अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी में पाउँ न बोर्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।
प्रश्न (क)-इस पद में किस भाषा का प्रयोग हुआ है?
उत्तर: इस पद में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न (ख)-गोपियों ने स्वयं को ‘अबला’ और ‘भोली’ बताकर उद्धव पर क्या कटाक्ष किया है?
उत्तर: उद्धव के ज्ञान-अभिमान पर व्यंग्य प्रहार किया है। अहंकार रहित और सरल हृदय व्यक्ति ही श्रीकृष्ण के प्रेम का पात्र हो सकता है।
प्रश्न (ग)-गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है?
उत्तर: वह कभी प्रेम के बंधन में नहीं पड़े। कृष्ण से प्रेम के कारण गोपियों को विरह की पीड़ा भोगनी पड़ी। उद्धव को उसका अनुभव भी नहीं हुआ वास्तव में तो गोपियाँ उन्हें अभागा व्यक्ति मानतीं एवं ज्ञान और योग के अहंकार में प्रेम जैसे पावन अनुभव से वंचित मानतीं हैं।
अथवा
प्रश्न(क)-‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’ में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर: दीवानगी का भाव। गोपियाँ कृष्ण पर पूरी तरह समर्पित हैं।
प्रश्न (ख)-उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर: कमल के पत्ते व तेल की गागर से तुलना की गई है।
प्रश्न (ग)-‘अति बड़भागी’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: वे व्यंग्य स्वरूप कह रही हैं, क्योंकि वे कृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम बंधन में नहीं बँध सके और न ही उनके प्रेम में व्याकुल हुए।
अथवा
प्रश्न (क)-गोपियों ने ‘बड़भागी’ कहकर उद्धव के व्यवहार पर कौन-सा व्यंग्य किया है?
उत्तर: गोपियों द्वारा व्यंग्य-उद्धव का इतना ज्ञानी होना कि कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम से न बँध सकना।
प्रश्न (ख)-उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किससे की गई है?
उत्तर: पानी के अन्दर रहने वाले कमल के पत्ते से की गई है जो कीचड़ और जल से अछूता रहता है। तेल से चुपड़ी गगरी से जिसके ऊपर पानी की एक बूँद भी नहीं ठहरती है।
प्रश्न (ग)-अंतिम पंक्तियों में गोपियों ने स्वयं को ‘अबला’ और ‘भोरी’ क्यों कहा है?
उत्तर: गोपियाँ ज्ञानी नहीं हैं। जिस प्रकार चीटियाँ गुड़ में चिपक जाती हैं, उसी प्रकार वे भी कृष्ण के प्रेम में डूबी रहती हैं।
2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाए कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन-मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।
प्रश्न (क)-गोपियाँ किस मर्यादा की बात कर रही हैं?
उत्तर: गोपियाँ कृष्ण द्वारा वादा न निभाने की बात कर रही हैं। उनके लिए धैर्य धारण करना मुश्किल हो गया है, क्योंकि कृष्ण ने उनकी मर्यादा का ध्यान नहीं रखा।
प्रश्न (ख)-उद्धव के संदेश को सुनकर गोपियों की व्यथा घटने के स्थान पर बढ़ गई, ऐसा क्यों हुआ?
उत्तर: गोपियाँ पूर्ण रूप से कृष्ण के प्रति समर्पित थीं, वे कृष्ण विरह में जी रही थीं। उद्धव ने गोपियों को कृष्ण को भूलकर निर्गुण की उपासना का संदेश दिया, जिसे सुनकर गोपियों की व्यथा बढ़ गई।
प्रश्न (ग)-गोपियों के हृदय की इच्छाएँ हृदय में ही क्यों रह गईं?
उत्तर: गोपियों को इस बात की पूरी आशा थी कि एक दिन कृष्ण ब्रज अवश्य आएँगे, परन्तु कृष्ण ने गोपियों को ज्ञान का उपदेश देने के लिए उद्धव को ब्रज भेज दिया। उद्धव को आया देखकर उनकी आशा निराशा में बदल गई।
3. हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।।
प्रश्न (क)-‘नंद-नंदन’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर: ‘नंद-नंदन’ शब्द का प्रयोग नन्द बाबा के पुत्र श्रीकृष्ण के लिए किया गया है।
प्रश्न (ख)-गोपियों को योग व ज्ञान की बातें कैसी लगती हैं?
उत्तर: गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में पूर्णरूप से आसक्त हैं, उद्धव द्वारा दिया गया संदेश उन्हें कड़वी ककड़ी के समान निरर्थक लगता है, जिसके बारे में गोपियों ने न कभी देखा न कभी सुना।
प्रश्न (ग)-गोपियों ने श्रीकृष्ण की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर: गोपियों ने कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान कहा है। जैसे हारिल पक्षी अपने पंजों से लकड़ी को नहीं छोड़ता, इसी प्रकार गोपियों ने मन, कर्म व वचन से श्रीकृष्ण की भक्ति को दृढ़ता से पकड़ रखा है, उसे वे छोड़ नहीं सकतीं।
4. हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।,
ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जु और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।
प्रश्न (क)-गोपियों की दृष्टि में पहले के लोगों का आचरण कैसा था ?
उत्तर: पूर्व के लोग परापकारी थे, परोपकार हेतु कष्ट सहते थे।
प्रश्न (ख)-गोपियों के अनुसार राजधर्म क्या है जिसका श्रीकृष्ण निर्वाह नहीं कर रहे हैं ?
उत्तर: गोपियों के अनुसार प्रजा को न सताया जाना राजधर्म है जिसका पालन भी कृष्ण नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे योग-संदेश द्वारा त्रास दे रहे हैं।
प्रश्न (ग)-गोपियाँ श्रीकृष्ण द्वारा योग-संदेश भेजे जाने को उनकी राजनीति बताते हुए क्या तर्क प्रस्तुत करती हैं ? बताइए।
उत्तर: श्रीकृष्ण पहले ही चतुर थे, अब योग-संदेश भेजा, मन में फेर हो गया है, अनीति कर रहे हैं तो क्यों? वे तो अनीति से बचाने वाले हैं आदि।
अथवा
प्रश्न (क)-राजधर्म में क्या बताया गया है?
उत्तर: प्रजा को न सताना ही राजा का धर्म बताया गया। राजा प्रजा के साथ अन्याय न करे।
प्रश्न (ख)-‘इक अति चतुर हेतु पहिलैं ही अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए’ में कौन-सा व्यंग्य निहित है?
उत्तर: इसमें श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का स्नेहपुष्ट व्यंग्य है कि कृष्ण तो पहले ही चतुर थे अब उन्होंने राजनीति भी सीख ली है। कृष्ण ने उद्धव के द्वारा गोपियों को योग-साधना का संदेश भिजवाकर इसका प्रमाण दे दिया है।
प्रश्न (ग)-गोपियाँ उद्धव को क्या ताना मार रही हैं?
उत्तर: गोपियाँ उद्धव को नहीं अपितु उसके बहाने से श्रीकृष्ण को ताना मार रही हैं कि श्रीकृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है अर्थात् अब वे गोपियों के प्रति भी राजनीति का प्रयोग करने लगे हैं।
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