इंद्रप्रस्थ में राज्य करते समय युधिष्ठिर के भाइयों और साथियों की इच्छा राजसूय यज्ञ करके सम्राट पद प्राप्त करने की हुई। उन्होंने इस बारे में सलाह करने के लिए श्रीकृष्ण को सन्देश भेजा| श्रीकृष्ण भी द्वारिका से चलकर इंद्रप्रस्थ पहुँचे श्रीकृष्ण ने कहा कि मगध देश के राजा जरासंध के रहते हुए आप सम्राट पद नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि जरासंध का लोहा सभी मानते हैं और शिशुपाल जैसे शक्तिशाली राजा भी उसकी अधीनता स्वीकार कर चुके हैं।
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि मगध देश का राजा जरासंध सब राजाओं को जीत चुका है। उसके कारण मुझे भी मथुरा छोड़कर द्वारका जाना पड़ा है। जरासंध बिना युद्ध के आपको सम्राट नहीं मानेगा। अतः जब तक जरासंध जीवित है, आप राजसूय यज्ञ नहीं कर पाएँगें। कंस जरासंध का दामाद है। उधर जरासंध की कारागार में अनेक राजे-महाराजे कैद हैं। इसलिए पहले जरासंध को मारकर बंदी राजाओं को छुड़ाना होगा।
श्रीकृष्ण द्वारा इन बातों को सुनकर युधिष्ठिर सम्राट बनने का विचार छोड़ने की बात करने लगे। तब भीम ने युधिष्ठिर को समझाया कि वह, अर्जुन और श्रीकृष्ण मिलकर जरासंध को आसानी से हरा देंगे। आप चिंता ना करें| श्रीकृष्ण भीम और अर्जुन को लेकर जरासंध की जेल में बंद निर्दोष राजाओं को छुड़ाने के लिए तैयार हो गए। युधिष्ठिर को यह बात सही नहीं लगी| उनके अनुसार ऐसा कोई भी कार्य करना ठीक नहीं था जिसमें प्राणों की समस्या हो| अर्जुन उन्हें समझाते हैं| जरासंध से युद्ध करने का निश्चय हो जाता है। वे अपनी योजना बनाते हैं।
श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन वल्कल पहनकर तथा हाथ में कुशा लेकर व्रती लोगों का-सा वेश बना कर जरासंध की राजधानी में पहुँचते हैं| जरासंध उनका आदर-सत्कार करता है| कोई भी ब्राह्मण अतिथि जरासंध के यहाँ आता, तो उनकी इच्छा तथा सुविधा के अनुसार बातें करना व उनका सत्कार करना जरासंध का नियम था। इसीलिए आधी रात के बाद जरासंध अतिथियों से मिलने गया, लेकिन अतिथियों के रंग-ढंग देखकर मगध नरेश के मन में कुछ संदेह हुआ। पूछने पर तीनों ने सही हाल बताकर उससे द्वंद्व युद्ध करने की इच्छा व्यक्त की। भीम और जरासंध में कुश्ती प्रारंभ हो गई। उनकी यह कुश्ती लगातार तेरह दिन-रात तक चलती रही। चौदहवें दिन जरासंध थककर थोड़ी देर रुका तो श्रीकृष्ण का संकेत पाकर भीम ने जरासंघ को उठाकर चारों ओर घुमाया तथा ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया और जरासंध मर गया। उन तीनों ने जरासंध के बंदीगृह में बंद निर्दोष राजाओं को मुक्त कर दिया तथा उसके पुत्र सहदेव को मगध की राजगद्दी पर बैठा दिया।
जरासंध के वध के बाद पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया। समस्त भारत के राजा आए हुए थे। अग्र पूजा के लिए युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह को सलाह पर श्रीकृष्ण की पूजा की। यह काम चेदि नरेश शिशुपाल को अच्छा नहीं लगा। उसने कृष्ण को बुरा-भला कहा और अन्य राजाओं के साथ सभा से निकल गया| युधिष्ठिर नाराज हुए राजाओं के पीछे दौड़े और उन्हें समझाने लगे। युधिष्ठिर के बहुत समझाने पर भी शिशुपाल नहीं माना। उसका हठ और घमण्ड बढ़ता गया। अंत में शिशुपाल और श्रीकृष्ण में युद्ध छिड़ गया, जिसमें शिशुपाल मारा गया। राजसूय यज्ञ पूरा हुआ। युधिष्ठिर को राजाधिराज की पदवी प्राप्त हुई।
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