स्मरणीय तथ्य
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कम्प्यूटर नेटवर्क की इंट्रानेट तकनीक
इंटरनेट विश्व के विभिन्न स्थानों पर स्थापित कम्प्यूटरों का एक ऐसा नेटवर्क है, जिसके द्वारा विश्व भर में सूचना का आदान-प्रदान काफी जल्द एवं आसानी से हो जाता है। यदि किसी इंटरनेट प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किसी संस्था द्वारा अपनी अंदरुनी सूचना के आदान-प्रदान की क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है, तो उसे ‘इंट्रानेट’ कहते हैं। इसके दो अलग-अलग रूप होते हैं। एक को लोकल एरिया नेटवर्क, तो दूसरे को वाइड एरिया नेटवर्क कहते हैं।
विभिन्न कंपनियों एवं संस्थानों को कई तरह के प्रकाशन छापने होते हैं अथवा उन्हें बांटना होता है, जिसमें काफी धन का व्यय करना पड़ता है। परंतु, इंट्रानेट द्वारा खर्च को काफी हद तक कम करना संभव हो पाता है। एच.टी.एम.एल. (हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज) फाॅरमैट में कोई भी दस्तावेज इंट्रानेट पर भी दर्शाया जा सकता है। इन दस्तावेजों को ग्लोबल इंटरनेट पर भी दर्शाया जा सकता है। इस प्रकार की जानकारी को सुधारा भी जा सकता है। आवाज एवं तस्वीर को डाल कर अंदरुनी संचार को और अधिक आसान एवं मनोरंजक भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा ई-मेल के जरिये निरंतर संपर्क साधा जा सकता है। किसी भी प्रकार की जानकारी, जैसे-लेख, रेखाचित्रा, नक्शे आदि का आदान-प्रदान आसानी से किया जा सकता है। इन दस्तावेजों के गुम होने का भी कोई खतरा नहीं होता है। ई-मेल संचार द्वारा दूसरी कंपनियों से भी संपर्क किया जा सकता है।
इंट्रानेट का मुख्य अवयव एक ‘होस्ट कम्प्यूटर’ होता है, जिसे ‘सर्वर’ कहते हैं इसमें कोई भी कम्पनी अपनी सारी जानकारियां भंडारित कर सकती है। सर्वर में एक सर्वर हार्डवेयर प्लेटफार्म और वेब सर्वर साॅफ्टवेयर होता है। जरूरत पड़ने पर कंप्यूटर पर सर्वर में भंडारित की गयी जानकारी को देखा जा सकता है। इस प्रकार, इंट्रानेट के सही इस्तेमाल से न सिर्फ धन की बचत होती है, बल्कि जानकारी के तीव्र आदान-प्रदान से कंपनी की उत्पादकता एवं क्षमता में वृद्धि भी होती है।
डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिग
मानव शरीर का निर्माण शुक्राणु तथा अंडाणु के मिलने से बने युग्मनज के अनगिनत बार के विभाजन से होता है। इस आदि कोशिका में माता एवं पिता द्वारा प्रदत गुणसुत्रों की संख्या समान होती है। इन गुणसूत्रों को विशेष आनुवंशिकी गुण प्रदान करने वाला कारक डी.एन.ए. होता है। मनुष्य के डी.एन.ए. में चार प्रकार के नाइट्रोजनी क्षार (अर्थात् एडीनिन, ग्वानिन, थाइमिन तथा साइटोसिन) का अनुक्रम भिन्न-भिन्न होता है। पंरतु, एक मनुष्य की सभी कोशिकाओं में इनका अनुक्रम एक समान होता है, जो उस मनुष्य एवं उसके एवं उसके वंश के संबंधियों के अनुरूप ही होता है। इस कारणवश एक व्यक्ति विशेष को अन्य व्यक्तियों से अलग किया जा सकता है। नाइट्रोजनी क्षारों के अनुक्रम के आधार पर किसी व्यक्ति को पहचानने की विधि को ही ‘डी.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग’ कहा जाता हैै।
इस तकनीक का विकास सर्वप्रथम 1985 मे डाॅ. एलेक जेफ्रेज ने किया। इस तकनीक द्वारा अपराधियों की शिनाखत करने में काफी मदद मिली है। अपराध स्थल पर अपराधी द्वारा अपने शरीर के किसी सजीव-निर्जीव भाग, लार, रक्त अथवा अन्य किसी चीज को छोड़े जाने की स्थिति में डी.एन.ए. प्रतिरूप की पहचान कर अपराधी तक पहुंचा जा सकता है। साथ ही, इस विधि से किसी बच्चे के संदिग्ध मातृत्व अथवा पितृत्व की शिनाखत भी की जा सकती है। न्यायालयिक विश्लेषण के लिए जैविक प्रतिदर्श के रूप में रक्त, वीर्य के धब्बे या अवशेष, बाल, त्वचा के टुकड़े, योनि द्रव आदि को लिया जा सकता है।
भारत में इस परीक्षण विधि को हैदराबाद स्थित सेल्यूलर एवं माॅलीक्यूलर बायोलाॅजी केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. लालजी सिंह द्वारा मान्यता प्रदान किया गया। स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्यारिन ‘धनु’ को प्रमाणित करने के लिए श्रीलंका से प्राप्त उसके सगे संबंधियों के रक्त प्रतिदर्शी के डी.एन.ए. प्रतिरूप से उसके डी.एन.ए. प्रोेफाइल की तुलना करा कर उसकी पहचान सुनिश्चित की गयी थी। निश्चित रूप से डी.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग के इस नायाब नुस्खे ने मानव मूल्यों की स्थापना करने में मदद पहुंचायी है।
नई आकशगंगाओं की खोज
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों एवं ज्योतिषियों का ताजा आकलन है कि पूरे ब्रह्मांड में लगभग 125 अरब आकाशगंगाएं हैं। इसके पूर्व किए गए अध्ययन में सिर्फ 80 अरब आकाशगंगाएं होने की बात कही गई थी। ताजे अध्ययन के अनुसार हमारे सौरमंडल के बाहर भी काफी दूर के तारे चारों ओर धूल के छल्ले नजर आते हैं, लिहाजा यह इस बात का सबूत है कि सौरमंडल के बाहर भी उपग्रहों का अस्तित्व है।
इस नई खोज में हबल स्पेस टेलीस्कोप ने ऐसे दो तारों के चित्रा लिए हैं। ये छल्ले जिनके इर्द-गिर्द धूल भरे छल्ले हैं। ये छल्ले संभवतः उपग्रहों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण बने हैं। ये दो तारे हैं एचआर4796 ए और एचडी 141569। ये दोनों तारे धरती से कोई 300 प्रकाश-वर्ष दूर हैं। इन तारों की आयु अपेक्षाकृत कम है, महज एक करोड़ वर्ष। लेकिन ये बेहद चमकीले हैं और सूरज से लगभग दोगुने आकार के हैं। जिस तरह शनि को चन्द्रमाओं के इर्द-गिर्द छल्ले नजर आते हैं, उसी भांति इन तारों के चारों ओर भी उपग्रहों के असर से निर्मित धूल भरे छल्ले बन रहे हैं।
लाॅस एंजिल्स स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के अंतरिक्ष विज्ञानी एलिसिया वेनबर्गर के अनुसार एचडी 141569 नामक तारे के चारों ओर जो छल्ला बना है, उसमें एक काला रिक्त स्थान है। यह रिक्तता भी उपग्रह के गुरुत्वाकर्षणीय प्रभाव से ही आई है। तारों के इर्द-गिर्द ऐसे छल्ले उपग्रहों के असर से ही बनते देखे गए हैं। इसलिए सौरमंडल के बाहर यदि ऐसे छल्ले दिख रहे हों तो इसका आशय साफ है कि वहां उपग्रह मौजूद हैं।
गौरतलब है कि ऐसे छल्ले उस प्रक्रिया के अंग होते हैं जिनसे सौरमंडल की तरह की कोई संरचना बन रही होती है। धूल और गैस एकत्रित होकर नए पिंड का निर्माण शुरु करती हैं। इन्हीं में से कुछ सामग्रियां मिलकर उपग्रहों का निर्माण करने लगती हैं। जब तारा काफी बड़ा हो जाता है तो उसकी आणविक-अग्नि जल उठती है और यह ज्वाला बाकी धूल-गैस को बाहर धकेल देती है जिससे उपग्रह और कुछ घुमन्तू बोल्डर बन जाते हैं। ये बोल्डर आपस में टकरा-टकरा कर चूर होते जाते हैं और फिर धूल कण बन जाते हैं। अगर संबंधित तारे की परिक्रमा कोई उपग्रह नहीं कर रहा है, तब तो यह धूल कण इधर-उधर बिखर जाते हैं। लेकिन यदि कोई उपग्रह चक्कर लगा रहा होता हो तो उसके गुरुत्वाकर्षणीय असर से वे धूलकण एक डिस्क या छल्ले का आकार ले लेते हैं। हमारा सौरमंडल कोई चार अरब वर्ष का है और इसमें सिर्फ एक झीना धुंधला-सा छल्ला है।
तारा एच डी 141569 के इर्द-गिर्द जो डिस्क है, वह लगभग 120 अरब किलोमीटर व्यास वाला है। यह क्षेत्राफल हमारे पूरे सौरमंडल से भी बड़ा हुआ। इस डिस्क में जो रिक्त स्थान है, वह करीब पांच फीसदी है। और यह छल्ला तारे से कोई 34 अरब किलोमीटर दूरी पर बना है। इसी तरह, दूसरे तारे एचआर 4769 ए के इर्द-गिर्द बने छल्ले का व्यास 21 अरब किलोमीटर है और इसकी मोटाई करीब 2.5 अरब किलोमीटर है। यह छल्ला अपने तारे से भी लगभग 2.5 अरब किलोमीटर दूर बना है। इन दोनों तारों के छल्लों के चित्रा हबल में लगे विशेष कैमरे से लिए गए। ये कैमरे इस तरह से बने होते हैं कि वे तारे के बीच से आ रही चमकीली रोशनी को ब्लाक कर देते हैं और तारे के आसपास के क्षेत्रा का चित्रा ले लेते हैं। वैज्ञानिक स्मिथ के अनुसार जो छल्ले नजर आए हैं, वे अभी बेहद क्षीणवस्था में है।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन को ‘हबल डीप फील्ड साउथ’ नाम दिया है। इसके अंर्तगत दक्षिणी वृत्त के एक अत्यंत छोटे हिस्से के आकाश में पूरे दस दिनों तक शक्तिशाली टेलीस्कोप को जमाए रखा गया और करीब 11 अरब प्रकाश-वर्ष दूर स्थित आकाशगंगाओं की तस्वीरें ली गईं। इसके पूर्व उत्तरी वृत्त में भी ‘हबल डीप फील्ड नार्थ’ नामक अध्ययन किया गया था तब आकलन किया गया था कि ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं की संख्या सिर्फ 80 अरब है, लेकिन नई खोज ने इस संख्या को 125 अरब तक पहुंचा दिया है।
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