पांडवों के वनवास की बारह वर्ष की अवधि समाप्त होने को थी। एक निर्धन ब्राह्मण की सहायता करते हुए पाँचों भाई जंगल में दूर निकल आए। वे थक गए थे| युधिष्ठिर ने नकुल से पेड़ पर चढ़कर कोई नदी या जलाशय देखने को कहा। नकुल ने देखकर बताया कि कुछ दूरी पर ऐसे पौधे दिखाई दे रहे हैं जो पानी के समीप ही उगते हैं।उन्होंने नकुल को पास के जलाशय से पानी लाने के लिए कहा। नकुल पानी लाने गया।
जलाशय से पानी भरने से पहले नकुल ने जैसे ही अंजुलि भर कर पानी पीना चाहा कि एक आवाज़ आई कि यह जलाशय मेरे अधीन है। मेरे प्रश्नों के उत्तर दो, फिर पानी पियो। पर उसने कोई उत्तर नहीं दिया और पानी पीकर वह किनारे पर गिर गया। बहुत देर तक जब नकुल पानी लेकर नहीं आया तो युधिष्ठिर ने सहदेव को भेजा।
बहुत देर तक जब नकुल पानी लेकर नहीं आया तो युधिष्ठिर ने सहदेव को भेजा। सहदेव ने जलाशय के निकट जमीन पर पड़े नकुल को देखा परन्तु प्यास ज्यादा थी इसलिए वह भी पानी पीने उतर गया। पहले जैसी वाणी उसे भी सुनाई दी। उसने भी ध्यान नहीं दिया| पानी पी लिया और नकुल के पास गिर पड़ा।
जब सहदेव भी बहुत देर तक नहीं आया तो युधिष्ठिर ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन ने भाइयों को सरोवर के किनारे मृत पड़े देखा तो चौंक गया। तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी कि मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना पानी लोगे तो तुम्हारा भी इन जैसा हाल होगा। अर्जुन ने क्रोध में भर कर उधर बाण छोड़े जिधर से आवाज़ आ रही थी पर बाणों का कोई प्रभाव नहीं हुआ। अर्जुन ने सोचा पहले पानी पी लूँ फिर लडूंगा। पानी पीने के बाद अर्जुन भी गिर पड़ा|
युधिष्ठिर परेशान हो गए| उन्होंने इस बार भीम को जाकर पता लगाने के लिए कहा। भीम ने वहाँ तीनों भाइयों को मरा देखकर इसे किसी यक्ष की करतूत समझा। उसने सोचा पानी पीकर वह यक्ष का सामना करेगा| उसने आवाज़ को नज़रअंदाज़ कर दिया| पानी पीकर वह भी गिर पड़ा| चारों भाइयों के वापस न आने पर युधिष्ठिर घबराने लगे| वह स्वयं जलाशय की ओर चल पड़े।
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