बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: ननिहाल जाने पर लेखक को क्या सुख मिलता था ?
(क) खूब खाने को मिलता था
(ख) नानी का प्यार भी खूब मिलता था
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 2: आज का बचपन पुराने समय के बचपन से कैसे भिन्न है ?
(क) बच्चो के पास खुला समय नहीं है
(ख) बच्चे भोले होते थे
(ग) बच्चे माता पिता का कहना मानते थे
(घ) बच्चो के पास खुला समय नहीं है
उत्तर: (क)
प्रश्न 3: लेखक ने अपना बचपन कैसे व्यतीत किया ?
(क) अपने साथियों के साथ आनंद के साथ
(ख) बहुत रो धो कर
(ग) कोई नहीं
(घ) दोनों
उत्तर: (क)
प्रश्न 4: लेखक गर्मियों की छुट्टियां कैसे व्यतीत करता था ?
(क) नानी के घर जाकर
(ख) मौज मस्ती करते हुए
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 5: लेखक को गर्मी की छुट्टियों में क्या बात दुखी करती थी ?
(क) छुट्टियों में मिला काम
(ख) दोस्तों संग खेलना
(ग) नानी का घर छोड़ के जाना
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (क)
प्रश्न 6: उन दिनों बच्चों का अपने अभिभावकों के साथ कैसा संबंध था ?
(क) अभिभावक बच्चो के काम में रुचि नहीं रखते थे
(ख) बच्चो को अपना अधिकार समझते थे
(ग) शाबाशी भी नहीं देते थे
(घ) सभी
उत्तर: (घ)
प्रश्न 7: बच्चों के लिए किसकी शाबाशी ज्यादा मायने रखती थी?
(क) अध्यापकों की
(ख) पी. टी सर की
(ग) अभिभावकों की
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 8: फ़ौज में भर्ती करने के लिए अफसरों के साथ नौटंकी वाले क्यों आते थे ?
(क) नौटंकी करने
(ख) फ़ौज के सुख, आराम और बहादुरी को दिखने के लिए
(ग) कोई नहीं
(घ) बहादुरी को दिखने के लिए
उत्तर: B
प्रश्न 9: लेखक और उनके साथियों का नेता कौन था ?
(क) ओमा
(ख) हेडमास्टर
(ग) पी. टी सर
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (क)
प्रश्न 10: स्कूल की पिटाई का डर भुलाने के लिए लेखक किसके बारे में सोचा करता था ?
(क) पिता जी के बारे में
(ख) नानी के घर के बारे में
(ग) ओमा और बहादुर लड़को के बारे में जो स्कूल की पिटाई को स्कूल का काम करने से ज्यादा अच्छा मानते थे
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 11: लेखक के साथ खेलने वाले बच्चों की हालत कैसी होती थी?
(क) बच्चों के पैर नंगे होते थे
(ख) उन्होंने फटी-मैली कच्छी पहनी होती थी।
(ग) उनके कुर्ते बिना बटनों के होते थे।
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (घ)
प्रश्न 12: ननिहाल जाने पर लेखक को क्या सुख मिलता था?
(क) वहाँ उसे नानी खूब दूध-दही, मक्खन खिलाती थी
(ख) वह उसे बहुत प्यार करती थी
(ग) वहाँ वह तालाब में खूब नहाता और बाद में नानी से जो जी में आए मांग कर खाता था
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (घ)
प्रश्न 13: बच्चे पीटी सर से क्यों डरते थे?
(क) पीटी सर का स्वभाव बहुत सख्त था
(ख) उन्होंने भारी जुते पहने होते थे
(ग) उनके मुँह पर फोड़े-फुंसियाँ थी
(घ) उनका चहरा भयानक था
उत्तर: (क)
प्रश्न 14: ओमा के सिर की टक्कर का नाम लेखक और उसके साथियों ने क्या रखा हुआ था?
(क) रेल-डिब्बा
(ख) रेल-बम्बा
(ग) रेल-इंजन
(घ) रेल-पटरी
उत्तर: (ख)
प्रश्न 15: जो बच्चे पढाई में रूचि नहीं रखते थे, वे बस्ता कहाँ फेंक आते थे?
(क) नदी में
(ख) खेत में
(ग) तालाब में
(घ) क्यारियों में
उत्तर: (ग)
प्रश्न 16: लेखक हर साल गर्मियों की छुट्टियों में कहाँ जाता था?
(क) मामा के घर
(ख) चाचा के घर
(ग) दादी के घर
(घ) नानी के घर
उत्तर: (घ)
प्रश्न 17: मास्टर प्रीतमचंद ने अपने घर पर क्या पाल रखा था?
(क) तोते
(ख) बकरियाँ
(ग) कुत्ते
(घ) खरगोश
उत्तर: (क)
प्रश्न 18: नानी लेखक के किस ढंग से प्रसन्न होती थी?
(क) बोलने के ढंग
(ख) कम खाने के कारण
(ग) बोलने के ढंग और कम खाने के कारण
(घ) आदर - सम्मान करने के कारण
उत्तर: (ग)
प्रश्न 19: लेखक ने मनोविज्ञान का विषय कब पढ़ा?
(क) अध्यापक की ट्रेनिंग में
(ख) दसवीं कक्षा में
(ग) बारवीं कक्षा में
(घ) बी. ए. में
उत्तर: (क)
प्रश्न 20: ओमा कौन था?
(क) लेखक का मामा
(ख) लेखक का चाचा
(ग) लेखक का सहपाठी
(घ) लेखक का अध्यापक
उत्तर: (ग)
Extra Questions: 25 to 30 Words
प्रश्न 1: लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है? और क्यों?
उत्तर: लेखक ने सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गरमी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जाएगा। दस दिन छुट्टियाँ और बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते पर काम न करते। अंत में मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।
प्रश्न 2: मास्टर प्रीतम चंद और हेडमास्टर शर्मा जी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे वे बहुत ही सख्त अध्यापक थे। सभी लड़के उनसे बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर प्रार्थना के समय इधर-उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और उन पर लात-घूसों की बरसात कर देते।
परन्तु हेडमास्टर शर्मा जी उनके बिलकुल उलट स्वभाव के थे। वह पाँचवीं और आठवीं कक्षा को अंग्रेजी स्वयं पढ़ाया करते थे। लेखक और लेखक के साथियों में से किसी को भी याद नहीं था कि पाँचवी कक्षा में कभी भी उन्होंने हेडमास्टर शर्मा जी को किसी गलती के कारण किसी को मारते या डाँटते देखा या सूना हो।
प्रश्न 3: पीटी मास्टर प्रीतमचंद में ऐसी क्या बात थी जिसको देखकर बच्चे डरते थे?
उत्तर: पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी किसी ने मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों की भयभीत करने वाली होती थी। उनके जूतों की ऊँचीएड़ियों के निचे भी उसी तरह की खुरियाँ लगी रहतीं थी, जैसे ताँगे के घोड़े के पैरों में लगी रहती है।यदि मास्टर प्रीतमचंद सख्त जगह पर भी चलते तो खुरियों और किलों के निशान वहाँ भी दिखाई देते थे। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता था और वे उनसे डरते थे।
प्रश्न 4: फ़ारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दंड दिया जिसे लेखक और उनके साथी आजीवन नहीं भूल पाए?
उत्तर: मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाते थे। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठिन होने के कारण कोई भी लड़का न सुना सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुरगा बना दिया। उनके द्वारा लड़कों को मुरगा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी था। जब मास्टर जी ने सभी विद्यार्थियों को अपने-अपने कान पकड़ने और अपनी पीठ ऊँची रखने के लिए कहा तो पीठ ऊँची करके कान पकड़ने से, तीन-चार मिनट में ही टाँगों में जलन होने लगती थी। लेखक के जैसे कमज़ोर बच्चे तो टाँगों के थकने से कान पकडे हुए ही गिर पड़ते थे। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दंड लेखक और उनके साथी आजीवन नहीं भूल सके।
प्रश्न 5: जब हेडमास्टर ने प्रीतमचंद को बच्चों को शारीरिक दंड देते हुए देखा तो उन्होंने मास्टर प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?
उत्तर: हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि मास्टर प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं। यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को देखा था। उन्होंने सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। ऐसी स्वीकृति मिल जाने के बाद पीटी प्रीतमचंद को हमेशा के लिए स्कूल से निकाल दिया जाना था।
प्रश्न 6: मास्टर प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?
उत्तर: विद्यालय के लड़के पीटी मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पीटी मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नहीं करेंगे तब तक वह स्कूल में कदम नहीं रख सकते, फिर भी जब भी फ़ारसी की घंटी बजती तो बच्चों की छाती धक्-धक करती फटने को आती। परंतु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नौहरिया राम जी कमरे में फ़ारसी पढ़ाने न आ जाते, तब तक तो सभी बच्चों के चेहरे मुरझाए ही रहते थे। इस तरह उनका डर बच्चों के मन में जमकर बैठ चुका था।
Extra Questions: 60 से 70 शब्दों में
प्रश्न 1: लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक के घर में किसी को भी पढ़ाई में कोई रूचि नहीं थी। यदि नयी किताबें लानी पड़तीं (जो लेखक के समय में केवल एक-दो रूपये में आ जाया करतीं थी) तो शायद इसी बहाने लेखक की पढ़ाई तीसरी-चौथी कक्षा में ही छूट जाती। लेखक लगभग सात साल स्कूल में रहा तो उसका एक कारण लेखक को पुरानी किताबें मिल जाना भी था। कापियों, पैंसिलों, होल्डर या स्याही-दवात में भी मुश्किल से साल भर में एक-दो रूपये ही खर्च हुआ करते थे। परन्तु उस जमाने में एक रूपया भी बहुत बड़ी सम्पति या दौलत हुआ करती थी।
लेखक के स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी एक लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे। वे बहुत धनी लोग थे। उनका लड़का लेखक से एक-दो साल बड़ा होने के कारण लेखक से एक कक्षा आगे पढ़ता था। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरम्भ होता था तो शर्मा जी उस लड़के की एक साल पुरानी पुस्तकें लेखक के लिए ले आते थे। इससे लेखक ने सातवीं तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह उसकी पढ़ाई में स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।
प्रश्न 2: लेखक और उनके साथी पीटी मास्टर के किस रूप को अद्भुत मानते थे?
उत्तर: अपने निष्कासन के बाद कई सप्ताह तक पीटी मास्टर जब स्कूल नहीं आए तब लेखक और उसके साथियों को पता चला कि बाज़ार में एक दूकान के ऊपर उन्होंने जो छोटी-छोटी खिड़कियों वाला चौबारा किराए पर ले रखा था, पीटी मास्टर वहीं आराम से रह रहे थे। उन्हें निष्कासित होने की थोड़ी सी भी चिंता नहीं थी। जिस तरह वह पहले आराम से पिंजरे में रखे दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते थे, वे आज भी उसी तरह आराम से पिंजरे में रखे उन दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते और उनसे बातें करते रहते हैं। लेखक और उसके साथियों के लिए यह चमत्कार ही था कि जो प्रीतमचंद पट्टी या डंडे से मार-मारकर विद्यार्थियों की चमड़ी तक उधेड़ देते, वह अपने तोतों से मीठी-मीठी बातें कैसे कर लेते थे? उनका यह रूप देख कर लेखक स्वयं में सोच रहा था कि क्या तोतों को उनकी आग की तरह जलती, भूरी आँखों से डर नहीं लगता होगा? लेखक और उसके साथियों की समझ में ऐसी बातें तब नहीं आ पाती थीं, क्योंकि तब वे बहुत छोटे हुआ करते थे। वे तो बस पीटी मास्टर के इस रूप को एक तरह से अद्भुत ही मानते थे।
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: मास्टर प्रीतमचंद का विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए जो तरीका था, वह आज की शिक्षा-व्यवस्था के जीवन-मूल्यों के अनुसार उचित है या अनुचित? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मास्टर प्रीतमचंद बहुत सख्त शिक्षक थे, और वे अक्सर अपने छात्रों को अनुशासित करने के लिए शारीरिक दंड देने का तरीका अपनाते थे। जो आज की शिक्षा प्रणाली में उचित नहीं है। इससे बच्चों के मन में स्कूल के प्रति डर हो सकता है, और पुराने दिनों की तरह उनकी पढ़ाई में रुचि कम हो सकती है। आज की शिक्षा प्रणाली में, बच्चों को अनुशासन जैसा जीवन-मूल्य सिखाने के लिए मनोवैज्ञानिक युक्तियों को अपनाने की व्यवस्था है। शिक्षक आजकल छात्रों को प्यार और स्नेह के साथ अनुशासित करने की कोशिश करते हैं।
प्रश्न 2: पी०टी० साहब की चारित्रिक विशेषताओं और कमियों का उल्लेख अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: “सपनों के से दिन” पाठ में पी०टी० साहब बेहद सख्त शिक्षक के रूप में पाठकों के सामने आते हैं। वे अनुशासनप्रिय थे और चाहते थे कि विद्यालय का प्रत्येक विद्यार्थी अनुशासन में रहे। वे पक्षियों से बहुत प्रेम करते थे, उन्होंने दो तोते पाले हुए थे और दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते तथा उनसे मीठी मीठी बातें करते रहते थे। विद्यालय से निष्कासित होने पर भी उनके चेहरे पर जरा-सी भी चिंता नहीं दिखाई दी थी। इन सब विशेषताओं के अतिरिक्त उनके चरित्र में बच्चों के प्रति बेहद सख्ती की भावना रखने की कमी दिखाई देती है। स्कूल में वह छात्रों की जरा सी गलती के लिए फटकार लगा देते थे। तथा कई बार ठुड्डों और बेल्ट के बिल्ले से भी मारा करते थे।
प्रश्न 3: पी०टी० अध्यापक कैसे स्वभाव के व्यक्ति थे? विद्यालय के कार्यक्रमों में उनकी कैसी रुचि थी? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: पी.टी. साहब बहुत सख्त और अनुशासन प्रिय शिक्षक थे। स्कूल में वह छात्रों की जरा सी गलती के लिए फटकार लगा देते थे। स्कूल की प्रार्थना सभा में वह बच्चों को कतार में खड़ा करते थे और अगर कोई बच्चा शरारत करता तो उसकी चमड़ी उधेड़ देते थे। स्काउट परेड के आयोजन में वह अहम भूमिका निभाते थे। तथा अपने मार्गदर्शन में बच्चों से कुशलतापूर्वक परेड करवाते थे और परेड अच्छा करने पर बच्चों को “शाबाशी’” भी दे देते थे इसलिए बच्चों को उनकी यही “शाबाशी’ फ़ौज के तमगों-सी लगती थी और कुछ समय के लिए उनके मन में पी०टी० सर के लिए सम्मान का भाव जाग जाता था।
प्रश्न 4: कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?
उत्तर: कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती। यह बात लेखक के बचपन की एक घटना से सिद्ध होती है -लेखक के बचपन के ज्यादातर
साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब लेखक छोटा था तो उनकी बातों को बहुत कम ही समझ पाता था और उनके कुछ शब्दों को सुन कर तो लेखक को हँसी आ जाती थी। परन्तु जब सभी खेलना शुरू करते तो सभी एक-दूसरे की बातों को बहुत अच्छे से समझ लेते थे। उनका व्यवहार एक दूसरे के लिए एक जैसा ही रहता था।
प्रश्न 5: पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, वे लड़कों की पंक्तियों के पीछे खड़े-खड़े यह देखते रहते थे कि कौन सा लड़का पंक्ति में ठीक से नहीं खड़ा है। सभी लड़के उस ‘पीटी’ से बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर भी इधर-
उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता, तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और ‘खाल खींचने’ (कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना) के मुहावरे को सामने करके दिखा देते। यही कारण था कि जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता, तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों।
प्रश्न 6: नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
उत्तर: हर साल जब लेखक अगली कक्षा में प्रवेश करता तो उसे पुरानी पुस्तकें मिला करतीं थी। उसके स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी एक बहुत धनी लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरम्भ होता था तो शर्मा जी उस लड़के की एक साल पुरानी पुस्तकें लेखक के लिए ले आते थे।
उसे नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आने लगती थी कि उसका मन बहुत उदास होने लगता था। आगे की कक्षा की कुछ मुश्किल पढ़ाई और नए मास्टरों की मार-पीट का डर और अध्यापक की ये उम्मीद करना कि जैसे बड़ी कक्षा के साथ-साथ लेखक सर्वगुण सम्पन्न या हर क्षेत्र में आगे रहने वाला हो गया हो। यदि लेखक और उसके साथी उन अध्यापकों की आशाओं पर पूरे नहीं हो पाते तो कुछ अध्यापक तो हमेशा ही विद्यार्थियों की ‘चमड़ी उधेड़ देने को तैयार रहते’ थे।
प्रश्न 7: स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता है?
उत्तर: जब लेखक धोबी द्वारा धोई गई वर्दी और पालिश किए चमकते जूते और जुराबों को पहनकर स्काउटिंग की परेड करते तो लगता कि वे भी फौजी ही हैं। मास्टर प्रीतमसिंह जो लेखक के स्कूल के पीटी थे, वे लेखक और उसके साथियों को परेड करवाते और मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे।
फिर जब वे राइट टर्न या लेफ्ट टार्न या अबाऊट टर्न कहते तो सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है, अर्थात लेखक कहना चाहता है कि सभी विद्यार्थी अपने-आप को फौजी समझते थे।
प्रश्न 8: हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअतल कर दिया?
उत्तर: मास्टर प्रीतमचंद लेखक की चौथी कक्षा को फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। अभी मास्टर प्रीतमचंद को लेखक की कक्षा को पढ़ते हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ होगा कि प्रीतमचंद ने उन्हें एक शब्दरूप याद करने को कहा और आज्ञा दी कि कल इसी घंटी में केवल जुबान के द्वारा ही सुनेंगे। दूसरे दिन मास्टर प्रीतमचंद ने बारी-बारी सबको सुनाने के लिए कहा तो एक भी लड़का न सुना पाया।
मास्टर जी ने गुस्से में चिल्लाकर सभी विद्यार्थियों को कान पकड़कर पीठ ऊँची रखने को कहा। जब लेखक की कक्षा को सज़ा दी जा रही थी तो उसके कुछ समय पहले शर्मा जी स्कूल में नहीं थे। आते ही जो कुछ उन्होंने देखा वह सहन नहीं कर पाए। शायद यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। यही कारण था कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअतल कर दिया।
प्रश्न 9: लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
उत्तर: बचपन में लेखक को स्कूल जाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था परन्तु जब मास्टर प्रीतमसिंह मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे और सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है ।
स्काउटिंग करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों। यह शाबाशी लेखक को उसे दूसरे अध्यापकों से मिलने वाले ‘गुड्डों’ से भी ज्यादा अच्छा लगता था। यही कारण था कि बाद में लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।
प्रश्न 10: लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुटियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?
उत्तर: जैसे-जैसे लेखक की छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वह दिन गिनने शुरू कर देता था। हर दिन के ख़त्म होते-होते उसका डर भी बढ़ने लगता था। अध्यापकों ने जो काम छुट्टियों में करने के लिए दिया होता था, उसको कैसे करना है और एक दिन में कितना काम करना है यह सोचना शुरू कर देता। जब लेखक ऐसा सोचना शुरू करता तब तक छुट्टियों का सिर्फ एक ही महीना बचा होता।
एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते। फिर वह अपना डर भगाने के लिए सोचता कि दस क्या, पंद्रह सवाल भी आसानी से एक दिन में किए जा सकते हैं। जब ऐसा सोचने लगता तो ऐसा लगने लगता जैसे छुट्टियाँ कम होते-होते भाग रही हों। दिन बहुत छोटे लगने लगते थे। लेखक ओमा की तरह जो ठिगने और बलिष्ट कद का उदंड लड़का था उसी की तरह बनने की कोशिश करता क्योंकि वह छुट्टियों का काम करने के बजाय अध्यापकों की पिटाई अधिक ‘सस्ता सौदा’ समझता था। और काम न किया होने के कारण लेखक भी उसी की तरह ‘बहादुर’ बनने की कल्पना करने लगता।
प्रश्न 11: पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: लेखक ने कभी भी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनके जितना सख्त अध्यापक किसी ने पहले नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, माता के दानों से भरा चेहरा यानि चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों को भयभीत करने वाली होती थी।
उनके जूतों की ऊँची एड़ियों के निचे भी खुरियाँ लगी रहतीं थी। अगले हिस्से में, पंजों के निचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते थे। वे अनुशासन प्रिय थे यदि कोई विद्यार्थी उनकी बात नहीं मानता तो वे उसकी खाल खींचने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे बहुत स्वाभिमानी भी थे क्योंकि जब हेडमास्टर शर्मा ने उन्हें निलंबित कर के निकाला तो वे गिड़गिड़ाए नहीं, चुपचाप चले गए और पहले की ही तरह आराम से रह रहे थे।
प्रश्न 12: विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर: विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में जिन युक्तियों को अपनाया गया है उसमें मारना-पीटना और कठोर दंड देना शामिल हैं। इन कारणों की वजह से बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। परन्तु वर्तमान में इस तरह मारना-पीटना और कठोर दंड देना बिलकुल मना है। आजकल के अध्यापकों को सिखाया जाता है कि बच्चों की भावनाओं को समझा जाए,उसने यदि कोई गलत काम किया है तो यह देखा जाए कि उसने ऐसा क्यों किया है। उसे उसकी गलतियों के लिए दंड न देकर, गलती का एहसास करवाया जाए। तभी बच्चे स्कूल जाने से डरेंगे नहीं बल्कि ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाएँगे।
प्रश्न 13: प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए:
(क) खेल आपके लिए क्यों जरुरी है?
उत्तर: खेल जितना मनोरंजक होता है उससे कही अधिक सेहत के लिए आवश्यक होता है। कहा भी जाता है कि ‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है।’ बच्चों का तन जितना अधिक तंदुरुस्त होगा, उनका दिमाग उतना ही अधिक तेज़ होगा। खेल-खेल में बच्चों को नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी होता है जैसे- साथ-साथ खेल कर भाईचारे की भावना का विकास होता है, समूह में खेलने से सामाजिक भावना बढ़ती है और साथ-ही-साथ प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास होता है।
(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिनसे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
उत्तर: जितना खेल जीवन में जरुरी है, उतने ही जरुरी जीवन में बहुत से कार्य होते हैं जैसे- पढाई आदि। यदि खेल स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, तो पढाई भी आपके जीवन में कामयाबी के लिए बहुत आवश्यक है। यदि हम अपने खेल के साथ-साथ अपने जीवन के अन्य कार्यों को भी उसी लगन के साथ पूरा करते जाएँ जिस लगन के साथ हम अपने खेल को खेलते हैं तो अभिभावकों को कभी भी खेल से कोई आपत्ति नहीं होगी।
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