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1857 का विद्रोह - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

-  1857 में ब्रिटिश राज के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह हुआ।
-  21 मार्च, 1857 को एक नौजवान सैनिक मंगल पाण्डेय ने बैरकपुर में अकेले विद्रोह किया तथा अपने अफसरों पर हमला करने के कारण उसे फाँसी दे दी गयी।
-  24 अप्रैल, 1857 को तीसरी देशी रेजीमेन्ट के 99 सिपाहियों ने कारतूसों को रायफलों में भरने से इन्कार कर दिया क्योंकि कारतूसों को गाय तथा सुअर की चर्बी से बन्द किया जाता था और उसे रायफल में भरते समय दाँत से काटना पड़ता था।
-  24 अप्रैल को विरोध करने वाले सिपाहियों में से 85 को बर्खास्त कर दिया गया तथा उसे 10 वर्ष के लिए कैद करके जेल में डाल दिया गया।
-  85 सैनिकों को जेल में डाले जाने के साथ ही अगले दिन 10 मई, 1857 को दिल्ली से लगभग 50 किलोमीटर दूर मेरठ में सैनिकों ने आम विद्रोह कर दिया। सैनिकों ने अपने अफसरों को मार डाला तथा अपने कैदी साथियों को जेल से छुड़ाकर दिल्ली की तरफ बढ़े।
-  यद्यपि मेरठ में उस समय जनरल हेविट के पास 2200 यूरोपीय सैनिक थे परन्तु उसने विद्रोहियों का पीछा नहीं किया।
-  विद्रोहियों ने 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। दिल्ली में शस्त्रगार के कार्यवाहक लेफ्टीनेंट विलोवी ने विद्रोहियों का प्रतिरोध किया परन्तु उसे पराजित होना पड़ा।
-  विद्रोहियों ने मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय को भारत का बादशाह घोषित किया। बहादुर शाह ने भारत के सभी सरदारों और शासकों को पत्रा लिखकर उनसे अनुरोध किया कि वे भारतीय राज्यों का महासंघ गठित करें जिससे ब्रिटिश राज से संघर्ष किया जा सके और महासंघ ब्रिटिश राज का स्थान ले सके। मराठा सरदार नाना साहब ने स्वयं को सम्राट का पेशवा घोषित किया।
-  विद्रोहियों ने सरकारी कामकाज चलाने के लिए एक परिषद का गठन किया जिसमें सेना तथा नागरिक दोनों प्रशासन के प्रतिनिधि थे।
-  विद्रोह शीघ्र ही समस्त उत्तरी और मध्य भारत में फैल गया।
-  विद्रोह की भावना आधुनिक उत्तर प्रदेश जो उस समय उत्तर पश्चिमी प्रान्त और अवध के नाम से जाना जाता था, में सबसे भयंकर रूप में प्रकट हुई। अवध में सभी वर्गों के लोगों ने विद्रोह में हिस्सा लिया। जून के प्रथम सप्ताह में लखनऊ, कानपुर, बरेली, झाँसी तथा अन्य स्थानों पर विद्रोह हुआ।
-  4 जून को लखनऊ में विद्रोह हुआ जिसका नेतृत्व अवध की बेगम ने किया। अवध की बेगम ने अपने छोटे पुत्रा विरजिस कादर को अवध का नवाब घोषित कर दिया। ब्रिटिश रेजिडेंट हैनरी लारेन्स ने यूरोप निवासियों और लगभग 2000 राजभक्त भारतीय सैनिकों के साथ रेजिडेंसी में शरण ली। विद्रोहियों द्वारा रेजिडेंसी का घेरा डालने के कारण रेजीडेन्सी की रक्षा करते हुए लारेन्स की मृत्यु हो गयी। ब्रिग्रेडियर इग्लिस ने घेरा डालने वालों का प्रतिरोध किया।
 

प्रमुख संस्थाएं व संस्थापक
ब्रह्म समाज (1828)                                  राजाराम मोहन राय।
 तत्वबोधिनी सभा (1839)                           देवेन्द्र नाथ टैगोर।
 ब्रिटिश सार्वजनिक सभा (1843 ई.)               दादा भाई नौरोजी।
 सर्वेंट्स आफ इण्डिया सोसाइटी (1905)         गोपाल कृष्ण गोखले।
 प्रार्थना समाज  (1867)                              केशव चन्द्र सेन।
 आर्य समाज  (1875, बम्बई)                      दयानन्द सरस्वती।
 थियोसोफिकल सोसाइटी                           मैडम ब्लावत्स्की व कर्नल अल्कॅाट ने 1875 में न्यूयार्क में एवं 1886 में भारत में                                                                    अडियार में शुरुआत की। 1893 में श्रीमती एनीबेसेंट द्वारा विकास।
 मोहम्मडन ऐंग्लो ओरियंटल कालेज (1875)    सर सैयद अहमद खाँ।
 इण्डियन एसोसिएशन(1876)                       सुरेन्द्र नाथ बनर्जी।
 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस                                ए. ओ. ह्यूम।
 (28 दिसम्बर, 1885)
 रामकृष्ण मठ (1887, बेंगूलर)।                   स्वामी विवेकानन्द।
 देव समाज (1887, लाहौर)                         सत्यानन्द अग्निहोत्री।
 मुस्लिम लीग (1906)                               सलीम उल्ला, आगा खाँ।
 गदर पार्टी (1913, अमेरिका )                     हर दयाल, परमानन्द, कांशीराम।
 होमरुल लीग (1916)                               बाल गंगाधर तिलक।
 विश्व भारती (1918)                               रवीन्द्र नाथ टैगोर।
 प्रथम अखिल भारतीय ट्रेड                        एन. एम. जोशी।
 यूनियन कांग्रेस (1920)
 हरिजन संघ (1932)                                महात्मा गाँधी।
 खुदाई खिदमतगार (1937)                       अब्दुल गफ्फार खाँ।
 शान्ति निकेतन                                       रवीन्द्र नाथ टैगोर।
 वेद समाज                                             के. के. श्री धरालु नायडू।
 विमेन्स इन्डियन एसोसिएशन                   लेडी सदाशिव अय्यर।
 आजाद हिन्द कांफ्रेंस                                अल्ला बख्श।
 खाकसार पार्टी                                        अल्लमा मशरीकी।
 बहिष्कृत हितकारिणी सभा                       बी. आर. अम्बेडकर।
 स्वराज दल                                            मोती लाल नेहरू व सी. आर. दास।
 मोहम्मडन लिटरेरी सोसाइटी                     अब्दुल लतीफ।
 साइन्टिफिक सोसाइटी                               सर सैयद अहमद।
 तरुण बंगाल आन्दोलन (1826, प. बंगाल)    डेरोजियो।
 अहमदिया आन्दोलन (1899)                     मिर्जा गुलाम अहमद।

 

 

-   हेवलाक और आउट्रम लखनऊ को पुनः जीतने का प्रयास किये परन्तु वे असफल रहे।
-  कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व अन्तिम पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्रा नाना साहब ने किया। 5 जून को नाना साहब ने सिपाहियों की सहायता से अंग्रेजों को हराकर बहादुर शाह को भारत का बादशाह मानकर स्वयं को उनका सुबेदार घोषित किया। नाना साहब को उनके सेनापति तांत्या टोपे से अत्यधिक सहायता मिली। छावनी के कमाण्डर जनरल सर व्हीलर ने 27 जून को आत्मसमर्पण कर दिया।
-  जून के प्रथम सप्ताह में बरेली में सैनिकों ने विद्रोह किया जिसका नेतृत्व वख्त खाँ ने किया था। वह ब्रिटिश फौज में तोपखाने का मामूली सुबेदार था। बरेली में विद्रोह का नेतृत्व करते हुए वह सैनिकों के साथ दिल्ली आया। बरेली में खान बहादुर खान ने स्वयं को नवाब नाजिम घोषित किया। वख्त खां दिल्ली में गठित सैनिकांे की परिषद का प्रधान बनाया गया।
-  दिल्ली में बहादुरशाह प्रतीकात्मक नेता था। वास्तविक नेतृत्व सैनिकों के परिषद के हाथ में थी, जिसका प्रधान वख्त खां था।
-  बादशाह बहादुर शाह का विद्रोह के प्रति रूख सशक्त नहीं रहा। वह विद्रोह के समर्थन में दृढ़ नहीं था तथा विद्रोही सिपाही भी उस पर पूरा विश्वास नहीं करते थे। बहादुर शाह के पुत्रों तथा रानी जीनत महल का अंग्रेजों के साथ मिल जाने के कारण भी उनकी स्थिति कमजोर हो गयी थी।
-  जून के प्रारम्भ में झाँसी में सैनिकों ने विद्रोह किया जिसका नेतृत्व झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया।
-  बिहार में विद्रोह का नेतृत्व आरा के नजदीक जगदीशपुर के एक जमींदार कुँवर सिंह ने किया। कुँअर सिंह को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ तथा गाजीपुर में काफी सफलता मिली।
-  1857 का विद्रोह बिहार के पश्चिमी भाग, अवध, रूहेलखण्ड, बुंदेलखण्ड, आगरा, मेरठ, इलाहाबाद, दिल्ली, रोहतक तथा हिसार में शीघ्र ही साधारण जनता तक फैल गया। पटना, दानापुर, शाहाबाद तथा छोटानागपुर में भी विद्रोह हुआ। मध्य भारत तथा राजस्थान में भी सैनिकों तथा जनता ने विद्रोह किया। असम में एक षडयन्त्रा तैयार किया गया जो समय से पूर्व सूचना मिल जाने के कारण असफल हो गया। बंगाल में ढाका, चटगाँव तथा अन्य स्थानों  पर सैनिक विद्रोह हुए। कोल्हापुर, पूना तथा हैदराबाद में विद्रोह हुए।
-  यद्यपि 1857 का विद्रोह एक विशाल क्षेत्रा में फैल गया और उसे जनता का समर्थन प्राप्त था तथापि यह न तो पूरे भारत में फैल सका और न ही भारतीय समाज के सभी समूहों और वर्गों को अपने प्रभाव में ले सका।
-  भारतीय राज्यों के अधिकतर शासक और बड़े जमींदार विद्रोह में शामिल नहीं हुए अपितु ग्वालियर के सिन्धिया, इन्दौर के होल्कर, हैदराबाद के निजाम, जोधपुर के राजा एवं अन्य राजपूत शासक, भोपाल के नवाब, पटियाला, नाभा, जींद और काश्मीर के शासकों, नेपाल के राजा इत्यादि ने विद्रोह का दमन करने में अंग्रेजों को सक्रिय समर्थन दिया।
-  1857 के विद्रोह की अधिकांश शक्ति हिन्दू-मुसलमान एकता में निहित थी। सैनिकों, जनता और नेताओं के बीच पूर्ण हिन्दू-मुसलमान एकता थी।
-  दिल्ली पर से अंग्रेजों का अधिकार समाप्त होने के पश्चात् पंजाब से सेना बुलाकर उत्तर की ओर से आक्रमण किया गया। विद्रोहियों को पराजित करके 20 सितम्बर, 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया। अंग्रेजों ने सम्राट बहादुर शाह के पुत्रों को मार डाला तथा उसे बंदी बनाकर रंगून भेज दिया जहाँ उसकी 1872 में मृत्यु हो गयी।
-  नवम्बर 1857 में इंग्लैण्ड से आये नये मुख्य सेनापति सर कालिन कैम्पबेल ने गोरखा रेजिमेन्ट की सहायता से लखनऊ में प्रवेश करके यूरोपियों की रक्षा की तथा मार्च 1858 में लखनऊ पर पुनः अधिकार कर लिया।
-  कैम्पबेल ने 6 दिसम्बर को पुनः कानपुर पर अधिकार कर लिया। तांत्या टोपे को वहाँ से भागना पड़ा। नाना साहब पराजित होने के पश्चात् नेपाल चले गये।
-  सर ह्यू रोज ने झाँसी पर आक्रमण करके 3 अप्रैल, 1858 को पुनः उस पर अधिकार कर लिया।
-  रानी लक्ष्मीबाई ने तांत्या टोपे और अपने विश्वासी अफगान रक्षकों की सहायता से ग्वालियर पर कब्जा कर लिया। सिन्धियों ने आगरा में अंग्रेजों से शरण मांगी।
-  17 जून, 1858 को झाँसी की रानी अंग्रेजों से लड़ती हुई वीर गति को प्राप्त हुई और अंग्रेजों का पुनः ग्वालियर पर अधिकार हो गया। तांत्या टोपे फिर बच निकले परन्तु अप्रैल 1859 को उन्हें सिन्धिया के एक सामन्त ने पकड़ लिया और अंग्रेजों ने उन्हें फाँसी पर लटका दिया।
-  कुँअर सिंह ने अंग्रेजों से बिहार में लड़ाई की तथा बाद में उसने नाना साहब की सेनाओं के साथ मिलकर अवध और मध्य भारत में अभियान चलाया। उसने अंग्रेजों को आरा के निकट पराजित किया, परन्तु जख्मी हो जाने के कारण 27 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर गाँव में अपने पैतृक मकान पर उनकी मृत्यु हो गयी।
-  फैजाबाद का मौलवी अहमद उल्ला जो मद्रास का रहने वाला था, अवध में विद्रोह का एक मान्य नेता था। लखनऊ में अंग्रेजों से हार जाने के बाद उसने रूहेलखण्ड में विद्रोह का नेतृत्व किया जहाँ उसे धोखे से पुवाँय के राजा ने मार डाला। अंग्रेजों ने पुवाँय के राजा को 50000 रु. इनाम के रूप में दिया।
-  बनारस में विद्रोह को कर्नल नील ने दृढ़ता-पूर्वक दबा दिया तथा संदिग्ध व्यक्तियों को फाँसी दे दी।
-    विद्रोह के दौरान बम्बई, कलकत्ता और मद्रास के बड़े सौदागरों ने अंग्रेजों का समर्थन किया, क्योंकि उन्हें अपने मुख्य मुनाफे विदेश व्यापार और ब्रिटिश सौदागरों के साथ आर्थिक सम्बन्धों के फलस्वरूप होते थे।
-    1859 के अन्त तक भारत पर ब्रिटिश सत्ता फिर पूरी तरह स्थापित हो गयी।
-    1857 के विद्रोह के स्वरूप के सम्बन्ध में कई मत है जिनमें से दो प्रमुख है- सैनिक विद्रोह तथा जन आन्दोलन।
-    लारेन्स, मालेसन, ट्रेविलियन जैसे अंग्रेज इतिहासकारों ने 1857 के विद्रोह को सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी है, जो केवल सेना तक सीमित था तथा जिसे जन-साधारण का समर्थन नहीं प्राप्त था।
-    सोले के अनुसार, 1857 का विद्रोह पूर्णतया देशभक्ति रहित और स्वार्थी सैनिक विद्रोह था जिसमें न कोई नेतृत्व ही था और न ही इसे सर्व-साधारण का समर्थन प्राप्त था।
-    टी. आर. होम्स के अनुसार यह बर्बरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध था। जेम्स आउट्रम तथा डब्लू. टेलर के अनुसार यह हिन्दू-मुस्लिम षडयन्त्रा का परिणाम था।
-    मुंशी जीवन लाल, मुइनुद्दीन, दुर्गादास बंद्योपाध्याय तथा सैयद अहमद खाँ ने इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह कहा।
-    इंग्लैण्ड में रूढ़िवादी दल के नेता बेन्जामिन डिजरेली ने इसे राष्ट्रीय विद्रोह कहा जो आकस्मिक प्रेरणा नहीं था अपितु एक सचेत संयोग का परिणाम था।
-    अशोक मेहता ने अपनी पुस्तक The Great Rebellion में 1857 के विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह के रूप में सिद्ध करने का प्रयास किया है।
-    वीर सावरकार के अनुसार यह विद्रोह सुनियोजित स्वतन्त्राता संग्राम था।
-    आर. सी. मजुमदार के अनुसार यह विद्रोह सुनियोजित योजना का परिणाम नहीं था तथा इसके पीछे कोई कुशल व्यक्ति नहीं था। इनके अनुसार यह विद्रोह स्वतंत्राता संग्राम भी नहीं था।
-    एस. एन. सेन के अनुसार यह विद्रोह धार्मिक विद्रोह के रूप में प्रारम्भ हुआ और कई स्थानों पर स्वतन्त्राता संग्राम के रूप में परिवर्तित हो गया।
-    डाॅ. एस. वी. चैधरी के अनुसार 1857 का विद्रोह दो प्रकार की अशान्तियों, सैनिक और असैनिक के एकत्रित होने के कारण हुआ।
-    1857 के विद्रोह के पश्चात ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक एक्ट पास करके भारत पर शासन करने का अधिकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी से लेकर ब्रिटिश राजतन्त्रा को सौंप दिया।
-    1858 ई. से भारत पर शासन इंग्लैण्ड के सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में वायसराय करने लगा।
-    1857 के विद्रोह ने भारतीय जनता पर एक अविस्मरणीय छाप छोड़ी और इसके पश्चात् स्वतन्त्राता संग्राम में यह विद्रोह प्रेरणा स्त्रोत बना रहा।

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FAQs on 1857 का विद्रोह - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. 1857 का विद्रोह क्या था?
उत्तर: 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण घटना था, जिसे "सिपाही बाग़ विद्रोह" या "सिपाही मुटिनी" के नाम से भी जाना जाता है। यह विद्रोह 10 मई 1857 से 20 जून 1858 तक चला और ब्रिटिश राज के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रारंभिक घटना के रूप में माना जाता है।
2. 1857 का विद्रोह की मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर: 1857 के विद्रोह के मुख्य कारणों में शामिल हैं आंग्रेज़ी कंपनी के सामरिक नीति, जमींदारी और ग्रामीण समाज के बीच नफरत, सिपाहियों की आदिकारिक और न्यायिक अन्याय, धर्म और सामाजिक असमानता, और विदेशी वस्त्रों के प्रयोग का विरोध शामिल था।
3. 1857 का विद्रोह किस प्रकार सफल रहा?
उत्तर: 1857 का विद्रोह अंततः ब्रिटिश राज के लिए सफल नहीं रहा। हालांकि, विद्रोह के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आधार पैदा हुआ और यह भारतीयों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्त्रोत बना। इसके अलावा, विद्रोह ने ब्रिटिश राज की नीतियों, संगठन और सेना में कई बदलावों का कारण बनाया।
4. 1857 का विद्रोह किस नेता के आह्वान पर प्रारंभ हुआ?
उत्तर: 1857 का विद्रोह मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, बाहादुर शाह जफर और बेगम हजरत महल जैसे नेताओं के आह्वान पर प्रारंभ हुआ। इन नेताओं ने अपनी जनता को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह के लिए प्रेरित किया।
5. 1857 का विद्रोह का परिणाम क्या था?
उत्तर: 1857 का विद्रोह अंततः विद्रोहियों के हार के साथ समाप्त हुआ। ब्रिटिश राज के लिए इसका परिणाम था कि उन्होंने अपनी सत्ता को और मज़बूत किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया चरण दिया। विद्रोह के बाद ब्रिटिश राज ने भारतीय राज्यों को सीधे अधीनता में लेने का फैसला किया और इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अधिक मज़बूती दी।
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