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पाठ का सार - राम लक्ष्मण परशुराम संवाद | Chapter Notes for Class 10 PDF Download

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

शिवधनुष टूटने के साथ सीता स्वयंवर की खबर मिलने पर परशुराम जनकपुरी में स्वयंवर स्थान पर आ जाते है। हाथ में फरसा लिए क्राेिधत हो धनुष तोड़ने वाले को सामने आने,  सहस्त्रबाहु की तरह दडिंत होने और न आने पर वहाँ उपस्थित सभी राजाओं को मारे जाने की धमकी देते हैं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम आगे बढ़कर कहते हैं कि धनुष-भंग करने का बड़ा काम उनका कोई दास ही कर सकता है। परशुराम इस पर और क्रोधित होते हैं कि दास होकर भी उसने शिवधनुष को क्यों तोड़ा। यह तो दास के उपयुक्त काम नहीं है। लक्ष्मण परशुराम को यह कहकर और क्रोधित कर देते हैं कि बचपन में शिवधनुष जैसे छोटे कितने ही धनुषों को उन्होंने तोड़ा, तब वे मना करने क्यो  नहीं आए आरै अब जब पुराना आरै कमजाोर धनुष् श्रीराम के हाथों में आते ही टूट गया तो क्यों क्रोधित हो रहे हैं। परशुराम जब अपनी ताकत से ध्रती को कई बार क्षत्रियों से हीन करके बा्र ह्मणों को दान देने और गर्भस्थ शिशुओं तक के नाश करने की बात बताते हैं तो लक्ष्मण उन पर शूरवीरों से पाला न पड़े जाने  का व्यंग्य करते हैं। वे अपने कुल की परंपरा में स्त्राी, गाय और ब्राह्मण पर वार न करके अपकीर्ति से बचने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ स्वयं को पहाड़ और परशुराम को एक  फूँक सिद्ध् करते हैं। ऋषि विश्वामित्रा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए लक्ष्मण को बालक समझकर माफ करने का आगह्र करते है। वे समझाते है। कि राम आरै लक्ष्मण की शक्ति का परशुराम को अंदाजा नहीं है। अंत में लक्ष्मण के द्वारा कही गई गुरुऋण उतारने की बात सुनकर वे अत्यंत क्रुद्ध् होकर फरसा सँभाल लेते हैं। तब सारी सभा में हाहाकार मच जाता है आरै तब श्रीराम अपनी मधुर वाणी से परशुराम की क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने का प्रयास करते हैं।

पाठ का सार - राम लक्ष्मण परशुराम संवाद | Chapter Notes for Class 10

काव्यांशों की व्याख्या

नाथ संभुध्नु भंजनिहारा।
होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
आयेसु काह कहिअ किन मोही।
सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करै सेवकाई
अरिकरनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा।
सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा।
न त मारे जैहहिं सब राजा।।
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने।
बोले परसुधरहि अवमाने।।
बहु धनुही तोरी लरिकाईं।
कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
येहि धनु पर ममता केहि हेतू।
सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

व्याख्या

स्वयंवर सभा में उपस्थित होकर जब परशुराम यह जानना चाहते हैं कि शिवधनुष को किसने तोड़ा है तो श्रीराम विनयपूर्वक अपने स्वाभाविक कोमल वचनों से उन्हें शांत करने की चेष्टा करते हैं। श्रीराम कहते हैं कि हे नाथ! आपके किसी दास के अलावा भला और कौन हो सकता है जो शिवजी के ध्नुष को तोड़ सकता है? इस प्रकार वे अपने आप को उनका सेवक कहते हैं, किंतु उनका क्रोध फिर भी शांत नहीं होता। तो उन्हें खुश करने के लिए श्रीराम पुनः कहते हैं कि यदि आज्ञा हो तो आप जो कुछ कहना चाहते हैं, मुझसे कहें। इस पर परशुराम अत्यंत क्राेिधत होकर बोले- ‘सेवक तो वही होता है जो सवेा का र्काइे कार्य करे, किंतु जो सेवक शत्राु समान कार्य करता है, उसके साथ तो लड़ाई करनी पड़ेगी। सुन लो राम! जिसने भी शिवधनुष तोड़ा है, सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्राु है। वह तुरंत समाज (सभा) से अलग बाहर हो जाए अन्यथा यहाँ उपस्थित सभी राजा मारे जाएंगे।’ परशुराम के इन क्रोधपूर्ण वचनों को सुनकर  लक्ष्मण मकुसराने लगे। अब लक्ष्मण ने व्यंग्यपूर्वक कहा, ‘हे गोसाईं! बचपन में खेल-खेल में न जाने कितनी धनुहियाँ तोड  डालीं, तब तो आपको गुस्सा नहीं आया, पर अब ऐसी कौन-सी खास बात हो गई जिसके कारण आप इतने क्रोध्ति हो रहे हैं? आखिर इस धनुष की क्या विशेषता है जिसके कारण आपको इससे इतना प्रेम और लगाव है?’ लक्ष्मण के व्यंग्यपूर्ण वचनों को सुनकर भृगुवंश की ध्वजा स्वरूप्परशुराम अत्यंत क्रोध्ति होकर बोले- ‘अरे  राजकुमार! तू काल के वश में होकर इस प्रकार की बात बोल रहा है। तुझे तो बोलने का होश भी नहीं है, तू अपने आप को सँभाल। भगवान शंकर का धनुष समस्त विश्व में प्रसिद्ध् है और तू इसकी तुलना सामान्य धनुहियों के साथ कर रहा है? अरे! अबोध् बालक, यह कोई सामान्य धनुष नहीं है।’

विशेष

  1.  यह काव्यांश अवधी भाषा में लिखित है।
  2.  इस चापैाई में शुरू में शातं रस आरै बाद में रादै्र रस का पय्रोग हुआ है।
  3.  काह कहिअ किन, सेवकु सो, करि करिअ, सहसबाहु सम सो, बिलगाउ बिहाइ में अनुप्रास अलंकार की छटा दिखाई देती है।
  4.  ‘सहसबाहु सम सो रिपु मोरा’ और ‘धनुही सम त्रिपुरारिधनु’ में उपमा अलंकार है।

 

लखन कहा हसि हमरे जाना।
सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें।
देखा राम नयन के भोरें।।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू।
मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू । ।
बोले चितै परसु की ओरा।
रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
बालकु बोलि बधैं नहि तोही।
केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
बाल ब्रह्मचारी अति कोही।
बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही।
बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा।
परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

व्याख्या

जब लक्ष्मण ने परशुराम से हँसकर कहा, हे दवे ! सुनिए, हमारे लिए तो सभी धनुष समान हैं। पुराने और कमजोर धनुष के टूटने से क्या दोष और क्या लाभ? रामचंद्र जी ने तो इसे नया समझकर छुआ था और छूते ही वह धनुष टूट गया, उन्हें तो दृष्टि का धेखा हो गया, भला इसमें उनका क्या दोष? अतएव हे मुनिवर! आप व्यर्थ ही क्रोधित हो रहे हैं। 

अब परशुरामजी ने अपने फरसे की ओर देखते हुए कहा - ‘अरे शठ! तूने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना है। मैं तो भला तुझे बालक समझकर नहीं मार रहा और तू मुझे निरा सीध-सादा मुनि समझ रहा है। तो सुन ले - मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों का घोर शत्रु हूँ। मैंने इस पृथ्वी को क्षत्रिय-शून्य कर दिया, फिर इस क्षत्रिय-रहित पृथ्वी को ब्राह्मणों को दे दिया’ कहने का तात्पर्य यह है कि परशुराम ने अपनी शक्ति से असंख्य क्षत्रियों का नाश करके पृथ्वी पर ब्राह्मणों का आधिपत्य स्थापित कर दिया। आगे परशुराम लक्ष्मण को संबोध्ति करते हुए कहते हैं कि, ‘हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काट डालने वाले मेरे इस फरसे की ओर शरा देखो। मेरा फरसा गर्भस्थ शिशु को नष्ट करने की क्षमता रखता है। अतः हे राजपुत्रा! तू अपने माता-पिता को चिंतित मत कर, उन्हें सोचने के लिए मजबूर मत कर।’

विशेष

  1. इसमें अवधी भाषा का और चैपाई छंद का प्रयोग हुआ है।
  2. इसमें मुख्य रूप से रौद्र रस की प्रधनता है।
  3. इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘सठ सुनेहि सुभाउ’, ‘बालकु बोलिबधौं’, ‘बाल बह्र्मचारी’, ‘भुजबल भूमि भूप’ तथा ‘बिपुल बार’ में अनुप्रास अलंकार की निराली छटा है।
     
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FAQs on पाठ का सार - राम लक्ष्मण परशुराम संवाद - Chapter Notes for Class 10

1. Who is involved in the conversation in the article?
Ans. The conversation in the article is between Lord Parashuram, Lord Rama, and Lord Lakshmana.
2. What is the significance of Lord Parashuram in Hindu mythology?
Ans. Lord Parashuram is believed to be the sixth avatar of Lord Vishnu and is known for his exceptional skills in warfare, archery, and other arts. He is also considered as the destroyer of the evil and protector of the good.
3. Why did Lord Parashuram challenge Lord Rama and Lakshmana?
Ans. Lord Parashuram challenged Lord Rama and Lakshmana because he was angry with their act of breaking the bow of Lord Shiva in the context of Sita's swayamvar. Lord Parashuram was a devotee of Lord Shiva and considered the breaking of his bow as an insult to Lord Shiva.
4. What is the moral of the story of the conversation between Lord Parashuram, Lord Rama, and Lakshmana?
Ans. The conversation between Lord Parashuram, Lord Rama, and Lakshmana teaches us about the importance of respecting the beliefs and sentiments of others. It also highlights the significance of forgiveness and how it can help resolve conflicts.
5. What are some other avatars of Lord Vishnu?
Ans. Some other avatars of Lord Vishnu include Lord Krishna, Lord Narasimha, Lord Vamana, Lord Varaha, and Lord Buddha.
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