एक दिन युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा कि युद्ध की संभावना को मिटा देने के लिए आज से तेरह वर्ष के लिए अपने भाइयों या किसी बंधु को भला-बुरा न कहूँगा। कौरवों की बात न टालकर उनकी इच्छानुसार कार्य करूँगा। भाइयों ने भी युधिष्ठिर की इस इच्छा पर सहमति व्यक्त की।
दुर्योधन राजसूय यज्ञ में पांडवों के ठाट-बाट की याद से बेहद उदास व चिंतित रहता था। एक दिन शकुनि ने उसके उदासी का कारण पूछा| तब दुर्योधन ने अपने शोक का कारण बताते हुए शकुनि से कहा कि अपने चारों भाइयों समेत युधिष्ठिर ठाट-बाट से राज्य कर रहा है। यह सब इन आँखों से देखने पर मैं कैसे शोक न करूँ? मेरा तो अब जीना ही व्यर्थ है। शकुनि ने उसे समझाया कि उसे पांडवों के सौभाग्य पर जलना नहीं चाहिए क्योंकि उसे भी कोई कमी नहीं है। उसके साथ भीष्म, कृपाचार्य, द्रोण, अश्वत्थामा, जयद्रथ, सोमदत्त और मुझ जैसे वीर हैं, जिनकी सहायता से वह संसार पर भी विजय प्राप्त कर सकता है।
यह सुनकर दुर्योधन इंद्रप्रस्थ पर चढ़ाई करने की बात कहता है। इस पर शकुनि ने कहा मेरे पास एक ऐसा उपाय है कि बिना लड़ाई के ही युधिष्ठिर पर विजय प्राप्त की जा सकती है। शकुनि ने उसे बताया कि युधिष्ठिर को चौसर के खेल का बड़ा शौक है। पर उसे खेलना नहीं आता। हम उसे चौसर खेलने के लिए न्यौता दें, तो युधिष्ठिर अवश्य मान जाएगा। तुम तो जानते ही हो कि मैं चौसर का मँजा हुआ खिलाड़ी हूँ। तुम्हारी ओर से मैं खेलूँगा और युधिष्ठिर को हराकर उसका सारा राज्य और ऐश्वर्य, बिना युद्ध के आसानी से छीनकर तुम्हारे हवाले कर दूंगा।
शकुनि धृतराष्ट्र के सामने दुर्योधन की चिंता के कारण हुई दयनीय दशा का वर्णन करता है। धृतराष्ट्र चिंतित होकर इस का समाधान पूछते हैं। शकुनि धृतराष्ट्र को चौसर खेलने के लिए पांडवों को बुलाने के लिए कहता है। धृतराष्ट्र जुए के खेल को वैर-विरोध की जड़ मान कर इसे न खेलने की राय देते हैं। उन्होंने विदुर से भी सलाह ली।
विदुर ने भी कहा इससे सारे वंश का इससे नाश हो जाएगा। परन्तु पुत्र-मोह से मजबूर धृतराष्ट्र को विदुर को युधिष्ठिर को चौसर का निमंत्रण देने के लिए इंद्रप्रस्थ भेजना पड़ता है।
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