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Short Question Answers (Passage) -नौबतखाने में इबादत | Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij) PDF Download

गद्यांशों पर आधारित अतिलघु/लघु उत्तरीय प्रश्न

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

1. शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब है। उनका जन्म-स्थान भी डुमराँव ही है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे। बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं।

प्रश्न (क)-अमीरुद्दीन के माता-पिता कौन थे? 
उत्तरः उस्ताद पैंगबरबख्श खाँ और मिट्ठन।
व्याख्यात्मक हल:
अमीरुद्दीन की माता मिट्ठन बाई तथा पिता उस्ताद पैंगबरबख्श खाँ थे।

प्रश्न (ख)-यहाँ रीड के बारे में क्या-क्या जानकारियाँ मिलती हैं?
उत्तरः
 

  • रीड नरकट नाम की घास से बनाई जाती है।
  • रीड अंदर से पोली होती है। उसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।

व्याख्यात्मक हल:
रीड सोन नदी के तट पर पायी जाने वाली नरकट घास से बनाई जाती है, जिससे शहनाई बजाने में प्रयुक्त होने वाली रीड बनती है। यह अन्दर से पोली होती है। फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिनमें रीड का प्रयोग होता है। ‘नय’ कहे जाते हैं। अतः इस वाद्य को ‘शाहेनय’ अर्थात् ‘वाद्यों का शाह’ कहा जाता है। इसी से शहनाई शब्द की भी उत्पत्ति हुई।

प्रश्न (ग)-शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे?
उत्तरः शहनाई बजाने में प्रयुक्त ‘रीड’ डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली ‘नरकट घास’ से बनाई जाती है। शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म-स्थान डुमराँव ही है।
व्याख्यात्मक हल:
शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। डुमराँव हमारे शहनाई-सम्राट बिस्मिल्ला खाँ की जन्मभूमि है। इसके अतिरिक्त डुमराँव में सोन नदी के किनारें पर नरकट नाम की घास मिलती है जिससे शहनाई बजाने में प्रयुक्त होने वाली रीड बनती हैं।

2. वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है।

प्रश्न (क)-‘रियाज़’ से क्या तात्पर्य है? 
उत्तरः शहनाई वादन का अभ्यास
व्याख्यात्मक हल:
‘रियाज़’ शब्द का तात्पर्य है, शहनाई बजाने का अभ्यास करना।

प्रश्न (ख)-रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मंदिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को क्यों अच्छा लगता था? 
उत्तरः
 

  • रसूलन और बतूलन बाई का गाना सुनकर खाँ साहब को खुशी मिलती थी।
  • उन्हें वहाँ कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा अलग-अलग प्रकार के बोल-बनाव सुनने को मिलते थे।

व्याख्यात्मक हल:
बिस्मिल्ला खाँ प्रतिदिन बालाजी मंदिर में शहनाई के रियाज़ के लिए जाते थे। वे उस रास्ते से जाते थे, जिस पर रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर था। इस रास्ते में जाते समय बिस्मिल्ला खाँ को इन दोनों बहनों का गायन ठमरी, कभी टप्पे कभी दादरा अलग-अलग सुनने का अवसर मिलता था। इसी कारण उनको इस रास्ते से मंदिर जाना अच्छा लगता था।

प्रश्न (ग)-बिस्मिल्ला खाँ कौन थे? बालाजी मंदिर से उनका क्या संबंध है? 
उत्तरः 

  • बिस्मिल्ला खाँ विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक थे।
  • बालाजी मंदिर वे प्रतिदिन रियाज़ के लिए जाते थे। 

व्याख्यात्मक हल:
बिस्मिल्ला खाँ विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक थे। वे प्रतिदिन बालाजी मंदिर में शहनाई के रियाज़ के लिए जाते थे।
अथवा
प्रश्न (क)-ठुमरी, दादरा क्या हैं ?
उत्तरः ठुमरी, दादरा गायन शैलियाँ है।

प्रश्न (ख)-बिस्मिल्ला खाँ को अपने आरम्भिक दिनों में संगीत के प्रति लगाव किससे मिला ? 
उत्तरः 
अपने बहुत सारे साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है।

प्रश्न (ग)-अमीरुद्दीन को कब अत्यधिक प्रसन्नता मिलती थी ? 
उत्तरःबिस्मिल्ला खाँ को बालाजी मन्दिर पर रोजाना नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। वे रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाते हैं। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। क्योंकि रसूलन और बतूलन के गाने से उन्हें अत्यधिक प्रसन्नता मिलती है।
अथवा
प्रश्न (क)-बिस्मिल्ला खाँ का असली नाम क्या था ? उनका बचपन कहाँ गुजरा ?
उत्तरः
असली नाम अमीरुद्दीन था और काशी में बचपन गुजरा।

प्रश्न (ख)-बिस्मिल्ला खाँ का काशी से इतना जुड़ाव क्यों था ? 
उत्तरः 
बिस्मिल्ला खाँ का काशी के प्रति पुश्तैनी सम्बन्ध है। क्योंकि उनके पूर्वज काशी में रचे-बसे थे। उन्होंने काशी के विश्वनाथ मंदिर और बालाजी की ड्योढ़ी में शहनाई बजाई थी।

प्रश्न (ग)-अमीरुद्दीन का सामान्य परिचय क्या है ? 
उत्तरः बिस्मिल्ला खाँ का ही बचपन का नाम अमीरुद्दीन है। जिनका जन्म ‘डुमराँव’ बिहार के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ था। 5-6 वर्ष के बाद वे अपने नाना के घर काशी आ गए थे।

3. मुहर्रम के ग़मज़दा माहौल से अलग, कभी सुकून के क्षणों में वे अपनी जवानी के दिनों को याद करते हैं। वे अपने रियाज़ को कम, उन दिनों के अपने जुनून को अधिक याद करते हैं। अपने अब्बाजान और उस्ताद को कम, पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान व गीताबाली और सुलोचना को ज्यादा याद करते हैं। कैसे सुलोचना उनकी पसंदीदा हीरोइन रही थी, बड़ी रहस्यमय मुस्कराहट के साथ गालों पर चमक आ जाती है। खाँ साहब की अनुभवी आँखों और जल्दी ही खिस्स से हँस देने की ईश्वरीय कृपा आज भी बदस्तूर क़ायम है। इसी बाल सुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं। वे जब उनका ज़िक्र करते हैं तब फिर उसी नैसर्गिक आनंद में आँखें चमक जाती हैं।

अमीरुद्दीन तब सिर्फ चार साल का रहा होगा। वह नाना को शहनाई बजाते हुए सुनता था, रियाज़ के बाद जब अपनी जगह से चले जाएँ, तब जाकर ढेरों छोटी-बड़ी शहनाइयों की भीड़ से अपने नाना वाली शहनाई को ढूँढ़ता और एक-एक शहनाई को फेंक कर ख़ारिज करता जाता,-सोचता-‘लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं।’

प्रश्न (क)-वे जब उनका ज़िक्र करते हैं तब फिर उसी नैसर्गिक आनंद से आँखें चमक जाती हैं, वाक्य किस प्रकार का है ?
उत्तरः
मिश्रित वाक्य है।

प्रश्न (ख)-मुहर्रम का महीना क्या होता है ? 
उत्तरः 
मुहर्रम के महीने में शिया सम्प्रदाय हज़रत इमाम हुसैन के प्रति शोक मनाता है। उनके परिवार की शहादत के शोक में कोई राग नहीं बजाया जाता?

प्रश्न (ग)-बिस्मिल्ला खाँ अपने जवानी के दिनों में क्या-क्या याद करते ? 
उत्तरः बिस्मिल्ला खाँ कभी सुकून के क्षणों में अपनी जवानी के दिनों को याद करते हैं। अपने अब्बाजान और उस्ताद को कम, पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचैड़ी वाली दुकान व गीताबाली और सुलोचना को ज्यादा याद करते हैं।

4. काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकट मोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयन्ती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मज़हब के प्रति अत्यधिक समपिर्त उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं, थोड़ी देर ही सही, मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है।

प्रश्न (क)-बिस्मिल्ला खाँ का वादक यंत्र कौन-सा है ? 
उत्तरःशहनाई।

प्रश्न (ख)-संकट मोचन में संगीत आयोजन की क्या विशेषता है ? 
उत्तरः 
हनुमान जयन्ती के अवसर पर लंका स्थित मंदिर में पाँच दिनों तक इसमें बिस्मिल्ला खाँ की उपस्थिति विशिष्ट होती है।

प्रश्न (ग)-काशी में किस प्राचीन परंपरा का आयोजन कहाँ होता रहा है ? 

उत्तरः काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परम्परा है। यह आयोजन पिछले कई वर्षों से शहर के दक्षिण में लंका स्थित संकटमोचन मंदिर में होता आया है।

5. काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठित। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ है। काशी में ह़ज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधरी हैं, बडे़ रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं व इन रसिकों से उपकृत होने वाला अपार जन-समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तह़ज़ीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं, अपना ग़म। अपना सेहरा - बन्ना और अपना नौहा। आप यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति का किसी भी धर्म के कलाकार से कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से, बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते।

प्रश्न (क)-कजरी और चैती क्या है ?
उत्तरःदो रागों के नाम 

व्याख्यात्मक हल:

कजरी और चैती दो रागों के नाम।

प्रश्न (ख)-काशी को किन मंदिरों के कारण याद किया जाता है ? 
उत्तरः कलाधर हनुमान तथा नृत्य विश्वनाथ
व्याख्यात्मक हल:
काशी मंदिरों की नगरी हैं लेकिन काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ मंदिर हैं जिनके लिए काशी जानी जाती है।

प्रश्न (ग)-गद्यांश में काशी का कौन सा रूप अलग है ? 
उत्तरः
मिली-जुली संस्कृति
व्याख्यात्मक हल:
काशी अपनी तहजीब, बोली, उत्सवों तथा संगीत के लिए अपना विशिष्ट स्थान रखती है। यहाँ की परम्पराएँ, आयोजन, सहेरा-कथा गायन-वादन अन्य स्थानों से अलग हैं। यहाँ के लोग भी विशिष्ट हैं।
अथवा
प्रश्न (क)-काशी के लोगों की विशिष्ट पहचान क्या है ? 
उत्तरः 
तहज़ीब और बोली ही विशिष्ट पहचान है।

प्रश्न (ख)-काशी को क्यों जाना जाता है ? 
उत्तरः
काशी में हज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, वि़द्याधर हैं, बड़े रामदास हैं, मौजुद्दीन खाँ है।

प्रश्न (ग)-शास्त्रों में काशी किस नाम से प्रसि) है ? 
उत्तरः 
संस्कृति की पाठशाला काशी को शास्त्रों में आनंदकानन के नाम से जाना जाता है। यहीं विश्वनाथ मंदिर, कलाधर हनुमान मंदिर है।
अथवा

प्रश्न (क)-‘तहज़ीब’ शब्द का क्या अर्थ है ? 
उत्तरः ‘तहज़ीब’ शब्द से तात्पर्य ‘सभ्यता’ से है।

प्रश्न (ख)-काशी के प्राचीन इतिहास से जुडे़ विशिष्ट लोग कौन-कौन हैं ? 
उत्तरः 
काशी में हज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें कंठे महाराज हैं, विद्याधरी हैं, बडे़ रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं व इन रसिकों से उपकृत होने वाला अपार जन-समूह है।

प्रश्न (ग)-काशी को संस्कृति की पाठशाला क्यों कहा गया है ? 

उत्तरःयहाँ भारतीय संस्कृति से जुड़ी अनेक परम्पराओं के दर्शन होते हैं। अनेक कला शिरोमणि यहाँ निवास करते हैं। यह हनुमान और विश्वनाथ की नगरी है। कला, धर्म एवं संस्कृति का यहाँ अनोखा संगम है।

6. किसी दिन एक शिष्या ने डरते-डरते खाँ साहब को टोका, ”बाबा! आप यह क्या करते हैं, इतनी प्रतिष्ठा है आपकी। अब तो आपको भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटी तहमद न पहना करें। अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी तहमद में सबसे मिलते हैं।“ खाँ साहब मुसकराए, लाड़ से भरकर बोले, ”धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं। तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार देखते रहते, तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई। तब क्या ख़ाक रियाज़ हो पाता। ठीक है बिटिया, आगे से नहीं पहनेंगे, मगर इतना बताए देते हैं कि मालिक से यही दुआ है, फटा सुर न बख्शे। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो

कल सी जाएगी।“

प्रश्न (क)-शिष्या के टोकने को बिस्मिल्ला खाँ ने बुरा क्यों नहीं माना? 
उत्तरः शिष्या के टोकने में व्यंग्य या अपमान का नहीं अपितु अपनत्व का भाव था। 

व्याख्यात्मक हल:
शिष्या के टोकने को बिस्मिल्ला खाँ ने बुरा नहीं माना, बल्कि बड़े लाड़ से मुस्कराते हुए कहा कि ‘भारत रत्न’ का सम्मान उन्हें शहनाई वादन पर मिला है न कि लुंगी पर, क्योंकि विचारों और व्यवहार में उदारता व अपनत्व का भाव था।

प्रश्न (ख)-किसी भी कला या कार्य की सफलता में रियाज का कितना योगदान होता है, गद्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तरःअभ्यास के बिना कला या कार्य के स्तर और गुणवत्ता में कमी आने लगती है इसी करण बिस्मिल्ला खाँ आजीवन अभ्यास करते रहे।
व्याख्यात्मक हल:

बिस्मिल्ला खाँ शहनाई बजाने वाले एक महान कलाकार थे। वे घंटों रियाज़ करते हुए अपनी कला की उपासना करते थे। किसी भी कला या कार्य की सफलता के लिए अभ्यास होना बहुत ही आवश्यक है। अभ्यास के बिना कला या कार्य के स्तर और गुणवत्ता में कमी आने लगती है, इसी कारण बिस्मिला खाँ आजीवन अभ्यास करते रहे।

प्रश्न (ग)- ‘तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार देखते रहते तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई।’ उपर्युक्त कथन में युवावर्ग के लिए क्या संदेश है? 
उत्तरः बनाव-शृंगार पर ध्यान न देकर अपने लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठता और एकाग्रता का संदेश।
व्याख्यात्मक हल:
एक दिन उनकी एक शिष्या ने डरते-डरते बाबा को टोका-उसने कहा कि उनकी सारे संगीत-जगत में भारी प्रतिष्ठा है और उन्हें ‘भारत रत्न’ जैसा सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हो चुका है। अतः फटी लुंगी पहने लोगों से मिलना उनके स्तर वाले व्यक्ति को शोभा नहीं देता। तब उन्होंने शिष्या को समझाया। इस कथन में युवावर्ग के लिए यह संदेश है कि बनाव-शृंगार पर ध्यान न देकर अपने लक्ष्य (उद्देश्य) के प्रति एकनिष्ठता और एकाग्रता रखनी चाहिए। तभी वे अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।

7. काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम-ताजिया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। अभी जल्दी ही कुछ इतिहास बन चुका है। अभी आगे कुछ इतिहास बन जाएगा। फिर भी कुछ बचा है जो सिर्फ काशी में है। काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाई-चारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

प्रश्न (क)-‘‘काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की धामों पर सोती है’’-वाक्य का भेद है। 
उत्तरः संयुक्त वाक्य है।

प्रश्न (ख)-संगीत-साधना के क्षेत्र में बिस्मिल्ला खाँ की क्या विशेषता थी ? 
उत्तरः 
काशी संगीत साधना के क्षेत्र में इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। बड़ी विशेषता यह है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है।

प्रश्न (ग)-मुहर्रम-ताजिया और होली-अबीर किसके पूरक माने गए हैं ? 
उत्तरः 
काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम-ताजिया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।

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FAQs on Short Question Answers (Passage) -नौबतखाने में इबादत - Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij)

1. नौबतखाने में इबादत क्या होती है?
Ans. नौबतखाने में इबादत एक पारंपरिक अदालती संगठन है जहां धार्मिक आदर्शों का पालन किया जाता है। यहां लोग अपने आस्थानों की इबादत करते हैं और धार्मिक गानों और उच्च ध्वनि यात्राओं के माध्यम से अदालती उद्घोषणाएं की जाती हैं।
2. नौबतखाने में इबादत कैसे की जाती है?
Ans. नौबतखाने में इबादत धार्मिक आदर्शों के अनुसार की जाती है। लोग अपने आस्थानों की इबादत करते हैं, जिसमें धार्मिक गाने गाए जाते हैं और उच्च ध्वनि यात्राएं की जाती हैं। यहां अदालती उद्घोषणाएं भी की जाती हैं जो आपराधिक मामलों या सामाजिक सूचनाओं को सूचित करने के लिए होती हैं।
3. नौबतखाने में इबादत क्यों महत्वपूर्ण है?
Ans. नौबतखाने में इबादत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोगों को अपनी आस्था को संरक्षित करने और अपने धार्मिक आदर्शों का पालन करने का मार्ग प्रदान करता है। इसके अलावा, नौबतखाने में इबादत के माध्यम से लोग अपने सामाजिक और नैतिक दायित्वों का भी पालन करते हैं।
4. नौबतखाने में इबादत कौन-कौन से उपकरणों के द्वारा की जाती है?
Ans. नौबतखाने में इबादत कई उपकरणों के द्वारा की जाती है। इनमें शामिल हैं ढोल, नगाड़ा, ताल, तबला, धोलक, तुंबा, मृदंग, ढोलकी, सरंगी, शहनाई, बांसुरी, ताशा, झालर, ढोलकी, ताल, ताल और निशानी आदि। ये सभी उपकरण नौबतखाने में इबादत के लिए उपयोग होते हैं और इसके माध्यम से लोग अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं।
5. नौबतखाने में इबादत किस अवसर पर की जाती है?
Ans. नौबतखाने में इबादत कई अवसरों पर की जाती है, जैसे कि धार्मिक त्योहारों, शादी, जन्मदिन, और सामाजिक समारोहों के दौरान। इससे लोग अपनी आस्था को संरक्षित रखते हैं और अपने सामाजिक और नैतिक मूल्यों का पालन करते हैं।
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