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Long Questions Answers: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. बादशाह सुलेमान ने चींटियों से क्या कहा? उससे उनके स्वभाव की किस विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर: 
बादशाह सुलेमान बहुत ही दयालु था। वह मानवों की ही नहीं वन्य जीव-जन्तुओं की भाषा भी जानता था। एक बार उसका लश्कर कहीं जा रहा था। उसके घोड़ों की टापों को सुनकर चींटियों का दल भयभीत हो उठा। तब सुलेमान ने चींटियों को कहा कि वे भयभीत न हों। उसका जन्म सभी की रक्षा और मुहब्बत के लिए हुआ है। इस बात और व्यवहार से हमें उसकी उदारता का पता चलता है।

प्रश्न 2. नूह का असली नाम क्या था? वे दुखी होकर क्यों रोते थे?
अथवा
नूह कौन थे? उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता क्या थी?
अथवा
पैगम्बर नूह दुःखी हो मुद्दत तक क्यों रोते रहे? इससे उनके चरित्र की किस विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर:
नूह का वास्तविक नाम लशकर था। वे नूह के लकव (पदाधिकारी) थे। इस्लाम धर्म में आस्था रखने के कारण वे कुत्ते को बहुत ही गंदा जीव मानते थे। एक दिन उन्होंने एक कुत्ते को दुत्कार दिया। तब कुत्ते ने उन्हें कहा:“न तो मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हूँ और न तुम अपनी पसंद से इन्सान हो”। यह बात उन्हें चुभ गई। उन्हें लगा कि सभी जीव खुदा के हैं। अतः उन्होंने कुत्ते को दुत्कार कर पाप किया है। इसलिए वे जीवन भर रोते रहे। इससे पता चलता है कि ‘नूह एक अत्यन्त करुणामय व प्रायश्चित करने वाले इन्सान थे।

प्रश्न 3. ‘मिट्टी से मट्टी (मिट्टी) मिले,
खो के सभी निशान,
किसमें कितना कौन है,
कैसे हो पहचान है ?’
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पद्यांश का आशय है- सब प्राणियों का निर्माण एक ही मिट्टी से हुआ है। उस मिट्टी में जाने कौन-कौन-सी मिट्टी मिली हुई है। इसका बोध किसी को नहीं है। मृत्यु के बाद सभी इसी मिट्टी में मिल जाते हैं और कोई भिन्नता नहीं रह जाती। अतः मनुष्य में कितनी मनुष्यता है और कितनी पशुता, यह किसी को नहीं पता। इसी प्रकार पशु में कितनी पशुता है और कितनी मनुष्यता यह भी किसी को ज्ञात नहीं। आशय यह है कि मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को किसी पशु से बेहतर न माने अर्थात् स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ न समझे।

प्रश्न 4. लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?
उत्तर:
लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली इसलिए लगवानी पड़ी, क्योंकि उसके फ्लैट के एक मचान में दो कबूतरों ने घोंसला बना लिया था, वे दिन में कई बार आते-जाते और चीजों को गिराकर तोड़ देते। कभी लेखक की लाइब्रेरी में प्रवेश कर कबीर या मिर्जा गालिब की पुस्तकों को सताने लगते। इस रोज-रोज की परेशानी से तंग आकर लेखक की पत्नी ने जहाँ कबूतरों का आशियाना था, उस जगह एक जाली लगा दी थी।

प्रश्न 5. लेखक निदा फ़ाजली को प्रकृति की सुरक्षा की सीख अपनी माँ से मिली थी-यह आप कैसे कह सकते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 
लेखक की माँ बचपन से ही उन्हें सिखाती थी कि बेवक्त फूल और पत्ते मत तोड़ो, नदी को प्रणाम करो, पशु-पक्षियों को मत सताओ। वे स्वयं पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम करती थीं। साथ ही उनके जीवन की वह घटना जब गलती से उनकी माँ से कबूतर का अण्डा फूट गया था और वह बहुत दुःखी हुईं और उन्होंने पूरे दिन का रोजा भी रखा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लेखक को माँ से ही प्रकृति से प्रेम करने की सीख मिली।

प्रश्न 6. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है और क्यों? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या कुप्रभाव बताया गया है? अपने शब्दों में विस्तार से लिखिए।
उत्तर
: पर्यावरण पर कुप्रभाव-

  • पर्यावरण के संतुलन का बिगड़ना
  • पशु-पक्षियों का आवास छिनना
  • मौसम-चक्र में असंतुलन:गर्मी में अधिक गर्मी,सर्दी में अधिक सर्दी, बेवक्त बरसातें
  • बाढ़, तूफान, जलजला
  • नित नए रोगों का बढ़ना
  • समुद्र का सिमटना।
    (उपर्युक्त विस्तार अपेक्षित) 

उत्तर: बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा, जो आज हमारे सामने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के रूप में दिखाई दे रहा है। आबादी के बढ़ने पर मनुष्यों के आवास के लिए जंगलों का विनाश करके आवास बनाए गये जिससे प्रकृति में असंतुलन पैदा हो गया। बढ़ती हुई आबादियों ने समुद्र को पीछे सरकाना शुरू कर दिया, पेड़ों को रास्तों से हटाना शुरू कर दिया है, फैलते हुए प्रदूषण ने पक्षियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया। बारूदों की विनाशलीलाओं ने वातावरण को सताना शुरू कर दिया। अब गरमी में ज्यादा गरमी, बेवक्त की बरसातें, तूफान, बाढ़, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाएँ और नये-नये रोग बीमारियों के रूप में मनुष्य को प्राप्त हो रहे हैं। बढ़ती आबादी के कारण प्रकृति का दोहन होने से वस्तुओं, पदार्थों की गुणवत्ता समाप्त हो चुकी है और मँहगाई समस्या के रूप में खड़ी हुई है।

प्रश्न 7. ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर प्रकृति के साथ मानव के दुर्व्यहवार और उसके परिणामों पर चर्चा कीजिए।
अथवा
बढ़ती आबादी, मनुष्य की हवस, बारूद की विनाशलीलाओं ने प्राकृतिक संतुलन के साथ क्या खिलवाड़ किया है? इसके दुष्प्रभाव ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:

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व्याख्यात्मक हल:
मानव बढ़ती हुई आबादी के तथा औद्योगीकरण के कारण प्रकृति के साथ दुर्व्यहवार पर उतर आया है। वह अपना स्वार्थ सिद्ध  करने के लिए अंधा-धुंध वृक्षों की कटाई कर रहा है। मानव जंगलों को समाप्त करके अपने लिए आवास बना रहा है, तथा पशु पक्षियों से उनके आवास छीन रहा है। बढ़ती हुई आबादी ने समुद्र को पीछे सरकाना शुरू कर दिया है। समुद्री जमीन को हड़पकर भवनों का निर्माण किया जा रहा है। बारूद से पहाड़ी क्षेत्र को समतल किया जा रहा है। बारूदों की विनाशलीलाओं ने वातावरण को सताना शुरू कर दिया है। मौसम का संतुलन बिगड़ गया है। बाढ़, तूफान व जलजले आने लगे हैं। बेवक्त बरसात होने लगी है। सर्दी कम हो गयी है तथा गर्मी बढ़ गयी है। नित नए-नए रोग उत्पन्न हो रहे हैं। पशु-पक्षी बेघर हो गये हैं यहाँ तक कि कुछ प्रजातियाँ लुप्त हो गयी हैं। मँहगाई समस्या के रूप में सामने खड़ी हो गयी है।

प्रश्न 8. पाठ के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले लोग अब कम मिलते हैं?
उत्तर: 

  • स्वार्थ सिद्धि -‘स्व’ की भावना के कारण परोपकारिता का अभाव
  • जीवन मूल्यों में गिरावट-भाई-चारे की कमी (सौहार्दभाव की कमी) के कारण
  • संवेदनहीनता-दूसरों के दुख में समभागी न होना।
  • एकल परिवार का बढ़ना-जीविकोपार्जन की मजबूरी।
    (उपर्युक्त विस्तार अपेक्षित) 

व्याख्यात्मक हल:
अब दूसरों की पीड़ा व दुःख को समझना तथा मुसीबत के समय काम आना इस प्रवृत्ति के लोग कम हैं। मनुष्य जो कि ईश्वर की उत्कृष्ट  कृति है, उसने धीरे-धीरे पूरी धरती को ही अपनी सम्पत्ति बना लिया है, और जीवधारियों को दर-बदर कर दिया है। उसे किसी के सुख-दुःख की परवाह नहीं है, उसे केवल अपने ही सुख की चिन्ता है क्योंकि स्वार्थ से घिरा मनुष्य मशीनों के बीच मशीन बनकर रह गया है। उसे केवल अपना ही स्वार्थ नजर आता है। उसे दूसरों से दुःख व पीड़ा की कोई परवाह नहीं तथा उनके अन्दर भाईचारे की भावना नहीं है। जीविकोपार्जन की मजबूरी है इस कारण एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं।

प्रश्न 9. ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ के माध्यम से लेखक ने कौन-सी समस्या उठाई है? उसका समाधान क्या हो सकता है ? 
उत्तर: इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक दर्शन के सार्वभौम सत्य को प्रतिपादित करता है कि हम सब परमपिता के अंश रूप हैं। हम सब मिट्टी से निर्मित हैं और मृत्यु होने पर मिट्टी में ही मिल जाएँगे। मिट्टी में मिलने पर हमारी भिन्नता समाप्त हो जाती है। यह पहचान सम्भव ही नहीं होती कि कौन किस रूप में है। अतः हमें भेदभाव को छोड़कर सबको समान रूप से समझना चाहिए और कभी भी अपने आप को किसी से श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए।

प्रश्न 10. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ? ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए और बताइए कि पर्यावरण से सम्बन्धित संस्कार आपको अपने परिवार से वैळसे मिलते हैं ?
उत्तर: बढ़ती हुई आबादी के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। पेड़-पौधों के कट जाने के कारण जीव-जन्तु बेघर हो गए तथा उनमें से कुछ की जातियाँ विलुप्त हो गयीं तो कुछ अपना स्थान छोड़कर कहीं और चले गए। आवास बढने से समुद्र का स्वरूप सिकुड़ने लगा। इस प्रकार प्रकृति में असंतुलन होने से मनुष्य को कई प्राकृतिक आपदाएँ तूफान, जलजले, बेवक्त बरसात, ज्यादा गरमी का पड़ना, नित नए रोग, बाढ़ का प्रकोप झेलना पड़ रहा है। (विद्यार्थी अपने परिवार से मिलने वाले संस्कारों के विषय में स्वयं लिखें।)

प्रश्न 11. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए: 
(क) ”प्रकृति/नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। प्रकृति के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले मुम्बई में देखने को मिला था।“ पाठ के आधार पर पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आशय-‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ के माध्यम से लेखक श्री निदा फाज़ली प्रकृति/नेचर की सहनशीलता का वर्णन करते हुए कह रहे हैं-
मनुष्य ने प्रकृति के साथ बहुत खिलवाड़ किया है। किन्तु प्रकृति की सहन शक्ति की भी एक सीमा होती है। प्रकृति के कोप का उदाहरण कुछ साल पहले मुम्बई में देखने को मिला था। तब प्रकृति का प्रकोप ;गुस्साद्ध इतना डरावना था कि मुम्बई के निवासी पूजा-स्थलों में जाकर अपने आराध्य देव से प्रार्थना करने लगे थे। उस समय समुद्र ने क्रोधित होकर तीन जहाजों को तीन विभिन्न दिशाओं में अपनी लहरों से उठाकर फेंक दिया था।
(ख) जो जितना बड़ा होता है, उसे उतना ही कम गुस्सा आता है। आशय स्पष्ट कीजिए।
आशय-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक समुद्र के विषय में बताते हुए कह रहे हैं कि भवन निर्माताओं ने समुद्र के साथ खिलवाड़ किया, वे उसे पीछे ढकेलते गए। समुद्र का हृदय बहुत बड़ा था अर्थात् अपनी विशालता के कारण वह अपने साथ हो रहे अन्याय को सहता रहा, किन्तु आखिरकार जब उसके सब्र का बाँध टूट गया तब उसने अपना कहर बरपाया, जहाजों को गेंद की तरह उठाकर जमीन पर पटक दिया। यह वाक्य समुद्र के संदर्भ में कहा गया है।
(ग) इस बस्ती में न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल दिया है। 
आशय-लेखक मुम्बई के विकास की कथा का वर्णन करते हुए कह रहे हैं-मुम्बई का जब विकास किया गया तब वहाँ बर्सोवा में घने जंगल, पेड़-पौधे और पशु-पक्षी थे। बाद में उन्हें उजाड़कर भवन बनाए गए। इस बस्ती में रहने वाले पक्षियों के घर छीन लिए गए, कुछ यहाँ से दूर चले गए। जो शेष बचे उन्होंने फ्लैटों में अपना आशियाना बनाकर डेरा डाल दिया।
(घ) शेख अयाज के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए। 
आशय-प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज की आत्मकथा के प्रसंग का उल्लेख करते हुए कह रहे हैं:शेख अयाज के पिता बहुत दयालु किस्म के व्यक्ति थे। वह जीव-जन्तुओं पर रहम करने वाले दयालु व्यक्ति थे। एक बार वे कुएँ से स्नान कर घर आए। उनकी बाँह पर एक चींटा रेंग रहा था। वे खाना छोड़कर उसे कुएँ पर छोड़ने के लिए चले गए। इससे उनकी जीव-जन्तुओं के प्रति दयालुता की भावना का पता चलता है।

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FAQs on Long Questions Answers: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. क्या दूसरे के दुख से दुखी होने वाले को कैसे अपने मन को शांत करने के लिए सहायता मिल सकती है?
उत्तर: दूसरे के दुख से दुखी होने वाले को अपने मन को शांत करने के लिए सहायता मिल सकती है जब वे उनके दुख का कारण समझें और उन्हें समर्थन और संबंधों की तलाश करें जो उन्हें आराम और समर्थन प्रदान कर सकते हैं। उन्हें सकारात्मक विचारों की विकास करने की कोशिश करनी चाहिए और ध्यान देने के लिए माध्यम के रूप में योग, मेडिटेशन या अन्य आरामपूर्ण गतिविधियों का उपयोग कर सकते हैं।
2. क्या दूसरे के दुख को समझने और समर्थन करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर: दूसरे के दुख को समझने और समर्थन करने के लिए हमें ध्यान देना चाहिए कि हमें उनके अनुभवों को समझने की कोशिश करनी चाहिए, उनके साथ संवाद करना चाहिए और उन्हें अपनी समर्था प्रदान करनी चाहिए। हमें उनकी भावनाओं को महत्व देना चाहिए और उन्हें सही समय पर समर्थन करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
3. क्या दूसरों के दुख से दुखी होने का कारण हो सकता है?
उत्तर: हाँ, दूसरों के दुख से दुखी होने का कारण कई चीजें हो सकती हैं। यह मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के मुद्दे, संबंधों की कमी, संघर्ष, संघर्ष या दूसरे लोगों के दुख में सहयोग करने के लिए संबंध हो सकते हैं।
4. क्या इस अवस्था से बचने के लिए कुछ सुझाव हैं?
उत्तर: इस अवस्था से बचने के लिए हमें संबंधों को मजबूत रखने के लिए समय देना चाहिए, अपने आसपास के लोगों के साथ संवाद करना चाहिए और उनके दुख को समझने का प्रयास करना चाहिए। हमें सकारात्मक रवैया रखना चाहिए और अपने मन को स्वस्थ रखने के लिए स्वास्थ्यप्रद गतिविधियों का उपयोग करना चाहिए।
5. कैसे किसी को उनके दुख से दुखी होने की वजह से सहायता दी जा सकती है?
उत्तर: किसी को उनके दुख से दुखी होने की वजह से सहायता देने के लिए हमें उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए, उन्हें ध्यान देना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि हम उनके साथ हैं और उनकी समर्था प्रदान करें। हमें संवाद करने के लिए समय देना चाहिए और उन्हें अपनी सहायता की आवश्यकता होने पर उन्हें मार्गदर्शन करना चाहिए।
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