प्रश्न.1. मेजी पुनस्र्थापना से पहले की वे अहम् घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को संभव किया?
1867-68 में जापान में एक युगांतकारी घटना मेजी पुनस्र्थापना के रूप में घटी। सदियों पूर्व जापान में दो अहम प्रशासनिक शक्तियाँ थीं-सम्राट तथा प्रधान सेनापति अथवा शोगुन। हालाँकि प्रशासन की समस्त शक्तियाँ शोगुन में केंद्रित थीं। सम्राट मात्र राजनैतिक मुखौटा होता था। किंतु 1668 ई० में एक आंदोलन द्वारा शोगुन का पद समाप्त कर दिया गया। उसके सारे अधिकार सम्राट के हाथों में दे दिए गए। नए सम्राट चौदह वर्षीय मुत्सुहितों ने मेजी की उपाधि धारण की। मेजी पुनस्र्थापना से पूर्व जापान में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं। फलतः आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- 16 वीं शताब्दी तक जापान में किसान भी हथियार रखते थे। फलतः यदा-कदा अराजकता का वातावरण उत्पन्न | हो जाता था। हालाँकि इस शताब्दी के अंतिम वर्षों में किसानों से हथियार ले लिए गए। अब मात्र सामुदाई वर्ग के लोग ही हथियार रख सकते थे। इससे किसान अपना संपूर्ण समय और ध्यान कृषि कार्य में लगाने लगे।
- इससे पूर्व दम्यों को अधिकांश समय शोगुन के निर्देशानुसार राजधानी एदो में व्यतीत करना पड़ता था। फलतः अपने क्षेत्रों के प्रशासनिक कार्यों का संचालन सुचारु रूप से करने में असमर्थ हो जाते थे। 16वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में उन्हें अपनी राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए।
- भूमि का सर्वेक्षण तथा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया। इस कार्य का मुख्य उद्देश्य मालिकों तथा करदाताओं का निर्धारण करना था। इस परिवर्तन ने राजस्व के स्थायी निर्धारण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- मेजी पुनस्र्थापना से पूर्व जापान में अनेक महत्त्वपूर्ण एवं विशाल शहरों का विकास हुआ। शहरों के विकास ने वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित किया। फलतः वित्त और ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं। गुणों को पद से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाने लगा। व्यापार का विकास हुआ और शहरों की जीवित संस्कृति विकसित होने लगी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा मिला। इन सभी घटनाओं के सामूहिक प्रयास से जापान में तीव्रगति से आधुनिकीकरण का सपना साकार हुआ।
प्रश्न.2. जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए? चर्चा कीजिए।
जापान का एक आधुनिक समाज में बदलाव रोजाना की जिंदगी में आए परिवर्तनों में भी देखा जा सकता है। परिवार व्यवस्था में कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियंत्रण में रहती थीं लेकिन जैसे-जैसे लोग समृद्ध एवं संपन्न हुए, परिवारों के संदर्भ में नये विचार फैलने लगे। नया घर (जिसे जापानी अंग्रेजी शब्द का इस्तेमाल करते हुए होम कहते हैं) का संबंध मूल परिवार से था, जहाँ पति-पत्नी साथ रहकर कमाते हैं और घर बसाते हैं। पारिवारिक जीवन की इस नयी समझ ने नए तरह के घरेलू उत्पादों, नए किस्म के पारिवारिक मनोरंजन और नए प्रकार की माँग पैदा की। 1920 के दशक में निर्माण कम्पनियों द्वारा शुरू में 200 येन देने के बाद लगातार 10 साल के लिए 12 येन प्रति माह की किस्तों पर लोगों को सस्ते मकान उपलब्ध कराए गए। यह एक ऐसे समय में जब एक बैंक कर्मचारी (उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति) की मासिक आय 40 येन प्रति मास थी।
जापान के विकास के साथ-साथ नवीन घरेलू उत्पादों; जैसे कुकर टोस्टर आदि का प्रयोग होने लगा। आधुनिकता के प्रसार ने नवीन मध्यमवर्गीय परिवारों को प्रभावित किया। ट्रामों के आने से आवागमन की गतिविधियाँ आसान हो गईं। मनोरंजन के नए-नए साधनों का आविष्कार हुआ। 1899 ई० में फिल्मों का निर्माण होने लगा। सन् 1925 ई० में पहला रेडियो स्टेशन खोला गया।
प्रश्न.3. पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग राजवंश ने कैसे किया?
पाश्चात्य ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों से दो-चार होने के लिए छींग राजवंश ने निम्नलिखित उपायों का सहारा लिया:
- चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने के लिए चीन की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना नितांत आवश्यक था। अतः उसने आधुनिक प्रशासन, नयी सेना और शिक्षा के लिए नयी नीतियों का निर्माण किया।
- संवैधानिक सरकार की स्थापना हेतु स्थानीय विधायिकाओं के गठन की तरफ ध्यान आकृष्ट किया गया। प्रशासकों का विचार था कि एक संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार की पश्चिमी ताकतों द्वारा प्रस्तुत की गई चुनौतियों से भली-प्रकार से निपट सकती है।
- जनसामान्य द्वारा राष्ट्रीय जागरूकता उत्पन्न करने के प्रयास किए गए। लियांग किचाऊ जैसे सुप्रसिद्ध चीनी विचारकों का विचार था कि चीनियों में राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करके ही चीन पश्चिम का सफलतापूर्वक विरोध कर सकता था। उनके मतानुसार अंग्रेज़ व्यापारियों के हाथों भारतीयों की हार का मुख्य कारण भारतीयों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। अतः चीनी विचारकों ने जनसामान्य को उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों से परिचित कराने का अहम कार्य किया। 18वीं शताब्दी में पोलैंड का विभाजन एक दृष्टांत बन गया। सर्वविदित है कि 1890 के दशक में चीन में ‘पोलैंड’ शब्द का प्रयोग एक क्रिया स्वरूप-टू पोलैंड रूस’ (बोलान वू) अर्थात् ‘हमें विभाजित करने’–किया जाने लगा।
- जनसाधारण की परंपरागत सोच को बदलने की कोशिश की गई क्योंकि बुद्धिजीवी वर्ग का मानना था कि | परंपरागत सोच को बदलकर ही चीन का विकास संभव है। उल्लेखनीय है कि उस समय चीन की प्रमुख विचारधारा कन्फ्यूशियसवाद से ओतप्रोत थी।
- 1890 के दशक में जिन विद्यार्थियों को जापान में अध्ययन हेतु भेजा गया था उन्होंने जापान के नए विचारों से रभावित होकर चीन में गणतंत्र स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सरकारी पदों की नियुक्ति में योग्यता को आधार बनाया गया। 1905 ई० में रूसजापान युद्ध के बाद दीर्घकाल से प्रचलित चीनी परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। परंपरागत परीक्षा प्रणाली में साहित्य पर बल दिया जाता था। फलतः यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए बाधक थी।
- सैन्य-शक्ति को मजबूत बनाने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। सेना को अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया गया।
प्रश्न.4. सन यात-सेन के तीन सिद्धांत क्या थे?
सन यात-सेन के नेतृत्व में 1911 में मांचू साम्राज्य को समाप्त कर दिया गया और चीनी गणतंत्र की स्थापना की गई। वे आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। वे एक गरीब परिवार से थे और उन्होंने मिशन स्कूलों से शिक्षा प्राप्त की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र व ईसाई धर्म से हुआ। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई की, परंतु वे चीन के भविष्य को लेकर चिंतित थे। उनका कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से प्रसिद्ध है।
ये तीन सिद्धान्त हैं:
- राष्ट्रवाद-इसका अर्थ था मांचू वंश-जिसे विदेशी राजवंश के रूप में माना जाता था-को सत्ता से हटाना, साथ-साथ अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना।
- गणतांत्रिक सरकार की स्थापना-अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना तथा गणतंत्र की स्थापना करना।
- समाजवाद-जो पूँजी का नियमन करे और भूस्वामित्व में समानता लाए। सन यात-सेन के विचार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने कपड़ा, खाना, घर और परिवहन, इन चार बड़ी आवश्यकताओं’ को रेखांकित किया।
प्रश्न.5. कोरिया ने 1997 में विदेशी मुद्रा संकट का सामना किया प्रकार किया?
कोरियाई वित्तीय संस्थानों ने अपने अल्पकालिक दायित्वों का सामना करने में मदद के लिए कोरियाई सरकार ने अपने सीमित विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया।
- एशियाई वित्तीय संकट वित्तीय संकट का एक दौर था जो पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में जुलाई 1997 में फैला।
- इस संकट के कारन दुनियाभर में आर्थिक मंदी की संभावना जन्म लेने लगी।
- कोरियाई वित्तीय संस्थानों ने अपने अल्पकालिक दायित्वों का सामना करने में मदद के लिए कोरियाई सरकार ने अपने सीमित विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया।
प्रश्न.6. क्या पड़ोसियों के साथ जापान के युद्ध और उसके पर्यावरण का विनाश तीव्र औद्योगीकरण की जापानी नीति के चलते हुआ?
इतिहासविदों का मानना है कि औद्योगीकरण की जापानी नीति ने ही जापान को पड़ोसियों के साथ युद्धों में उलझा दिया और उसके पर्यावरण को समाप्तप्राय कर दिया। मेजी पुनस्र्थापना के तकरीबन चालीस वर्षों के अंतराल में जापान ने आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। वहाँ के तत्कालीन सम्राटों ने विदेशियों को जंगली समझकर उनकी विशेषताओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया, अपितु उनसे स्वयं सीखने का प्रयत्न किया।
‘फुकोकु क्योहे’ अर्थात् ‘समृद्ध देश, मजबूत सेना’ के नारे के साथ सरकार ने अपनी नवीन नीति की घोषणा की। इस नयी नीति का उद्देश्य था-अपनी अर्थव्यवस्था एवं सेना को मजबूत बनाना। मेजी सुधारों के अंतर्गत अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण पर अत्यधिक बल दिया गया। सरकार ने उद्योगों के विकास हेतु विदेशों से भी सहायता ली। सूती वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहित करने हेतु कपास की नयी-नयी किस्मों को विकसित करने का प्रयास किया गया। संचार और यातायात के अत्याधुनिक संसाधनों ने आर्थिक क्रांति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक तक जापान की गिनती विश्व के सर्वोत्तम औद्योगिक देशों में होने लगी।
औद्योगिक विकास की तीव्र गति ने जापान को पड़ोसियों के साथ युद्ध करने के लिए विवश कर दिया। जापान भी बाजार की खोज में 19वीं शताब्दी में औपनिवेशिक दौड़ में सम्मिलित हो गया। जापान के साम्राज्यवाद का एक अन्य प्रमुख कारण एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता को साबित करना था। फलतः उसे 1894 ई०-95 ई० में चीन के साथ और 1904-05 में रूस के साथ युद्ध करना पड़ा।
1872 ई० में जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी। औद्योगिकीकरण की वजह से 1920 आते-आते जापान की जनसंख्या 5.5 करोड़ हो गयी।
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान की अर्थव्यवस्था निरंतर विकास की ओर बढ़ने लगी। वह सूती वस्त्र, रेयन और कच्चे रेशम का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया। युद्धों के परवर्ती काल में इंजीनियरिंग एवं लोहा-इस्पात उद्योग के क्षेत्र में जापान ने अद्वितीय विकास किया। तीव्र गति से औद्योगिक विकास का एक नकारात्मक पक्ष था-पर्यावरण का दिन-पर-दिन दूषित होना। औद्योगिक विकास ने लकड़ी की माँग में वृद्धि की जिससे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई। फलतः पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रथम संसद (1897 ई० में) के निम्न सदन के सदस्य तनाको शोज़ों ने औद्योगिक प्रदूषण के विरोध में पहला आंदोलन किया। उनका मानना था कि मानवीय हितों को नजरअंदाज करके औद्योगिक विकास करना मानव जाति के प्रति क्रियावादी कदम है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान में होने वाले तीव्र औद्योगिक विकास का जनसामान्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा। अरगजी को जहर एक भयंकर कष्टदायी बीमारी का कारण था। यह एक आरंभिक सूचक भी था। फलतः 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में हवा इतनी दूषित हो गई कि अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुईं।
अतः यह कहना उचित ही होगा कि तीव्र औद्योगिकीकरण की जापानी नीति ने जापान को सीमावर्ती देशों के साथ युद्धों में उलझा दिया। साथ-साथ वहाँ के पर्यावरण को भी दूषित कर दिया।
प्रश्न.7. क्या आप मानते हैं कि माओ त्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफलता प्राप्त की?
अधिकतर इतिहासकार इस विचार से सहमत हैं कि माओ त्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफल रहे।
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् से ही चीन में साम्यवादियों के प्रभाव में बढ़ोतरी होने लगी थी। 1921 ई० में साम्यवादी दल की स्थापना की गई जो अपने प्रारंभिक चरण में ही एक शक्तिशाली दल के रूप में उभरने लगा। हालाँकि एक समय चीन में दो सरकारों का अस्तित्त्व था। इनमें से एक कुओमीनतांग (राष्ट्रवादी दल) की सरकार थी। इसके अध्यक्ष सन यात-सेन थे। दूसरी सरकार का अध्यक्ष एक सैनिक जनरल च्यांग कोईशेक था। इसका मुख्यालय बीजिंग में था। डॉ० सन यात-सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओमीनतांग का नेतृत्व च्यांग कोईशेक की सरकार के विरोध में था, क्योंकि वह अमरीका तथा ब्रिटेन के हाथों का कठपुतली मात्र था। मुद्रास्फीति की वजह से जनसामान्य की मुसीबतें बढ़ गई थी। जनता दोहरी मार झेल रही थी। पहली मार कर के रूप में थी जो जनता की कमर तोड़ रही तो दूसरी मार खाद्य-वस्तुओं की वजह से महँगाई थी।
चीनी साम्यवादी पार्टी के मुख्य नेता माओ त्सेतुंग की कोशिशों के फलस्वरूप यह पार्टी एक मजबूत राजनैतिक शक्ति बन गई थी। माओ त्सेतुंग घोर परिवर्तनवादी थे। उन्होंने एक ताकतवर किसान सोबित का गठन किया और भूमि अधिग्रहण करके पुनः नए नियमों के अनुसार वितरण किया। साथ-साथ उन्होंने स्वतंत्र सरकार एवं सैन्य-संगठन पर बल दिया। माओ त्सेतुंग स्त्रियों की समस्याओं से पूरी तरह से परिचित थे। अतः उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को प्रोत्साहन दिया। विवाह संबंधी नए कानूनों का निर्माण किया। इन्होंने विवाह संबंधी समझौतों या क्रय-विक्रय पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। तलाक की प्रक्रिया को आसान बनाया। वास्तविकता तो यह भी है कि माओ त्सेतुंग एक शोषणमुक्त राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के पश्चात चीन को जापानी प्रभाव से पूरी तरह से मुक्ति मिल गई। तत्पश्चात् माओ त्सेतुंग के अधीन साम्यवादियों और च्योग कोई-शेक के नेतृत्व में राष्ट्रवादियों में सत्ता के गृहयुद्ध शुरू हो गया। इस संघर्ष में साभ्यवादियों की जीत हुई। अक्टूबर सन् 1943 को चीन में ‘पीपुल्स रिपब्लिक’ ऑफ चाइना’ के नाम से गणतंत्रीय सरकार की स्थापना कर दी गई। नए गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति माओ त्सेतुंग और प्रथम प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई बने। इस सरकार ने अपने आरंभिक वर्षों में कुछ अहम् भूमि सुधार संबंधी कानून लागू किए। औद्योगिक क्रांति के लिए एक सुनियोजित कार्यक्रम भी तैयार किया गया। अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्रों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित कर दिया गया। निजीकरण को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया।
1953 तक इस कार्यक्रम के अनुसार आचरण होता रहा। इसके उपरांत समाजवादी परिवर्तन का कार्यक्रम बनाने की घोषणा की गई। मौजूदा कार्यक्रम के तहत आंतरिक क्षेत्र में चीन जिस नए कार्यक्रम के तहत आंतरिक क्षेत्र में चीन जिस नए कार्यक्रम का पालन किया वह “लंबी छलाँग” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस कार्यक्रम का प्रमुख लक्ष्य आर्थिक सुधार करना था। माओ ने 1954 ई० में तथा 1956 ई० में क्रमशः कृषि का सहकारिताकरण तथा सामूहिकीकरण आरंभ करने की दिशा में अहम कदम उठाया चीनवासियों को अपने-अपने घरों के पिछवाड़े इस्पात की भट्ठियाँ लगाने के लिए प्रेरित किया गया। गाँवों में ‘पीपुल्स कम्यून्स’ स्थापित किए गए।
ये सामूहिक उत्पादन तथा सामूहिक अधिकार के तहत कार्य करते थे। ऐसे समुदायों में चीन के 98% कृषक आते थे। माओ त्सेतुंग ऐसे ‘समाजवादी’ व्यक्तियों का निर्माण करना चाहते थे, जिन्हें पितृभूमि, जनता, काम, विज्ञान तथा जनसंपत्ति पाँचों से बेहद प्यार हो। उन्होंने महिलाओं के लिए ‘ऑल चाइना डेमोक्रेटिस वीमेन्स फेडरेशन’ तथा विद्यार्थियों के लिए ऑल चाइना स्टूडेंट्स फेडरेशन’ का निर्माण किया। वे योग्यता से अधिक महत्त्व विचारधारा को देते थे। अतः माओवादियों तथा उनके आलोचकों के मध्य संघर्ष प्रायः होता रहता था।
माओ त्सेतुंग ने अपने आलाचकों को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए 1965 ई० में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का प्रारंभ किया। इसके अंतर्गत पुरानी आदतों, पुरानी संस्कृति तथा पुराने रिवाजों के प्रतिक्रियास्वरूप अभियान छेड़े गए। इन अभियानों में मुख्य रूप से सेना एवं छात्रों का प्रयोग किया गया। साम्यवादी विचारधारा पेशेवर योग्यता पर भारी पड़ी। दोषारोपण ने नारेबाजी और तर्कसंगत वाद-विवाद आच्छादित कर दिया। जनमुक्ति सेना के युवा अंग लाल रक्षकों द्वारा क्रांति को करने या जारी रखने के नाम पर भयंकर अत्याचार किए गए।
माओ त्सेतुंग की विचारधारा को न मानने वालों को नाना प्रकार की मुसीबतों और यातनाओं का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था एवं शिक्षा व्यवस्था में रुकावट आने लगी। साथ-साथ पार्टी भी बेहद कमजोर हुई। हालाँकि 1970 ई० में चीन की परिस्थितियों तेजी से बदलने लगीं। वहाँ की अर्थव्यवस्था विकास के पथ पर अग्रसर होने लगी। तथा चीन परमाणु शक्ति से भी संपन्न हो गया। राष्ट्रपति निक्सन के काल में संयुक्त राज्य अमरीका ने भी साम्यवादी चीन को मान्यता प्रदान कर दी। कालांतर में वह संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता तथा सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया।
इस प्रकार यह कहना उचित ही होगा कि चीन को मुक्ति दिलाने तथा इसकी तत्कालीन कामयाबी की आधारशिला रखने में साम्यवादी दल के प्रमुख माओ त्सेतुंग ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
प्रश्न.8. क्या साऊथ कोरिया की आर्थिक वृद्धि ने इसके लोकतंत्रीकरण में योगदान दिया?
साऊथ कोरिया की आर्थिक वृद्धि में लोकतंत्रीकरण का बहुत योगदान रहा है:
- दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था: संज्ञात्मक सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर विश्व की पन्द्रहवी और क्रय शक्ति के आधार पर बारहवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यह जी-20 नामक विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह एक उच्च-आय वाली विकसित अर्थव्यवस्था है और ओईसीडी का सदस्य है।
- दक्षिण कोरिया मूल एशियाई चीतों वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और यह एकमात्र विकसित देश है जिसे नॅक्ट इलैवन समूह में सम्मिलित किया गया है। दक्षिण कोरिया 1960 के आरम्भ से 1990 के अन्त तक विश्व के सबसे तेज़ी से विकास करते देशों में से था और 2000 के दशक में भी यह देश विकसित देशों में सर्वाधिक तेज़ी से विकास करने वाले देशों में था।
- 1960 से 1990 के दशकों के दौरान हुई आश्चर्यजनक प्रगति को कोरियाई लोग "हान नदी पर चमत्कार" की संज्ञा देते हैं।
- 2010 में दक्षिण कोरिया विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा निर्यातक और दसवाँ सबसे बड़ा आयातक था।
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