प्रश्न 1: 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र' पाठ में राजकपूर के सर्वोत्कृष्ट अभिनय का श्रेय किसे दिया गया और क्यों ?
उत्तर: 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' पाठ में राजकपूर के सर्वोत्कृष्ट अभिनय का श्रेय फ़िल्म की पटकथा को दिया गया है । 'तीसरी कसम' फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता है जिसमें एक मार्मिक कृति को पूरी तरह से रील पर उतार दिया गया था। स्वयं राजकपूर भी अपनी अपार प्रसिद्धि को पीछे छोड़ 'हीरामन ' की आत्मा में उतर गए है जो अपने आप में उनकी अभिनय कला का चरमोत्कर्ष है।
प्रश्न 2: 'तीसरी कसम' के आलोक में कलाकार के दायित्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: शैलेंद्र के अनुसार, कलाकार का यह कर्तव्य है कि वह दर्शकों की रुचियों का परिष्कार करे, वह दर्शकों के ज्ञान की वृद्धि में सहायक हो । सच्चा कलाकार दर्शकों के मानसिक स्तर का विकास करता है। वह दर्शकों के मन में जागरूकता को जन्म देता है और दर्शकों में अच्छे-बुरे की समझ को बढ़ाता है। सच्चे कलाकार का दायित्व है कि वह उपभोक्ता की रुचियों में सुधार लाने का प्रयत्न करे। उसके मन में धन कमाने की ही लिप्सा न हो।
प्रश्न 3: शैलेंद्र द्वारा बनाई गई फ़िल्म चल रहीं, इसके कारण क्या थे?
उत्तर: तीसरी कसम संवेदनापूर्ण भाव- प्रणव फ़िल्म थी। संवेदना और भावों की यह समझ पैसा कमाने वालों की समझ से बाहर होती है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना होता है। तीसरी कसम फ़िल्म में रची-बसी करुणा अनुभूति की । चीज़ थी । ऐसी फ़िल्म के खरीददार और वितरक कम मिलने से यह फ़िल्म चले न सकी ।
प्रश्न 4: 'शैलेंद्र के गीत भारतीय जनमानस की आवाज़ बन गए।' इस कथन को पाठ 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' के आधार पर सिद्ध कीजिए ।
उत्तर: 'तीसरी कसम' फ़िल्म के गीत सहज और भावपूर्ण थे। वे गीत कठिन या दुरूह नहीं थे। इन गीतों को शंकर-जयकिशन ने अपना संगीत देकर उसे लोकप्रिय बना दिया था। वे गीत अत्यंत कोमल थे। उन गीतों में सरलता व भावुकता का संगम था। उन गीतों की भाषा इतनी सरल थी कि उन्हें समझना सरल था। चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे पिंजड़े वाली मुनियाँ और लाली लाली डोलिया में “गीत ने आम लोगों के दिलों को जीत लिया था।
प्रश्न 5: 'रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी नयाँ' इस पंक्ति के रेखांकित अंश पर किसे आपत्ति थी और क्यों?
उत्तर: रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ' पंक्ति के दसों दिशाओं पर संगीतकार शंकर जयकिशन को आपत्ति थी। उनका मानना था कि जन साधारण तो चार दिशाएँ ही जानता- समझता है, दस दिशाएँ नहीं । इसका असर फ़िल्म और गीत की लोकप्रियता पर पड़ने की आशंका से उन्होंने ऐसा किया।
प्रश्न 6: शैलेन्द्र के गीत भाव - प्रवण थे- दुरूह नहीं । आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर: शैलेंद्र के गीतों में भावनाओं की प्रधानता होती है। इनके गीतों में प्रयुक्त शब्द सरल होते हैं, कठिन नहीं होते। ये शब्द हमारे दिलों को छू लेते हैं। अपनी भावप्रवणता के कारण ही वे गीत देश-विदेश में आज भी लोकप्रिय हैं। 'प्यार हुआ, इकरार हुआ' और 'मेरा जूता है जापानी' जैसे गीतों में भावप्रवणता और अर्थ की गंभीरता व सरलता देखते ही बनती है।
प्रश्न 7: दरअसल तीसरी कसम फ़िल्म की संवेदना दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है- कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस फ़िल्म में हर स्थिति को सहज रूप में प्रकट किया गया। किसी भी दृश्य को इस प्रकार ग्लोरीफाई नहीं किया गया जैसे व्यावसायिक वितरक चाहते थे । पैसा कमाने के लिए व्यावसायिक लोग दर्शकों की भावनाओं का शोषण करने से पीछे नहीं हटते। इस फ़िल्म को उनके विचारों से विपरीत कलात्मक एवम् संवेदनशील बनाया गया । अतः यह फ़िल्म दो से चार बनाने वालों की समझ से परे थी।
प्रश्न 8: 'तीसरी कसम' फिल्म नहीं सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी- इस कथन पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर: 'सैल्यूलाइड' का अर्थ है- फ़िल्म को कैमरे की रील में उतार चित्र प्रस्तुत करना । 'तीसरी कसम' फ़िल्म की पटकथा फणीश्वर नाथ रेणु की अत्यंत मार्मिक साहित्यिक रचना को आधार बनाकर लिखी गई है। इस फ़िल्म में कविता की भाँति कोमल भावनाओं को बखूबी उकेरा गया है। भावनाओं की सटीक एवं ईमानदार अभिव्यक्ति के कारण इसे फ़िल्म न कहकर सैल्यूलाइड पर लिखी कविता कहा गया है।
प्रश्न 9: 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' पाठ के आधार पर लिखिए कि कलाकार के क्या कर्तव्य हैं ।
उत्तर: शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह दर्शकों की रुचियों में परिष्कार करने का प्रयत्न करें। उनके मानसिक स्तर को ऊपर उठाए । वह लोगों में जागृति लाए और उनमें अच्छे-बुरे की समझ विकसित करें। वह दर्शकों पर उनकी रुचि आड़ में उथलापन न थोपे।
प्रश्न 10: 'तीसरी कसम' जैसी फ़िल्म बनाने के पीछे शैलेंद्र की मंशा क्या थी?
उत्तर: शैलेंद्र कवि हृदय रखने वाले गीतकार थे। तीसरी कसम बनाने के पीछे उनकी मंशा यश या धनलिप्सा न थी। आत्म संतुष्टि के लिए ही उन्होंने फ़िल्म बनाई।
प्रश्न 11: शैलेन्द्र का चेहरा कब और क्यों मुरझा गया था? पठित पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर: शैलेन्द्र का चेहरा तब मुरझा गया जब उनके अभिन्न मित्र राजकपूर ने उनकी फ़िल्म में काम करने के लिए अपना पारिश्रमिक माँगा और वह भी एडवांस । उन्हें लगा कि राजकपूर तो उनकी सही आर्थिक स्थिति के विषय में जानते ही हैं, तब भी उन्होंने ऐसी बात क्यों कही ? यह सोचकर उनका मुख मुरझा गया।
प्रश्न 12: संगम की सफलता से उत्साहित राजकपूर ने कन-सा कदम उठाया?
उत्तर: राजकपूर को संगम फ़िल्म से अद्भुत सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में थीं- अजंता, मेरा नाम जोकर, मैं और मेरा दोस्त, सत्यम् शिवम् सुंदरम्।
प्रश्न 13: राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ अपनी मित्रता ? निर्वाह कैसे किया?
उत्तर: राजकपूर ने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म 'तीसरी कसम' में पूरी तन्मयता से काम किया। इस काम के बदले उन्होंने किसी प्रकार के पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं की। उन्होंने मात्र एक रुपया एडवांस लेकर काम किया और मित्रता का निर्वाह किया ।
प्रश्न 14: एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सा- युवा भी चकर क्यों खा जाते हैं?
उत्तर: एक निर्माता जब फ़िल्म बनाता है तो उसका लक्ष्य होता है फ़िल्म अधिकाधिक लोगों को पसंद आए और लोग उसे बार बार देखें, तभी उसे अच्छी आय होगी। इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं फिर भी फ़िल्म नहीं चलती और वे चक्कर खा जाते हैं ।
प्रश्न 15: राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ किस तरह यारउन्ना मस्ती की ?
उत्तर: गीतकार शैलेंद्र जब अपने मित्र राजकपूर के पास फ़िल्म में काम करने का अनुरोध करने गए तो राजकपूर ने हाँ कह दिया, परंतु साथ ही यह भी कह दिया कि 'निकालो मेरा पूरा एडवांस ।' फिर उन्होंने हँसते हुए एक रुपया एडवांस माँगा। एडवांस माँग कर राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ याराना मस्ती की।
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