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राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन: 1870 के दशक से 1947 तक (The Making of the National Movem NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

फिर से याद करें

प्रश्न.1. 1870 और 1880 के दशकों में लोग ब्रिटिश शासन से क्यों असंतुष्ट थे?

1878 में आर्म्स एक्ट पारित किया गया जिसके जरिए भारतीयों द्वारा अपने पास हथियार रखने का अधिकार छीन लिया गया। उसी साल प्रेस एक्ट भी पारित किया गया जिससे सरकार की आलोचना करने वालों को चुप कराया जा सके। इस कानून में प्रावधान था कि अगर किसी अखबार में कोई आपत्तिजनक चीज छपती है तो सरकार उसकी प्रिंटिंग प्रेस सहित सारी सम्पत्ति को जब्त कर सकती है। 1883 में सरकार ने इल्बर्ट बिल लागू करने का प्रयास किया। इसको लेकर काफी हंगामा हुआ। इस विधेयक में प्रावधान किया गया था कि भारतीय न्यायाधीश भी ब्रिटिश या यूरोपीय व्यक्तियों पर मुकदमे चला सकते हैं ताकि भारत में काम करने वाले अंग्रेज और भारतीय न्यायाधीशों के बीच समानता स्थापित की जा सके। जब अंग्रेजों के विरोध की वजह से सरकार ने यह विधेयक वापस ले लिया तो भारतीयों ने इस बात का काफी विरोध किया। इस घटना से भारत में अंग्रेजों के असली रवैये का पता चलता था।


प्रश्न.2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस किन लोगों के पक्ष में बोल रही थी?

कांग्रेस ने सरकार और शासन में भारतीयों को और ज्यादा जगह दिए जाने के लिए आवाज उठाई। कांग्रेस का आग्रह था कि विधान परिषदों में भारतीयों को ज्यादा जगह दी जाए, परिषदों को ज्यादा अधिकार दिए जाए और जिन प्रांतों में परिषद नहीं हैं वहाँ उनका गठन किया जाए। कांग्रेस चाहती थी कि सरकार में भारतीयों को भी ऊँचे पद दिए जाएं। इस काम के लिए उसने माँग की कि सिविल सेवा के लिए लंदन के साथ – साथ भारत में भी परीक्षा आयोजित की जाए।


प्रश्न.3. पहले विश्व युद्ध से भारत पर कौन से आर्थिक असर पड़े?

पहले विश्व युद्ध ने भारत की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति बदल दी थी। इस युद्ध की वजह से ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा व्यय में भा इजाफा हुआ था। इस खर्चे को निकालने के लिए सरकार ने निजी आय और व्यावसायिक मुनाफे पर कर बढ़ा दिया था। सैनिक व्यय में इजाफे तथा युद्धक आपूर्ति की वजह से ज़रूरी कीमतों की चीजों में भारी उछाल आया और आम लोगों की जिंदगी मुश्किल होती गई। दूसरी ओर व्यावसायिक समूह युद्ध से बेहिसाब मुनाफा कमा रहे थे। इस युद्ध में औद्योगिक वस्तुओं (जूट के बोरे, कपड़े, पटरियाँ) की माँग बढ़ा दी और अन्य देशों से भारत आने वाले आयात में कमी ला दी थी। इस तरह, युद्ध के दौरान भारतीय उद्योगों का विस्तार हुआ और भारतीय व्यावसायिक समूह विकास के लिए और अधिक अवसरों की माँग करने लगे।


प्रश्न.4. 1940 के मुस्लिम लीग के प्रस्ताव में क्या मांग की गई थी?

1940 में मुस्लिम लीग ने देश के पश्चिमोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए स्वतंत्र राज्यों “ की माँग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था।

आइए विचार करें

प्रश्न.5. मध्यमार्गी कौन थे? वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ किस तरह का संघर्ष करना चाहते थे?

मध्यमार्गी: कांग्रेस के प्रारंभिक नेता मध्यमार्गी थे, इन नेताओं में प्रमुख थे-दादाभाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, गोपालकृष्ण गोखले आदि।
संघर्ष का तरीका:
(i) 
इन नेताओं को विश्वास था कि अंग्रेज़ पढ़े-लिखे, सभ्य हैं, वे भारतीयों के दुख-दर्द को समझेंगे तथा उन्हें दूर करेंगे।
(ii) ये नेता प्रार्थना-पत्रों, अपीलों, याचिकाओं के द्वारा अपनी बात अंग्रेज़ों तक पहुँचाने तथा मनवाने में विश्वास रखते थे।
(iii) ये नेता सरकार के अत्याचारों, गलत नीतियों, दुष्प्रभावों से जनता को अवगत कराना चाहते थे।


प्रश्न.6. कांग्रेस में आमूल परिवर्तनवादी की राजनीति मध्यमार्गी की राजनीति से किस तरह भिन्न थी?

बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र के बिपिनचंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे नेता ज्यादा आमूल परिवर्तनवादी उद्देश्य और पद्धतियों के अनुरूप काम करने लगे थे। उन्होंने “ निवेदन की राजनीति“ के लिए नरमपंथियों की आलोचना की और आत्मनिर्भरता तथा रचनात्मक कामों के महत्व पर जोर दिया। उनका कहना था कि लोगों को सरकार के “नेक“ इरादों पर नहीं बल्कि अपनी ताकत पर भरोसा करना चाहिए। लोगों को स्वराज के लिए लड़ना चाहिए। तिलक ने नारा दिया “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।“


प्रश्न.7. चर्चा करें कि भारत के विभिन्न भागों में असहयोग आंदोलन ने किस-किस तरह के रूप ग्रहण किए ? लोग गांधीजी के बारे में क्या समझते थे?

महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन आरंभ किया। 1921-22 के दौरान असहयोग आंदोलन को और गति मिली। हजारों विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल – कॉलेज छोड़ दिए। मोतीलाल नेहरू सी. आर. दास, सी राजगोपालाचारी और आसफ़ अली जैसे बहुत सारे वकीलों ने वकालत छोड़ दी। अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियों को वापस लौटा दिया गया और विधान मंडलों का बहिष्कार किया गया। जगह -जगह लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई। 1920 से 1922 के बीच विदेशी कपड़ों के आयात में भारी गिरावट आ गई। परंतु यह तो आने वाले तूफान की सिर्फ एक झलक थी। देश के ज्यादातर हिस्से एक भारी विद्रोह के मुहाने पर खड़े थे।
भारत के विभिन्न भागों में असहयोग आंदोलन:  कई जगहों पर लोगों ने ब्रिटिश शासन का अहिंसक विरोध किया। लेकिन कई स्थानों पर विभिन्न वर्गों और समूहों ने गांधीजी के आह्वान के अपने हिसाब से अर्थ निकाले और इस तरह के रास्ते अपनाए जो गांधीजी के विचारों से मेल नहीं खाते थे। सभी जगह लोगों ने अपने आंदोलनों को स्थानीय मुद्दों के साथ जोड़कर आगे बढ़ाया। खेड़ा , गुजरात में पाटीदार किसानों ने अंग्रेजों द्वारा थोप दिए गए भारी खिलाफ अहिंसक अभियान चलाया। तटीय आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के भीतरी भागों में शराब की दुकानों की घेरेबंदी की गई। आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में आदिवासी और गरीब किसानों ने बहुत सारे “वन सत्याग्रह“ किए। इन सत्याग्रहों में कई बार वे चरायी शुल्क अदा किए बिना भी अपने जानवरों को जंगल छोड़ देते थे। उनका विरोध इसलिए था क्योंकि औपनिवेशिक सरकार ने वन संसाधनों पर उनके अधिकारों को बहुत सीमित कर दिया था। उन्हें यकीन था कि गांधीजी उन पर लगे कर कम करा देंगे और वन कानूनों को खत्म करा देंगे  बहुत सारे वन गाँवों में किसानों ने स्वराज का ऐलान कर दिया क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि गांधी राज  जल्दी ही स्थापित होने वाला है। सिंध (मौजूदा पाकिस्तान) में मुस्लिम व्यापारी और किसान ख़िलाफ़त के आह्वान पर बहुत उत्साहित थे। बंगाल में भी खिलाफत असहयोग के गठबंधन ने जबरदस्त साम्प्रदायिक एकता को जन्म दिया और राष्ट्रीय आंदोलन को नई ताकत प्रदान की। पंजाब में सिखों के अकाली आंदोलन ने अंग्रेजों की सहायता से गुरुद्वारों में जमे बैठे भ्रष्ट महंतों को हटाने के लिए आंदोलन चलाया। यह आंदोलन असहयोग आंदोलन से काफी घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ दिखाई देता था। असम में “ गांधी महाराज की जय “ के नारे लगाते हुए चाय बागान मजदूरों ने अपनी तनख्वाह में इजाफे की माँग शुरू कर दी उन्होंने अंग्रेजी स्वामित्व वाले बागानों की नौकरी छोड़ दी। उनका कहना था कि गांधीजी भी यही चाहते हैं। उस दौर के बहुत सारे असमिया वैष्णव गीतों में कृष्ण की जगह “ गांधी राज “ का यशगान किया जाने लगा था।
गांधीजी को समझना:  इन उदाहरणों के आधार पर हम देख सकते हैं कि कई जगह के लोग गांधीजी को एक तरह का मसीहा, एक ऐसा व्यक्ति मानने लगे थे जो उन्हें मुसीबतों और गरीबी से छुटकारा दिला सकता है। गांधीजी वर्गीय टकरावों की बजाय वर्गीय एकता के समर्थक थे। परंतु किसानों को लगता था कि गांधीजी जमींदारों के खिलाफ उनके संघर्ष में मदद देंगे। खेतिहर मजदूरों को यकीन था कि गांधीजी उन्हें जमीन दिला देंगे। कई बार आम लोगों ने खुद अपनी उपलब्धियों के लिए भी गांधीजी को श्रेय दिया। उदाहरण के लिए , एक शक्तिशाली आंदोलन के बाद संयुक्त प्राप्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) स्थित प्रतापगढ़ के किसानों ने पट्टेदारों की गैर कानूनी बेदखली को रुकवाने में सफलता पा ली थी परंतु उन्हें लगता था कि यह सफलता उन्हें गांधीजी की वजह से मिली है। कई बार गांधीजी का नाम लेकर आदिवासियों और किसानों ने ऐसी कार्रवाइयाँ भी की जो गांधीवादी आदर्शों के अनुरूप नहीं थीं।


प्रश्न.8. गांधीजी ने नमक कानून तोड़ने का फैसला क्यों लिया?

1930 में गांधीजी ने ऐलान किया कि वह नमक कानून तोड़ने के लिए यात्रा निकालेंगे। उस समय नमक के उत्पादन और बिक्री पर सरकार का एकाधिकार होता था। महात्मा गांधी और अन्य राष्ट्रवादियों का कहना था कि नमक पर टैक्स वसूलना पाप है क्योंकि यह हमारे भोजन का एक बुनियादी हिस्सा होता है। नमक सत्याग्रह ने स्वतंत्रता की व्यापक चाह को लोगों की एक खास शिकायत से जोड़ दिया था और इस तरह अमीरों और गरीबों के बीच मतभेद पैदा नहीं होने दिया। गांधीजी और उनके अनुयायी साबरमती से 240 किलोमीटर दूर स्थित दांडी तट पैदल चलकर गए और वहाँ उन्होंने तट पर बिखरा नमक इकट्ठा करते हुए नमक कानून का सार्वजनिक रूप से उल्लंघन किया। उन्होंने पानी उबालकर भी नमक बनाया। इस आंदोलन में किसानों, आदिवासियों और महिलाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। नमक के मुद्दे पर एक व्यावसायिक संध ने पर्चा प्रकाशित किया। इस तरह से गांधीजी ने नमक कानून को तोड़ने का फैसला लिया।


प्रश्न.9. 1937-47 को उन घटनाओं पर चर्चा करें जिनके फलस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ?

(i) 1937 के चुनाव: 1937 के प्रांतीय चुनावों ने मुस्लिम लीग को इस बात का विश्वास दिला दिया था कि देश में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं और किसी भी लोकतांत्रिक संरचना में उन्हें सदा गौण भूमिका निभानी पड़ेगी। उनको यह भी भय था कि संभव है कि मुसलमानों को प्रतिनिधित्व ही न मिल पाए। 1937 में मुस्लिम लीग संयुक्त प्रांत कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती थी, परंतु कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को नहीं माना जिससे कांग्रेस तथा लीग के बीच दूरी बढ़ गई।
(ii) लीग के जनाधार का विस्तार: तीस के दशक में कांग्रेस मुस्लिम जनता को अपने साथ जोड़े रखने में असफल दिखाई दी। इस बात ने लीग को अपना सामाजिक जनाधार फैलाने में सहायता दी। चालीस के दशक के आरंभिक वर्षों जब कांग्रेस के अधिकतर नेता जेल में थे। उस समय लीग ने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए तेजी से प्रयास किए।
(iii) कांग्रेस तथा लीग के बीच वार्ता की असफलता: 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अंग्रेज ने भारत की स्वतंत्रता के लिए कांग्रेस और लीग से बातचीत शुरू कर दी, परंतु यह वार्ता असफल रही क्योंकि लीग का कहना था कि भारतीय मुसलमानों का एकमात्र प्रतिनिधि उसी को माना जाए। कांग्रेस इस दावे को मंजूर नहीं कर सकती थी क्योंकि अभी भी बहुत से मुसलमान उसके साथ थे।
(iv) 1946 के प्रांतीय चुनाव: 1946 में दोबारा प्रांतीय चुनाव हुए। “सामान्य“ निर्वाचन क्षेत्रों में तो कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा। परंतु मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को शानदार सफलता मिली। कैबिनेट मिशन का आगमन :– मार्च 1946 में ब्रिटिश सरकार ने लीग की पाकिस्तान की माँग का अध्ययन करने वे भारत की स्वतंत्रता के लिए एक सही राजनीतिक व्यवस्था सुझाने के लिए तीन सदस्यीय परिसंघ भारत भेजा। इस परिसंघ ने सुझाव दिया कि भारत अविभाजित रहे। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को कुछ स्वायत्तता देकर भारत को एक ढीले – ढाले महासंघ  के रूप में संगठित किया जाए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग, दोनों ही इस प्रस्ताव के कुछ प्रावधानों पर सहमत नहीं थे। इन परिस्थितियों में देश का विभाजन अवश्यंभावी हो गया।
(v) प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस और भारत का विभाजन: कैबिनेट मिशन की इस विफलता के बाद मुस्लिम लीग ने अपनी माँगें मनवाने के लिए 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस ” मनाने का आह्वान किया। इस दिन कलकत्ता में दंगे भड़क उठे जो कई दिन तक चलते रहे। इन दंगों में हजारों लोग मारे गए। मार्च 1947 तक उत्तर के विभिन्न भागों में भी हिंसा फैल गई जिसमें लाखों लोगों की जानें गईं। अंततः भारत का विभाजन कर दिया। इसके परिणामस्वरूप करोड़ों लोगों को अपने घर – बार छोड़कर भागना पड़ा। अपने मूल स्थानों को छोड़ कर लोग शरणार्थी बनकर रह गए। इस तरह ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता का यह आनंद विभाजन की पीड़ा और हिंसा के साथ हमारे सामने आया।

आइए करके देखें

प्रश्न.10. पता लगाएं कि आपके शहर जिले इलाके या राज्य में राष्ट्रीय आंदोलन किस तरह आयोजित किया गया। किन लोगों ने उसमें हिस्सा लिया और किन लोगों ने उसका नेतृत्व किया ? आपके इलाके में आंदोलन को कौन सी सफलताएँ मिली?

राष्ट्रीय आंदोलन, भारत की आज़ादी के लिए सबसे लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था। भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ ही हुई। हर बार की तरह लोग इसे हर्षोल्लास से मनाते है। सारे सहभागियों को याद करते है। उनसे जुड़े गीत गाते है।


प्रश्न.11. राष्ट्रीय आंदोलन के किन्हीं दो सहभागियों या नेताओं के जीवन और कृतित्व के बारे में और पत्ता लगाएँ तथा उनके बारे में एक संक्षिप्त निबंध लिखें। आप किसी ऐसे व्यक्ति को भी चुन सकते हैं जिसका इस अध्याय में जिक्र नहीं आया है।

मोहनदास कर्मचंद गांधी भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में से एक थे। वे अहिंसा के समर्थक थे।  गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकार आंदोलन में भाग लिया। वह सम्मानित नेता थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता था। 1915 में जब वे भारत लौटे, तो वे जनता के नेता बन गए। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, गरीबी और अस्पृश्यता को कम करने के लिए अभियान का नेतृत्व किया। 1920 में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया।
भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू एक कवि और एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थीं। वह 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुईं। वह महात्मा गांधी के स्वराज के विचार से प्रेरित थीं।उन्होंने सामाजिक कल्याण और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम किया। 1925 में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सत्र की अध्यक्षता की। ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला थीं। 1930 में नमक मार्च में भाग लेने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ जेल भेज दिया गया। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। भारत की स्वतंत्रता के बाद, उन्हें संयुक्त प्रांत, वर्तमान उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था।

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