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पतझर में टूटी पत्तियाँ NCERT Solutions | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

प्रश्न अभ्यास 


मौखिक 

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
प्रश्न 1: शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर: शुद्ध सोना बिना किसी मिलावट के होता है। यह पूरी तरह शुद्ध होता है। गिन्नी के सोने में ताँबे की मिलावट होती है। इसी ताँबे के कारण गिन्नी का सोना ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने की तुलना में मजबूत भी अधिक होता है। औरतें अकसर गिन्नी के सोने के गहने बनवाती हैं। 

प्रश्न 2: प्रैक्टिकल आईडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर: प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट वे होते हैं जो आदर्शों का प्रयोग अपने व्यवहार में करते हैं तथा आदर्शों और व्यावहारिकता के मेल से उसे व्यवहार योग्य बनाता है।

प्रश्न 3: पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर: 
पाठ के आधार पर शुद्ध आदर्श शुद्ध सोने के समान है जिस प्रकार शुद्ध सोने में किसी प्रकार की कोई मिलावट नहीं होती उसी प्रकार शुद्ध आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी नहीं होती। जिसमें पूरे समाज की भलाई छिपी हुई हो तथा जो समाज के शाश्वत मूल्यों को बनाए रखने में सक्षम हो, वही शुद्ध आदर्श है।

प्रश्न 4: लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर: लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात इसलिए कही है क्योंकि जापानी अपने काम को अत्यंत द्रुत गति से करते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि वे महीने भर का काम एक ही दिन में निपटा देना चाहते हैं।

प्रश्न 5: जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते है?
उत्तर: जापानी में चाय पीने की विधि को “चा-नो-यू” कहते हैं, जिसका अर्थ है-‘टी-सेरेमनी’ और चाय पिलाने वाला ‘चाजीन कहलाता है।

प्रश्न 6: जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर: जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है वहाँ ऐसी शांति होती है जहाँ पानी का खदबदाना भी सुना जा सकता है। वह ‘चाजीन’ सारे कार्य अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से शांत वातावरण में करता है।

लिखित


(क) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए −

प्रश्न 1: शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर: शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से इसलिए की गई है क्योंकि शुद्ध आदर्श सोने की तरह शुद्ध होते हैं। जिस प्रकार शुद्ध | सोने में कोई मिलावट नहीं होती उसी प्रकार शुद्ध आदर्श भी व्यावहारिकता की मिलावट के बिना होते हैं। व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से इसलिए की गई है क्योंकि जिस प्रकार शुद्ध सोने में ताँबा मिलाकर उसकी गुणवत्ता को सुधारा जाता है और उसमें चमक उत्पन्न की जाती है, उसी प्रकार आदर्श का व्यवहारिकता से मेल करवाकर आदर्शों को मजबूत किया जाता है। जीवन केवल आदर्शों से नहीं चलता, जीवन में आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता का होना भी आवश्यक है। इससे समाज का रूप भी निखर जाता है।

प्रश्न 2: चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर: ‘चाजीन’ ने टी-सेरेमनी में निम्नलिखित क्रियाएँ गरिमामय ढंग से की-

  • चाजीन ने कमर तक झुककर प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई।
  • बिना खटपट किए अँगीठी जलाई और उस पर चायदानी रखा।
  • चाय के बर्तन लाकर तौलिए से साफ़ किए।
  • चाय कपों में डालकर गरिमापूर्ण ढंग से लेखक और उसके साथियों के सामने रखा।


प्रश्न 3: टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों? 
उत्तर: ‘टी सेरेमनी में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था। क्योंकि एक तो यह स्थान बहुत छोटा होता है दूसरा इस सेरेमनी का उद्देश्य है-शांतिमय वातावरण । दौड़-धूप भरे जीवन से हटकर भूत और भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान पल को शांति से बिताना ही ‘टी सेरेमनी’ का उद्देश्य होता है। अधिक आदमियों के आने से शांति के स्थान पर अशांति का माहौल बन जाता है, इसलिए तीन से अधिक आदमियों को यहाँ प्रवेश नहीं दिया जा सकता।

प्रश्न 4: चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर: चाय पीने के बाद लेखक ने अनुभव किया कि-

  • जैसे उसके दिमाग की शांति मंद पड़ गई हो।
  • उसका दिमाग धीरे-धीरे चलना बंद हो गया।
  • उसे सन्नाटे की आवाज़ भी सुनाई देने लगी।
  • वह भूतकाल एवं भविष्य को भूलकर वर्तमान में जीने लगा जो उसे लंबा प्रतीत होने लगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -

प्रश्न 1: गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए?
उत्तर: गांधी जी में नेतृत्व की अदभूत क्षमता थी। वे सभी लोगों को साथ लेकर चलते थे। वे अपने आदर्शों में व्यावहारिकता को नहीं मिलने देते थे, बल्कि व्यावहारिकता में आदर्श मिलाते थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन व भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सत्य और अहिंसा को अपने आदर्शों का हथियार बनाया। इन्हीं सिद्धांतों के बलबूते पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली। उनके नेतृत्व में लाखों भारतीयों ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। सभी उनका नेतृत्व स्वीकार करके गर्व का अनुभव करते थे। उनकी पहली प्राथमिकता लोक कल्याण थी। वे अपने स्वार्थों को किसी भी कार्य में बाधा नहीं बनने देते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सारी जनता उनके पीछे हो जाती थी।

प्रश्न 2: आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रांसगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मेरे विचार में सत्य अहिंसा, परोपकार त्याग, समानता, करुणा आदि शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में लोगों में स्वार्थपरता, आत्मकेंद्रितता, वैचारिक संकीर्णता, ऊँच-नीच की भावना आदि बढ़ी है। समता और समरसता की भावना कहीं खो-सी गई है। आज सत्य की जगह असत्य का अहिंसा की जगह हिंसा का, त्याग की जगह छीना-झपटी का बोलबाला है। सामाजिक समरसता कहीं खो-सी गई है। लोग एक दूसरे पर हावी होना चाहते हैं ऐसे में एक स्वस्थ और आदर्श समाज के निर्माण सत्य, अहिंसा, त्याग, परोपकार, विश्व बंधुत्व की भावना आदि मूल्यों की अत्यंत आवश्यकता है। ऐसे में इनकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 3: अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब|
(i) शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
(ii) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।

उत्तर: (i) मेरे जीवन का आदर्श है कि मैं न तो रिश्वत लेता हूँ और न रिश्वत देता हूँ। यद्यपि इसकी वजह से मुझे कई बार हानि उठानी पड़ी है। मुझे नगर-निगम का प्रमाणपत्र इसलिए देर से मिला कि मैंने एक संबंधित अधिकारी को रिश्वत नहीं दी। वैसे इससे मुझे कोई विशेष हानि नहीं हुई पर निगम कार्यालय के दस चक्कर अवश्य लगाने पड़े।
(ii) मेरा आदर्श है कि मैं अपने छात्रों को नकल नहीं करने देती। मैंने अपने इस आदर्श में व्यावहारिकता का पुट यह दिया है कि मैं अब नकल तो नहीं करने देती; पर नकल करनेवालों पर केस न बनाकर उनकी नकल की सामग्री फाड़ देती हूँ या उनकी कॉपी बदल देती हैं। इससे उनका साल खराब नहीं होता।

प्रश्न 4: शुद्ध सोने में ताबे की मिलावट या ताँबें में सोना, गाँधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है?स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गांधी जी सच्चे आदर्शवादी थे। वे अपने आदर्शों को गिरने नहीं देते थे और न उनसे समझौता ही किया करते थे अर्थात् वे ताँबे में सोना मिलाते थे। वे अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के नाम पर गिराते नहीं थे। दूसरे लोग व्यावहारिकता के नाम पर अपने आदर्शों से समझौता कर लेते हैं। ऐसा करके वे सोने में ताँबा मिलाते थे। इसके विपरीत गांधी जी ताँबे में सोना मिलाते थे।

प्रश्न 5: गिरगिट कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश 'गिन्नी का सोना' का संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि 'अवसरवादिता' और 'व्यवहारिकता' इनमें से जीवन में किसका महत्व है?
उत्तर: ‘गिरगिट कहानी में आदर्शवादिता का महत्त्व है। ‘व्यावहारिकता’ हमें अवसरवादिता का पाठ पढ़ती है। अवसरवादी व्यक्ति सदा अपना हित देखता है। वह प्रत्येक कार्य अपना लाभ-हानि देखकर ही करता है। व्यावहारिक लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी से भी समझौता कर लेते हैं। ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। आज समाज में जितने भी शाश्वत मूल्य हैं, वे सभी आदर्शवादियों की देन हैं। व्यावहारिक लोगों ने तो समाज का अहित किया है। व्यावहारिक लोग अपने स्वार्थ के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं।

प्रश्न 6: लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:  लेखक के मित्र ने जापानियों की मानसिक रुग्णता के निम्नलिखित कारण बताए हैं-

  • जापानी तेज़ गति से चिंतन-मनन करते हैं।
  • वे तेज़ सोचते हुए महीने का काम एक दिन में करना चाहते हैं।
  • वे अमेरिका की भाँति विकसित हो जाना चाहते हैं।
  • वे तेज़ चलने वाले दिमाग को और भी तेज़ करना चाहते हैं जिससे वह संतुलन खो बैठता है और लोग मानसिक रोगी हो जाते हैं।

मैं इन तथ्यों से पूर्णतया सहमत हूँ क्योंकि हर चीज़ की अति खराब होती है। मानव मस्तिष्क भी एक यंत्र की भाँति है। जिसके काम करने की एक सीमा है तथा उसे भी समय-समय पर आराम की आवश्यकता होती है। दिन-रात काम करने से मानसिक संतुलन बिगड़ना स्वाभाविक ही है।

प्रश्न 7: लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, हमें उसी में जीना चाहिए क्योंकि केवल सत्य ही शाश्वत है। वर्तमान स्वयं ही सत्य है। हम अकसर या तो गुजरे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के सुखद सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यत् काल में। हम जब भूतकाल के अपने सुखों एवं दुखों पर गौर करते हैं तो हमारे दुख बढ़ जाते हैं। भविष्य की कल्पनाएँ भी हमें दुखी करती हैं। क्योंकि हम उन्हें पूरा नहीं कर पाते। जो बीत गया वह सत्य नहीं हो सकता। जो अभी तक आया ही नहीं उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। वर्तमान ही सत्य, जो कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है। इसमें कोई दुविधा नहीं है।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -

प्रश्न 1: समाज के पास अगर शाश्वत मुल्यों जैसा कुछ है तो वह आर्दशवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उत्तर: आदर्श एवं मूल्यों को परस्पर घनिष्ठ संबंध होता है। आदर्श के बिना मूल्य और मूल्यों के बिना आदर्श की कल्पना करना संभव नहीं है। आदर्शवादी लोग ही समाज में मूल्यों की स्थापना करते हैं। जब समाज एक आदर्श स्थापित करता है। और जो सबके हित में सर्वमान्य हो जाता है वही आदर्श मूल्य बन जाता है। समाज में सत्य, अहिंसा, त्याग, परोपकार, समानता, व बंधुता ऐसे शाश्वत तत्त्व हैं जो आदर्शवादियों द्वारा प्रदान किए गए हैं, जिनका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। उन्होंने बिना स्वार्थ अपने व्यवहार से आदर्शों को ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया है कभी उनके स्तर को गिरने नहीं दिया। इसके लिए उनका व्यक्तित्व ही प्रमाण है।

प्रश्न 2: जब व्यवहारिकता का बखान होने लगता है तब प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है?
उत्तर: जब आदर्श और व्यवहार में समन्वय की बात आती है तो लोग आदर्शों की उपेक्षा करने लगते हैं और व्यावहारिकता को अधिक महत्त्व देने लगते हैं। ऐसे में उनका आदर्श व्यवहार गिरने लगता है। वे व्यावहारिकता के कारण आदर्शों से समझौता करने लगते हैं। इन समझौतों से आदर्शों का लोप होने लगता है। लोग आदर्श की उपेक्षा करके व्यावहारिक सूझ-बूझ से काम लेने लगते हैं।

प्रश्न 3: हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उत्तर: लेखक जापानियों की मनोदशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जापान के लोगों के जीवन की गति इतनी तीव्र हो गई है कि यहाँ लोग सामान्य जीवन जीने की बजाए असामान्य होते जा रहे हैं। वे चलने की बजाए दौड़ने लगे हैं। वे बोलने की बजाए बकने लगे हैं। अकेले में बड़बड़ाते रहते हैं क्योंकि उनमें प्रत्येक कार्य में अमेरिका से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा की भावना घर कर गई है। इसी कारण वे तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।

प्रश्न  4: सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों। 
उत्तर: लेखक और उसका मित्र टी-सेरेमनी में चाय पीने गए। वहाँ चाजीन द्वारा कमर झुकाकर स्वागत करना, बैठने की जगह की ओर इशारा करना, अँगीठी सुलगाना, बर्तन साफ़ करना, चाय बनाना आदि क्रियाएँ अत्यंत शांत वातावरण में अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से की गईं। ऐसा लगता था कि वहाँ की हर क्रिया में संगीत का स्वर पूँज रहा हो जिसे साफ़-साफ़ सुना। जा सकता है। इससे लेखक को असीम शांति की अनुभूति हुई।

भाषा अध्यन

प्रश्न 1: नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग किजिए −व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
 उत्तर:

  • व्यावहारिकता- आदर्शो की सार्थकता उसे व्यावहारिकता में लाने पर ही होती है।
  • आदर्श- हमें अपने व्यवहार को आदर्श बनाने का प्रयास करना चाहिए।
  • सूझबूझ- युवक ने अपनी सूझबूझ से सभी यात्रियों की जान बचाई।।
  • विलक्षण- रामानुजम की विलक्षण प्रतिभा से सभी लोग प्रभावित हो गए।
  • शाश्वत- सत्य शाश्वत रहता है, वह कभी नहीं मरता।


प्रश्न 2: नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए −

(क)माता-पिता=...................
(ख)पाप-पुण्य=...................
(ग)सुख-दुख=...................
(घ)रात-दिन=...................
(ङ)अन्न-जल=...................
(च)घर-बाहर=...................
(छ)देश-विदेश=...................

उत्तर:

(क)माता-पिता=माता और पिता
(ख)पाप-पुण्य=पाप और पुण्य
(ग)सुख-दुख=सुख और दुख
(घ)रात-दिन=रात और दिन
(ङ)अन्न-जल=अन्न और जल
(च)घर-बाहर=घर और बाहर
(छ)देश-विदेश=देश और विदेश

 
प्रश्न 3. नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए −

(क)सफल=.................
(ख)विलक्षण=.................
(ग)व्यावहारिक=.................
(घ)सजग=.................
(ङ)आर्दशवादी=.................
(च)शुद्ध=.................

उत्तर:

(क)सफल=सफलता
(ख)विलक्षण=विलक्षणता
(ग)व्यावहारिक=व्यावहारिकता
(घ)सजग=सजगता
(ङ)आर्दशवादी=आर्दशवादिता
(च)शुद्ध=शुद्धता

 
प्रश्न 4. नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए −शुद्ध सोना अलग है।
बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।

ऊपर दिए गए वाक्यों में 'सोना' का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में 'सोना' का अर्थ है धातु 'स्वर्ण'। दुसरे वाक्य में 'सोना' का अर्थ है 'सोना' नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भों में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए − 
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर:

(क)उत्तर-मैंने सभी प्रश्नों के उत्तर लिख लिए हैं।
तुम्हें उत्तर दिशा में जाना है।
(ख)कर-हमने सभी कर चुका दिए हैं।
मंत्री जी ने अपने कर कमलों से दीप प्रज्ज्वलित किया।
(ग)अंक-राम के परीक्षा में अच्छे अंक आए हैं।
बच्चा अपनी माँ की अंक में बैठा है।
(घ)नग-हीरा एक कीमती नग है।
हिमालय एक बड़ा नग है।

 
प्रश्न 5. नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए −
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
 2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
 2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
 2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर:
(क) अँगीठी सुलगायी और उसपर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिए से बरतन साफ़ किए।

प्रश्न 6. नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए −
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
 2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
 2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
 2. उसने वह प्यालों में भरी।
 3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर:
(क) यह चाय पीने की एक विधि है जिसे जापानी चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) बाहर बेढब सा एक मिट्टी का बरतन था जिसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) जब चाय तैयार हुई तो उसने प्यालों में भरकर हमारे सामने रख दी।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1: पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र- एक छह मंजिली इमारत की छत पर झोपड़ीनुमा कमरा है, जिसकी दीवारें दफ़्ती की बनी है। फ़र्श पर चटाई बिछी है। वातावरण अत्यंत शांतिपूर्ण है। बाहर ही एक बड़े से बेडौल मिट्टी के बरतन में पानी रखा है। लोग यहाँ हाथ-पाँव धोकर अंदर जाते हैं। अंदर बैठा चाजीन झुककर सलाम करता है। बैठने की जगह की ओर इशारा करता है और चाय बनाने के लिए अँगीठी जलाता है। उसके बर्तन अत्यंत साफ़-सुथरे और सुंदर हैं। वातावरण इतना शांत है कि चायदानी में उबलते पानी की आवाज साफ़ सुनाई दे रही है। वह बिना किसी जल्दबाजी के चाय बनाता है। वह कप में दो-तीन घूट भर ही चाय देता है जिसे लोग धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेकर एक डेढ़ घंटे में पीते हैं।

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FAQs on पतझर में टूटी पत्तियाँ NCERT Solutions - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. "पतझर में टूटी पत्तियाँ" कविता का मुख्य विषय क्या है?
Ans. "पतझर में टूटी पत्तियाँ" कविता का मुख्य विषय मानव जीवन में परिवर्तन और उसके प्रति संवेदनशीलता है। यह कविता जीवन के उतार-चढ़ाव, दुख और संघर्ष को दर्शाती है, और साथ ही समय के साथ बदलाव की अनिवार्यता को भी व्यक्त करती है।
2. इस कविता में कवि ने किस प्रकार की भाषा और शैली का उपयोग किया है?
Ans. इस कविता में कवि ने सरल और सहज भाषा का उपयोग किया है, जिससे पाठक आसानी से भावनाओं को समझ सके। कवि की शैली चित्रात्मक है, जिसमें वह प्राकृतिक तत्वों का उपयोग कर गहरे भावनात्मक अनुभवों को दर्शाते हैं।
3. "पतझर में टूटी पत्तियाँ" से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
Ans. "पतझर में टूटी पत्तियाँ" से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कठिनाइयाँ और परिवर्तन अवश्यम्भावी हैं। हमें इनसे सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए और अपने अनुभवों को सकारात्मक रूप में लेना चाहिए।
4. कविता में प्रकृति का क्या महत्व है?
Ans. कविता में प्रकृति का महत्व अत्यधिक है। कवि ने प्राकृतिक तत्वों जैसे पत्तियाँ, पतझर, और मौसम का उपयोग कर मानव मन की भावनाओं का चित्रण किया है। यह प्रकृति के साथ मानव के संबंध को दर्शाती है और यह बताती है कि कैसे प्राकृतिक परिवर्तन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
5. "पतझर में टूटी पत्तियाँ" कविता में कौन से प्रतीकों का उपयोग किया गया है?
Ans. "पतझर में टूटी पत्तियाँ" कविता में टूटे पत्तों को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो जीवन की नश्वरता और परिवर्तन का संकेत देता है। इसके अलावा, पतझर का मौसम भी एक प्रतीक है, जो जीवन के अंत और नए आरंभ को दर्शाता है।
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