Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)  >  पठन सामग्री: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

पठन सामग्री: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

सारांश

इस पाठ में लेखक ने मानव द्वारों अपने स्वार्थ के लिए किये गए धरती पर किये गए अत्याचारों से अवगत कराया है। पाठ में बताया गया है की किस तरह मानव की न मिटने वाली भूख ने धरती के तमाम जीव-जन्तुओं के साथ खुद के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है।

ईसा से 1025 वर्ष पहले एक बादशाह थे जिनका नाम बाइबिल के अनुसार सोलोमेन था, उन्हें कुरआन में सुलेमान कहा गया है। वह सिर्फ मानव जाति के ही राजा नहीं थे बल्कि सभी छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी राजा थे। वह इन सबकी भाषा जानते थे। एक बार वे अपने लश्कर के साथ रास्ते से गुजर रहे थे। उस रास्ते में कुछ चीटियाँ घोड़ों की टापों की आवाज़ें सुनकर अपने बिलों की तरफ वापस चल पड़ीं। इसपर सुलेमान ने उनसे घबराने को न कहते हुए कहा कि खुदा ने उन्हें सबका रखवाला बनाया है। वे मुसीबत नहीं हैं बल्कि सबके लिए मुहब्बत हैं। चीटियों ने उनके लिए दुआ की और वे आगे बढ़ चलें।

ऐसी एक घटना का जिक्र करते हुए सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक दिन उनके पिता कुएँ से नहाकर घर लौटे तो माँ ने भोजन परोसा। जब उन्होंने रोटी का एक कौर तोड़ा तभी उन्हें अपनी बाजू पर एक काला च्योंटा रेंगता दिखाई दिया। वे भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए और पहले उस बेघर हुए च्योंटे को वापस उसके घर कुएँ पर छोड़ आये।

बाइबिल और अन्य ग्रंथों में नूह नामक एक पैगम्बर का जिक्र मिलता है जिनका असली नाम लशकर था परन्तु अरब में इन्हें नूह नाम से याद किया जाता है क्योंकि ये पूरी जिंदगी रोते रहे। एक बार इनके सामने से एक घायल कुत्ता गुजरा चूँकि इस्लाम में कुत्ते को गन्दा माना जाता है इसलिए इन्होनें उसे गंदे कुत्ते दूर हो जा कहा। कुत्ते ने इस दुत्कार को सुनकर जवाब दिया कि  ना मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ और ना तुम अपनी पसंद से इंसान हो। बनाने वाला सब एक ही है। इन बातों को सुनकर वे दुखी हो गए और सारी उम्र रोते रहे। महाभारत में भी एक कुत्ते ने युधिष्ठिर का साथ अंत तक दिया था।

भले ही इस संसार की रचना की अलग-अलग कहानियाँ हों परन्तु इतना तय है की धरती किसी एक की नहीं है। सभी जीव-जंतुओं, पशु, नदी पहाड़ सबका इसपर सामान अधिकार है। मानव इस बात को नहीं समझता। पहले उसने संसार जैसे परिवार को तोड़ा फिर खुद टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले लोग मिलजुलकर बड़े-बड़े दालानों-आंगनों में रहते थे पर अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिमटने लगे हैं। बढ़ती हुई आबादी के कारण समंदर को पीछे सरकाना पड़ रहा है, पेड़ों को रास्ते से हटाना पड़ रहा है जिस कारण फैले प्रदूषण ने पक्षियों को भागना शुरू कर दिया है। नेचर की भी सहनशक्ति होती है। इसके गुस्से का नमूना हम कई बार अत्यधिक गर्मी, जलजले, सैलाब आदि के रूप में देख रहे हैं।

लेखक की माँ कहती थीं की शाम ढलने पर पेड़ से पत्ते मत तोड़ो, वे रोयेंगे। दीया-बत्ती के वक़्त फूल मत तोड़ो। दरिया पर जाओ तो सलाम करो कबूतरों को मत सताया करो और मुर्गे को परेशान मत करो वह अज़ान देता है। लेखक बताते हैं उनका ग्वालियर में मकान था। उस मकान के दालान के रोशनदान में कबूतर के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना लिया। एक बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा फोड़ दिया। लेखक की माँ से दूसरा अंडा बचाने के क्रम में फूट गया। इसकी माफ़ी के लिए उन्होंने दिन भर कुछ नहीं खाया और नमाज़ अदा करती रहीं।

अब लेखक मुंबई के वर्सोवा में रहते हैं। पहले यहाँ पेड़, परिंदे और दूसरे जानवर रहते थे परन्तु अब यह शहर बन चुका है। दूसरे पशु-पक्षी इसे छोड़े कर जा चुके हैं, जो नहीं गए वे इधर-उधर डेरा डाले रहते हैं। लेखक के फ्लैट में भी दो कबूतरों ने एक मचान पर अपना घोंसला बनाया, बच्चे अभी छोटे थे। खिलाने-पिलाने की जिम्मेदारी बड़े कबूतरों पर थीं। वे दिन-भर आते जाते रहते थे। लेखक और उनकी पत्नी को इससे परेशानी होती इसलिए उन्होंने जाली लगाकर उन्हें बाहर कर दिया। अब दोनों कबूतर खिड़की के बाहर बैठे उदास रहते हैं परन्तु अब ना सुलेमान हैं न लेखक की माँ जिन्हें इनकी फ़िक्र हो।

लेखक परिचय

निदा फ़ाज़ली

इनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ और बचपन ग्वालियर में बिता। ये साठोत्तर पीढ़ी के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। आम बोलचाल की भाषा में और सरलता से किसी के भी दिलोदिमाग में घर कर सकें ऐसी कविता करने में इन्हें महारत हासिल है। गद्य रचनाओं में शेर-ओ-शायरी परोसकर बहुत कुछ को थोड़े में कह देने वाले अपने किस्म के अकेले गद्यकार हैं। इन दिनों फिल्म उद्योग से सम्बन्ध हैं।

प्रमुख कार्य

पुस्तक – लफ्जों का पुल, खोया हुआ सा कुछ, तमाशा मेरे आगे
आत्मकथा – दीवारों के बीच, दीवारों के पार
पुरस्कार – खोया हुआ सा कुछ के लिये 1999 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. हाकिम – राजा या मालिक
  2. लश्कर (लशकर) – सेना या विशाल जनसमुदाय
  3. लक़ब – पदसूचक नाम
  4. प्रतीकात्मक – प्रतीकस्वरुप
  5. दालान – बरामदा
  6. सिमटना – सिकुड़ना
  7. जलजले – भूकम्प
  8. सैलाब – बाढ़
  9. सैलानी – ऐसे पर्यटक जो भ्रमण कर नए-नए विषयों के बारे में जानना चाहते हैं
  10. अज़ीज़ – प्रिय
  11. मज़ार – दरगाह
  12. गुंबद – मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारे के ऊपर बनी गोल छत जिसमें आवाज़ गूँजती है
  13. अज़ान – नमाज़ के समय की सूचना जो मस्जिद की छत या दूसरी ऊँचे जगह पर खड़े होकर दी जाती है
  14. डेरा – अस्थायी पड़ाव
The document पठन सामग्री: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) is a part of the Class 10 Course Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan).
All you need of Class 10 at this link: Class 10
16 videos|201 docs|45 tests

Top Courses for Class 10

FAQs on पठन सामग्री: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. दुसरे के दुख से दुखी होने का मतलब क्या है?
उत्तर: दुसरे के दुख से दुखी होना एक मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति दूसरे के दुख को अपना मान लेता है और इसका असर खुद पर महसूस करता है। यह एक संवेदनशीलता और इंसानी भावना का प्रदर्शन है। कई बार लोग दूसरों के दुख को महसूस करके उनकी मदद करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
2. दुसरे के दुख से दुखी होना क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: दुसरे के दुख से दुखी होना मानवता और सामाजिक सद्भावना का प्रतीक है। यह हमें दूसरों की समस्याओं को समझने, उन्हें सहायता प्रदान करने और उनकी तकलीफ को कम करने के लिए प्रेरित करता है। इससे समाज में एक अच्छे माहौल का निर्माण होता है जहां सभी लोग एक दूसरे के साथ सहयोग करते हैं।
3. दूसरे के दुख को महसूस करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर: दूसरे के दुख को महसूस करने के लिए हमें संवेदनशीलता और सहानुभूति विकसित करनी चाहिए। हमें दूसरों की सुनने और समझने की कोशिश करनी चाहिए, और उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। साथ ही, हमें खुद को भी उनके स्थान पर रखकर उनकी तकलीफ को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
4. दूसरों के दुख को महसूस करने से हमें क्या लाभ हो सकता है?
उत्तर: दूसरों के दुख को महसूस करने से हमें एकात्मता और एकजुटता महसूस होती है। यह हमें समाज में सामरिकता और भाईचारे की भावना विकसित करने में मदद करता है। इससे हमारी दिमागी स्थिति अच्छी होती है और हम एक अनुकरणीय नागरिक बनते हैं।
5. दुसरे के दुख से दुखी होने के फायदे क्या हो सकते हैं?
उत्तर: दुसरे के दुख से दुखी होने के फायदे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे हमें अपने आप की सीमाओं को पार करने और एक सर्वोत्तम इंसान बनने का अवसर मिलता है। यह हमें अल्पता और द्वेष की भावनाओं से मुक्त करता है और हमें अनुभवों के माध्यम से सीखने का मौका देता है।
16 videos|201 docs|45 tests
Download as PDF
Explore Courses for Class 10 exam

Top Courses for Class 10

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

ppt

,

Exam

,

Extra Questions

,

पठन सामग्री: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

,

Viva Questions

,

Previous Year Questions with Solutions

,

practice quizzes

,

mock tests for examination

,

MCQs

,

video lectures

,

Important questions

,

पठन सामग्री: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

,

Free

,

past year papers

,

pdf

,

shortcuts and tricks

,

study material

,

Semester Notes

,

पठन सामग्री: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

,

Summary

,

Sample Paper

,

Objective type Questions

;