CTET & State TET Exam  >  CTET & State TET Notes  >  NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12)  >  NCERT Solutions: बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक (Weavers, Iron Smelters & Factory Owners)

बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक (Weavers, Iron Smelters & Factory Owners) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - CTET & State TET PDF Download

फिर से याद करें

प्रश्न.1. यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी?

यूरोप में भारत के बारीक तथा छापेदार सूती कपड़ों की भारी माँग थी।


प्रश्न.2. जामदानी क्या है?

जामदानी एक तरह का बारीक मलमल होता है जिस पर करघे में सजावटी चिह्न बुने जाते हैं। इनका रंग प्रायः स्लेटी और सफेद होता है। आमतौर पर सूती और सोने के धागों का इस्तेमाल किया जाता था।


प्रश्न.3. बंडाना क्या है?

बंडाना छापेदार सूती कपड़ा होता है। बंडाना शब्द का प्रयोग गले या सिर पर बांधने वाले चटक रंग के छापेदार गुलूबंद के लिए किया जाता है। यह शब्द हिंदी के ‘ बांधना ‘ शब्द से निकला है। इस श्रेणी में चटक रंगों वाले ऐसे बहुत से कपड़े आते थे जिसे बांधने और रंगसाजी की विधियों से ही बनाया जाता था। बंडाना शैली के कपड़े मुख्यतः राजस्थान और गुजरात में बनाये जाते थे।


प्रश्न.4. अगरिया कौन होते हैं?

अगरिया छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक समुदाय के लोग थे। वे लौह – अयस्क इकट्ठा करते थे। उन्होंने दोराबजी टाटा को उत्तम लौह-अयस्क के भंडारों की जानकारी दी थी।


प्रश्न.5. रिक्त स्थान भरें:
(क) अंग्रेजी का शिंट्ज़ शब्द हिंदी के _______ शब्द से निकला है।
(ख) टीपू की तलवार _______ स्टील से बनी थी।
(ग) भारत का कपड़ा निर्यात _______ सदी में गिरने लगा।

(क) छींट
(ख) वुट्ज
(ग) 19वीं

आइए विचार करें

प्रश्न.6. विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता है?

कपड़ों के नामों का इतिहास:
(i) यूरोप के व्यापारियों ने भारत से आने वाला बारीक सूती कपड़ा सबसे पहले वर्तमान ईराक के मोसूल शहर में अरब व्यापारियों के पास देखा था। मोसूल के नाम पर वे बारीक बुनाई वाले सभी कपड़ों को “ मस्लिन “ कहने लगे। शीघ्र ही यह शब्द खूब प्रचलित हो गया।
(ii) मसालों की तलाश में भारत में आने वाले पुर्तगालियों ने दक्षिण–पश्चिमी भारत में केरल के तट पर कालीकट में डेरा डाला। यहां से वे मसालों के साथ–साथ सूती कपड़ा भी ले जाते थे। कालीकट से निकले शब्द के आधार पर वे इस कपड़े को “ कैलिको “ कहने लगे। बाद में हर तरह के सूती कपड़े को कैलिको ही कहा जाने लगा।
(iii) छींट शब्द का भी अपना इतिहास है। 1730 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता स्थित अपने नुमाइंदों के पास कपड़ों का एक आर्डर भेजा था। उनमें छापेदार सूती कपड़े भी शामिल थे। उन्हें ये व्यापारी शिंट्ज़ , कोसा और बंडाना कहते थे। अंग्रेज़ी का शिंट्ज़ शब्द यहां हिंदी के ‘ छींट ‘ शब्द से निकला है। 1680 के दशक तक इंग्लैंड और यूरोप में छापेदार भारतीय सूती कपड़े की जबरदस्त मांग थी। आकर्षक फूल – पत्तियों, बारीक रेशे और कम मूल्य के कारण भारतीय कपड़ा ही लोकप्रिय था। इंग्लैंड के धनी लोग ही नहीं बल्कि स्वयं महारानी भी भारतीय कपड़ों से बने परिधान पहनती थी।
(iv) बंडाना शब्द का प्रयोग गले या सिर पर पहनने वाले तीखे रंग के छापेदार गुलूबंद के लिए किया जाता है। इस श्रेणी में ऐसे बहुत से कपड़े आते थे जिन्हें बांधने और रंगसाजी की विधियों से ही बनाया जाता था। आर्डर में कुछ अन्य कपड़ों का भी उल्लेख है जिनका नाम उनके जन्म स्थान के अनुसार लिखा गया था। कासिमबाज़ार, पटना, कलकत्ता, उड़ीसा, चारपूर आदि। इन शब्दों के व्यापक प्रयोग से पता चलता है कि संसार विभिन्न भागों में भारतीय कपड़े कितने लोकप्रिय थे।


प्रश्न.7. इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था?

विरोध होने के निम्नलिखित कारण है:
(i) अठारहवीं सदी में भारतीय कपड़ों की काफी लोकप्रियता बढ़ गई थी। जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया।
(ii) भारतीय कपड़े की इंग्लैंड में होड़ मची हुई थी। यहां तक कि इंग्लैंड की महारानी भी भारतीय कपड़ा पहनना ही पसंद करती थी।
(iii) उस समय इंग्लैंड में नए कपड़ा कारखाने खुल रहे थे। भारत में ऊन तथा रेशम उत्पादक देखते हुए।
(iv) अंग्रेज इंग्लैंड भी ऊन तथा रेशम उत्पादक बढ़ाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारतीय कपड़ों का विरोध करना शुरू कर दिया। अंग्रेज चाहते थे कि उनके देश में खाली हमारा पकड़ा ही लोग खरीदें।
(v) अंग्रेजों ने भारतीय कपड़ों का विरोध शुरू कर दिया और आयात पर रोक लगाने की मांग भी कर डाली।


प्रश्न.8. ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े?

भारतीय कपड़े को यूरोप तथा अमरीका के बाजारों में ब्रिटिश कारखानों में बने कपड़े से मुकाबला करना पड़ता था। भारत से इंग्लैंड को कपड़े का निर्यात कठिन होता जा रहा था क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने भारत से आने वाले कपड़े पर भारी सीमा शुल्क लगा दिए थे। इंग्लैंड में बने सूती कपड़े ने उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक भारतीय बिक्री से पहले चीज़ों को जमा कपड़े को अफ्रीका, अमरीका और यूरोप के परंपरागत बाज़ारों से बाहर कर करके रखा जाता है। वर्कशॉप दिया था। इसकी वजह से हमारे यहाँ के हज़ारों बुनकर बेरोज़गार हो गए। के लिए भी यह शब्द इस्तेमाल सबसे बुरी मार बंगाल के बुनकरों पर पड़ी।


प्रश्न.9. उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ?

उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन:
(i) औपनिवेशिक सरकार के नए वन कानूनों ने वनों को आरक्षित घोषित कर दिया। वनों में लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगने के कारण लौह प्रगलकों के लिए कोयला बनाने के लिए लकड़ी मिलना बंद हो गयी।
(ii) उन्नीसवीं सदी के अंत तक ब्रिटेन से लोहे और इस्पात का आयात होने लगा, जिसके कारण स्थानीय प्रगालकों द्वारा बनाए जा रहे लोहे की माँग कम होने लगी।
(iii) कुछ क्षेत्रों में सरकार ने जंगलों में प्रवेश की अनुमति दे दी, लेकिन प्रगालकों को अपनी प्रत्येक भट्टी के लिए वन विभाग को बहुत भारी टैक्स देने पड़ते थे, जिससे उनकी आय में कमी आ गयी।


प्रश्न.10. भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किन समस्याओं से जूझना पड़ा?

भारतीय वस्त्र उद्योग को शुरुआती सालों में कई प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या तो यह थी कि इस उद्योग को ब्रिटेन से आए सस्ते कपड़ों का मुकाबला करना पड़ता था। अधिकतर देशों में सरकारें आयात होने हाली वस्तुओं पर सीमा शुल्क लगा कर अपने देश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देती थीं। इससे प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाती थी और संबंधित देश के नए उद्योगों को संरक्षण मिलता था। परंतु भारत की अंग्रेज़ी सरकार ने भारत में नवस्थापित वस्त्र उद्योग को इस तरह की सुरक्षा प्रदान नहीं की। परिणामस्वरूप भारत में वस्त्र उद्योग के विकास की गति मंद रही।


प्रश्न.11. पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली?

भारतीय वस्त्रोद्योग की शुरुआती समस्याएँ:
(i)
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (टिस्को) की स्थापना हुई जिसमें 1912 में स्टील का उत्पादन होने लगा। टिस्को की स्थापना बहुत सही समय पर हुई थी, क्योंकि उन्नीसवीं सदी में भारत आमतौर पर ब्रिटेन में बने स्टील का आयात कर रहा था।
(ii) भारत में रेलवे के विस्तार की वजह से ब्रिटेन में बनी पटरियों की यहाँ भारी माँग थी। काफी समय तक भारतीय रेलवे से जुड़े अंग्रेज विशेषज्ञ यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि भारत में भी श्रेष्ठ इस्पात का निर्माण संभव है। जब तक टिस्को की स्थापना हुई, हालात बदलने लगे थे।
(iii) 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ। ब्रिटेन में बनने वाले इस्पात को यूरोप में युद्ध संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए झोंक दिया गया। इस तरह भारत आने वाले ब्रिटिश स्टील की मात्रा में भारी गिरावट आई और रेल की पटरियों के लिए भारतीय रेलवे टिस्को पर आश्रित हो गया।
(iv) जब युद्ध लंबा खिंच गया तो टिस्को को युद्ध के लिए गोलों के खोल और रेलगाड़ियों के पहिये बनाने का काम भी सौंप दिया गया। 1919 तक स्थिति यह हो गई थी कि टिस्को में बनने वाले 90 प्रतिशत इस्पात को औपनिवेशिक सरकार ही खरीद लेती थी। जैसे – जैसे समय बीता टिस्को समस्त ब्रिटिश साम्राज्य में इस्पात का सबसे बड़ा कारखाना बन चुका था।

आइए करके देखे

प्रश्न.12. जहाँ आप रहते हैं उसके आस – पास प्रचलित किसी हस्तकला का इतिहास पता लगाएँ। इसके लिए आप दस्तकारों के समुदाय, उनकी तकनीक में आए बदलावों और उनके बाजारों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठा कर सकते हैं। देखें कि पिछले 50 साल के दौरान इन चीजों में किस तरह बदलाव आए हैं?

(i) मैंने अपने क्षेत्र में कालीन के इतिहास के बारे में पता लगाया।
(ii) हमारे क्षेत्र में कालीन की बुनाई की शुरुआत बहुत पहले ही हो गई थी यह कार्य बौद्ध एवं मौर्य काल में भी प्रचलन में था। हमारे क्षेत्र में यह कार्य मरूहर तथा गड़रिया समुदायों के लोगों द्वारा किया जाता है।
(iii) इनके डिजाइन ओं पर आमतौर पर तिब्बती और ईरानी कलाओं का पारंपरिक प्रभाव देखा जा सकता है। इन डिजाइनों में हिंदू देवी देवताओं के चित्र , प्राकृतिक पहाड़ी दृश्य  तथा ज्यामितीय आकृतियों को शामिल किया जाता है। बुनाई की तकनीक में बहुत अधिक अंतर देखा जा सकता है आजकल इस कार्य में विद्युत उपकरण का इस्तेमाल किया जाने लगा है समय के साथ-साथ इसके बाजार का भी विस्तार हुआ है।
(iv) शिक्षा के विस्तार के कारण कई लोगों ने इस पेशे को छोड़कर दूसरी नौकरियां की तरफ जाने लगे हैं , परंतु वर्तमान में दूसरे समुदायों की कई महिलाओं ने कालीन की बुनाई का काम शुरू कर दिया है। अतः आज भी हमारे क्षेत्र में कालीन की बुनाई का  विस्तार हो रहा है।


प्रश्न 13 – भारत के नक्शे पर विभिन्न हस्तकलाओं के अलग – अलग केंद्रों को चिह्नित करें। पता लगाएँ कि ये केंद्र कब पैदा हुए?

छात्र नक्शे पर खुद चिह्नित करें:
लकड़ी की नक्काशी:
भारत में पारंपरिक लकड़ी की नक्काशी प्राचीन काल से मौजूद है। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में लकड़ी की नक्काशी के प्रमुख केंद्र हैं।
कालीन: भारत में कालीन उद्योग मुगल वंश की स्थापना के साथ विकसित हुआ था। फारस और तुर्की से कालीनों का आयात किया जाता था। आज राजस्थान और उत्तर प्रदेश कालीन उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं।
रेशम: भारत में कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु प्रमुख रेशम उत्पादक हैं।
कढ़ाई: भारत में कढ़ाई में विभिन्न शैलियाँ शामिल हैं जो क्षेत्र और कपड़ों की शैली के अनुसार भिन्न होती हैं।  उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश विभिन्न प्रकार के कढ़ाई कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं।
ऊनी: प्रमुख ऊन उत्पादक राज्य राजस्थान, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और गुजरात हैं। अमृतसर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।

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