प्रश्न 1: विपदाओं से मुझे बचाओ यह प्रार्थना नहीं इसका आशय स्पष्ट कीजिये?
उत्तर: कवि प्रार्थना करता है की यदि विपत्ति के समय उसे कोई सहायक न मिले तो उसका अपना बल और पौरुष ही सहायक बन जाये।
प्रश्न 2: कविता एवं कवि का नाम लिखिए?
उत्तर: कविता का नाम है ‘आत्मत्राण’ तथा कवि हैं ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’।
प्रश्न 3: सहायक के न मिलने पर कवि क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर: कवि परमात्मा से अपने लिए विशेष सुविधा नहीं चाहता। वह अन्य लोगों की तरह संसार के दुखों और कष्टों का अनुभव करना चाहता है इसलिए वह यह नहीं चाहता कि प्रभु उसे संकटों से बचा लें। वह तो उन कष्टों को सहन करने की शक्ति चाहता है।
प्रश्न 4: कवि का अंतिम अनुनय क्या है?
उत्तर: अंत में कवि यह अनुनय करता है कि यदि उसे चारों और से दुःख घेर लें संसार के सब लोग भी उसका साथ छोड़ दें और उसके विरूद्ध हो जायें तो भी प्रभु पर आस्था बानी रहे| उसके मन में ईश्वर के प्रति संदेह न जन्मे।
प्रश्न 5: आत्मत्राण शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिये?
उत्तर: इस शीर्षक का अर्थ है ‘अपनी सुरक्षा करना’। इस कविता में कवि ईश्वर से सहायता नहीं मांगता। वह ईश्वर को हर दुःख से बचाने के लिए नहीं पुकारता ।वह स्वयं अपने दुःख से बचने और उबरने के योग्य बनना चाहता है। इसके लिए स्वयं को समर्थ बनाना चाहता है, यह शीर्षक एकदम उपयुक्त है।
प्रश्न 6: अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं?
उत्तर: हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवन से प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना के अतिरिक्त हम अपने दुःख से छुटकारा पाने का हर संभव प्रयास करते हैं। हम दुःख के कारणों को हटाने की कोशिश करते हैं | हम अपनी सहनशक्ति को बढ़ाते हैं। हम स्वयं को समझाते हैं कि दुःख पर विजय पा लें।
प्रश्न 7: नित शर होकर सुख के दिन में , तव मुख पहचानू छीन- छीन में’ इसका भावार्थ क्या है?
उत्तर: कवि चाहता है कि जब जीवन में सुख आएं तो वह उनमें भी परमात्मा की कृपा मान कर वह परमात्मा के चरणों में विनयपूर्वक झुकें । वह सुख के प्रत्येक पल में परमात्मा के अहसास से भरा रहे जैसा की होता है | प्रायः लोग सुख में परमात्मा को भूल जाते है। वे अपनी शक्ति पर घमंड करने लगते हैं कवि की कामना है कि वह ऐसे घमंड से बचा रहे।
प्रश्न 8: क्या यह प्रार्थना गीत अन्य गीतों से भिन्न है .. यदि हाँ तो कैसे?
उत्तर: करुणामय ईश्वर उसे संकटों से बचाने की प्रार्थना नहीं करते वरन यह चाहते हैं कि उस संकट से बचने की शक्ति दे, अपने बल पौरुष को ही अपना सहायक बनाने की शक्ति दे।
प्रश्न 9: आत्म्त्राण कविता का सारांश लिखिए
उत्तर: इस कविता में गुरुदेव ने यह निवेदन किया है कि हे! प्रभु मुझे संकटों से मत बचाओ बस उनसे निर्भय रहने की शक्ति दो, मुझे दुःख सहने की शक्ति दो, कोई सहायक न मिले तो भी मेरा बल न हिले। हानि में भी मैं हारूँ नहीं। मेरी रक्षा चाहे न करो किन्तु मुझे तैरने की शक्ति ज़रूर दो। मुझे सांत्वना चाहे न दो किन्तु दुःख झेलने की शक्ति अवश्य दो। मैं सुख में भी तुम्हें याद रखूँ बड़े से बड़े दुःख में भी तुम पर संशय न करूँ।
प्रश्न 10: इस कविता का प्रति पाद्य लिखिए
उत्तर: हम मनुष्य प्रायः ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की वे हमें दुखों से बचाएं या विपत्तियों में हमारी सहायता करें। प्रस्तुत कविता भी एक प्रार्थना ही है किन्तु इसमें कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ईश्वर से एक अनोखी विनती की है। वे जानते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर में हम सब का उद्धार करने का सामर्थ्य है फिर भी वे चाहते हैं कि जीवन में संघर्षों का सामना करते हुए सफलता पाने के लिए ईश्वर उन्हें शक्ति दें। वे अपने साहस और मनोबल से जीवन में आगे बढ़ें और बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी ईश्वर पर उनका विश्वास कम न हो | वे सदा उस परम पिता परमेश्वर से शक्ति प्राप्त कर जीवन की लड़ाई में विजयी हों। यह प्रार्थना सभी पाठकों को ईश्वर पर आस्था रखने के साथ-साथ स्वयं पर भी विश्वास करने की प्रेरणा देती है।
16 videos|201 docs|45 tests
|
16 videos|201 docs|45 tests
|
|
Explore Courses for Class 10 exam
|