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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh - II - Bhimrao Ramji Ambedkar

पाठ के साथ

प्रश्न 1: जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
उत्तरजाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्न तर्क हैं
विभाजन अस्वाभाविक है।

  • श्रम-विभाजन मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।
  • व्यक्ति की क्षमताओं की उपेक्षा की जाती है।
  • व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। उसे पेशा चुनने की आज़ादी नहीं होती।
  • व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं देती।
  • संकट में भी व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं होती जिससे कभी-कभी भूखों मरने की नौबत भी आ जाती है।

प्रश्न 2: जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है?क्या यह स्थिति आज भी है?
उत्तरजाति प्रथा पेशे का दोष पूर्ण पूर्व निर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे से बाँध देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय: आती रहती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो उसके लिए भूखों मरने के अलावा कोई चारा नहीं रहता है। भारतीय समाज पेशा बदलने की अनुमति नहीं देता भले ही वह अपने पैतृक पेशे की अपेक्षा अन्य पेशे में पारंगत हो। इस परकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक मुख्य और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
आज भारत की स्थिति बदल रही है। सरकारी कानून, सामाजिक सुधार व विश्व स्तर पर होने वाले परिवर्तनों के कारण जाति प्रथा के बंधन समाप्त तो नहीं हुए हैं परंतु कुछ लचीले बन गए हैं। आज लोग अपनी जाति से अलग पेशों को भी अपना रहे हैं।

प्रश्न 3: लेखक के मत से दासता‘ की व्यापक परिभाषा क्या है?
उत्तरलेखक के अनुसार दासता केवल कानूनी पराधीनता नहीं है। बल्कि इसकी व्यापक परिभाषा तो व्यक्ति को अपना पेशा चुनने की आज़ादी न देना है। सामाजिक दासता की स्थिति में कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा तय किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने को विवश होना पड़ता है। अपनी इच्छा के विरुद्ध पैतृक पेशे अपनाने पड़ते हैं।

प्रश्न 4: शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर समता‘ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैंइसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
उत्तरशारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने के पीछे तर्क देते हैं कि समाज के सभी सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करने के लिए, सबको अपनी क्षमता को विकसित करने तथा रुचि के अनुरूप व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत लाने की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए।

प्रश्न 5: सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा हैजिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तरहम लेखक की बात से सहमत है कि उन्होंने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है।
किसी भी समाज में भावनात्मक समत्व तभी आ सकता है जब सभी को समान भौतिक सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। समाज में जाति-प्रथा के उन्मूलन के लिए समता आवश्यक तत्व है। मनुष्यों के प्रयासों का मूल्यांकन भी तभी हो सकता है जब सभी को अवसर समान मिले उदहारण गाँव की पाठशाला और यहाँ कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों सही का मूल्यांकन हम कैसे कर सकते हैं अत:पहले जातिवाद का उन्मूलन हो सभी को समान भौतिक सुविधाएँ मिलें और उसके पश्चात जो भी श्रेष्ठ हो वही उत्तम व्यवहार के हकदार हो।

प्रश्न 6: आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक भ्रातृता‘ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहींआप इसभ्रातृता‘ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं?
यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/समझेंगी?
उत्तरआदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों का स्पष्ट रूप से कोई उल्लेख तो नहीं किया है परंतु स्त्री-पुरुष दोनों ही किसी भी समाज के आवश्यक तत्व माने जाते हैं अत:स्त्रियों को सम्मिलित करने या न करने की बात व्यर्थ और अनुचित है।
‘भ्रातृता’ शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है भाईचारा। यह बात सर्व विदित है कि भाई चारे से ही संबंध बनते हैं परंतु ‘भ्रातृता’ शब्द प्रचलन में न होने के कारण मैं भाईचारा शब्द का उपयोग करना ही उचित समझूँगा।

पाठ के आस - पास

प्रश्न 1: आंबेडकर ने जाति प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है- उस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी 'गलता लोहा' पर पुनर्विचार कीजिए।
उत्तर:
 'गलता लोहा' कहानी बहुत से मुद्दों पर प्रकाश डालती है। इसमें दो बालक हैं। एक का नाम धनराम है, जो लुहार का बेटा है। दूसरा लड़का मोहन है, जो ब्राह्मण का बेटा है। यहाँ मास्टर धनराम को शिक्षा ग्रहण करने के लायक नहीं मानता है। वह यह मान लेता है कि लुहार का बेटा होने के कारण शिक्षा इसके लिए नहीं बनी है और वह धनराम के मन में भी यह बात बिठा देते हैं। उसे अपनी लुहार जाति होने के कारण शिक्षा के स्थान पर लुहार के कार्य को ही अपनाना पड़ता है। यही सख्त व्यवहार धनराम को शिक्षित नहीं बनने देता है। आंबेडकर जी ने यही बात कही है। यदि धनराम पर ध्यान दिया जाता, तो वह अपने पैतृक व्यवसाय से बाहर आ सकता था। इस तरह वह दूसरा व्यवसाय कर सकता था। मोहन परिस्थिति वश लुहार का कार्य करने के लिए विवश होता है।

प्रश्न 2: कार्य कुशलता पर जाति प्रथा का प्रभाव विषय पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।
उत्तर: 
कार्य कुशलता पर जाति प्रथा का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि एक चित्रकार का बेटा अच्छा चित्रकार हो या एक व्यापारी का बेटा अच्छा व्यापारी हो। हर व्यक्ति की अपनी जन्मजात योग्यता तथा क्षमता होती हैं। एक चित्रकार का बेटा अच्छा व्यापारी बन सकता है और एक व्यवसायी का बेटा अच्छा चित्रकार। अतः हमें यह अधिकार होना चाहिए कि व्यक्ति को उसकी कार्य कुशलता के आधार पर पेशे चुनने का अधिकार हो। न कि जाति प्रथा के आधार पर किसी मनुष्य का पेशा निर्धारित किया जाए। जाति प्रथा ने लंबे समय तक लोगों का शोषण ही नहीं किया है बल्कि उनकी योग्यताओं तथा क्षमताओं का भी गला घोंटा है। यह उचित नहीं है।

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FAQs on NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh - II - Bhimrao Ramji Ambedkar

1. Who was Bhimrao Ramji Ambedkar?
Ans. Bhimrao Ramji Ambedkar, also known as Babasaheb Ambedkar, was a prominent Indian jurist, economist, and social reformer who played a crucial role in the drafting of the Indian Constitution. He was also a champion of social justice and the rights of marginalized communities.
2. What were some of the major contributions of Bhimrao Ramji Ambedkar?
Ans. Bhimrao Ramji Ambedkar made significant contributions to the upliftment of Dalits and other marginalized communities in India. He was instrumental in the abolition of untouchability and the promotion of equal rights for all individuals. Additionally, he played a key role in the drafting of the Indian Constitution and fought for the rights of the oppressed.
3. How did Bhimrao Ramji Ambedkar's childhood and early life shape his beliefs and actions?
Ans. Bhimrao Ramji Ambedkar faced discrimination and social exclusion from a young age due to his caste background. These early experiences shaped his beliefs and actions, leading him to become a staunch advocate for social equality and justice. His personal struggles inspired him to fight against caste-based discrimination and work towards creating a more inclusive society.
4. What is the significance of Bhimrao Ramji Ambedkar's role in the Indian independence movement?
Ans. Bhimrao Ramji Ambedkar played a significant role in the Indian independence movement by advocating for the rights of marginalized communities and working towards social reform. His efforts helped raise awareness about the injustices faced by Dalits and other oppressed groups, ultimately leading to the inclusion of important social justice provisions in the Indian Constitution.
5. How has Bhimrao Ramji Ambedkar's legacy influenced modern-day India?
Ans. Bhimrao Ramji Ambedkar's legacy continues to have a profound impact on modern-day India. His teachings on equality, social justice, and human rights have inspired movements for social reform and empowerment across the country. His work in drafting the Indian Constitution has also left a lasting imprint on the legal and political landscape of India.
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