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Bhartiya Kalaye NCERT Solutions | Hindi Class 11 - Humanities/Arts PDF Download

प्रश्न 1: कला और भाषा के अंतर्सम्बन्ध पर आपकी क्या राय है? लिखकर बताएँ। 
उत्तर: मेरा मत है कि भाषा और कला एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। मनुष्य अपने विचार और भावों को भाषा द्वारा प्रकट करता है। कलाकार भी अपनी कला द्वारा अपने भावों और विचारों को व्यक्त करता है। यदि कोई चित्रकार है तो वह रंगों और रेखाओं द्वारा अपने प्रकृति - प्रेम को चित्रों द्वारा व्यक्त करता है। एक नृत्यकार अपने अंग-संचालन और मुद्राओं द्वारा अपनी भावनाएँ व्यक्त करता है। इसी प्रकार एक संगीतकार अपने गायन द्वारा अपनी भावनाएँ श्रोताओं तक पहुँचाता है। इस प्रकार कला और भाषा के बीच एक सहज संबंध है। यदि कला की अपनी भाषा न होगी तो लोग उसमें क्यों रुचि लेंगे।

प्रश्न 2: भारतीय कलाओं और भारतीय संस्कृति में आप किस तरह का संबंध पाते हैं? 
उत्तर: भारतीय संस्कृति और भारतीय कलाओं के बीच घनिष्ठ संबंध रहा है। भारतीय संस्कृति के विकास में कलाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। किसी भी देश के जन-जीवन के आचार-विचार, धर्म, उत्सव, वेश-भूषा आदि का सामूहिक नाम ही संस्कृति है। इसमें कलाओं का भी विशिष्ट स्थान होता है। हमारी संस्कृति अनेक प्रादेशिक संस्कृतियों से मिलकर बनी है। इन प्रदेशों या राज्यों की संस्कृतियों में वहाँ प्रचलित कलाओं के भी दर्शन होते हैं।
मध्य प्रदेश में स्थित भीमबेटका की गुफाओं में बने शैल चित्र तत्कालीन सामाजिक जीवन या संस्कृति का परिचय कराते हैं। अजंता की गुफाओं के चित्र गुप्तकालीन वेशभूषा, उत्सव, धार्मिक आस्था आदि के जीवंत उदाहरण हैं। जन्मोत्सव, विवाह, त्योहार आदि जो संस्कृति के ही अंग हैं, उनमें भी सतिया, चौक पूरना, रंगोली आदि के रूप में लोक चित्रकला का स्थान है। इसी प्रकार नृत्य के विविध रूप प्रादेशिक संस्कृतियों की झलक दिखाते हैं। इस प्रकार भारतीय संस्कृति और भारतीय कलाएँ आपस में मनमोहक ढंग से गुंथी रतीय कलाएँ आपस में मनमोहक ढंग से गॅथी हई हैं। कलाओं में संस्कति झाँकती। है तो संस्कृति की लोकप्रियता बढ़ाने में कलाओं का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

प्रश्न 3: शास्त्रीय कलाओं का आधार जनजातीय और लोक कलाएँ हैं, अपनी सहमति और असहमति के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर: यदि हम कलाओं के विकास के इतिहास पर दृष्टि डालें तो पाएँगे कि जनजातीय कलाओं और लोक कलाओं ने धीरे-धीरे व्यवस्थित होते हुए शास्त्रीय रूप धारण कर लिया। कलाओं ने जनजातीय समाज और लोक जीवन के बीच ही जन्म लिया था। धीरे-धीरे उनमें निखार आता गया और उन्होंने व्यवसाय का रूप ले लिया। चित्रकार, संगीतकार और नृत्यकार आदि पेशे बन गए। आगे चलकर इन सभी कलाओं को राजाओं और सम्पन्न लोगों का संरक्षण मिलता गया। तब इनके नियम-उपनियम बने और इन्होंने शास्त्रों का रूप ले लिया।
प्राचीन शैल चित्रों से प्रारम्भ हुई चित्रकारी से गुप्तकाल तक आते-आते चित्रकला की निपुणता चरम स्थिति पर पहुँच गयी। गुरु-शिष्य परंपरा ने कलाओं के शास्त्रीय स्वरूप को और भी पुष्ट और अनुशासित बना दिया। अतः मेरा मत यही है कि जनजातीय कलाएँ और लोक कलाएँ ही शास्त्रीय कलाओं की आधार हैं।


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प्रश्न 1: चित्रकला मानव जीवन से प्राचीन समय में किस रूप में जुड़ी हुई थी? लिखिए। 
उत्तर: चित्रकारी की प्रकृति मनुष्य जाति के इतिहास में आरम्भ से ही दिखाई देती है। आदिमानव जिन गुफाओं में रहते थे उनकी दीवारों पर शैलचित्र बनाया करते थे। इन रेखाचित्रों और आकृतियों द्वारा वे अपनी भावनाएँ और विचार व्यक्त करने के साथ ही वातावरण को भी चित्रित किया करते थे। इन शैलचित्रों में दैनिक जीवन की गतिविधियों, पशुओं, युद्धों, नृत्यों आदि का अंकन किया गया है।

प्रश्न 2: कलाओं का स्वर्णयुग किसे कहा गया है, उस युग का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 
उत्तर: भारत में चौथी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी तक का समय गुप्त साम्राज्य का समय था। इस समय को भारतीय कलाओं का स्वर्णयुग कहा गया है। विश्व प्रसिद्ध अजंता की गुफाओं का निर्माण इसी युग की देन है। बाघ और बादामी की गुफाएँ भी इसी समय की हैं। अजंता की चित्रकला शैली तो इतनी आकर्षक है कि आज तक चित्रकार इसे अपनी रचनाओं में स्थान देते आ रहे हैं। इन चित्रों में तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक वातावरण का सजीव चित्रांकन हुआ है। उस समय के उत्सव, वेशभूषा, रीति-रिवाज, आस्था आदि इन चित्रों में उपस्थित हैं। मान्यता है कि इन गुफाओं को बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया था।

प्रश्न 3: 'ऐलोरा' और 'एलीफेन्टा' की गुफाओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 
उत्तर: सातवीं-आठवीं शताब्दी में ऐलोरा और एलीफेन्टा की गुफाओं का निर्माण हुआ था। ऐलोरा अपने भव्य 'कैलाश मंदिर' के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर इतना विशाल और कलात्मक है कि इसे देखकर यह विश्वास कर पाना कठिन होता है कि इसे मनुष्यों ने ही बनाया था। इस मंदिर के प्रारूप की कल्पना और फिर उस कल्पना को चित्रों और पत्थरों में उतारने में कितना परिश्रम और समय लगा होगा, इसका अनुमान लगाना भी कठिन है। ऐलीफेन्टा की गुफाएँ अपनी 'त्रिमूर्ति' नामक विशाल प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध हैं। इस मूर्ति की रचना और भव्यता देखकर दर्शक चकित रह जाते हैं।

प्रश्न 4: 'भारतीय कलाएँ' पाठ के लेखक ने 'हिन्दुस्तानी कला की आधी कहानी' किसे और क्यों कहा है? लिखिए।
उत्तर: भारत के अंदर की कला को ही जानना, लेखक ने हिन्दुस्तानी कला की आधी कहानी माना है। भारतीय कला . के पूरे स्वरूप और विस्तार को जानने के लिए बौद्ध धर्म के विषय में जानना तो आवश्यक है ही, इसी के साथ मध्य एशिया, चीन, जापान, तिब्बत, म्यांमार (वर्मा), स्याम आदि देशों में उसके विस्तार के बारे में भी जानना चाहिए। कंबोडिया और जाबा में भारतीय कला का भव्य और अनुपम रूप सामने आता है।

प्रश्न 5: भारत के लोक नृत्यों में क्या-क्या बातें समान देखी जाती हैं? लिखिए।
उत्तर: भारत के विभिन्न राज्यों में प्रचलित नृत्यों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। परन्तु इनमें कुछ समानताएँ भी देखी जाती हैं। ये सभी प्रायः सामहिक नत्य होते हैं। सभी नत्यों का संबंध प्रकति और ज मी और पुरुष साथ मिलकर नाचते हैं। सभी नृत्यों का संबंध प्रायः धार्मिक अनुष्ठानों से होता है।

प्रश्न 6: भारत में प्रचलित प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। केरल के शास्त्रीय नृत्य 'कथकलि' और 'मोहिनी अट्टम' हैं। उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य 'कत्थक' है। आंध्र प्रदेश का 'कुचिपुडि', उड़ीसा का 'ओडिसी', मणिपुर का मणिपुरी और तमिलनाडु तथा कनार्टक का 'भरतनाट्यम्' हैं। इन सभी नृत्यों का संबंध भारत के किसी-न-किसी राज्य और उसकी परंपराओं से है। असम में प्रचलित 'सत्रिय नृत्य' को भी शास्त्रीय नृत्य माना गया है। शास्त्रीय नृत्य गुरु-शिष्य परंपरा से सीखे जाते हैं। इन नृत्यों में निपुणता प्राप्त करने के लिए लम्बी और कठिन साधना की आवश्यकता होती है। शास्त्रीय नृत्यों के स्वरूप में बहुत परिवर्तन आए हैं। कुछ शास्त्रीय नृत्य तो दो-तीन सौ वर्षों से भी पुराने नहीं माने जाते है।

प्रश्न 7: भारतीय कला का मूल शास्त्र कौन सा ग्रन्थ है? भारतीय लोकनृत्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: भरतमुनि का 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नृत्यकला का आदि या मूल शास्त्र है। भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में नृत्य को भी अभिनय का ही एक रूप माना गया है। नाट्यशास्त्र के अनुसार 'नर्त्य' का अर्थ अभिनय और 'नृत्य' का अर्थ 'नाँच' है। भारत में लोकनृत्यों की समृद्ध और बहुविध परंपरा रही है। ऋतुओं, अवसरों और उत्सवों के अनुसार लोकनृत्यों के विविध रूप प्रचलित रहे हैं। इसके अतिरिक्त भारत के राज्यों में भी लोकनृत्यों को विशिष्ट रूप और नाम दिए गए हैं।
भारत के हिमालयी क्षेत्रों में युद्ध नृत्यों के साथ ही उत्सव नृत्य भी प्रचलित हैं। फसलों के बोने और कटने के अवसरों पर भी लोक नृत्यों की परंपरा रही है। ये सभी सामूहिक नृत्य होते हैं। पंजाब में स्त्रियाँ 'गिद्दा नृत्य' करती हैं। राजस्थान का 'घूमर' और गुजरात के 'डांडिया' और 'गरबा' नृत्य प्रसिद्ध हैं। महाराष्ट्र का 'मछुआरा नृत्य' और 'लावणी नृत्य', मैसूर का 'बालाकल' या 'कुरुवाजी', अंडमानी, अरुणाचल प्रदेश का 'निशि नृत्य, असम का 'बिहू' नृत्य, हिमाचल का 'नागमेन' और 'किन्नौरी नृत्य' तथा बंगाल का 'छाओनृत्य' प्रसिद्ध रहे हैं।

प्रश्न 8: लघुचित्रकला का संक्षिप्त परिचय 'भारतीय कलाएँ' नामक पाठ के आधार पर दीजिए।
उत्तर: लघुचित्रकला के दो प्रमुख रूप हैं- एक स्थायी और दूसरा अस्थाई। वस्त्रों, पुस्तकों, लकड़ी और कागज परं की गई चित्रकारी को स्थायी कहा जाता है। इनमें आंध्र प्रदेश की कलमकारी, पंजाब की फुलवारी, महाराष्ट्र की वरली आदि बहुत प्रसिद्ध रही हैं। इनमें प्राकृतिक रंगों और सामग्री का प्रयोग होता है। लघु चित्रों की विभिन्न शैलियाँ रही हैं। इन्हें राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की किवाड़ पेंटिंग भी कहा जाता है।
इसमें किसी सांस्कृतिक या ऐतिहासिक घटना को सा के चित्रों में कवि जयदेव रचित 'गीत गोविद' को उकेरा गया है। मिथिला की मधुबनी चित्रकला भी प्रसिद्ध रही है। इन लघुचित्रों की आज भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कला बाजारों में बहुत माँग है। अस्थायी रूप-अस्थायी लघु चित्रकला में कोहबर, ऐषरण, अल्पना, रंगोली तथा कोलम आदि आते हैं। ये चित्र मांगलिक अवसरों पर बनाए जाते हैं।

प्रश्न 9: भारतीय संगीत कला का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 
उत्तर: भारतीय संगीत कला का इतिहास ईसापूर्व 5000 वर्ष पुराना माना जाता है। सामवेद में भारतीय संगीत का प्रथम परिचय मिलता है। वैदिक युग में संगीत के दो भेद या शाखाएँ थीं- मार्गी और देसी। मार्गी संगीत धार्मिक अवसरों पर गाया जाता था। इसके नियम और अनुशासन भी थे। देसी संगीत सामान्य लोगों से जुड़ा था। इसे लोक संगीत भी कह सकते हैं।
वैदिक काल के पश्चात् भारतीय संगीत का उल्लेख भरतमुनि के नाट्य शास्त्र में प्राप्त होता है। यहाँ तक आते-आते भारतीय संगीत ने शास्त्रीय रूप ले लिया था। भारतीय संगीत की विशेषता उसका सुर, ताल, राग और काल (समय) से जुड़ा होना है। प्रात:काल, मध्याह्न, सायं और रात्रि के राग-रागनियाँ अलग-अलग हैं। ऋतुओं के अनुसार भी रागों के गायन की परंपरा है। भारतीय संगीत का मुख्य वाद्य (बाजा) वीणा रही है। इसमें प्रयुक्त होने वाले प्रायः सभी वाद्ययंत्र साधारण वस्तुओं से बने हुए हैं। भारतीय संगीत का उद्गम या विकास लोक संगीत से ही हुआ है।

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FAQs on Bhartiya Kalaye NCERT Solutions - Hindi Class 11 - Humanities/Arts

1. What are the different art forms covered under Bhartiya Kalaye Humanities/Arts?
Ans. Bhartiya Kalaye Humanities/Arts covers a wide range of art forms such as music, dance, painting, sculpture, literature, and architecture.
2. How does the study of Bhartiya Kalaye Humanities/Arts contribute to understanding Indian culture?
Ans. The study of Bhartiya Kalaye Humanities/Arts helps in understanding the rich cultural heritage of India, including the traditions, beliefs, values, and artistic expressions of the diverse communities in the country.
3. What role do traditional art forms play in contemporary Indian society?
Ans. Traditional art forms in India play a significant role in preserving cultural heritage, promoting cultural identity, and fostering a sense of community and belonging among people.
4. How has modernization impacted the practice and appreciation of Bhartiya Kalaye Humanities/Arts?
Ans. Modernization has brought about changes in the practice and appreciation of Bhartiya Kalaye Humanities/Arts by influencing artists to experiment with new forms and techniques while also facing challenges in preserving traditional art forms.
5. What are some of the key challenges faced by artists and practitioners of Bhartiya Kalaye Humanities/Arts in India today?
Ans. Some of the key challenges faced by artists and practitioners of Bhartiya Kalaye Humanities/Arts in India today include lack of institutional support, financial constraints, changing audience preferences, and the impact of globalization on traditional art forms.
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