प्रश्न 1: एक ही कक्षा में दो-दो बार बैठने से टोपी को किन भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा? मानवीय मूल्यों की दृष्टि से अपने विचार लिखिए।
उत्तर: टोपी नवीं कक्षा में दो बार फ़ेल हो गया। एक ही कक्षा में दो-दो बार बैठने से टोपी को अनेक भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वह अकेला पड़ गया था क्योंकि उसके दोस्त दसवीं कक्षा में थे और नई कक्षा में से कोई उसका दोस्त न बन सका था। वह अध्यापकों की हँसी का पात्र बनता चला गया। अध्यापक जब भी किसी न पढ़ने वाले बच्चे को टोकते तो हमेशा उसी का उदाहरण देते, 'क्यों क्या बात है? राम अवतार (या कोई भी बच्चा ) बलभद्र की तरह इसी दर्जे में टिके रहना चाहते हो। इस पर वह शर्म से बिल्कुल पानी-पानी हो जाता और बाकी बच्चे ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगते। अपनी कक्षा में वह अच्छा खासा बूढ़ा नज़र आता था। अपने भरे-पूरे घर की तरह अब वह स्कूल में भी बिल्कुल अकेला हो गया था। मानवीय मूल्यों की दृष्टि से देखा जाए, तो किसी की भावनाओं को इस प्रकार से ठेस पहुँचाना, उसे प्रताड़ित करना सर्वथा अनुचित है। ऐसे समय में माता-पिता ही नहीं समाज और शिक्षकवर्ग सभी को एक सकारात्मक भूमिका निभानी पड़ेगी। सफलता या असफलता जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। किसी एक परीक्षा में असफल होने से हमारा जीवन रुकता नहीं, वहाँ से तो जीवन को एक नई दिशा और अधिक सुदृढ़ता के साथ देने की आवश्यकता है । आज विद्यार्थियों के दिलों-दिमाग़ में यह बात और अधिक सुदृढ़ता से स्थापित करने की आवश्यकता है। तभी परीक्षा परिणामों के बाद होने वाली आत्महत्याओं को रोकने में समाज एक सकारात्मक पहल कर सकेगा।
प्रश्न 2: 'अलग-अलग धर्म और जाति मानवीय रिश्तों में बाधक नहीं होते।' 'टोपी शुक्ला' पाठ के आलोक में प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर: ‘अलग-अलग धर्म और जाति मानवीय रिश्तों में बाधक नहीं होते।' लेखक डॉ० राही मासूम रज़ा ने अपने उपन्यास 'टोपी शुक्ला' में इसी विचारधारा को प्रतिपादित किया है । लेखक ने बताया है कि टोपी कट्टर हिंदू परिवार से तथा इफ़्फ़न कट्टर मौलवी परिवार से संबंध रखता था, किंतु फिर भी टोपी और इफ़्फ़न की दादी में एक अटूट मानवीय रिश्ता था । दोनों आपस में स्नेह के बंधन में बँधे थे। टोपी अपने घर में उपेक्षित था उसे इफ़्फ़न के घर में अपनापन मिलता था। दादी के आँचल की छाँव में बैठकर वह स्नेह का अपार भंडार पाता था। उसके लिए रीति-रिवाज, सामाजिक हैसियत, खान-पान आदि कोई महत्त्व नहीं रखता था। इफ़्फ़न की दादी भी भरे घर में अकेली थी, उनकी भावनाओं को समझने वाला भी घर में कोई नहीं था । अतः दोनों का रिश्ता धर्म और जाति की सीमाएँ पार कर प्रेम के बंधन में बँध गया। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे थे। लेखक ने हमें समझाया है कि जब मन की भावनाएँ मेल खा जाती हैं तो मज़हब और जाति के बंधन बेमानी हो जाते हैं। अतः स्पष्ट हो जाता है कि टोपी व इफ़्फ़न की दादी अलग-अलग मज़हब और जाति के होने पर भी परस्पर प्रेम व स्नेह की अदृश्य डोर में बँधे हुए थे।
प्रश्न 3. टोपी एक सुविधा - संपन्न परिवार से था, फिर भी इफ़्फ़न की हवेली की तरफ उसके खिंचे चले जाने के क्या कारण थे? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर: टोपी एक सुविधा संपन्न परिवार से था, फिर भी इफ़्फ़न की हवेली की तरफ़ वह बरबस खिंचा चला जाता था क्योंकि अपने भरे-पूरे घर में वह बिल्कुल अकेला था। उसकी भावनाओं को घर में कोई नहीं समझता था। दादी तो उसकी हर बात में कमी निकालती थीं। दादी उसकी भाषा पर भी उसे डाँटती थीं। माँ को उसकी इफ़्फ़न से दोस्ती पर नाराज़गी थी। बड़े भाई मुन्नी बाबू ने भी स्वयं कबाब खाकर उसका इल्ज़ाम टोपी पर लगाकर उसकी पिटाई करवा दी थी । छोटा भाई भैरव भी अक्सर उसे तंग करता रहता था । इन सबके विपरीत इफ़्फ़न और उसकी दादी से उसे अपनेपन का एहसास मिलता था। दादी तो उसे बहुत प्यार करती थी। वह जब भी इफ़्फ़न के घर जाता, दादी के पास ही बैठता था । टोपी की पूरबी बोली पर यदि इफ़्फ़न के परिवार का कोई सदस्य उसे छेड़ता, तो भी दादी टोपी का ही पक्ष लेती थीं। वे स्वयं भी पूरबी बोली बोलती थीं और इफ़्फ़न के साथ टोपी को भी कहानियाँ सुनाया करती थीं। इसी कारण टोपी ने बार-बार मना करने पर भी इफ़्फ़न की हवेली में जाना नहीं छोड़ा।
प्रश्न 4: इफ़्फ़न के घर जाने के लिए मना करने पर भी टोपी नहीं माना और पिटता रहा। क्यों? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: टोपी एक सुविधा-संपन्न परिवार से था, फिर भी इफ़्फ़न की हवेली की तरफ़ वह बरबस खिंचा चला जाता था क्योंकि अपने भरे-पूरे घर में वह बिल्कुल अकेला था। उसकी भावनाओं को घर में कोई नहीं समझता था। दादी तो उसकी हर बात में कमी निकालती थीं। दादी उसकी भाषा पर भी उसे डाँटती थीं। माँ को उसकी इफ़्फ़न से दोस्ती पर नाराज़गी थी। बड़े भाई मुन्नी बाबू ने भी स्वयं कबाब खाकर उसका इल्ज़ाम टोपी पर लगाकर उसकी पिटाई करवा दी थी । छोटा भाई भैरव भी अक्सर उसे तंग करता रहता था । इन सबके विपरीत इफ़्फ़न और उसकी दादी से उसे अपनेपन का एहसास मिलता था। दादी तो उसे बहुत प्यार करती थी। वह जब भी इफ़्फ़न के घर जाता, दादी के पास ही बैठता था । टोपी की पूरबी बोली पर यदि इफ़्फ़न के परिवार का कोई सदस्य उसे छेड़ता, तो भी दादी टोपी का ही पक्ष लेती थीं। वे स्वयं भी पूरबी बोली बोलती थीं और इफ़्फ़न के साथ टोपी को भी कहानियाँ सुनाया करती थीं। इसी कारण टोपी ने बार-बार मना करने पर भी इफ़्फ़न की हवेली में जाना नहीं छोड़ा।
प्रश्न 5: प्रेम मानवीय रिश्तों की बुनियाद है।’ इसमें उभरने वाले जीवन मूल्यों को टोपी शुक्ला पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: टोपी शुक्ला नामक पाठ से ज्ञात होता है कि टोपी के घर में उसकी दादी उसके माता-पिता के अलावा एक बड़ा और एक छोटा भाई भी है। उसके घर में काम करने वाली सीता और केतकी नामक दो नौकरानियाँ हैं पर टोपी के लिए इस घर में कोई प्रेम नहीं है। टोपी को यह प्रेम अपने मित्र इफ़्फ़न उसकी दादी और अपने घर की नौकरानी सीता से मिलता है।
इस प्रेम के कारण जाति, धर्म, उम्र, पद, मालिक-नौकरानी का भेद नहीं आने पाता है। प्रेम के अभाव में वह अपने घरवालों से रिश्ता नहीं बना पाता है जबकि जहाँ उसे प्रेम मिलता है वहाँ नए रिश्ते बन जाते हैं। टोपी का अपने परिवार के सदस्यों से खून का रिश्ता है पर वहाँ प्रेम नहीं है और जहाँ रिश्ता नहीं है वहाँ प्रेम के कारण नए रिश्ते का अंकुरण हो जाता है। इस प्रकार नि:संदेह कहा जा सकता है कि प्रेम मानवीय रिश्तों की बुनियाद है।
प्रश्न 6: टोपी और इफ्फ़न की दादी के उस प्रेममयी आत्मीय संबंध का वर्णन कीजिए, जिसके कारण टोपी ने इफ्फ़न से कहा कि तुम्हारी दादी की जगह मेरी दादी मर गई होती तो अच्छा होता।
उत्तर: टोपी और इफ़्फ़न की दादी अलग-अलग जाति-धर्म से संबंध रखती थी, पर उनमें इतना गहरा प्रेम और आत्मीय भाव था कि जाति-धर्म का बंधन इसके आगे कहीं ठहर न सका। दोनों ही एक-दूसरे का दुख-दर्द समझते थे। टोपी और दादी के संबंध को इफ्फ़न के दादा जीवित होते तो वह भी इस संबंध को बिलकुल उसी तरह न समझ पाते जैसे टोपी के घरवाले न समझ पाए थे।
दोनों अलग-अलग अधूरे थे। एक ने दूसरे को पूरा कर दिया था। दोनों प्यासे थे। एक ने दूसरे की प्यास बुझा दी थी। दोनों अपने घरों में अजनबी और भरे घर में अकेले थे। दोनों ने एक-दूसरे का अकेलापन मिटा दिया था। इसी प्रेममयी आत्मीय संबंध के कारण टोपी ने कहा कि तुम्हारी दादी की जगह मेरी दादी मर गई होती तो अच्छा रहता।
प्रश्न 7: बच्चे प्यार के भूखे होते हैं। वे उसी के बनकर रह जाते हैं जिनसे उन्हें प्यार मिलता है। इससे आप कितना सहमत हैं? इफ्फ़न और उसकी दादी के संबंधों के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इफ्फ़न के परिवार में उसकी दादी, उसके अब्बू-अम्मी और दो बहनें थीं। इफ़्फ़न को अपने अब्बू, अपनी अम्मी, अपनी बाजी और छोटी बहन नुजहत से भी प्यार था ही परंतु दादी से वह जरा ज्यादा प्यार किया करता था। अम्मी तो कभीकभार डाँट मार लिया करती थीं। बाजी का भी यही हाल था। अब्बू भी कभी-कभार घर को कचहरी समझकर फैसला सुनाने लगते थे।
नुजहत को जब मौका मिलता उसकी कापियों पर तसवीरें बनाने लगती थीं। बस एक दादी थी जिन्होंने कभी उसका दिल नहीं दुखाया। वह रात को भी उसे बहराम डाकू, अनार परी, बारह बुर्ज, अमीर हमजा, गुलबकावली, हातिमताई, पंच फुल्ला रानी की कहानियाँ सुनाया करती थीं। मैं इससे पूर्णतया सहमत हूँ कि बच्चे प्यार के भूखे होते हैं। और वे उसी के होकर रह जाते हैं, जिनसे उन्हें प्यार मिलता है।
प्रश्न 8: कुछ बच्चों को अपने माता-पिता के पद और हैसियत का कुछ ज्यादा ही घमंड हो जाता है। इसका मानवीय संबंधों पर क्या असर पड़ता है? इसे रोकने के लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे? ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के आलोक में लिखिए।
उत्तर: इफ्फ़न के पिता कलेक्टर थे। उनका तबादला हो जाने के कारण उनके स्थान पर नए कलेक्टर हरनाम सिंह आए। वे उसी बँगले में रहने लगे जिसमें इफ़्फ़न का परिवार रहता था। जब इफ़्फ़न को याद करके टोपी उस बँगले में पहुँचा तो चौकीदार ने उसे अंदर जाने दिया। वहाँ नए कलेक्टर के तीनों बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। उन्होंने टोपी से अभद्रता से बातचीत ही नहीं की बल्कि मारपीट भी की।
इतना ही नहीं, उन्होंने टोपी पर अपना अलसेशियन कुत्ता भी छोड़ दिया जिसके कारण टोपी को सात सुइयाँ लगवानी पड़ीं। ऐसा उन्होंने अपने कलेक्टर पिता के पद और हैसियत के घमंड में किया। मानवीय संबंधों पर इसका यह असर होता है कि वे चूर-चूर हो जाते हैं।
ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति और बढ़ते घमंड को रोकने के लिए बच्चों को प्रेम, सद्भाव, भाई-चारा, पारस्परिक सद्भाव, सभी को समान समझने की भावना, त्याग जैसे मानवीय मूल्यों की शिक्षा देनी चाहिए तथा इन मूल्यों को बनाए रखते हुए उनके सामने अनुकरणीय उदाहरण भी प्रस्तुत करना चाहिए।
प्रश्न 9: टोपी शुक्ला के विचारों का समाज पर क्या प्रभाव था? उनके विचारों ने समाज में कैसे बदलाव लाया?
उत्तर: टोपी शुक्ला के विचार समाज में गहरा प्रभाव डाले। उनके विचारों ने समाज में सामाजिक जागरूकता बढ़ाई और लोगों को समाज में सुधार की दिशा में सोचने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने सामाजिक अन्याय, शोषण और दरिद्रता के खिलाफ आवाज उठाई, जिससे लोगों की सोच में बदलाव आया और समाज में सामाजिक सुधार की दिशा में कदम बढ़े।
प्रश्न 10: टोपी शुक्ला की कहानी से कैसे स्वानुभूति और आत्म-प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है? उनके व्यक्तिगत अनुभवों से कुछ उदाहरण दें।
उत्तर: टोपी शुक्ला की कहानी से स्वानुभूति और आत्म-प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है। उनके व्यक्तिगत अनुभवों में उनकी संघर्षों और संघर्षों के परिणामस्वरूप प्राप्त ज्ञान की महत्वपूर्ण उपयोगिता होती है। उन्होंने अपने जीवन में उठे मुश्किलातों का सामना किया और उन्हें पार करने के लिए आत्म-संयम, संघर्षशीलता, और आत्म-नियंत्रण की महत्वपूर्णता सिखाई। उनके उदाहरण से हम यह सिख सकते हैं कि समस्याओं का सामना कैसे किया जा सकता है और आत्म-विश्वास कैसे बढ़ाया जा सकता है।
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