Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  कविता की व्याख्या - पाठ 8 - कन्यादान, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10

कविता की व्याख्या - पाठ 8 - कन्यादान, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 - Class 10 PDF Download

कविता की व्याख्या

(1)
 कितना प्रामाणिक था उसका दुख
 लड़की को दान में देते वक्त
 जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
 लड़की अभी सयानी नहीं थी
 अभी इतनी भोली सरल थी
 कि उसे सुख का आभास तो होता था
 लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
 पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
 कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

शब्दार्थ: प्रामाणिक = प्रमाणों से सिद्ध, पूँजी = धन, सयानी = बड़ी, आभास = अहसास, हलका अनुभव, पाठिका = पढऩे वाली, बाचँना = पढऩा, लयबद्ध् = सरु -ताल- लय में बँधी। 

व्याख्या: कवि कहते हैं कि कन्यादान करते समय माँ के दिल पर क्या गुजरती है, यह तो सामान्य रूप से सभी समझ सकते हैं। लाड़-प्यार से पाली गई बेटी माँ के हृदय के इतने करीब होती है कि उसे सदा अपने आँचल के नीचे छुपा रखने का मन करता है। किंतु माँ होने के नाते वह ऐसा नहीं कर सकती है। समाज की परंपराओं को निभाती हुई माँ बेटी का विवाह कर देती है। ‘कन्यादान’ शब्द में ही कन्या होने का और वह भी कम उम्र की भोली-भाली बेटी होने का पता चलता है। भारतीय समाज में कन्यादान पुण्य का कर्म माना जाता है। यहाँ कवि ने बेटी को माँ की अंतिम पूँजी के रूप में चित्रित किया है, जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपनी जमा-पूँजी का अंतिम भाग बहुत सोच-समझकर खर्च करता है और उस आखिरी पूँजी को दान करने में कितना मनोकष्ट होता है, उसी प्रकार माँ को भी अपना कर्तव्य निभाने में यानी अपनी बेटी को विदा कराने में बहुत ही दुख होता है। उसे सदा यह आशंका बनी रहती है कि ससुराल जाकर कहीं मेरी बेटी को कोई दुख-कष्ट तो नहीं होगा, विवाह के बाद के सुखी जीवन की वह कल्पना कर सकती है किंतु जिसने कभी दुख देखा ही नहीं, कष्ट सहा ही नहीं, भला वह दुख-कष्ट का सामना किस प्रकार करेगी। सुख-सौभाग्य के हलके आभास को कवि ने यहाँ धुँधला प्रकाश कहा है, जिसे वह अबोध सरल बेटी पढ़ सकती है, किंतु अनचाहे दुखों को पढ़ नहीं सकती, समझ नहीं सकती।

विशेष
1. इसमें माँ के हृदय की कोमल भावनाओं का और आशंकाओं का कवि ने बहुत सुंदर वर्णन किया है।
2. यह कविता मुक्तक छंद में लिखित है।
3. सरल खड़ी बोली में इसकी रचना की गई है।
4. कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का पुट भी पाया जाता है, जैसे - पाठिका, प्रामाणिक, आभास आदि।
5. प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है, जैसे - धुँधला प्रकाश।

(2)
 माँ ने कहा पानी में झाँककर
 अपने चेहरे पर मत रीझना
 आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
 जलने के लिए नहीं
 वस्त्रा और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
 बंध्न हैं स्त्राी जीवन के
 माँ ने कहा लड़की होना
 पर लड़की जसैी दिर्खाइ  मत देना।

शब्दार्थ: रीझना - मन ही मन प्रसन्न होना, आभूषण - गहना, शाब्दिक - शब्दों का, भ्रम - धेखा।

व्याख्या: माँ अपनी भोली सरल बेटी से कहती हैं कि पानी में देखकर अपने रूप-सौंदर्य पर कभी मत रीझना। पानी में देखने का तात्पर्य यहाँ अपने प्रतिबिंब से है, चाहे वह जल में हो या दर्पण में। नव यौवन का रूप-सौंदर्य युवतियों को बरबस अपने को अति सुंदरी मानने पर विवश कर देता है। माँ तभी अपनी बेटी को पहली सीख यही देती है कि रूप-सौंदर्य स्थायी नहीं है। अतः अपने रूप-सौंदर्य पर मिथ्या गर्व करना मूर्खता है क्योंकि यह नश्वर है। प्रत्येक घर में आग का उपयोग खाना बनाने के लिए होता है, किंतु दहेज के लालची लोग आजकल नई-नवेली दुलहन को जलाने के लिए भी आग का उपयोग करते हैं। माँ बेटी को दूसरी महत्वपूर्ण सीख देती हैं कि आग का उपयोग कभी भी जलने-जलाने के लिए नहीं करना, इस प्रकार भविष्य में किसी प्रकार होने वाली दुर्घटना से बचने के लिए माँ बेटी को पहले ही सचेत कर देती हैं। अब माँ उसे तीसरी सीख देती हैं कि लड़कियाँ सदा से ही कपड़े-गहने को अध्कि महत्व देती हैं, किंतु नारी जीवन के ये बंधन हैं। कवि कहते हैं कि नए-नए कपड़े-गहने दिलाकर पुरुष अपनी पत्नी को बंध्न में बाँध् लेते हैं। माँ यहाँ भी बेटी को सचेत करती हैं। चैथी अंतिम सीख यह है कि लड़की होना बुराई नहीं है, किंतु लड़की जैसी कमजोर-असहाय दिखाई देना मूर्खता है। आवश्यकता पड़ने पर लड़की को अपनी स्वाभाविक कोमलता, लज्जा आदि को परे हटाकर दृढ़ता से अपनी बात कहनी चाहिए। किसी भी लड़की को अन्याय-अत्याचार सहन नहीं करना चाहिए। अन्याय का सदा विरोध करना चाहिए, इसी में लड़कियों की भलाई है।

विशेष-
1. उपर्युक्त पंक्तियों में परंपरा से परे हटकर आज की आवश्यकतानुसार सीख दी गई हैं।
2. अपने को कमशोर न समझने की सीख देकर माँ ने पारंपरिक समाज के प्रति आघात किया है।
3. अन्याय-अत्याचार को न सहन करना लड़कियों के लिए खासकर उचित है।
4. कवि ने तत्सम-तद्भव शब्दों का उचित प्रयोग किया है।
5. अंतिम दो पंक्तियों में विरोधभास अलंकार है।
 

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FAQs on कविता की व्याख्या - पाठ 8 - कन्यादान, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 - Class 10

1. कन्यादान कविता की विस्तृत व्याख्या क्या है?
उत्तर: ‘कन्यादान’ एक उपन्यास से ली गई है जो महाभारत काल की कहानी है। कवि मैथिलीशरण गुप्त ने इस कथा को उद्दीपक बनाकर एक अद्भुत कविता के रूप में लिखा है। इस कविता का मुख्य विषय बेटियों के कन्यादान की परंपरा और उसके समाज के साथ रिश्तों को उजागर करना है।
2. कन्यादान कविता में कौन सा मुख्य विषय है?
उत्तर: कन्यादान कविता में मुख्य विषय बेटियों के कन्यादान की परंपरा और उसके समाज के साथ रिश्तों को उजागर करना है।
3. कन्यादान कविता के लेखक कौन हैं?
उत्तर: कन्यादान कविता के लेखक मैथिलीशरण गुप्त हैं।
4. कन्यादान कविता के भावप्रधान विषय कौन से हैं?
उत्तर: कन्यादान कविता के भावप्रधान विषय में कन्याओं के कन्यादान के उपरांत उनकी व्यथा, दुख और उनके संघर्ष का वर्णन है।
5. कन्यादान कविता के मुख्य चरित्रों के नाम क्या हैं?
उत्तर: कन्यादान कविता के मुख्य चरित्र हैं- गंगाधर, सुलक्ष्मी, पार्वतीप्रसाद, चंद्रधर, विद्याधर, बालकृष्ण, राधाकृष्ण और कालीचरण।
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