लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: 'झेन की देन' पाठ में लेखक ने जापानियों के दिमाग़ में स्पीड का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर: लेखक ने जापानियों के दिमाग़ में स्पीड का इंजन लगाने की बात इसलिए कही है क्योंकि वे तीव्र गति से प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन में पूरा करना चाहते हैं । अमेरिका की आर्थिक गति से प्रतिस्पर्धा के चलते वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं। कार्य की अधिकता के कारण ऐसा लगता है कि अब वहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है, कोई बोलता नहीं, बकता है। जब वे अकेले पड़ जाते हैं, तो वे स्वयं से ही बड़बड़ाने लगते हैं। उन्होंने स्वयं को विकसित देशों की पहली पंक्ति में लाने की ठान ली है।
प्रश्न 2: 'झेन की देन' पाठ में जापानी लोगों को मानसिक रोग होने के क्या-क्या कारण बताए गए हैं? आप इनसे कहाँ तक सहमत हैं? तर्कसहित लिखिए।
उत्तर: लेखक के मित्र ने जापान में बढ़ते मानसिक रोग का मुख्य कारण बताया है - जापानियों द्वारा अमेरिका की आर्थिक गति से प्रतिस्पर्धा करना । इस प्रतिस्पर्धा के कारण जापानियों ने अपनी दैनिक कार्यों (दिनचर्या) की गति बढ़ा दी है। वे एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं, इस कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं । लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह काम नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया जाए, तो उनका मानसिक संतुलन बिगड़ना अवश्यंभावी है । मन और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उन्हें शांत एवं तनाव मुक्त रखना आवश्यक है ।
प्रश्न 3: शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग-अलग कैसे है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: शुद्ध सोना पूरी तरह शुद्ध होता है । वह चौबीस (24) कैरेट का होता है उसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं होती। गिन्नी का सोना शुद्ध सोने में ताँबा मिलाने से बनता है । वह बाईस (22) कैरेट सोना होता है। ताँबे की इसी मिलावट के कारण वह शुद्ध सोने की अपेक्षा ज़्यादा चमकता है और मज़बूत भी अधिक होता है । औरतें अक्सर इसी सोने के गहने बनवाती हैं ।
प्रश्न 4: जापान में मानसिक रोग के क्या कारण हैं? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं? 'झेन की देन' पाठ के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर: दीजिए।
उत्तर: लेखक के मित्र ने जापान में बढ़ते मानसिक रोग का मुख्य कारण बताया है- जापानियों द्वारा अमेरिका की आर्थिक गति से प्रतिस्पर्धा करना । इस प्रतिस्पर्धा के कारण जापानियों ने अपनी दैनिक कार्यों (दिनचर्या) की गति बढ़ा दी है। वे एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं, इस कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं । लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह काम नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया जाए, तो उनका मानसिक संतुलन बिगड़ना अवश्यंभावी है । मन और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उन्हें शांत एवं तनाव मुक्त रखना आवश्यक है।
प्रश्न 5: जापान में तनावमुक्त होने के लिए कौन-सी परंपरा है? इस संबंध में 'झेन की देन' पाठ के लेखक के अनुभूत तथ्य का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: जापान में तनावमुक्त होने के लिए चा-नो-यू (दिमाग़ को तनावमुक्त करने के लिए बनाई गई चाय पीने की एक विशेष विधि) की परंपरा है, जो कि झेन परंपरा की देन है। इस संबंध में 'झेन की देन' पाठ के लेखक रवींद्र केलेकर को विशिष्ट अनुभव हुए थे। उन्हें इस विधि से चाय पीते हुए उस स्थान पर सन्नाटा भी महसूस होने लगा था, उनके दिमाग़ की रफ़्तार एकदम धीमी पड़ गई थी। उन्हें उस क्षण ऐसा महसूस हो रहा था कि वे अनंतकाल में जी रहे हों तथा उन्हें यह भी अनुभव हो गया था कि भूत और भविष्य दोनों ही काल मिथ्या हैं, सत्य तो केवल वर्तमान है, अतः व्यक्ति को उसी में जीवन बिताना चाहिए ।
प्रश्न 6: 'झेन की देन' के आधार पर लिखिए कि लेखक ने जापानियों के दिमाग़ में स्पीड का इंजन लगे होने की बात क्यों कही है?
उत्तर: लेखक ने जापानियों के दिमाग़ में स्पीड का इंजन लगाने की बात इसलिए कही है क्योंकि वे तीव्र गति से प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन में पूरा करना चाहते हैं । अमेरिका की आर्थिक गति से प्रतिस्पर्धा के चलते वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं। कार्य की अधिकता के कारण ऐसा लगता है कि अब वहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है, कोई बोलता नहीं, बकता है। जब वे अकेले पड़ जाते हैं, तो वे स्वयं से ही बड़बड़ाने लगते हैं। उन्होंने स्वयं को विकसित देशों की पहली पंक्ति में लाने की ठान ली है।
प्रश्न 7: जापान में चाय पिलाने की विधि को क्या कहते हैं? उसकी क्या विशेषता है? सविस्तार समझाइए ।
उत्तर: जापान में चाय पिलाने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं। इसकी विशेषता यह है कि वहाँ असीम शांति होती है। वहाँ इतनी शांति होती है कि वहाँ सन्नाटा भी गूँजता है । वहाँ की पवित्रता और शांति की तुलना जयजयवंती से की है। इसमें दिमाग़ की रफ़्तार बिलकुल धीमी पड़ जाती है और दिल दिमाग को बहुत सुकून मिलता है। लोग भूत और भविष्य काल को भूलकर वर्तमान में जीने लगते हैं। चाय पिलाने की इस विधि के द्वारा मानसिक बीमारियों की संख्या पर रोक लगी है। जापान के लोग एवं अन्य इस विधि का खूब आनंद उठाते हैं ।
प्रश्न 8: 'गिन्नी का सोना ' पाठ के आधार पर गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के संबंध में ताँबे और सोने का रूपक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 'गिन्नी का सोना ' पाठ के आधार पर गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के संबंध में ताँबे में सोना मिलाने वाली बात झलकती थी। यहाँ ताँबा व्यावहारिकता तथा सोना आदर्शों का प्रतीक है। अतः स्पष्ट होता है कि गांधीजी अपनी नीतियों या सिद्धांतों में व्यावहारिकता में आदर्शों को मिलाया करते थे और आदर्शों को इस मात्रा में मिला देते थे कि आदर्श प्रमुख तथा व्यावहारिकता गौण हो जाती थी। इसी कारण समाज ने आदर्शों को अपनाने के लिए उनकी नीतियों को स्वीकार किया।
प्रश्न 9: ‘झेन की देन’ पाठ से आपको क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत कराता है। पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोग की चर्चा करते हुए वहाँ की ‘टी-सेरेमनी’ के माध्यम से मानसिक तनाव से मुक्त होने का संकेत करते हुए यह संदेश दिया है कि अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना। इसके मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: भारत में भी लोगों की जिंदगी की गतिशीलता में खूब वृद्धि हुई है। इसके कारण और परिणाम का उल्लेख ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर: अत्यधिक सुख-सुविधाएँ पाने की लालसा, भौतिकवादी सोच और विकसित बनने की चाहत ने भारतीयों की जिंदगी की गतिशीलता में वृधि की है। भारत विकास के पथ पर अग्रसर है। गाँव हो या महानगर, प्रगति के लिए भागते दिख रहे हैं। विकसित देशों की भाँति जीवन शैली अपनाने के लिए लोगों की जिंदगी में भागमभाग मची है। लोगों के पास अपनों के लिए भी समय नहीं बचा है। यहाँ के लोगों की स्थिति भी जापानियों जैसी हो रही है जो चलने की जगह दौड़ रहे हैं, बोलने की जगह बक रहे हैं और इससे भी दो कदम आगे बढ़कर मनोरोगी होने लगे हैं।
प्रश्न 2: 'टी सेरेमनी' की तैयारी और उसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए ।
उत्तर: जापानी लोग ‘टी सेरेमनी' को चा-नो- यू कहते हैं । 'टी सेरेमनी' का प्रबंध छह मंजिला इमारत के सबसे ऊपर बनाई गई पर्णकुटी में था । जिसकी छत दफ़्ती की दीवारों वाली थी। वह चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी थी। बाहर एक बेढब - सा मिट्टी का बर्तन था । उसमें पानी भरा हुआ था, ताकि जो भी व्यक्ति इसमें प्रवेश करे वह हाथ-पाँव धोकर तौलिए से पोंछकर अंदर जाए। वहाँ बैठा मेज़बान उन्हें देखकर खड़ा हो गया। कमर झुकाकर उसने प्रणाम किया और स्वागत किया। बैठने की जगह दिखाकर उसने अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी। बगल के कमरे से बरतन लाकर उसने उन्हें तौलिए से साफ़ किया । ये सभी क्रियाएँ इतने गरिमापूर्ण तरीके से की गईं कि ऐसा लगा माना चारों तरफ़ से जयजयवंती के सुर फूट रहे हों। वहाँ का वातावरण इतना शांत था कि चायदानी के पानी का खदबदाना भी सुनाई दे रहा था। चाय प्यालों में भरकर उनके सामने रख दी । इस पूरी प्रक्रिया में मुख्य बात थी शांति कायम रखना इसीलिए यहाँ तीन से अधिक व्यक्तियों को प्रवेश नहीं दिया जाता है । प्यालों में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती और इसी चाय को दो-तीन घंटों में पिया जाता है। ताकि मानसिक शांति प्राप्त हो सके । भूत और भविष्यत काल की व्यर्थता से निकलकर मनुष्य वर्तमान काल की अनंतता में जीने लगता है । जहाँ वह अनेक चिंताओं से मुक्त होकर अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखता है । लेखक ने इसीलिए जापान की इस 'टी सेरेमनी' को महत्त्व दिया है ।
प्रश्न 3: 'टी सेरेमनी' किसे कहा जाता है? इसमें होने वाले अनुभवों पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर: जापानी लोग 'टी सेरेमनी' को चा- नो - यू कहते हैं । 'टी सेरेमनी' का प्रबंध छह मंज़िला इमारत के सबसे ऊपर बनाई गई पर्णकुटी में था। जिसकी छत दफ़्ती की दीवारों वाली थी। वह चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी थी। बाहर एक बेढब - सा मिट्टी का बर्तन था । उसमें पानी भरा हुआ था, ताकि जो भी व्यक्ति इसमें प्रवेश करे वह हाथ-पाँव धोकर तौलिए से पोंछकर अंदर जाए। वहाँ बैठा मेज़बान उन्हें देखकर खड़ा हो गया। कमर झुकाकर उसने प्रणाम किया और स्वागत किया। बैठने की जगह दिखाकर उसने अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी। बगल के कमरे से बरतन लाकर उसने उन्हें तौलिए से साफ़ किया । ये सभी क्रियाएँ इतने गरिमापूर्ण तरीके से की गईं कि ऐसा लगा माना चारों तरफ़ से जयजयवंती के सुर फूट रहे हों। वहाँ का वातावरण इतना शांत था कि चायदानी के पानी का खदबदाना भी सुनाई दे रहा था। चाय प्यालों में भरकर उनके सामने रख दी । इस पूरी प्रक्रिया में मुख्य बात थी शांति कायम रखना इसीलिए यहाँ तीन से अधिक व्यक्तियों को प्रवेश नहीं दिया जाता है । प्यालों में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती और इसी चाय को दो-तीन घंटों में पिया जाता है। ताकि मानसिक शांति प्राप्त हो सके । भूत और भविष्यत काल की व्यर्थता से निकलकर मनुष्य वर्तमान काल की अनंतता में जीने लगता है । जहाँ वह अनेक चिंताओं से मुक्त होकर अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखता है । लेखक ने इसीलिए जापान की इस 'टी सेरेमनी' को महत्त्व दिया है ।
प्रश्न 4: 'गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी ।' 'गिन्नी का सोना' पाठ के आधार पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर: 'गांधी जी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी' । सभी लोगों को साथ लेकर चलते थे। एक ओर यदि वे आदर्शों का महत्त्व समझते थे, तो दूसरी ओर व्यावहारिकता की कीमत भी जानते थे । वे कभी भी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे, बल्कि व्यावहारिकता को आदर्शों पर चलाते थे । वे सोने में ताँबा नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च और भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए । भारतीयों ने गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त होकर उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। सभी उनका नेतृत्व स्वीकार करके गर्व का अनुभव करते थे । उनकी पहली प्राथमिकता लोक कल्याण थी। वे अपने स्वार्थों को किसी कार्य में बाधा नहीं बनने देते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सारी जनता उनके पीछे हो जाती थी। अपने नेतृत्व की इसी अद्भुत क्षमता के कारण गांधी जी देश को आजाद करवाने में सफल हुए थे।
प्रश्न 5: 'टी- सेरेमनी' किसे कहा जाता है? 'झेन की देन' पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर: जापानी लोग ‘टी सेरेमनी' को चा-नो- यू कहते हैं । 'टी सेरेमनी' का प्रबंध छह मंजिला इमारत के सबसे ऊपर बनाई गई पर्णकुटी में था । जिसकी छत दफ़्ती की दीवारों वाली थी । वह चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी थी। बाहर एक बेढब - सा मिट्टी का बर्तन था । उसमें पानी भरा हुआ था, ताकि जो भी व्यक्ति इसमें प्रवेश करे वह हाथ-पाँव धोकर तौलिए से पोंछकर अंदर जाए। वहाँ बैठा मेज़बान उन्हें देखकर खड़ा हो गया। कमर झुकाकर उसने प्रणाम किया और स्वागत किया। बैठने की जगह दिखाकर उसने अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी। बगल के कमरे से बरतन लाकर उसने उन्हें तौलिए से साफ़ किया। ये सभी क्रियाएँ इतने गरिमापूर्ण तरीके से की गईं कि ऐसा लगा माना चारों तरफ़ से जयजयवंती के सुर फूट रहे हों। वहाँ का वातावरण इतना शांत था कि चायदानी के पानी का खदबदाना भी सुनाई दे रहा था। चाय प्यालों में भरकर उनके सामने रख दी । इस पूरी प्रक्रिया में मुख्य बात थी शांति कायम रखना इसीलिए यहाँ तीन से अधिक व्यक्तियों को प्रवेश नहीं दिया जाता है । प्यालों में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती और इसी चाय को दो-तीन घंटों में पिया जाता है। ताकि मानसिक शांति प्राप्त हो सके । भूत और भविष्यत काल की व्यर्थता से निकलकर मनुष्य वर्तमान काल की अनंतता में जीने लगता है । जहाँ वह अनेक चिंताओं से मुक्त होकर अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखता है । लेखक ने इसीलिए जापान की इस 'टी सेरेमनी' को महत्त्व दिया है।
प्रश्न 6: 'शाश्वत मूल्य से आप क्या समझते हैं?' 'गिन्नी का सोना' पाठ के आधार पर बताइए कि वर्तमान समय में इन मूल्यों की क्या प्रासंगिकता है?
उत्तर: 'शाश्वत मूल्य' वे होते हैं जिनपर युग, स्थान तथा काल का कोई प्रभाव न पड़े जो पौराणिक समय से चले आ रहे हों, वर्तमान में भी जो हमारे समाज और व्यक्तित्व में रच-बस गए हों तथा भविष्य में भी जो हमारा दिशा-निर्देशन करने में सहायक हों । सत्य, अहिंसा, त्याग, परोपकार, देशप्रेम, मीठी वाणी, एकता, भाई-चारा जैसे मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में भी इन मूल्यों की प्रासंगिकता बनी हुई है । इन मूल्यों में गिरावट के कारण ही समाज का नैतिक पतन हुआ है। जब समाज इन मूल्यों में आस्था जगाएगा तब समाज को आदर्श स्थिति प्राप्त हो पाएगी। आज भी इन मूल्यों की समाज में आवश्यकता है। ये मूल्य समाज का उत्थान करने में सहायक हैं। आज व्यावहारिकता का जो स्तर है उसमें आदर्शों का पालन नितांत आवश्यक है । 'कथनी और करनी' के अंतर ने समाज को आदर्श से हटाकर स्वार्थ और लालच की ओर धकेल दिया है। ऐसे में सत्य, अहिंसा एवं परोपकार जैसे जीवन मूल्य मनुष्य के व्यवहार को आदर्श स्थिति की ओर ले जा सकता है। सत्य, अहिंसा और त्याग के बिना राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता । शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देशप्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। ये शाश्वत मूल्य युगों-युगों तक कायम रहेंगे ।
प्रश्न 7: “हमें सत्य में जीना चाहिए, सत्य केवल वर्तमान है ।" 'पतझर में टूटी पत्तियाँ' के इस कथन को स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर: लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, हमें उसी में जीना चाहिए क्योंकि केवल सत्य ही शाश्वत है। वर्तमान स्वयं ही सत्य है । हम अक्सर या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपनों में खोए रहते हैं । यदि हम भूतकाल के लिए पछताते रहेंगे या भविष्य की योजनाएँ ही बनाते रहेंगे, तो वर्तमान को भी सही प्रकार से नहीं जी सकेंगे। भूतकाल के सुख-दुख में उलझा रहना हमें तनाव ग्रस्त करता है, जबकि भविष्य के रंगीन सपनों में ही खोए रहना हमें अकर्मष्य (आलसी) बना देता है। जो अभी तक आया ही नहीं उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। जो बीत गया वह सत्य नहीं हो सकता। श्रेष्ठ यही है कि हम भूतकाल से शिक्षा लेकर भविष्य की योजनाओं, को वर्तमान में ही कार्यान्वित करें। 'कर्मष्यवाधिकारस्ते' कहकर स्वयं भगवान कृष्ण ने भी मानव को वर्तमान में ही जीने का संदेश दिया है। 'गीता' का सार तत्व यही है कि कर्मठ मनुष्य ही तनावमुक्त रहकर एक स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन जी सकता है।
प्रश्न 8: 'गांधी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी'- कथन की पुष्टि 'गिन्नी का सोना' पाठ के आधार पर उदाहरण सहित कीजिए ।
उत्तर: 'गांधी जी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी' । सभी लोगों को साथ लेकर चलते थे। एक ओर यदि वे आदर्शों का महत्त्व समझते थे, तो दूसरी ओर व्यावहारिकता की कीमत भी जानते थे । वे कभी भी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे, बल्कि व्यावहारिकता को आदर्शों पर चलाते थे । वे सोने में ताँबा नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च और भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए । भारतीयों ने गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त होकर उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। सभी उनका नेतृत्व स्वीकार करके गर्व का अनुभव करते थे। उनकी पहली प्राथमिकता लोक कल्याण थी। वे अपने स्वार्थों को किसी कार्य में बाधा नहीं बनने देते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सारी जनता उनके पीछे हो जाती थी। अपने नेतृत्व की इसी अद्भुत क्षमता के कारण गांधी जी देश को आजाद करवाने में सफल हुए थे।
प्रश्न 9: 'गांधीजी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी।' उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए ।
उत्तर: 'गांधी जी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी'। सभी लोगों को साथ लेकर चलते थे। एक ओर यदि वे आदर्शों का महत्त्व समझते थे, तो दूसरी ओर व्यावहारिकता की कीमत भी जानते थे । वे कभी भी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे, बल्कि व्यावहारिकता को आदर्शों पर चलाते थे । वे सोने में ताँबा नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च और भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए । भारतीयों ने गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त होकर उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। सभी उनका नेतृत्व स्वीकार करके गर्व का अनुभव करते थे। उनकी पहली प्राथमिकता लोक कल्याण थी। वे अपने स्वार्थों को किसी कार्य में बाधा नहीं बनने देते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सारी जनता उनके पीछे हो जाती थी। अपने नेतृत्व की इसी अद्भुत क्षमता के कारण गांधी जी देश को आजाद करवाने में सफल हुए थे।
प्रश्न 10: “हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं, तब अपने-आप से लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।" - पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर: 'हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ हर कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं, तब अपने-आप से लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।' प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने जापानियों की जीवनशैली एवं जापान के लोगों के जीवन का वर्णन किया है। जापान अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने लगा है, जिसके कारण उसका दिन का चैन खत्म हो गया है और रात की नींद उड़ गई है। वे अमेरिका से आगे बढ़ने की होड़ में एक महीने का काम एक दिन में ही निपटाना चाहते हैं । मस्तिष्क में स्पीड का इंजन लगाकर वे केवल काम करते हैं और इसी कारण चिंताग्रस्त, तनावग्रस्त रहने लगे हैं। उनके जीवन की गति इतनी तीव्र हो गई है कि उनकी मानसिक स्थिति डाँवाडोल होने लगती है । लेखक कहते हैं कि असामान्य जीवनशैली के कारण जापान में मानसिक बीमारियाँ सबसे अधिक होती हैं। यह सच है कि जब उनके दिमाग़ की रफ़्तार बहुत तेज़ हो जाती है, तो उनके दिमाग़ में जो स्पीड का इंजन लगा होता है वह टूट जाता है और वे मानसिक रूप से विकृत हो जाते हैं। हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि दिमाग़ को मानसिक शांति देते हुए ही हम प्रगति कर सकते हैं। प्रगति मानव की सुविधाओं के लिए होती है इसलिए वैसी प्रगति किसी काम की नहीं जिसे पाने के लिए मनुष्य मानसिक संतुलन ही खो दे । निष्कर्षता तथा हमें अपने दिमाग़ की रफ़्तार को एक सीमा में ही रखना चाहिए ।
प्रश्न 11: 'गिन्नी का सोना' पाठ में शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर: शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से की गई है क्योंकि शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह शुद्ध और पवित्र होते हैं। जिस प्रकार शुद्ध सोने में कोई मिलावट नहीं होती उसी प्रकार शुद्ध आदर्श भी व्यावहारिकता की मिलावट से रहित होते हैं । व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से की गई है क्योंकि जिस प्रकार शुद्ध सोने में ताँबा मिलाकर उसे मज़बूती दी जाती है और उसमें चमक उत्पन्न की जाती है, उसी प्रकार आदर्शों में व्यावहारिकता मिलाकर उसे समाजोपयोगी बनाया जाता है। वैसे ही जैसे ताँबा 'मिला सोना ही आभूषण बनाने योग्य होता है। जीवन केवल कोरे आदर्शों से नहीं चलता, जीवन में आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता का होना भी आवश्यक है। इससे आदर्शों को समाज में स्थापित करना आसान हो जाता है और समाज का रूप निखर जाता है, किंतु इसमें यह ध्यान रखना आवश्यक है कि व्यावहारिकता की मात्रा अधिक न हो ।
प्रश्न 12: 'पतझर में टूटी पत्तियाँ' पाठ के आधार पर 'टी-सेरेमनी' में चाय पीने वालों के अनुभवों को अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर: जापानी लोग 'टी सेरेमनी' को चा-नो- यू कहते हैं । 'टी सेरेमनी' का प्रबंध छह मंजिला इमारत के सबसे ऊपर बनाई गई पर्णकुटी में था । जिसकी छत दफ़्ती की दीवारों वाली थी। वह चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी थी। बाहर एक बेढब - सा मिट्टी का बर्तन था । उसमें पानी भरा हुआ था, ताकि जो भी व्यक्ति इसमें प्रवेश करे वह हाथ-पाँव धोकर तौलिए से पोंछकर अंदर जाए। वहाँ बैठा मेज़बान उन्हें देखकर खड़ा हो गया। कमर झुकाकर उसने प्रणाम किया और स्वागत किया। बैठने की जगह दिखाकर उसने अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी। बगल के कमरे से बरतन लाकर उसने उन्हें तौलिए से साफ़ किया। ये सभी क्रियाएँ इतने गरिमापूर्ण तरीके से की गईं कि ऐसा लगा माना चारों तरफ़ से जयजयवंती के सुर फूट रहे हों। वहाँ का वातावरण इतना शांत था कि चायदानी के पानी का खदबदाना भी सुनाई दे रहा था। चाय प्यालों में भरकर उनके सामने रख दी। इस पूरी प्रक्रिया में मुख्य बात थी शांति कायम रखना इसीलिए यहाँ तीन से अधिक व्यक्तियों को प्रवेश नहीं दिया जाता है । प्यालों में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती और इसी चाय को दो-तीन घंटों में पिया जाता है। ताकि मानसिक शांति प्राप्त हो सके । भूत और भविष्यत काल की व्यर्थता से निकलकर मनुष्य वर्तमान काल की अनंतता में जीने लगता है । जहाँ वह अनेक चिंताओं से मुक्त होकर अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखता है । लेखक ने इसीलिए जापान की इस 'टी सेरेमनी' को महत्त्व दिया है ।
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