UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi  >  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 1) - सामान्य विज्ञानं

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 1) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

नाभिकीय चिकित्सा

  • नाभिकीय चिकित्सा एक विशेष चिकित्सा प्रणाली है, जिसके तहत परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग किया जाता है। यह एक सुरक्षित, दर्दरहित और लागत प्रभावी तकनीक है, जिससे शरीर का प्रतिबिंबन एवं रोगों का इलाज किया जाता है।। न्युक्लियर मेडिसिन प्रतिबिंबन अपने आप में अनुपम इसलिए है, क्योंकि यह इन्द्रियों की कार्य एवं संरचना को प्रलेखित करता है। इससे पिछले पांच दशकों के दौरान कुछ अबूझ-सी समझी जाने वाली बीमारियों पर से रहस्य का आवरण हटाने में मदद मिली है और कई लाइलाज समझे जाने वाले रोगों के उपचार में भी मदद मिली है।
  • नाभिकीय चिकित्सा का उपयोग गंभीर रोगों के निदान, उपचार और रोकथाम में किया जाता है। नाभिकीय चिकित्सा की प्रतिबिंबन प्रक्रिया से शीघ्र ही असामान्य रोगों का पता लगा लिया जाता है। यह रोग की खोज से लेकर रोग की खोज से लेकर रोग के निदान तक सफलतापूर्वक कार्य करता है। नाभिकीय चिकित्सा बहुत-ही कम मात्रा में रेडियोएक्टिव तत्वों और रेडियोफार्मास्यूटिकल्स का उपयोग करता है। रेडियोफार्मास्यूटिकल्स वह पदार्थ है, जो कि विशिष्ट इन्द्रियों, हड्डी और कोशिका की ओर आकृष्ट हो जाता है। नाभिकीय चिकित्सा में उपयोग होने वाले रेडियोफार्मास्यूटिकल्स गामा किरणों को उत्सर्जित करते हैं, जो कि जल्दी ही बाहरी तौर पर खोज लिये जाते हैं। ऐसा एक विशेष प्रकार के कैमरे, जिसका नाम ‘गामा’ या ‘पी.ई.टी. कैमरा’ है, के कारण संभव हो पाता है। यह कैमरा कम्प्यूटर से मिलकर प्रतिबिंब और डाटा उपलब्ध कराता है। साथ ही, शरीर के उस भाग की सूचना भी देता है, जो कि प्रतिबिंबित है।
  • रेडियोधर्मी विकिरण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं अल्फा, बीटा और गामा किरणें। अल्फा कण धनावेशित होते हैं तथा हीलियम के नाभिकों के समतुल्य होते हैं। बीटा कण ऋणावेशित इलेक्ट्राॅन होते हैं और गामा कण चुंबकीय विकिरण होते हैं। आजकल नाभिकीय चिकित्सा का पेडियाट्रिक्स से लेकर कार्डियोलाॅजी और मनोचिकित्सा तक में सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार की करीब 100 नाभिकीय चिकित्सा प्रतिबिंबन प्रक्रियाएं हैं। शरीर का कोई भी ऐसा भाग या इन्द्रिय नहीं है, जो इससे प्रतिबिबिंत न किया जा सके।
  • आयुर्विज्ञान संबंधी उपयोग में रेडियोन्यूक्लाइडों द्वारा उत्सर्जित अल्फा और बीटा नाभिकीय उत्सर्जनों का उपयोग उपचार हेतु किया जाता है, क्योंकि ये अपने आयनकारी गुणों की वजह से समीपस्थ लक्ष्य कोशिकाओं को नष्ट करने की दृष्टि से प्रभावी पाये गये हैं। अब साइक्लोट्राॅन द्वारा आक्सीजन-15,नाइट्रोजन-13, कार्बन-11 और फ्लोरीन-18 और जेनरेटर द्वारा रूबिडियम-82, काॅपर -62, गैलियम - 68 जैसे पाॅजिट्राॅन उत्सर्जन रेडियोन्यूक्लाइड उपलब्ध हैं, जिनके उपयोग से आक्सीजन उपभोग और चयापचय, प्रमस्तिकीय रक्त बहाव, मायोकार्डियल रक्त बहाव और चयापचय प्रमस्तिष्कीय ग्लूकोज चयापचय ट्यूमर की स्थिति और प्लाज्मा आयतन संबंधी सभी प्रक्रम और तथ्यों की जानकारी संभव है।
  • अंगों की कार्यप्रणाली में हुए बदलावों की जानकारी प्राप्त करने की दृष्टि से भी रेडियो भेषजों का उपयोग अत्यधिक लाभदायक है। रेडियो प्रतिबिंबन का उपयोग अस्थि घनत्व, हृदयवाहिका तंत्रा, फेफड़ों की कार्यप्रणाली, जठर आंत्रा प्रणाली, तिल्ली, केंद्रीय तंत्रिका तंत्रा, मूत्रा पंथ, थाॅइरायड ग्रंथि, पाराथाइराॅयड ग्रंथि और अधिवृक्क ग्रंथ्यिों से संबंधित रोगो के निदान के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है। मिर्गी, पारकिंसन रोग, माइग्रेन जैसी केंद्रीय तंत्रिका तंत्रा से संबंधित बीमारियों के दौरान मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में होने वाले बदलावों को समझने में पाॅजिट्रान एमिशन टोमोग्राफी सकैनिंग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • कोबाल्ट-60, इरीडियम-192 और गोल्ड-199 विकिरण स्रोतों ने विभिन्न कैंसरों के उपचार में महत्वपूर्ण सफलता दिलायी है। रेडियो से कैंसर ट्यूमर का उपचार दो तरह से होता है। पहली विधि में विकिरण उत्सर्जित करने वाले स्रोत  को ट्यूमर के अंदर पहुंचाया जाता है और दूसरी विधि में कोबाल्ट-60 स्रोत से निकलने वाली शक्तिशाली किरणों के पुंज को शरीर के कैंसरग्रस्त हिस्से पर डाल कर रोगों का उपचार किया जाता है। थाइराॅयड ग्रंथि के उपचार में आयोडीन-131 का उपयोग प्रतिबिंबन तथा उपचार दोनों ही कार्यों के लिए किया जाता है।

दूर-संवेदी तकनीक

  • दूर-संवेदन एक ऐसी विधा है, जिससे दूरस्थ घटनाओं और वस्तुओं के करीब आये बिना उनके बारे में हम पर्याप्त सूचना एवं आंकड़े अर्जित कर सकते हैं।
  • जुलाई 1972 में अमेरिका द्वारा पहले अर्थ रिर्सोसेज टेक्नोलाॅजी सैटेलाइट के प्रक्षेपण से एक नये युग का प्रारम्भ हुआ, जिसमें उपग्रह के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के आंकड़ों को सृजित करने की क्षमता बढ़ी।
  • भारत का अपना रिमोट सेंसिंग उपग्रह आई.आर.एस. - 1,19 मार्च, 1988 को प्रक्षेपित हुआ था।
  • इसके कुछ वर्षों बाद ही 29 अगस्त, 1991 को आई.आर.एस. - 1 बी को प्रक्षेपित किया गया। तदोपरान्त 15 अक्टूबर, 1995 को आई.आर.एस. - पी 2 को सफलतापूर्वक छोड़ा गया।
  • इनके अतिरिक्त 28 दिसम्बर, 1995 को भारत ने आई.आर.एस. - 1 सी को प्रक्षेपित करके अंतरिक्ष तकनीकी क्षमता में आश्चर्यजनक कमाल कर दिखाया।
  • आई.आर.एस. - 1सी में 5.8 मीटर रेजोल्यूशन का पैंक्रोमेटिक कैमरा लगा हुआ है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों के सूक्ष्मतम छायाचित्रा तथा उनसे सम्बन्धित अन्य सूचनाएं भी उपलब्ध करायी जा सकती है। 

रिमोट सेंसिंग के उपयोग

  रिमोट सेंसिंग के अन्य उपयोग इस प्रकार हैं

  • प्राकृतिक संसाधनों के आंकड़ों का सृजन
  • प्राकृतिक जल संसाधन
  • भूगत जल संसाधनों
  • वन संसाधन
  • मृदा संसाधन
  • भूमि उपयोगिता का आकलन
  • पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी का आकलन एवं अनुश्रवण
  • प्रदूषण निगरानी
  • जल प्रदूषण
  • समुद्र प्रदूषण
  • भूमि प्रदूषण
  • अव्यवस्थित शहरी प्रसार पर मानचित्राण
  • विपदा प्रबन्ध और शमन
  • सूखे की पूर्व चेतावनी
  • बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी, द्वारा (वनों की आग) आदि से जुड़ी सूचनाओं को एकत्रित करना।

 नाभिकीय चिकित्सा से संबंधित शब्दावलियां

  • प्लानर - यह शरीर के उस भाग का द्वि-विमीय चित्रा  लेता है, जिसका प्रतिबिम्बन किया जाना है।
  • एस.पी.ई.सी.टी. - यह प्रतिबिम्बन किये जाने वाले भाग का चित्रा लेता है।
  • पी.ई.टी. -  यह अत्यधिक ऊर्जा उत्पादित करती है। साथ ही, किसी विशेष भाग के त्रिविमीय चित्रा, उसकी कार्यप्रणाली और अन्य मेटाबोलिक सक्रिय क्षेत्रा की जानकारी देती है।
  • टोमोग्राफी - यह एक प्रणाली है, जिससे किसी एक भाग का आंतरिक तौर पर अध्ययन किया जाता है।
  • न्यूक्लियर मेडिसिनल स्कैन -  इसमें आने वाले इमेज वास्तविक होते हैं, जिनका परीक्षण किया जाना होता है।
  • रेडियोफार्मास्यूटिकल्स - इसे ट्रेसर या रेडियोन्यूक्लाइड कहा जाता है। यह रेडियोएक्टिव कम्पाउण्ड है, जो न्यूक्लियर मेडिसिनल चित्रा के लिए उपयोगी होता है।
  • गामा कैमरा -  इस कैमरे की सहायता से ही चित्रा लिये जाते हैं।
  • इन-विट्रो -  यह टेस्ट ट्यूब में किया जाता है। रेडियोइम्यूनोएसै एक विशिष्ट प्रकार का इन-विट्रो प्रणाली है, जो कि रेडियो केमिकल और एण्टीबाॅडीज के उपयोग से हार्मोन, विटामिन, दवा के स्तर आदि को रोगी के खून में ज्ञात करवाता है।
  • इन-वीवो - यह प्रणाली तब होती है, जब रेडियोफार्मास्यूटिक्लस प्रत्यक्ष रूप से रोगी को दिया जाता है। सामान्य तौर पर ज्यादातर नाभिकीय चिकित्सा प्रणालियां इन-वीवो ही होती है।

 रिमोट सेंसिंग का संगठन

  • अंतरिक्ष विभाग और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा ही सभी रिमोट सेंसिंग परियोजनाओं को कार्यरूप प्रदान किया जाता है।
  • नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेन्सी (NNRMS) हैदराबाद इस कार्यक्षेत्रा में सबसे अग्रणी है जो कि 1978 से ही सर्वोपरि रहा है। इनके अतिरिक्त नेशनल नेचुरल रिर्सोसेज मैनेजमेन्ट सिस्टम (NRSA) बंग्लोर भी इस क्षेत्रा में एक अग्रणी संस्थान है।
  • पांच क्षेत्राीय रिमोट सेंसिंग सर्विस सेन्टर (RRSSC) हैं - देहरादून, बंग्लोर, नागपुर, खडगपुर और जोधपुर जो कि डिजिटल विश्लेषण का प्रबन्ध करते हैं। ये पांचों केन्द्र डिजिटल विश्लेषण में प्रशिक्षण देते हैं और साथ ही राष्ट्रीय परियोजनाओं में भाग लेते हैं।
  • 1980 में अमेरिकी रिमोट सेंसिंग द्वारा कृषि सूचना प्रणाली (AGRISTARTS) का प्रसार किया गया जो कि कृषि और सम्बद्ध संसाधनों से जुड़े तथ्यों का सर्वेक्षण करते हैं।
  • साथ ही 22 राज्यों ने अपने-अपने राज्य में आपरेशनल सेन्टर की स्थापना की है। 

चुम्बकीय प्रणाली

  • शरीर के संवेदनशील हिस्सों के आपरेशन के लिए सर्जन अब चुम्बक की सहायता लेने लगे हैं। इस किस्म का पहला आपरेशन वाशिंगटन में मस्तिष्क के ट्यूमर का किया गया जो  काफी सफल रहा। इस प्रणाली में शरीर चुम्बक से लगे उपकरणों को संचालित करने के लिए सुपरकंडकिटिंग मैगनेट और इमेजिंग साॅफ्टवेयर का सहारा लिया जाता है। आपरेशन के दौरान मरीज के मस्तिष्क के इर्द-गिर्द छह सुपरकंडक्टिंग मैगनेट लगाये जाते हैं। इनके चुम्बकीय क्षेत्रा में परिवर्तन कर मरीज के मस्तिष्क के अंदर चुम्बक को घुमाया जाता है।
  • अभी इस चुम्बकीय प्रणाली का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर के सैम्पल लेने में किया जा रहा है। इसके पहले तक चिकित्सक सैम्पल लेने के लिए मस्तिष्क में एक लम्बी बायोप्सी निडल घुसाते थे। लेकिन इसमें खतरा यह होता है कि निडल जब मस्तिष्क के अंदर गुजरता है तो कई अन्य संवेदनशील हिस्सों का अपूरणीय क्षति हो सकती है। नयी चुम्बकीय प्रणाली में एक पहले लचीले गाइड तार का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक कैथेटर से जुड़ा रहता है और इसके एक सिरे पर चावल के दाने से थोड़ा बड़ा चुम्बक लगा रहता है। आपरेशन के पहले मस्तिष्क की स्कैनिंग कर ली जाती है और इसके सहारे चुम्बक का पथ तैयार कर लिया जाता है। मरीज की खोपड़ी पर धातु के बने छः मार्कर्स रख दिये जाते हैं और इससे मस्तिष्क के थ्री-डायमेंशन इमेज ले ली जाती है जिससे चुम्बक की स्थिति का पता चलता रहता है।
  • सर्जन ज्यों-ज्यों चुम्बक को स्क्रीन पर घुमाते हैं त्यों-त्यों इस प्रणाली से सुपरकंडकिटिंग मैगनेट का चुम्बकीय क्षेत्रा बदलता जाता है और इसी से चुम्बक प्रेरित होकर मरीज के मस्तिष्क में घूमता है। कैथेटर से एक छोटा मोटर जुड़ा होता है जो चुम्बक को गति प्रदान करता है। कम्प्यूटर हर सेकेण्ड लिये गये एक्स-रे जरिये चुम्बक की स्थिति नियंत्रित करता रहता है। चुम्बक जैसे-जैसे मस्तिष्क के अंदर गुजरता है, एक-एक मिलीमीटर पर नजर रखी जाती है। 
  • इस प्रकार सर्जन चुम्बक को ऐसे पथ से ले जाता है कि मस्तिष्क का कोई अन्य संवेदनशील हिस्सा गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त न हो। सामान्यतः चुम्बक करीब 5 मिनट में मस्तिष्क के अंदर रास्ता तय करके संदिग्ध ट्यूमर तक पहुंच जाता है। इसके बाद उस जगह कैथेटर को छोड़कर गाइड तार को निकाल लिया जाता है। फिर कैथेटर में विशेष रूप से डिजाइन किया गया बायोप्सी का तंत्रा डाल दिया जो ट्यूमर का सैम्पल लेता है। इसके पश्चात् कैथेटर और सैम्पल दोनों निकाल लिये जाते हैं।
  • इस प्रणाली का परीक्षण करने वाले वाशिंगटन यूनीवर्सिटी मेडिकल स्कूल के राॅल्फ डेसी का कहना है कि यह एक मौलिक रूप से नया इलाज है जिसमें न्यूनतम सर्जरी की जरूरत पड़ती है। यह प्रणाली बे्रन सर्जरी के क्षेत्रा में क्रांति ला देगी। भविष्य में हम इसके सहारे मस्तिष्क के किसी भी विशेष हिस्से में अति शीघ्र और सरलता से इलेक्ट्रोड और औषधियां डाल सकेंगे। इतना ही नहीं, इस नयी चिकित्सा प्रणाली का उपयोग अन्य संवेदनशील आपरेशनों के लिए भी किया जा सकेगा। भविष्य में यह सम्भव है कि जिन मरीजों को मूवमेंट डिजार्डर है, उनके मस्तिष्क में इस प्रणाली से इलेक्ट्रोड इम्प्लान्ट किया जाये। हार्ट सर्जरी में भी इसका प्रयोग हो सकता है। निस्संदेह यह प्रणाली संवदेनशील आपरेशन के क्षेत्रा में मील का पत्थर साबित होगी।

 वायरलेस इन लोकल लूप

  • चेन्नई के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाॅजी (आईआईटी) ने एक ऐसा वायरलेस सिस्टम विकसित कर लिया है, जो तेज रफ्तार से इंटरनेट से जोड़ सकेगा तथा टेलीफोन काॅल करने या आने के लिए भी लाइन खाली रखेगा। काफी कम कीमत वाला यह सिस्टम आईआईटी की ‘वायरलेस इन लोकल लूप’ तकनीक पर आधारित है तथा सिग्नल भेजने व ग्रहण करने के लिए केसल की बजाय रेडियो फ्रीक्वेंसी प्रयोग करता है। उच्चस्तरीय फोन सेवा प्रदान करने वाली इस तकनीक का चेन्नई में पहले ही प्रदर्शन किया जा चुका है। यह सिस्टम इंटरनेट से जुड़ने का कार्य 35 किलोबाइट्स प्रति सेकेंड की रफ्तार से करता है। 
  • आईटीआई में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अशोक झुनझुनवाला के अनुसार, इसे 70 किलोबाइट्स प्रति सेकेंड की रफ्तार का बनाकर दूरसंचार नेटवर्क में ‘अत्यधिक ट्रैफिक’ की समस्या से भी बचा जा सकेगा। यह सिस्टम इंटरनेट प्रयोग करने वालों को किसी भी टेलीफोन या फैक्स मशीन से जुड़ने की सुविधा देगा। इसमें इंटरनेट से जुड़ने के लिए माॅडम के बिना ही निजी कम्प्यूटर से ‘वायरलेस इन लोकल लूप’ द्वारा जुड़ा जा सकेगा। इसमें एक रिमोट एक्सेस स्विच का प्रयोग भी किया जाता है, जिससे दूरसंचार नेटवर्क की व्यस्तता कम की जा सकेगी।
  • चूंकि उपभोक्ता इसमें ट्रंक नेटवर्क का प्रयोग नहीं करता है, अतः इंटरनेट से जुड़ना महंगा भी नहीं रह जायेगा। इसका एक अतिरिक्त फायदा यह है कि इंटरनेट के प्रयोग के दौरान आप साधारण टेलीफोन काॅल कर सकते हैं या प्राप्त कर सकते हैं। मगर, यदि स्विच को वायर सिस्टम (जो अभी प्रयोग होता है) के साथ ही प्रयोग किया जाये, तो यह सुविधा नहीं मिल सकेगी। भारत में ही निर्मित होने के कारण यह आयात किये गये उत्पादों से सस्ता पड़ेगा। यह मौसम के प्रभावों से मुक्त तथा लगाने व प्रयोग करने में आसान होगा। यह सिस्टम यूरोपियन डिजीटल काॅर्डलेस फोन तकनीक पर आधारित है।
The document विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 1) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
74 videos|226 docs|11 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 1) - सामान्य विज्ञानं - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. नाभिकीय चिकित्सा क्या है?
उत्तर: नाभिकीय चिकित्सा एक तकनीक है जिसमें दूरसंवेदी तकनीक का उपयोग करके रोगी के नाभि में औषधियाँ या इलाज की विभिन्न पदार्थों को आवेशित किया जाता है। इसका उद्देश्य शरीर के अंदर दवा को तत्वरूप से पहुंचाना होता है ताकि विभिन्न रोगों का उपचार किया जा सके।
2. दूर-संवेदी तकनीक क्या है?
उत्तर: दूर-संवेदी तकनीक एक तकनीक है जिसमें विभिन्न उपकरणों का उपयोग करके दूरभाष या दूरसंवेदी माध्यम के माध्यम से जानकारी को संचालित, संग्रहित और विश्लेषित किया जाता है। यह तकनीक विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी होती है, जैसे कि चिकित्सा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, आदि।
3. रिमोट सेंसिंग क्या है और यह कैसे काम करता है?
उत्तर: रिमोट सेंसिंग एक तकनीक है जिसमें दूरसंवेदी तकनीक का उपयोग करके मनुष्य के द्वारा नहीं, बल्क दूसरे उपकरणों द्वारा विभिन्न कार्यों को संचालित करने की क्षमता होती है। इसमें उपकरण एक निर्दिष्ट दूरी से कंट्रोल किया जाता है और इसके लिए वायरलेस या इंटरनेट कनेक्शन का उपयोग किया जाता है। यह तकनीक घरेलू उपयोग से लेकर व्यापारिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी उपयोगी होती है।
4. नाभिकीय चिकित्सा किसलिए महत्वपूर्ण है?
उत्तर: नाभिकीय चिकित्सा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से विभिन्न रोगों का उपचार किया जा सकता है जो शरीर के अंदर विभिन्न तंत्रों या अंगों में संक्रमण या अस्थायी रूप से इलाज की आवश्यकता होती है। यह तकनीक रोगी को आसानी से औषधियाँ पहुंचाने की अनुमति देती है जिससे उपचार का प्रभावी तरीके से संचालन किया जा सकता है।
5. रिमोट सेंसिंग का उपयोग किस-किस क्षेत्र में किया जाता है?
उत्तर: रिमोट सेंसिंग का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि विज्ञान, इंजीनियरिंग, आर्थिक उपयोग, गोल्फ कोर्स इंडस्ट्री, विमानन उद्योग, इत्यादि। इसका उपयोग डाटा संग्रह, निदेशन, नियंत्रण और अनुसंधान में किया जाता है और इससे कार्यों को स्वचालित करने में सुविधा मिलती है।
74 videos|226 docs|11 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Objective type Questions

,

video lectures

,

MCQs

,

practice quizzes

,

Summary

,

Important questions

,

past year papers

,

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 1) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

ppt

,

study material

,

mock tests for examination

,

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 1) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

Extra Questions

,

Viva Questions

,

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 1) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Exam

,

Semester Notes

,

pdf

,

Free

,

shortcuts and tricks

,

Sample Paper

;