Table of contents |
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सारांश |
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सार |
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भावार्थ |
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कठिन शब्दों के अर्थ |
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इस अध्याय में रहीम के पाँच प्रसिद्ध दोहे दिए गए हैं, जिनमें जीवन की सच्चाइयों को सरल और गूढ़ तरीके से प्रस्तुत किया गया है। हर दोहे में एक महत्वपूर्ण सीख छिपी हुई है, जो मानवीय मूल्यों को उजागर करती है। रहीम ने अपने दोहों में हमें सहनशीलता, विनम्रता, मितव्ययिता, मित्रता, और संयम का महत्व समझाया है।
रहीम के दोहे एक साधारण भाषा में गहरे अर्थों को प्रस्तुत करते हैं। रहीम का काव्य हमें सिखाता है कि जीवन में मित्रता, सहनशीलता, मितव्ययिता, और विनम्रता जैसे गुण आवश्यक हैं। उनके दोहों से हम सीखते हैं कि कठिनाइयों का सामना धैर्य और समझदारी से करना चाहिए। रहीम की रचनाएँ आज भी जीवन के हर पहलू को समझने में सहायक होती हैं और यह दिखाती हैं कि कैसे सही आचरण और सोच से हम एक संतुलित और सुखद जीवन जी सकते हैं।
"कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत "
भावार्थ: उपर्युक्त दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि हमारे सगे-संबंधी तो किसी संपत्ति की तरह होते हैं, जो बहुत सारे रीति-रिवाजों के बाद बनते हैं। परंतु जो व्यक्ति मुसीबत में आपकी सहायता कर, आपके काम आए, वही आपका सच्चा मित्र होता है।
"जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह "
भावार्थ: उपर्युक्त दोहे में रहीमदास ने सच्चे प्रेम के बारे में बताया है। उनके अनुसार, जब नदी में मछली पकड़ने के लिए जाल डालकर बाहर निकाला जाता है, तो जल तो उसी समय बाहर निकल जाता है। क्योंकि उसे मछली से कोई प्रेम नहीं होता। मगर, मछली पानी के प्रेम को भूल नहीं पाती है और उसी के वियोग में प्राण त्याग देती है।
"तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान "
भावार्थ: उपर्युक्त दोहे रहीमदास कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते और नदी-तालाब अपना पानी स्वयं नहीं पीते। ठीक उसी प्रकार, सज्जन और अच्छे व्यक्ति अपने संचित धन का उपयोग केवल अपने लिए नहीं करते, वो उस धन से दूसरों का भला करते हैं।
"थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात "
भावार्थ: उपर्युक्त दोहे में रहीम दास जी ने कहते हैं कि जिस प्रकार बारिश और सर्दी के बीच के समय में बादल केवल गरजते हैं, बरसते नहीं हैं। उसी प्रकार, कंगाल होने के बाद अमीर व्यक्ति अपने पिछले समय की बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता है।
"धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह।
जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह "
भावार्थ: उपर्युक्त दोहे में कवि रहीम ने मनुष्य के शरीर की सहनशीलता के बारे में बताया है। वो कहते हैं कि मनुष्य के शरीर की सहनशक्ति बिल्कुल इस धरती के समान ही है। जिस तरह धरती सर्दी, गर्मी, बरसात आदि सभी मौसम झेल लेती है, ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख-दुख रूपी हर मौसम को सहन कर लेता है।
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1. रहीम के दोहे का क्या महत्व है ? | ![]() |
2. क्या रहीम के दोहे बच्चों के लिए समझने में आसान हैं ? | ![]() |
3. रहीम के दोहे किस प्रकार के विषयों पर आधारित होते हैं ? | ![]() |
4. क्या रहीम के दोहे में कोई कठिन शब्द हैं ? | ![]() |
5. क्या रहीम के दोहे का पाठ करने से कोई विशेष लाभ होता है ? | ![]() |