभावित होती है|सब अपना समर्थन देती है |वो कहती है कि किसी एक ने तो आजाद होने कि बात सोची तो क्यों ना हम सब भी उसको अपना समर्थन दे |तब ही हम सब स्वतंत्र हो पाएंगे |अर्थात किसी भी कठिन कार्य को करने के लिए किसी ना किसी को तो पहल करनी पडती है ,इसी प्रकार एक कठपुतली आगे बढ़ी तो बाकि सबने उसका समर्थन किया |ताकि सब अपनी पहचान बना कर जी सके|
प्रश्न 5. “बहुत दिन हुए"
हमें अपने मन के छंद छुए।“
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर: यहाँ 'मन के छंद से भाव है ,कि कठपुतली' मन की प्रसन्नता को दर्शाते हुए कहती है, कि लंबे समय से हमने अपनी मर्जी से अपनी खुशी के लिए कुछ भी नहीं किया है। इस कारणवश हमारे मन की इच्छाएं समाप्त हो गई हैं। और हमारे मन का दुःख दूर नहीं हुआ है।हम जो करते है वो धागे कि मर्ज़ी से करते है|हमें जैसे चाहे वैसे हिलाता डूलाता है |हम विवश है, इस कारण मन की सब इच्छाए समाप्त हो गयी है|हम मुक्त होकर ही प्रसन्न हो सकते है हमारी ख़ुशी केवल स्वतंत्र होने में ही है | अर्थात जब हम किसी के बंधन में होते है ,तो हमारी कोई मर्जी या पहचान नहीं होती जिस से हमारे मन कि सभी इच्छाऐ समाप्त हो जाती है |ऐसा लगता है जीवन का आधार ही नहीं है कुछ |जीवन तो किसी दुसरे के हाथ में है |इसलिए आज़ादी में ही जीवन है अन्यथा सब व्यर्थ है|
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