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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 3) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

स्मरणीय तथ्य

  • ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) द्वारा विकसित ‘इनसैट’ शृखंला के उपग्रह’ ‘इनसैट-3बी’ का प्रक्षेपण फरवरी, 2000 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘एरियन स्पेस’ के जिस प्रक्षेपण यान से किया गया, उसका नाम है - एरियान 5
  • वह उपकरण व्यवस्था, जिससे वाहन काफिले के मार्ग में आने वाला किसी भी प्रकार का विस्फोटक अपने आप नष्ट हो जाता है- जैमर
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ द्वारा नवम्बर ‘99 में जारी रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी को सूर्य की नुकसानदायक किरणों से बचाने वाली वातावरण को ओजोन परत में चीन के क्षेत्राफल के दोगुने के बराबर छिद्र हो गया है। इस छिद्र का आकार लगभग है।- दो करोड़ 20 लाख वर्ग कि.मी.
  • वह धूमकेतु, जिसके कणों की बौछार वायुमंडल में 18 नवम्बर ‘99 को हुई - टेंपल टटल 
  • चीन द्वारा 21 नवम्बर ‘99 को गये ‘पहले मानव रहित अंतरिक्ष यान’ का नाम है - शेनझू (या शेन्झाउ)
  • जानलेवा एच.आई.वी. वायरस (विषाणु) के विस्तार को रोकने के लिए संघर्षरत संयुक्त राष्ट्र की विश्व संस्था के अनुसार इस समय पूरे विश्व में एड्स पीड़ितों की संख्या बढ़कर हो गयी है - 3 करोड़, 36 लाख
  • सितम्बर-अक्टूबर ’99 में रूसी वैज्ञानिकों द्वारा चीन की सीमा के निकट स्थित वह स्थान, जहां शाकाहारी डायनासोर के अवशेष का पता लगाया गया - अमूर नदी घाटी (ब्लागोवेटेंस्क)
  • अमेरिका के ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष एवं उड्डयन प्रशासन’ (नासा) द्वारा चंद्रमा पर भेजा गया वह अंतरिक्ष यान, जिसके सितम्बर’99 में नष्ट हो जाने से वहां पानी के प्रमाण मिलने की संभावनायें धूमिल हो गयी हैं। - प्रोस्पेक्टर
  • समुद्र की अतल गहराइयों में छिपी संपदा व अन्य रहस्यों का पता लगाने के लिए भारत में ही बनाया गया पहला उपग्रह है - आई.आर.एस.पी.- 4
  • जुलाई’99 में ‘चंद्रा’ नामक वेधशाला को अंतरिक्ष में स्थापित करने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष यान ‘कोलम्बिया’ की महिला कमांडर, जो अंतरिक्ष यान के चालक दल का नेतृत्व करने वाली विश्व की पहली महिला हैं (यह यान अपना ऐतिहासिक मिशन पूरा करके 28 जुलाई’99 को कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र पर लौटा) - एलीन काॅलिंस
  • मध्यम दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली वह मिसाइल, जिसका परीक्षण अगस्त’99 में रूस ने भारतीय वायुसेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया - वीमपेल आर-77
  • मुम्बई के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ;ठ।त्ब्द्ध द्वारा विकसित की जा रही एक शक्तिशाली इलेक्ट्राॅन गति वाली मशीन, जिसका उपयोग विकिरण हथियार के रूप में किया जा सकता है - काली-5000
  • पृथ्वी से दस करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थिति वह आकाश गंगा, जिसमें वैज्ञानिकों को ‘ब्लैक होल’ की उपस्थिति का एक और ठोस सबूत मिला है (अगस्त’99) - एन 3516
  • पाकिस्तान द्वारा चीन की सहायता से उत्पादित किया जा रहा अत्याधुनिक टैंक - अल खलीद
  • भारतीय सेना अपनी निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए जिस उपग्रह का सहारा लेगी, उसका नाम है - कार्टोसैट एक
  • उत्तर कोरिया द्वारा जिस लम्बी दूरी के प्रक्षेपास्त्रा ‘ताइपोदोंग’ के परीक्षण की तैयारी की जा रही है, उसकी मारक क्षमता आंकी गयी है - 6000 किलोमीटर
  • भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान द्वारा जुलाई’99 में विकसित किए गये क्रे.वाई.एम.पी. श्रेणी के सुपर कम्प्यूटर से तीन गुनी गति के सुपर कम्प्यूटर का नाम है - अनुपम पेंटियम सुपर कम्प्यूटर
  • समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाने के लिए आधुनिक तकनीक पर आधारित भारत के सबसे बड़े डिसेलिनेशन प्लांट का डिजाइन तैयार करने वाले संगठन का नाम है। - भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड ;ठभ्म्स्द्ध

कम्प्यूटर नेटवर्क की इंट्रानेट तकनीक
 इंटरनेट विश्व के विभिन्न स्थानों पर स्थापित कम्प्यूटरों का एक ऐसा नेटवर्क है, जिसके द्वारा विश्व भर में सूचना का आदान-प्रदान काफी जल्द एवं आसानी से हो जाता है। यदि किसी इंटरनेट प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किसी संस्था द्वारा अपनी अंदरुनी सूचना के आदान-प्रदान की क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है, तो उसे ‘इंट्रानेट’ कहते हैं। इसके दो अलग-अलग रूप होते हैं। एक को लोकल एरिया नेटवर्क, तो दूसरे को वाइड एरिया नेटवर्क कहते हैं।

 

विभिन्न कंपनियों एवं संस्थानों को कई तरह के प्रकाशन छापने होते हैं अथवा उन्हें बांटना होता है, जिसमें काफी धन का व्यय करना पड़ता है। परंतु, इंट्रानेट द्वारा खर्च को काफी हद तक कम करना संभव हो पाता है। एच.टी.एम.एल. (हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज) फाॅरमैट में कोई भी दस्तावेज इंट्रानेट पर भी दर्शाया जा सकता है। इन दस्तावेजों को ग्लोबल इंटरनेट पर भी दर्शाया जा सकता है। इस प्रकार की जानकारी को सुधारा भी जा सकता है। आवाज एवं तस्वीर को डाल कर अंदरुनी संचार को और अधिक आसान एवं मनोरंजक भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा ई-मेल के जरिये निरंतर संपर्क साधा जा सकता है। किसी भी प्रकार की जानकारी, जैसे-लेख, रेखाचित्रा, नक्शे आदि का आदान-प्रदान आसानी से किया जा सकता है। इन दस्तावेजों के गुम होने का भी कोई खतरा नहीं होता है। ई-मेल संचार द्वारा दूसरी कंपनियों से भी संपर्क किया जा सकता है।
 

इंट्रानेट का मुख्य अवयव एक ‘होस्ट कम्प्यूटर’ होता है, जिसे ‘सर्वर’ कहते हैं इसमें कोई भी कम्पनी अपनी सारी जानकारियां भंडारित कर सकती है। सर्वर में एक सर्वर हार्डवेयर प्लेटफार्म और वेब सर्वर साॅफ्टवेयर होता है। जरूरत पड़ने पर कंप्यूटर पर सर्वर में भंडारित की गयी जानकारी को देखा जा सकता है। इस प्रकार, इंट्रानेट के सही इस्तेमाल से न सिर्फ धन की बचत होती है, बल्कि जानकारी के तीव्र आदान-प्रदान से कंपनी की उत्पादकता एवं क्षमता में वृद्धि भी होती है।

डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिग
 मानव शरीर का निर्माण शुक्राणु तथा अंडाणु के मिलने से बने युग्मनज के अनगिनत बार के विभाजन से होता है। इस आदि कोशिका में माता एवं पिता द्वारा प्रदत गुणसुत्रों की संख्या समान होती है। इन गुणसूत्रों को विशेष आनुवंशिकी गुण प्रदान करने वाला कारक डी.एन.ए. होता है। मनुष्य के  डी.एन.ए. में चार प्रकार के नाइट्रोजनी क्षार (अर्थात् एडीनिन, ग्वानिन, थाइमिन तथा साइटोसिन) का अनुक्रम भिन्न-भिन्न होता है। पंरतु, एक मनुष्य की सभी कोशिकाओं में इनका अनुक्रम एक समान होता है, जो उस मनुष्य एवं उसके एवं उसके वंश के संबंधियों के अनुरूप ही होता है। इस कारणवश एक व्यक्ति विशेष को अन्य व्यक्तियों से अलग किया जा सकता है। नाइट्रोजनी क्षारों के अनुक्रम के आधार पर किसी व्यक्ति को पहचानने की विधि को ही ‘डी.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग’ कहा जाता हैै।
 इस तकनीक का विकास सर्वप्रथम 1985 मे डाॅ. एलेक जेफ्रेज ने किया। इस तकनीक द्वारा अपराधियों की शिनाखत करने में काफी मदद मिली है। अपराध स्थल पर अपराधी द्वारा अपने शरीर के किसी सजीव-निर्जीव भाग, लार, रक्त अथवा अन्य किसी चीज को छोड़े जाने की स्थिति में डी.एन.ए. प्रतिरूप की पहचान कर अपराधी तक पहुंचा जा सकता है। साथ ही, इस विधि से किसी बच्चे के संदिग्ध मातृत्व अथवा पितृत्व की शिनाखत भी की जा सकती है। न्यायालयिक विश्लेषण के लिए जैविक प्रतिदर्श के रूप में रक्त, वीर्य के धब्बे या अवशेष, बाल, त्वचा के टुकड़े, योनि द्रव आदि को लिया जा सकता है।
 भारत में इस परीक्षण विधि को हैदराबाद स्थित सेल्यूलर एवं माॅलीक्यूलर बायोलाॅजी केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. लालजी सिंह द्वारा मान्यता प्रदान किया गया। स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्यारिन ‘धनु’ को प्रमाणित करने के लिए श्रीलंका से प्राप्त उसके सगे संबंधियों के रक्त प्रतिदर्शी के डी.एन.ए. प्रतिरूप से उसके डी.एन.ए. प्रोेफाइल की तुलना करा कर उसकी पहचान सुनिश्चित की गयी थी। निश्चित रूप से डी.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग के इस नायाब नुस्खे ने मानव मूल्यों की स्थापना करने में मदद पहुंचायी है।

नई आकशगंगाओं की खोज
 अंतरिक्ष वैज्ञानिकों एवं ज्योतिषियों का ताजा आकलन है कि पूरे ब्रह्मांड में लगभग  125 अरब आकाशगंगाएं हैं। इसके पूर्व किए गए अध्ययन में सिर्फ 80 अरब आकाशगंगाएं होने की बात कही गई थी। ताजे अध्ययन के अनुसार हमारे सौरमंडल के बाहर भी काफी दूर के तारे चारों ओर धूल के छल्ले नजर आते हैं, लिहाजा यह इस बात का सबूत है कि सौरमंडल के बाहर भी उपग्रहों का अस्तित्व है।
 इस नई खोज में हबल स्पेस टेलीस्कोप ने ऐसे दो तारों के चित्रा लिए हैं। ये छल्ले जिनके इर्द-गिर्द धूल भरे छल्ले हैं। ये छल्ले संभवतः उपग्रहों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण बने हैं। ये दो तारे हैं एचआर4796 ए और एचडी 141569। ये दोनों तारे धरती से कोई 300 प्रकाश-वर्ष दूर हैं। इन तारों की आयु अपेक्षाकृत कम है, महज एक करोड़ वर्ष। लेकिन ये बेहद चमकीले हैं और सूरज से लगभग दोगुने आकार के हैं। जिस तरह शनि को चन्द्रमाओं के इर्द-गिर्द छल्ले नजर आते हैं, उसी भांति इन तारों के चारों ओर भी उपग्रहों के असर से निर्मित धूल भरे छल्ले बन रहे हैं।
 लाॅस एंजिल्स स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के अंतरिक्ष विज्ञानी एलिसिया वेनबर्गर के अनुसार एचडी 141569 नामक तारे के चारों ओर जो छल्ला बना है, उसमें एक काला रिक्त स्थान है। यह रिक्तता भी उपग्रह के गुरुत्वाकर्षणीय प्रभाव से ही आई है। तारों के इर्द-गिर्द ऐसे छल्ले उपग्रहों के असर से ही बनते देखे गए हैं। इसलिए सौरमंडल के बाहर यदि ऐसे छल्ले दिख रहे हों तो इसका आशय साफ है कि वहां उपग्रह मौजूद हैं।
 गौरतलब है कि ऐसे छल्ले उस प्रक्रिया के अंग होते हैं जिनसे सौरमंडल की तरह की कोई संरचना बन रही होती है। धूल और गैस एकत्रित होकर नए पिंड का निर्माण शुरु करती हैं। इन्हीं में से कुछ सामग्रियां मिलकर उपग्रहों का निर्माण करने लगती हैं। जब तारा काफी बड़ा हो जाता है तो उसकी आणविक-अग्नि जल उठती है और यह ज्वाला बाकी धूल-गैस को बाहर धकेल देती है जिससे उपग्रह और कुछ घुमन्तू बोल्डर बन जाते हैं। ये बोल्डर आपस में टकरा-टकरा कर चूर होते जाते हैं और फिर धूल कण बन जाते हैं। अगर संबंधित तारे की परिक्रमा कोई उपग्रह नहीं कर रहा है, तब तो यह धूल कण इधर-उधर बिखर जाते हैं। लेकिन यदि कोई उपग्रह चक्कर लगा रहा होता हो तो उसके गुरुत्वाकर्षणीय असर से वे धूलकण एक डिस्क या छल्ले का आकार ले लेते हैं। हमारा सौरमंडल कोई चार अरब वर्ष का है और इसमें सिर्फ एक झीना धुंधला-सा छल्ला है।
 तारा एच डी 141569 के इर्द-गिर्द जो डिस्क है, वह लगभग 120 अरब किलोमीटर व्यास वाला है। यह क्षेत्राफल हमारे पूरे सौरमंडल से भी बड़ा हुआ। इस डिस्क में जो रिक्त स्थान है, वह करीब पांच फीसदी है। और यह छल्ला तारे से कोई 34 अरब किलोमीटर दूरी पर बना है। इसी तरह, दूसरे तारे एचआर 4769 ए के इर्द-गिर्द बने छल्ले का व्यास 21 अरब किलोमीटर है और इसकी मोटाई करीब 2.5 अरब किलोमीटर है। यह छल्ला अपने तारे से भी लगभग 2.5 अरब किलोमीटर दूर बना है। इन दोनों तारों के छल्लों के चित्रा हबल में लगे विशेष कैमरे से लिए गए। ये कैमरे इस तरह से बने होते हैं कि वे तारे के बीच से आ रही चमकीली रोशनी को ब्लाक कर देते हैं और तारे के आसपास के क्षेत्रा का चित्रा ले लेते हैं। वैज्ञानिक स्मिथ के अनुसार जो छल्ले नजर आए हैं, वे अभी बेहद क्षीणवस्था में है।
 अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन को ‘हबल डीप फील्ड साउथ’ नाम दिया है। इसके अंर्तगत दक्षिणी वृत्त के एक अत्यंत छोटे हिस्से के आकाश में पूरे दस दिनों तक शक्तिशाली टेलीस्कोप को जमाए रखा गया और करीब 11 अरब प्रकाश-वर्ष दूर स्थित आकाशगंगाओं की तस्वीरें ली गईं। इसके पूर्व उत्तरी वृत्त में भी ‘हबल डीप फील्ड नार्थ’ नामक अध्ययन किया गया था तब आकलन किया गया था कि ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं की संख्या सिर्फ 80 अरब है, लेकिन नई खोज ने इस संख्या को 125 अरब तक पहुंचा दिया है।

 

स्मरणीय तथ्य

  • ‘पेर लिंडस्ट्रैंड’ और ‘क्रिसलर डेमलर’ द्वारा यूरोपीय स्पेस एजेंसी के लिए डिजाइन किया गया वह एयरशिप, जो सौर ऊर्जा से संचालित होगा और आकाश में दूरसंचार नेटवर्क का काम करेगा - ‘हेल एयरशिप’ (हाई अल्टीट्यूड लाॅग एंड्यरेंस एयरशिप)
  • सूर्य की तुलना में 30 गुना ज्यादा गर्म (एक लाख 70 हजार डिग्री सेल्सियस) वह ‘व्हाइट ड्वार्फ’ तारा, जिसमें चल रही परमाणु संलयन प्रक्रिया का अध्ययन जर्मनी में ‘प्रो.क्लाउस वर्नर’ के नेतृत्व में तुएबिंगेन विश्वविद्यालय के खगोलविदों ने किया है - एच.आई 504 जोड 65
  • अमेरिकी संस्था ‘नेशनल एयरोनाॅटिकल स्पेस एजेंसी’ (नासा) द्वारा 23 जुलाई’99 को अंतरिक्ष की कक्षा में ‘कोलंबिया’ अंतरिक्ष यान द्वारा स्थापित की गयी दुनिया की वह सबसे बड़ी और खर्चीली वेधशाला (दो अरब 70 करोड़ डाॅली की लागत वाली), जिसका नाम भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार प्राप्त अमेरिकी वैज्ञानिक ‘सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर’ के नाम पर रखा गया है - चंद्रा एक्सरे ओब्जर्वेटरी
  • ‘चंद्रा’ नासा की तीसरी अंतरिक्ष वेधशाला है। इसके पहले नासा द्वारा अंतरिक्ष में भेजी गयी दो अन्य वेधशालाओं के नाम क्रमशः हैं - ‘हबल’ व ‘काम्पटन गामा रे’ आब्जर्वेटरी
  •  ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला’ डी.आर.डी.एल.) द्वारा प्रस्तावित वह राॅकेट, जिसका डिजाइन और विकास अगली सहस्राब्दि के उसके एजेंडे में शीर्ष पर रखा गया है - हाइपरप्लेन
  • ‘डिफेंस इंस्टीट्यूट आॅफ फिजियोलाॅजी एंड एप्लायड साइन्सेस’ और ‘इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के वैज्ञानिकों द्वारा नीम के तेल की मदद से विकसित किया गया गर्भ निरोधक - काॅमसेप्ट
  • 13 जून’99 से शुरू भारत का अपना पहला सिंक्रोटाॅन विकिरण स्रोत, जिसकी स्थापना इंदौर स्थित ‘सेंटर फाॅर एडवांस्ड टेक्नालाॅजी’ में की गयी है - इंडस-I
  • भारत के निकट स्थित वह महासागर, जिसकेऊपर करीब एक करोड़ वर्ग किलोमीटर के दायरे में प्रदूषण के महीन कणों के बादल का पता चला है और जो तट से करीब 1600 किलोमीटर दूर है - हिन्द महासागर
  • भारत में कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए चावल, संकर चावल प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी, जनन द्रव्य का संग्रह तथा आदान-प्रदान, चावल पर आधारित फसल प्रणाली सुधार व विकास पर अनुसंधान के लिए ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ (आई.सी.ए.आर.) और ‘अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान’ (ईरी) के बीच 14 जून, 1999 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। ‘ईरी’ का मुख्यालय है - मनीला (फिलीपीन्स) में
  • वह ग्रह, जिसे ‘रक्त ग्रह’ के नाम से जाना जाता है - मंगल ग्रह
  • रूस द्वारा विकसित किया जा रहा वह उपग्रह, जो भूकंप आने की भविष्यवाणी पहले ही कर सकेगा - प्रीवेस्तनिक ई.
  • वह देश, जहां के वैज्ञानिकों ने विलुप्त हो रहे ‘पांडा’ का क्लोन बनाने का दावा किया है - चीन
  • 26 मई’99 को भारत द्वारा आंध्र प्रदेश के ‘श्री हरिकोटा- से ‘पोलर सेटेलाइट लांच वेहिकल-सी-2' (पी.एस.एल.वी- सी-2) सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस राॅकेट द्वारा जर्मनी का एक उपग्रह (डी.एल.आर.टवसैट), दक्षिण कोरिया का एक उपग्रह (किटसेट-3) तथा भारत का अपना एक उपग्रह अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया गया। भारतीय उपग्रह का नाम है - आई.आर.एस. पी-4
  • काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कालाजार मेडिकल रिसर्च सेंटर के चिकित्सकों द्वारा खोजी गयी कालाजार की कारगर कैप्सूल रूपी दवा का नाम - मिंटेफोसिन

 

 

 

स्मरणीय तथ्य

  • भारत का वह बहुउद्देशीय संचार उपग्रह, जिसे अप्रैल’99 को कौरू (फ्रेंच गुयाना) अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया - इनसेट-2
  • टर्मिनेटर जीन के बाद प्रकाश में आयी वह प्रौद्योगिकी, जिसकी मदद से न केवल फसलों, बल्कि पशुधन के प्राकृतिक जीन ढ़ांचे को भी बदला जा सकता है और जिससे किसान भारी संकट में फंस सकते हैं - ट्रेटर
  • अमेरिका का वह शहर, जहां से एक करोड़ वर्ष पुराने डायनासोर का जीवाश्म मिला है- - उथाह
  •  पृथ्वी पर स्थित एक वर्ग मीटर तक के आकार की किसी वस्तु का चित्रा अंतरिक्ष से ले सकने वाला उच्च क्षमता सम्पन्न विश्व का पहला व्यावसायिक उपग्रह, जिसे 27 अप्रैल’99 को कैलिफो£नया (अमेरिका) के बन्देनबर्ग वायुसैनिक अड्डे से प्रक्षेपित किया गया - इकोनास
  • 26 अप्रैल’99 को रूस के चेर्नोबिल परमाणु त्रासदी की तेरहवीं वर्षगांठ पर दुनिया भर के हजारों कम्प्यूटरों को नुकसान पहुंचाने वाला वायरस- - चेर्नोबिल
  •  वह रोगनिवारक जीवतत्वीय प्रोटीन, जिसे क्लोनीकृत भेड़ों के दूध में विकसित कर लिया गया है - एंटीथ्रोम्बिन
  •  इंग्लैंड में टीवी दर्शकों के लिए बना एक ऐसा उपकरण, जो कार्यक्रमों के अश्लील शब्दों को बदल देगा - टी वी गा£जयन
  • अमेरिकी संस्था ‘नासा’ द्वारा वर्ष 2001 में मंगल ग्रह पर भेजे जाने वाले उपग्रह 
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FAQs on विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भाग - 3) - सामान्य विज्ञानं - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्या है?
उत्तर: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एक अध्ययन क्षेत्र है जो मानव ज्ञान के विभिन्न पहलुओं को शामिल करता है। इसमें विज्ञान, इंजीनियरी, तकनीकी, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान आदि शामिल होते हैं। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नवीनतम विकासों का अध्ययन करता है और इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में नवीनतम और उत्कृष्ट तकनीकों के रूप में किया जाता है।
2. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधुनिक समय की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह समाज के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के द्वारा हम समस्याओं का समाधान ढूंढ़ते हैं, नई और उत्कृष्ट तकनीकों का विकास करते हैं, और जीवन को सुगम और आरामदायक बनाने के लिए नई आविष्कारों को लाते हैं।
3. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सरकारी नौकरी के अवसर क्या हैं?
उत्तर: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सरकारी नौकरी की कई अवसर हैं। यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं: - वैज्ञानिक: भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, आदि में विशेषज्ञता के साथ सरकारी वैज्ञानिक नौकरी के अवसर होते हैं। - इंजीनियर: मैकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, आदि में विशेषज्ञता के साथ सरकारी इंजीनियरिंग नौकरी के अवसर होते हैं। - डॉक्टर: प्रशासनिक, नगरिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अनुसंधान, आदि में विशेषज्ञता के साथ सरकारी चिकित्सा नौकरी के अवसर होते हैं।
4. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रमुख शाखाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कई प्रमुख शाखाओं में विभाजित होती है। यहां कुछ प्रमुख शाखाएं दी गई हैं: - भौतिकी: यह विज्ञान की शाखा है जो पदार्थों, ऊर्जा और उनके गतिविधियों का अध्ययन करती है। - रसायन विज्ञान: यह विज्ञान की शाखा है जो पदार्थों के रासायनिक गुणों, संरचना, गुणधर्म और उपयोग का अध्ययन करती है। - जीवविज्ञान: यह विज्ञान की शाखा है जो जीवन, जीवों के विकास, जीव-प्रजनन, और जीवों के अध्ययन के साथ संबंधित है। - गणित: यह विज्ञान की शाखा है जो नंबर, संख्याओं, गणितीय संवेदनशीलता, और गणितीय विचार का अध
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