प्रश्न 1: ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर भोलानाथ के बाबू जी के पूजा-पाठ की रीति पर टिप्पणी कीजिये। आप इससे क्या प्रेरणा ग्रहण करते हैं।
उत्तरः भोलानाथ के बाबू जी रोज़ प्रातःकाल उठकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर नहाकर पूजा करने बैठ जाते। वे रामायण का पाठ करते। पूजा-पाठ करने के बाद वे राम-नाम लिखने लगते । अपनी ‘रामनामा बही’ पर हज़ार राम-नाम लिखकर वे उसे पाठ करने की पोथी के साथ बाँधकर रख देते । इसके बाद पाँच सौ बार कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर उन्हें आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते | वहां एक-एक आटे की गोलियों को मछलियों को खिलाने लगते। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें सभी जीवों पर दया दिखानी चाहिए। मछलियों को आटे की गोलियां खिलाना, चींटी, गाय, कुत्ते, आदि सभी को भोजन देना चाहिए तथा सभी जीवों के प्रति प्रेम की भावना रखनी चाहिए।
प्रश्न 2: सबेरे ‘बाबूजी’ किस ग्रंथ का पाठ किया करते थे और उस समय भोलानाथ कहाँ बैठते थे और क्या किया करते थे? बाबूजी की इस दिनचर्या से हमें क्या प्रेरणा मिलती है? ”माता का आँचल“ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः सबेरे बाबूजी रामायण का पाठ किया करते थे और उस समय भोलानाथ अपने पिता के साथ बैठते थे। पिता ही उसे नहलाते थे, उसके माथे पर तिलक और भभूत लगाते थे। मस्तक पर तीन आड़ी रेखाओं वाला त्रिपुंड लगाते तथा सिर पर लम्बी-लम्बी जटाओं को बाँधकर पूरे बमभोला बना देते थे। भोलानाथ उनकी बगल में बैठकर आइने में अपने मुँह को निहारकर आड़े-तिरछे मुँह बनाकर मुसकराते तथा लज्जित होते थे। बाबूजी की इस दिनचर्या से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि बच्चों के लालन-पालन में केवल माँ का ही नहीं, पिता का योगदान पूरा-पूरा होता है। सामान्यतः बच्चों के लालन-पालन का उत्तरदायित्व केवल माँ पर डाल दिया जाता है जो कि गलत है। इस पाठ में पिता अपने पुत्र के साथ दोस्तों जैसा व्यवहार करते हैं। अतः पिता-पुत्र में दोस्तों जैसे सम्बन्ध होने की प्रेरणा बाबूजी की दिनचर्या से हमें मिलती है।
प्रश्न 3: ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर भोलानाथ और उसके पिता के सम्बन्धों का विश्लेषण करते हुए पिता-पुत्र सम्बन्धों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः भोलानाथ के पिता सुबह-सबेरे उठकर भोलानाथ को भी नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा लेते थे और भोलानाथ के भभूत का तिलक लगाने की जिद करने पर वह उसके ललाट पर भभूत से अर्धचन्द्राकार रेखाएँ बना देते थे। भोलानाथ के सिर पर लम्बी-लम्बी जटाएँ होने और भभूत लगा देने के कारण पिताजी प्यार से उसे ‘भोलानाथ’ कहकर पुकारते थे। वे उसे अपने कंधों पर बैठाकर गंगाजी पर लेकर जाते थे। कभी-कभी वे उसके साथ कुश्ती लड़ते और अपने आप हार जाते थे। पिताजी हारने के बाद बनावटी रोना रोने लगते थे जिसे देखकर भोलानाथ खिलखिलाकर हँसने लगता था। पिताजी भोलानाथ को गोरस और भात सानकर बड़े प्यार से खिलाते थे।
चूहे के बिल से साँप के निकल आने पर भोलानाथ के डर जाने पर पिताजी तेजी से उसकी तरफ दौड़कर आते हैं और उसे मनाने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 4: ‘माता का आँचल’ के आधार पर लेखक के पिताजी की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तरः (क) लेखक के पिता को देखकर कहा जा सकता है कि वे धार्मिक विचारों के थे।
(ख) प्रातः जल्दी उठकर नहा-धोकर पूजा करते। वे लेखक को भी नहा-धुलाकर पूजा पर बैठा लेते।
(ग) बच्चे के प्रति अत्यधिक जुड़ाव का भाव होना।
(घ) सरल, भोले स्वभाव के, ममतामय तथा भगवान के भक्त थे तथा पाठ के मुख्य पात्र हैं।
(ङ) धर्म-कर्म के पक्के थे। जैसे-प्रतिदिन सुबह उठकर पूजा कर रामनामा बही पर ‘राम’ का नाम लिखते। कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर उन्हें आटे की गोलियों में लपेटते और गंगा पर जाकर मछलियों को खिलाते।
(च) पुत्र से बेहद प्रेम होने के कारण कभी नहीं डाँटते और विपदा पड़ने पर अपने पुत्र की रक्षा करते। प्रत्येक कार्य में सहयोग देते।
(छ) बच्चों के साथ मिलकर, उनके खेलों में शामिल होकर अपने पुत्र का हौसला बढ़ाते।
प्रश्न 5: ”जब खाएगा बड़े-बड़े कौर तब पाएगा दुनिया में ठौर“ पंक्ति के कथन का संदर्भ लिखकर बताइए कि ”माता का आँचल“ पाठ में वर्णन माता अपने पुत्र को किस भाव से खिलाती थीं और इससे क्या शिक्षा ग्रहण करते हैं?
उत्तरः माता अपने पुत्र को इस भाव से खिलाती थी कि मर्द बच्चों का खाना खिलाने का ढंग नहीं जानते। माँ के हाथ से ही खाने पर बच्चों का पेट भरता है। वह भरा हुआ पेट होने पर भी अलग-अलग पक्षियों के नाम लेकर दही-चावल के बड़े-बड़े कौर मुँह में डालकर कि जल्दी खा नहीं तो उड़ जाएँगे और बच्चा उनके उड़ने से पहले खा लेता है। माँ के अनुसार बच्चा बड़े-बड़े कौर खाकर ही दुनिया में अपना स्थान बना पाएगा। वे अपने पति से कहती हैं कि आप छोटे-छोटे कौर बच्चे के मुँह में देते हैं, इससे बच्चा थोड़ा खाकर ही सोच लेता है कि बहुत खा लिया। इससे हम यह शिक्षा ग्रहण करते हैं कि माता का मन तब तक सन्तुष्ट नहीं होता है जब तक कि वह अपने बच्चे को अपने हाथों से न खिला ले।
प्रश्न 6: ‘माता का आँचल’ पाठ में लेखक द्वारा पिता के संग खेलने तथा माता के संग भोजन करने का वर्णन कीजिए।
उत्तरः भोलानाथ कभी-कभी पिताजी के साथ कुश्ती खेला करता था। उस कुश्ती में पिताजी कमज़ोर पड़कर भोलानाथ के बल को बढ़ावा देते जिससे भोलानाथ उन्हें हरा देता था। बाबूजी पीठ के बल लेट जाते और भोलानाथ उनकी छाती पर चढ़ जाता। जब वह उनकी लम्बी-लम्बी मूँछें उखाड़ने लगता तो बाबूजी हँसते-हँसते उसके हाथों को मूँछों से छुड़ाकर उन्हें चूम लेते थे। और माँ थाली में दही-भात सानकर तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे। इस प्रकार माँ के खेल-खेल में खिलाने पर भोलानाथ हँसते-हँसते खाना खा लेता था।
प्रश्न 7: ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर लिखिये कि माँ बच्चे को ‘कन्हैया’ का रूप देने के लिये किन-किन चीजों से सजाती थीं ? इससे उनकी किस भावना का बोध होता है? आपकी राय से बच्चों का क्या कर्तव्य होना चाहिए ?
उत्तरः भोलानाथ की माँ भोलानाथ के सिर में बहुत-सा सरसों का तेल डालकर बालों को तर कर देती फिर उसका उबटन करती। वह भोलानाथ की नाभि और माथे पर काजल का टीका लगाती, उसकी चोटी गूँथती, उसमें फूलदार लट्टू बांधती और उसे रंगीन कुरता टोपी पहनाकर कन्हैया बना देती। इससे भोलानाथ के प्रति माँ के लाड़ प्यार की भावना का बोध होता है। बच्चों का यह कर्तव्य है कि माँ के प्रति आदर सम्मान का भाव रखें व उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।
प्रश्न 8: भोलानाथ बचपन में कैसे-कैसे नाटक खेला करता था ? इससे उसका कैसा व्यक्तित्व उभरकर आता है ?
उत्तरः बचपन में भोलानाथ तरह-तरह के नाटक खेला करते थे। चबूतरे का एक कोना ही नाटकघर बनता था। बाबूजी जिस छोटी चैकी पर बैठकर नहाते थे, उसे रंगमंच बना लिया जाता था। उसी पर सरकंडे के खम्भों पर कागज का चंदोआ तानकर, मिठाइयों की दुकान लगाई जाती। इस दुकान में चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी-कचैरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छोटे टुकड़ों के पैसे बनते।
प्रश्न 9. आपको बच्चों का कौन-सा खेल पसन्द नहीं आया और क्यों ?
उत्तरः यह बात पूर्णतः सत्य है कि जब बच्चे (लड़के) खेल खेलते हैं तो कई बार वे ऐसे खेल भी खेलने लगते हैं जिससे निरीह पक्षियों और पशुओं को कष्ट होता है। कई बार तो पक्षियों, तितलियों, चीटियों आदि को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ता है। इसी प्रकार बच्चे गली में खेलते हुए कुत्तों, गधों आदि को बहुत तंग करते हैं जिससे कई बार इन पशुओं को चोट भी लग जाती। एक बार तो इन्होंने खेल-खेल में चूहे को निकालने के लिए उसके बिल में पानी डाला, किन्तु उसमें से चूहे की जगह साँप निकल आया। मेरे विचार से ऐसा करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है, क्योंकि पशु-पक्षियों को सताना, तंग करना और दुःख देना किसी भी दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता। ऐसे पशु-पक्षियों को तंग करना जो बच्चों को तंग भी नहीं करते, पूरी तरह अनुचित है।
प्रश्न 10: ‘माता का आँचल’ पाठ में लड़कों की मंडली जुटकर विवाह की क्या-क्या तैयारियाँ करती थी ?उत्तरः लड़कों की मंडली बारात का भी जुलूस निकालती थी। कनस्तर का तंबूरा बनाकर बजाते, अमोले को घिसते जो शहनाई का काम करती और बड़े मजे के साथ बजाई जाती, टूटी हुई चूहेदानी से पालकी बनाई जाती थी और बच्चे समधी बनकर बकरे पर चढ़ लेते थे और बारात चबूतरे के एक कोने से चलकर दूसरे कोने में जाकर दरवाजे लगती थी। वहाँ काठ की पटरियों से घिरे, गोबर से लिपे, आम और केले की टहनियों से सजाए हुए छोटे आँगन में कुल्हड़ का कलसा रखा रहता था। वहीं पहुँचकर बारात फिर लौट आती थी। लौटने के समय खटोली पर लाल पर्दा डालकर, उसमें दुल्हन को चढ़ा लिया जाता था। बाबूजी दुल्हन का मुँह देखते तो सब बच्चे हँस पढ़ते।
प्रश्न 11: ‘‘माता का आँचल’’ पाठ में वर्णित मूसन तिवारी कौन थे? उनके साथ बाल-मंडली ने शरारत क्यों की थी और उसका क्या परिणाम हुआ? इस घटना से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तरः एक बार जब भोलानाथ और उसके साथी बाग से लौट रहे थे तब रास्ते में मूसन तिवारी जो वृद्ध थे और जिन्हें आँखों से कम दिखाई देता था, मिल गये। उन्हें भोलानाथ के ढीठ दोस्त बैजू के बहकावे में सब बच्चों ने मिलकर चिढ़ाया। मूसन तिवारी के खदेड़ने पर सब बच्चे भाग गये तब तिवारी जी सीधे पाठशाला गये और वहाँ से बैजू और भोलानाथ को पकड़कर बुलवाया। बैजू तो भाग गया, लेकिन भोलानाथ की गुरु जी ने खूब खबर ली। इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें वयोवृद्ध लोगों का आदर-सम्मान करना चाहिये।
प्रश्न 12: ‘माता का आँचल’ पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों।उत्तरः पाठ में आए ऐसे प्रसंग जो दिल को छू गए हैं, निम्नलिखित हैं-
(i) पिताजी का भोलानाथ से खट्टा और मीठा चुम्मा माँगना तथा पिताजी की नुकीली मूँछें भोलानाथ के कोमल गालों पर चुभने पर उसके द्वारा झुँझलाकर उनकी मूँछें नोंचने लग जाना।
(ii) माँ द्वारा भोलानाथ को तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाना कि जल्दी खा लो नहीं तो ये उड़ जाएँगे।
(iii) बच्चों के खेल के बीच में पिताजी का आ जाना और बच्चों का लजाकर खेल छोड़कर भाग जाना।
(iv) भोलानाथ का अपने साथियों के साथ टीले पर चूहे के बिल में पानी डालने पर साँप का निकल आना और माँ-पिताजी का भोलानाथ के प्रति चिंतित होना।
(v) माँ का बालक भोलानाथ को पकड़ कर तेल लगाना और उसका सुबकना आदि।
प्रश्न 13: आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है ?उत्तरः भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना इसलिए भूल जाता है, क्योंकि-
(i) बच्चे को अपनी उम्र के बच्चों के साथ ही तरह-तरह से खेल खेलने को मिलते हैं और भोलानाथ भी अपने साथियों के साथ उन सब खेलों का आनन्द लेना चाहता होगा।
(ii) जब भोलानाथ को गुरुजी ने मूसन तिवारी को चिढ़ाने के कारण खूब जोर से डाँटा जिसके कारण वह रोने लगा तब पिताजी गुरुजी की खुशामद करके उसे गोद में लेकर घर की ओर चले, रास्ते में भोलानाथ को साथी लड़कों का झुंड नाचते गाते मिला। उन्हें देखकर भोलानाथ अपना रोना-धोना भूलकर बाबूजी की गोद से उतरकर उनकी मंडली में मिलकर उनकी तान-सुर अलापने लगा।
(iii) यदि भोलानाथ अपने साथियों के सामने रोना-सिसकना जारी रखता तो वे उसकी हँसी उड़ाते और उसे अपने साथ लेकर खेलने के लिए नहीं जाते।
प्रश्न 14: ‘माता का आँचल’ पाठ में बच्चे को अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?
अथवा
माँ के प्रति अधिक लगाव न होते हुए भी विपत्ति के समय भोलानाथ माँ के आँचल में ही सुख शान्ति पाता है, इसका आप क्या कारण मानते हैं ?
उत्तरः भोलानाथ का अपने पिता से अत्यधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। मेरे अनुसार इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
(क) बच्चा किसी भी परेशानी में अपनी माँ के साथ रहकर ही सुरक्षित महसूस करता है। परेशानी में उसे पिता का साथ नहीं सुहाता।
(ख) माता के आँचल में उसे दुःखों का पता नहीं चल पाता और वह आराम से रहता है।
(ग) माँ प्यार, ममता और वात्सल्य की खान होती है, इसलिए जब बच्चे को कोई भी परेशानी या कष्ट होता है तो वह माँ के पास जाता है पिता के नहीं।
(घ) विपदा के समय बच्चे को माँ के लाड़ और उसकी गोद की जरूरत होती है। उसे जितनी कोमलता माँ से मिल सकती है उतनी पिता से नहीं।
(ङ) बच्चा अपनी माँ से भावनात्मक रूप से अधिक जुड़ाव महसूस करता है क्योंकि माँ बच्चे की भावनाओं को अच्छी तरह से समझती है। यही कारण है कि बच्चा माँ की गोद में ही सुख, शान्ति और चैन पाता है।
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1. "माता का आँचल" कविता का मुख्य विषय क्या है? |
2. "माता का आँचल" कविता में किस प्रकार की भावनाएँ व्यक्त की गई हैं? |
3. कविता में माँ के आँचल का क्या प्रतीकात्मक अर्थ है? |
4. "माता का आँचल" कविता के लेखक कौन हैं? |
5. इस कविता का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है? |
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