1.
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।
यह पद मीरा बाई द्वारा अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस पद में मीरा ने अपने जीवन के दुख और संकटों से मुक्ति की प्रार्थना करते हुए उन घटनाओं का स्मरण किया है, जिनमें भगवान ने अपने भक्तों की सहायता की थी।
इस प्रकार, इस पद में मीरा ने विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख करते हुए भगवान से अपने संकटों को हरने की प्रार्थना की है।
शब्दार्थ: हरि = ईश्वर, हरो = हरण करना, जन = लोग, भीर = कष्ट, दुख, लाज = लज्जा ;इश्शतद्ध, चीर = वस्त्रा, भगत = भक्त, नरहरि = नृसिंह रूप, गजराज = ऐरावत, कुंजर = हाथी, पीर = पीड़ा, म्हारी = हमारी।
काव्य-सौंदर्य:
भाव पक्ष:
1. मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना प्रकट हुई है।
2. ईश्वर की भक्तों पर दया करने की आदत पर प्रकाश डाला गया है।
कला पक्ष:
1. भाषा सरल एवं सरस है। भाषा प्रभावोत्पादक भी है।
2. ब्रजभाषा के शब्दों के साथ-साथ राजस्थानी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
3. ‘काटी-कुण्जर’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. पूरे पद में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है।
5. प्रत्येक पंक्ति के अंतिम पद ‘शब्द’ तुकांत है।
6. गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
2.
स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
उँचा उँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।।
इस भजन में मीरा बाई अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना कर रही हैं कि वे उन्हें अपना सेवक बना लें। इस प्रार्थना के माध्यम से मीरा ने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को दर्शाया है।
इस प्रकार, इस भजन में मीरा बाई ने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी पूर्ण भक्ति और समर्पण का मार्मिक चित्रण किया है। उनके लिए भगवान की सेवा और उनके दर्शन जीवन का सबसे बड़ा सुख है।
शब्दार्थ: म्हाने = हमें, चाकर = नौकर, सेवक, राखो = रखो, रहस्यूँ = रहकर, दरसण = दर्शन, पास्यूँ = पाऊँगी, बिन्दरावन = वृंदावन, जागीरी = जागीर, संपत्ति, धेनु = गायें, बणावं = बनाव, पहर = पहनना, जमनाजी = यमुनाजी, तीरां = किनारा, हिवड़ो = हृदय, घणो = ज्यादा, अधीराँ = अधीर ‘व्याकुल’।
काव्य-सौंदर्य:
भाव पक्ष:
1. यहाँ मीराबाई की दास्य-भक्ति परिलक्षित हुई है।
2. मीरा कृष्ण-मिलन के लिए व्यावुफल हो रही हैं।
3. श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य का सजीव वर्णन किया गया है।
कला पक्ष:
1. राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है जो भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. ‘भाव-भगती’, ‘मोर-मुकुट’, ‘मोहन-मुरली’ में अनुप्रास अलंकार है।
3. ‘ऊँचा-ऊँचा’, ‘बिच-बिच’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
4. संपूर्ण पद्य में माधुर्य गुण विद्यमान है और गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
16 videos|201 docs|45 tests
|
1. What is a Pad in Hindi? |
2. What is the difference between a Ghazal and a Pad? |
3. Who are some famous Hindi poets known for their Pad compositions? |
4. What is the significance of Pad in Hindi literature? |
5. What are some common themes found in Hindi Pad literature? |
16 videos|201 docs|45 tests
|
|
Explore Courses for Class 10 exam
|