UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi  >  फल और पादप-हारमोन (भाग - 2) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC

फल और पादप-हारमोन (भाग - 2) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

पादप रोग तथा उनसे प्रभावित अंग

पादप रोग

प्रभावित पौधे

पादप रोग

प्रभावित पौधे

स्ट्रीक रोग (Streak disease)

मटर (Sweet Pea)

पीयर ब्लाइट (Pear blight)

हरबीनिया एमाइलोवोरा

सोफ्ट रोट (Soft rot)

आलू

वील्ट रोग (Wilt disease)

मक्का

कैंकर रोग (Canker disease)

टमाटर

श्वेत रस्ट (White rust)

मूली कुस

ब्लैक रस्ट (Black rust)

गेहूँ

लेट ब्लाइट (Late blight)

आलू

ब्लैक वार्ट  (Black wart)

आलू

अरगट (Ergot)

राई

स्मट (Smut)

अनाज

अर्ली ब्लाइट (Early blight)

आलू

डाउनी मिल्डयू (Downy mildew)

मटर

बन्ट  (Bunt)

गेहूँ

रेड रोट (Red rot)

ईख

ब्राउन स्पाॅट (Brown spot)

चावल

टिक्का रोग (Tikka)

मूँगफली

क्लब रोट (Club rot)

मूली

बैकानीज रोग (Bakanese)

चावल

फूड रोट (Food rot)

चावल


कोशिका (Cell)

  • कोशिका किसी प्राणी की मूलभूत संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई है।
  • एक प्रारूपी कोशिका के चारों ओर प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) होती है।
  • पादप कोशिका में प्लाज्मा झिल्ली के चारों ओर कोशिका भित्ति (cell- wall) रहती है।
  • केन्द्रक के बाहर स्थित तरल को कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) कहते हैं जिसमें कोशिका के निर्जीव और सजीव पदार्थ बिखरे रहते है।
  • कोशिका के कुछ निर्जीव पदार्थ है-रिक्तिका, संचित भोज्य पदार्थ जैसे - कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ आदि।
  • कोशिका के सजीव पदार्थ है- क्लोरोप्लास्ट (पादप कोशिका में), माइटोकोन्ड्रिया, गाॅल्गी बाॅडी आदि।
  • कोशिका का केन्द्रक केन्द्रिका (Nucleolus) तथा केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) से निर्मित होता है। 
  • केन्द्रक द्रव्य में क्रोमेटिन का जाल बिछा रहता है जो समय-समय पर संघनित होकर क्रोमोजोम की रचना करते है। क्रोमोजोम प्रोटीन (हिस्टोन और नन-हिस्टोन), DNA और RNA द्वारा बना होता है।    

कोशिका दो प्रकार की होती है-

(i) प्रोकेरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell): इस प्रकार की कोशिका में क्लोरोप्लास्ट, माइटोकोंड्रिया, अन्तः द्रव्य जाल आदि नहीं मिलते; साथ ही केन्द्रक की अपनी केन्द्रक झिल्ली नहीं होती। उदाहरण-बैक्टिरिया, नीला-हरा शैवाल (Blue green algae) आदि।
(ii) यूकेरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell): कोशिका के वे सभी अंग जो प्रोकेरियोटिक कोशिका में अनुपस्थित रहती हैं, यहाँ उपस्थित होती है। उदाहरण-सभी उच्च पादप तथा प्राणी कोशिकाएँ।

कोशिका विभाजन (Cell-division)
मुख्यतः दो प्रकार की होती है-
समसूत्री विभाजन (Mitosis)
- यह कोशिका-विभाजन शरीर के परिवर्द्धन के लिए होता है तथा विभाजन के फलस्वरूप बने कोशिका की क्रोमोजोम संख्या मातृ कोशिका की क्रोमोजोम संख्या के बराबर होती है। 
- दो विभाजन के बीच के काल को इन्टरफेज (Inter-phase) कहते है। इसके चार फेज है-
(i) प्रोफेज (Prophase): केन्द्रक झिल्ली तथा केन्द्रिका विलीन हो जाते है। प्रत्येक क्रोमोजोम द्विगुणित हो जाते है।
(ii) मेटाफेज (Metaphase) दोनों ध्रुवों पर तारक केन्द्रों का बनना; द्विगुणित क्रोमोजोम्स कोशिका के बीच में आ जाते है। क्रोमोजोम्स से तारक केन्द्र से निकले तारक जुड़ जाते है।
(iii) एनाफेज (Anaphase): सेंट्रोमीयर अनुदैध्र्यतः विभाजन करते है। तारक संकुचन के कारण क्रोमेटिक ध्रुव की ओर जाने लगते है।
(iv) टेलोफेज (Telophase): अपने-अपने ध्रुव पर क्रोमोजोम्स संग्रहित होते हैं; केन्द्रिका तथा केन्द्रक झिल्ली बन जाते है।

अर्द्ध-सूत्री विभाजन (Meiosis)

  • यह उन कोशिकाओं में होता है जो लैंगिक जनन में भाग लेते है। 
  • इस विभाजन के फलस्वरूप बनी कोशिका में क्रोमोजोम्स की संख्या मातृ कोशिका के क्रोमोजोम संख्या की आधी हो जाती है। 
  • इसमें दो उपविभाजन होते है जिसे फेज-i तथा फेज-ii कहते है। इस विभाजन के फलस्वरूप 4 कोशिकाएँ बनती है जबकि समसूत्री विभाजन के फलस्वरूप दो कोशिकाएँ ही बनती हैं। फेज-i के नाम है-

प्रोफेज.i: इसके पाँच उप-फेज है-
(a) लेप्टोटीन (Leptotene), (b) जाइगोटीन (Zygotene),
(c) पेकाइटीन (Pachytene), (d) डिप्लोटीन (Diplotene) तथा
(e) डायकीनेसिस (Diakinesis)
- इसी प्रकार अन्य फेज है-मेटाफेज i, एनाफेज i तथा टेलोफेज i। 
- फेज-ii के अंतर्गत प्रोफेज ii, मेटाफेज ii, एनाफेज ii तथा टेलोफेज ii। 
- प्रोफेज i के अतिरिक्त अन्य सभी फेज माइटोसिस की तरह ही होते है।
(a) लेप्टोटीन: क्रोमोजोम्स उपस्थित होने लगते हैं।
(b) जाइगोटिन: होमोलोगस क्रोमोजोम्स का जोड़ा बन जाता है, इसे साइनेप्सिस (Synapsis) कहते है।
(c) पेकाइटीन: क्रासिंग ओवर और चियाज्मा का बनना।
(d) डिप्लोटीन: चियाज्मा नीचे की ओर खिसकने लगते है।
(e) डायकायनेसिस: केन्द्रक झिल्ली तथा केन्द्रिका विलीन हो जाते है।

न्यूक्लिक अम्ल (DNA & RNA)
न्यूक्लिक अम्ल की संरचना पाँच प्रकार के नाइट्रोजनी यौगिकों, सूगर तथा फास्फोरिक अम्ल के संयोग से होती है। इनमें सूगर (पेंटोज सूगर) तथा फाॅस्फोरिक अम्ल (H3PO4) दृढ़ आधार देते है और इससे नाइट्रोजनी यौगिक चिपके हुए रहते है।

  • नाइट्रोजनी यौगिक है-

एडनिन (Adenine); ग्वानिन (Guanine);
थायमिन (Thymine); साइटोसिन (Cytosine); तथा यूरासिल (Uracil)।

कुछ फलों का खाने योग्य भाग

फल का नाम

फलों के प्रकार

फल का खाने योग्य भाग

(अ) एकल फल

 

 

मटर (Pisum sativum = pea)

लेग्यूम

भ्रूण, पूर्ण बीज भी

भिण्डी (Hibiscus esculentus

 

 

= lady's finger = okra)

कैप्सूल

पेरीकार्प तथा बीज (सम्पूर्ण फल)

गेहूँ (Triticum spp = wheat)

कैरिआॅप्सिस

भ्रूणपोष तथा भ्रूण

मक्का (Zea mays = maize)

कैरिआॅप्सिस

भ्रूणपोष तथा भ्रूण

काजू (Anacardium occidentale = cashewnut)

नट

बीजपत्र और माँसल पुष्पवृन्त

लीची (Nephilium litchi = litchi)

नट

माँसल एरिल

सिंघाड़ा (Trapa bispinosa)

नट

बीज

इमली (Tamarindus indica = tamarind)

लोमेण्टम

मध्यभित्ति

मूँगफली (Arachis hypogea = coconut)

लोमेण्टम

भ्रूण

नारियल (Cocos nucifera = groundnut)

ड्रूप

भ्रूण तथा भ्रूणपोष (पूर्ण बीज भी)

अखरोट (Juglans regia = walnut)

ड्रूप

पालिवत् (lobed) बीजपत्र

आम (Mangifera indica = mango)

ड्रूप

मध्यभित्ति

बेर (Zizyphus jujuba = Indian plum)

ड्रूप

बाह्य तथा मध्य भित्ति

अंगूर (Vitis vinifera = grape)

बेरी

फलभित्ति तथा प्लेसेण्टा

सुपारी (Areca catechu)

बेरी

भ्रूणपोष

अमरूद (Psidium guyava = guava)

बेरी

फलभित्ति तथा प्लेसेण्टा

केला (Musa sapientum = banana)

बेरी

मध्यभित्ति तथा अन्तःभित्ति

बैंगन (Solanum melingena = brinjal)

बेरी

फलभित्ति तथा प्लेसेण्टा

टमाटर (Lycopersicum esculentum = tomato)

 

 

खीरा (Cucumis sativus = cucumber)

पेपो

मध्यभित्ति तथा अन्तःभित्ति

खरबूजा (Cucumis melo = musk melon)

 

 

लौकी (Lagenaria vulgaris = Bottle gourd)

 

 

नींबू (Citrus spp = lemon)

हेस्पिरीडियम

अन्तःभित्ति के रसदार एककोशीय रोम

नारंगी (Citrus spp = orange)

 

 

सेब (Pyrus malus = apple)

पोम

माँसल पुष्पासन

नाशपाती (Pyrus communis = pear)

 

 

(ब) पुंजफल (Aggregate fruit = Etaerio)

 

 

कमल (Nelumbium speciosum = lotus)

एकीन का पुंज

पुष्पासन तथा बीज

स्ट्राॅबेरी (Fragaria spp=Strawberry)

एकीन का पुंज

माँसल पुष्पासन

शरीफा (Anona squamosa = custard apple)

बेरी का पुंज

फलभित्ति (शिखर को छोड़कर)

(स) संग्रथित फल (Composite fruit)

 

 

अंजीर (Ficus spp = fig)

साइकोनस

माँसल आशय (receptacle) तथा बीज

अनन्नास (Ananas sativum = pine apple)

सोरोसिस परिदलपुंज और फलभित्ति

ब्राह्यरेकिस, सहपत्र, जुड़ा हुआ

कटहल (Artocarpus integriflia = jack fruit)

सोरोसिस

सहपत्र, परिदलपुंज तथा बीज

शहतूत (Morus indica = mulberry)

सोरोसिस

परिदलपुंज

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FAQs on फल और पादप-हारमोन (भाग - 2) - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. फल और पादप-हारमोन क्या होते हैं?
उत्तर: फल और पादप-हारमोन वे रासायनिक पदार्थ होते हैं जो पौधों में विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन हारमोनों के माध्यम से पौधे अपनी विकास प्रक्रिया, फूलना, फलना और बीज उत्पादन को नियंत्रित करते हैं।
2. फूलने और फलने के लिए कौन से पादप-हारमोन जिम्मेदार होते हैं?
उत्तर: फूलने और फलने के लिए प्राथमिक रूप से गिब्बरेलिक एसिड (Gibberellins) और ऑक्सीन (Auxin) प्रमुख हारमोन होते हैं। गिब्बरेलिक एसिड फूलने को प्रोत्साहित करता है जबकि ऑक्सीन फलने को प्रोत्साहित करता है।
3. फल और पादप-हारमोनों की प्रमुख ग्रुप्स क्या हैं?
उत्तर: फल और पादप-हारमोनों की प्रमुख ग्रुप्स हैं: ऑक्सीन (Auxin), गिब्बरेलिक एसिड (Gibberellins), साइटोकिनिन (Cytokinins), अबसिसिक एसिड (Abscisic Acid) और ईथिलीन (Ethylene)।
4. पादप-हारमोनों का क्या महत्व है?
उत्तर: पादप-हारमोन पौधों के विकास, फूलना, फलना, बीज उत्पादन और रोग प्रतिरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये हारमोन पौधों के अंदरीय औषधीय पदार्थों के रूप में भी उपयोग होते हैं और विभिन्न कृषि और उद्यानिकी उत्पादों में उच्चाधिकारिक सुधार करने में मदद करते हैं।
5. उत्पादन और उपयोग में ईथिलीन का क्या महत्व है?
उत्तर: ईथिलीन पौधों के फूलने, फलने, रसायनी संश्लेषण, बीज उत्पादन और परिपक्वता के लिए महत्वपूर्ण होता है। यह भी उत्पादों के अवसादन, पत्ते की सैन्युक्ति, फूलों की पतन, फलों की पकने की गति आदि में भूमिका निभाता है। इसका उपयोग भी फल और सब्जियों के धीमे पकने को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है।
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