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मात्रक एवं राशियां

अन्तर्राष्ट्रीय मात्रक पद्धति (System International (S.I.) of Units) : इस पद्धति में सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मूल मात्रक प्रयुक्त किए जाते है।
सात मूल मात्रक हैं

  • मीटर (लम्बाई के लिए),
  • किलोग्राम (द्रव्यमान के लिए),
  • सेकंड (समय के लिए),
  • केल्विन (ताप के लिए),
  • एम्पियर (विद्युत धारा के लिए),
  • केंडिला (ज्योति तीव्रता के लिए),
  • मोल (पदार्थ की मात्रा के लिए)

पूरक मूल मात्रक हैं

  • रेडियन (तलीय कोण के लिए) तथा 
  • स्टेरेडियन (घन कोण के लिए)।
  • जिन राशियों को केवल परिमाण से पूर्णतया व्यक्त किया जा सके उन्हें अदिश राशि (scalar quantities) कहते हैं। किसी राशि के अदिश होने का अर्थ है कि उसमें दिशा नहीं होती। अदिश राशियों का योग, घटाव, गुणन एवं भाग बीजगणित के नियमों के अनुसार होता है।
  • अदिश राशियों के उदाहरण हैं- द्रव्यमान (mass), लम्बाई, आयतन, समय, चाल, घनत्व, ऊर्जा, ताप (temperature), धारा इत्यादि। इन राशियों के मान केवल परिमाण (magnitude) द्वारा व्यक्त किए जा सकते है।
  • जिन राशियों के परिमाण (magnitude) तथा दिशा (direction) दोनों होते हैं और जो योग के निश्चित नियमों के अनुसार जोड़ी जाती है उन्हें सदिश राशि (vector quantities) कहते हैं।
  • सदिश राशियों के उदाहरण हैं- विस्थापन, वेग, त्वरण, बल, बल-आघूर्ण, विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता आदि।

न्यूटन का गति-नियम

महान वैज्ञानिक सर आइज़क न्यूटन ने सर्वप्रथम सन् 1687 में अपनी पुस्तक प्रिंसिपिया (Principia) में गति विषयक नियमों को प्रतिपादित किया।

न्यूटन का प्रथम गति-नियम

सामान्य भौतिकी (भाग - 1) - भौतिकी विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindiअचानक बस चलने पर पीछे की ओर गिरते यात्री

  • इस नियम के अनुसार यदि कोई वस्तु विरामावस्था में है या एक सरल रेखा में समान वेग से गतिशील रहती है, तो उसकी विरामावस्था या समान गति की अवस्था में परिवर्तन तभी होता है, जब उस पर कोई बाह्य बल लगाया जाता है। इस नियम को ‘जड़त्व’ का नियम भी कहते है।
  • बल की परिभाषा का ज्ञान हमें न्यूटन के प्रथम गति नियम से तथा बल की माप द्वितीय गति नियम से प्राप्त होती है।

न्यूटन का द्वितीय गति-नियम

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  • किसी असंतुलित बल द्वारा किसी वस्तु में उत्पन्न किया गया त्वरण बल के समानुपाती और वस्तु के द्रव्यमान के व्युत्क्रमानुपाती होता है तथा त्वरण की दिशा बल की दिशा में होती हैं।

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न्यूटन का तृतीय गति-नियम

सामान्य भौतिकी (भाग - 1) - भौतिकी विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindiएक गुब्बारा हवा निकलने की विपरीत दिशा में गति करता है 

  • क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर और विपरीत दिशाओं में होती है और दो भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर कार्य करती है।
    (i) एक मेज पर पड़ी एक किताब अपने भार के बराबर एक बल मेज पर नीचे की ओर लगाती है। प्रतिक्रियास्वरूप, मेज एक बराबर बल किताब पर ऊपर की ओर लगाती है।
    (ii) बन्दूक चलानेवाले को गोली की विपरीत दिशा में धक्का लगता है।
    (iii) जब कोई व्यक्ति नदी या झील में नाव से किनारे पर कूदता है तो नाव गतिशील हो जाती है।
    (iv) जेट विमान एवं राकेट का प्रचालन।

कार्य, शक्ति और ऊर्जा

  • बल द्वारा जब किसी वस्तु को विस्थापित किया जाता है, तभी कार्य हुआ माना जाता है।
  • पुस्तक को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने में, कुएँ से पानी खींचने, में बैल द्वारा हल खींचने में, इंजन द्वारा गाड़ी खींचने आदि में कार्य हुआ कहा जाता है।
  • जब कोई व्यक्ति बोझ को जमीन से ऊपर उठाता है तो कार्य पृथ्वी के आकर्षण-बल के विरुद्ध होता है। परंतु जब तक वह बोझ को सिर पर रखकर स्थिर रहता है तब तक कार्य नहीं होता, भले ही उसके सिर से लगता हुआ बल बोझ के भार को सँभाले हो। फिर, जब वह व्यक्ति बोझ को नीचे गिरा देता है तब कार्य पृथ्वी के आकर्षण द्वारा होता है।
  • कार्य करने की समय दर को शक्ति अथवा सामर्थ्य (power) कहते है।
  • व्यवहार में मशीनों की शक्ति अश्व-शक्ति (Horse Power या H.P) में व्यक्त की जाती है। 1 H. P. - 746 वाट (लगभग)।
  • किसी वस्तु (या कर्ता) के कार्य करने की क्षमता (capacity) को उस वस्तु (या कत्र्ता) की ऊर्जा (energy) कहते है।
  • वस्तु (या कर्ता) द्वारा किया गया कार्य उसकी ऊर्जा की माप है। यहाँ कुल कार्य करने में लगे समय का ख्याल नहीं किया जाता। ऊर्जा और शक्ति में अन्तर-
    (i) ऊर्जा कार्य करने की क्षमता है जबकि शक्ति कार्य करने की दर है।
    (ii) ऊर्जा समय पर निर्भर नहीं करती है, जबकि शक्ति में समय की पाबन्दी है।
    (iii) ऊर्जा का मात्रक ‘जूल’ है, जबकि शक्ति का मात्रक ‘वाट’ है।
  • किसी वस्तु में अपने द्रव्यमान और वेग के संयुक्त प्रभाव के कारण कार्य करने की जो क्षमता होती है उसे वस्तु की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) कहते है।
  • किसी बाह्य बल के विरुद्ध विरामावस्था में आने के पहले तक वस्तु जितना कार्य करती है उसी से उस वस्तु की गतिज ऊर्जा मापी जाती है। 

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 दाब (Pressure)

  • ”किसी सतह के एकाँक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते है।“ दाब का मात्रक एम. के. एस. पद्धति में न्यूटन प्रति वर्ग मीटर होता है। जिस वस्तु का क्षेत्रफल जितना कम होता है, वह किसी सतह पर उतना ही अधिक दाब डालती है।
  • दाब (P) =k F/A =k पृष्ठ के लम्बवत् बल/पृष्ठ का क्षेत्रफल
  • इसके दैनिक जीवन में अनेक उदाहरण देखने को मिलते है, जैसे- दलदल में फंसे व्यक्ति को लेट जाने की सलाह दी जाती है ताकि उसके शरीर का अधिक क्षेत्रफल दलदल के सम्पर्क में आ जाये व नीचे की ओर कम दाब लगे। कील का निचला हिस्सा नुकीला बनाया जाता है ताकि क्षेत्रफल कम होने से वह सतह पर अधिक दाब डाल सके व ठोकने पर आसानी से गड़ जाये।

 वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure)

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  • पृथ्वी के चारो ओर उपस्थित वायु एवं विभिन्न गैसों को वायुमण्डल कहा जाता है। अतः वायुमण्डल में उपस्थित वायु भी हम सभी पर अत्यधिक दाब डालती है, जिसे वायुमण्डलीय दाब कहा जाता है। सामान्यतः वायुमण्डलीय दाब वह दाब होता है जो पारे के 76 सेंटीमीटर वाले एक कालम द्वारा 0°c पर 450 के अक्षांश पर समुद्र तल पर लगाया जाता है। यह एक वर्ग सेंटीमीटर अनुप्रस्थ काट वाले पारे के 76 सेंटीमीटर लम्बे कालम के भार के बराबर होता है।
  • वायुमण्डलीय दाब 105 न्यूटन/मीटर2 के बराबर होता है। स्पष्ट है कि वायुमण्डल हम पर इतना अधिक दाब डालता है, लेकिन फिर भी हमको उसका अनुभव नहीं होता। इसका कारण है कि हमारे अन्दर खून व अन्य कारक अन्दर से दाब डालते है, जो वायुमण्डलीय दाब को सन्तुलित करता है।

 पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर दाब में परिवर्तन

  • जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊपर जाते है, हमारे चारों ओर उपस्थित हवा भी विरल होती जाती है, फलतः वायुमण्डलीय दाब घटता जाता है।
  • पहाड़ों पर खाना बनाने में कठिनाई होती है, क्योंकि वहाँ पर दाब कम होता है। वायुयान में बैठे यात्री के फाउन्टेन पेन से स्याही का रिस आना, उच्च रक्त चाप वाले व्यक्ति को वायुयान में यात्र न करने की सलाह देना आदि ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ वायुमण्डलीय दाब में कमी के कारण होता है।
  • जब आँधी या वर्षा आने वाली होती है तो वायुमण्डल का दाब तुरन्त घट जाता है तथा मौसम साफ व स्वच्छ होने पर दाब अधिक होता है। अतः वायुदाबमापी में पारे का अचानक गिरना आँधी या वर्षा की सूचना देता है तथा पारे के स्तम्भ की ऊँचाई का बढ़ना मौसम स्वच्छ होने का संकेत देता है।

 द्रव का दाब (Pressure in liquids)

  • द्रव के अन्दर उपस्थित सभी वस्तुयें द्रव के भार के कारण दाब का अनुभव करती है। इसका अनुभव गोताखोरों को होता है। द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर द्रव का दाब द्रव के स्वतंत्र तल से बिन्दु की गहराई पर निर्भर करता है तथा किसी भी गहराई पर द्रव का दाब चारों ओर समान होता है। गहराई बढ़ने पर द्रव का दाब बढ़ता जाता है तथा समान गहराई पर द्रव का दाब द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है।

 संवेग (Momentum)

संवेगसंवेग

  • किसी गतिमान वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते है। संवेग एक सदिश राशि है।
  • संवेग संरक्षण के नियमानुसार एक या एक से अधिक वस्तुओं के निकाय का संवेग तब तक अपरिवर्तित रहता है, जब तक वस्तु या वस्तुओं के निकाय पर कोई बाह्य बल आरोपित न हो।
  • जब कोई वस्तु पृथ्वी की ओर गिरती है, तो उसका वेग बढ़ता जाता है, जिससे उसका संवेग भी बढ़ता जाता है। वस्तु भी पृथ्वी को ऊपर की ओर खींचती है, जिससे पृथ्वी का भी ऊपर की ओर संवेग उसी दर से बढ़ता जाता है। इस प्रकार (पृथ्वी + वस्तु) का संवेग संरक्षित रहता है। चूँकि पृथ्वी का द्रव्यमान वस्तु की अपेक्षा बहुत अधिक होता है, अतः पृथ्वी में उत्पन्न वेग उपेक्षणीय होता है।
  • जब बन्दूक से गोली छोड़ी जाती है तो वह अत्यधिक वेग से आगे की ओर बढ़ती है, जिससे गोली में आगे की दिशा में संवेग उत्पन्न हो जाता है। गोली भी बन्दूक को प्रतिक्रिया बल के कारण पीछे की ओर ढकेलती है, जिससे उसमें पीछे की ओर संवेग उत्पन्न हो जाता है। चूँकि बन्दूक का द्रव्यमान गोली से अधिक होता है, जिससे बन्दूक के पीछे हटने का वेग गोली के वेग से बहुत कम होता है।
  • यदि दो एक समान गोलियाँ-भारी तथा हल्की-बन्दूकों से अलग-अलग दागी जाये तो हल्की बन्दूक अधिक वेग से पीछे की ओर हटेगी, जिससे चोट लगने की सम्भावना अधिक होती है।
  • राकेट के ऊपर जाने का सिद्धान्त भी संवेग संरक्षण पर आधारित होता है। राकेट से गैस अत्यधिक वेग से पीछे की ओर निकलती है तथा राकेट को ऊपर उठने के लिये आवश्यक संवेग प्रदान करती है।

 कोणीय संवेग (Angular momentum)

  • घूर्णन गति करते हुए किसी पिण्ड के कोणीय संवेग व जड़त्व आघूर्ण के गुणनफल को पिण्ड का कोणीय संवेग कहते है।
  • यदि किसी अक्ष के परितः घूर्णन गति करते हुए पिण्ड पर कोई बाह्य बल आघूर्ण कार्य न करे तो उसका कोणीय संवेग नियत रहता है।
  • जब कोई तैराक नदी में कूदता है, तो कूदते समय वह अपने शरीर को सिकोड़ लेता है, जिससे शरीर का जड़त्व आघूर्ण घट जाता है। जड़त्व आघूर्ण घटने से कोणीय वेग बढ़ जाता है, जिससे वह वायु में कलैया (Loop) लेता हुआ पानी में गिरता है।
  • यही कार्य सर्कस में एक झूले से दूसरे झूले पर जाते समय मनुष्य करता है। इसी प्रकार बर्फ पर स्केटिंग करने वाले अपनी भुजाओं को फैलाते है व मोड़ते है, जिससे उनका जड़त्व आघूर्ण बढ़ता व घटता रहता है व स्केटिंग की दिशा बदलती रहती है।

 अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal force)

  • जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर चलती है, तो उस पर एक बल वृत्त के केन्द्र की ओर कार्य करता है। इस बल को ही अभिकेन्द्रीय बल कहते है। इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है।
  • जब हम एक पत्थर के टुकड़े को डोरी के एक सिरे से बाँधकर घुमाते है तो हमें डोरी पर तनाव लगाना पड़ता है। यही तनाव अभिकेन्द्रीय बल का कार्य करता है। यदि गति के दौरान अचानक डोरी टूट जाये तो पत्थर पर लगने वाला अभिकेन्द्रीय बल समाप्त हो जाता है और वह वृत्त पर स्पर्श रेखा की दिशा में चला जाता है।
  • कीचड़ पर तेजी से चलती साइकिल, स्कूटर के पहियों द्वारा कीचड़ के कण ऊपर की ओर स्पर्श रेखीय (Tangent) दिशा में फेंक दिये जाते है। यही कारण है कि इनके पहियों पर मडगार्ड लगाये जाते है।
  • अभिकेन्द्रीय बल के और भी कई उदाहरण देखने को मिलते है, जैसे-पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना, इलेक्ट्रान का नाभिक के चारों ओर घूमना, चैराहे पर मुड़ते समय साइकिल सवार का झुक जाना आदि।

 अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal force)

  • जब कोई पिण्ड किसी वृत्तीय मार्ग पर चलता है, तो उस पर मार्ग के केन्द्र की ओर एक बल लगता है, जिसे अभिकेन्द्रीय बल कहते है। न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार इस बल का एक प्रतिक्रिया बल, जो कि परिमाण में अभिकेन्द्रीय बल के बराबर परन्तु दिशा में इसके विपरीत अर्थात् केन्द्र से बाहर की ओर लगता है। इस प्रतिक्रिया बल को ही अपकेन्द्रीय बल कहते है।
  • सर्कस में ”मौत के कुयें“ के खेल में मोटर साइकिल सवार पर दीवार द्वारा अभिकेन्द्रीय बल अन्दर की ओर लगाया जाता है जबकि इसका प्रतिक्रिया बल (अपकेन्द्रीय बल) सवार द्वारा दीवार पर बाहर की ओर लगाया जाता है। कपड़ा सुखाने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेन्द्रीय बल के सिद्धान्त पर कार्य करती है।

 गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

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  • दो वस्तुओं के बीच के आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण और पृथ्वी जिस आकर्षण बल से वस्तुओं को अपने केन्द्र की ओर आकृष्ट करती है, उसे गुरुत्व कहा जाता है।

 न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम (Newton's laws of gravitation)

  • पृथ्वी पर स्थित सभी वस्तुएँ पृथ्वी द्वारा आकर्षित होती है और एक दूसरे को आकर्षित करती है।
  • दो वस्तुओं के बीच आकर्षण-बल इनके द्रव्यमानों के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
  • जब कोई वस्तु ऊपर से पृथ्वी की ओर स्वतंत्रतापूर्वक (निर्बाध) गिरती है तो उसके वेग में निश्चित दर से परिवर्तन होता है, अर्थात् वस्तु का निश्चित त्वरण (acceleration) होता है। इसे गुरुत्वीय त्वरण (acceleration due to gravity) कहते है तथा इसे `g' से व्यक्त किया जाता है।
  • गुरुत्वीय त्वरण की दिशा हमेशा पृथ्वी के केन्द्र की ओर होती है तथा इसका मान पृथ्वी पर भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। परन्तु सामान्यतः इसका मान अर्थात् `g' का मान 9.8 मीटर/सेकंड2 (या 980 सेंमी/सेकंड2) माना जाता है। चन्द्रमा पर `g' का मान = 1/6 पृथ्वी पर g का मान।

 किसी वस्तु के भार में परिवर्तन ('g' का परिवर्तन)

  • पृथ्वी के विचित्र रूप एवं अपने अक्ष पर घूमने के कारण `g' का मान विषुवत्रेखीय क्षेत्र से ध्रुवीय क्षेत्र तक जाने में बढ़ता है। अतः वस्तु का भार भी बढ़ता है जब वस्तु को विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर ले जाया जाता है।
  • पृथ्वी-सतह से ऊँचाई बढ़ने के साथ`g' का मान घटता है। अतः वस्तु का भार घटता है जब उसे अधिक ऊँचाई पर ले जाया जाता है।
  • पृथ्वी के भीतर जाने में गहराई बढ़ने के साथ`g' का मान घटता है। अतः वस्तु का भार घटता है जब उसे पृथ्वी के भीतर ले जाया जाता है।

 भारहीनता (Weightlessness)

  • पृथ्वी के ऊपर, ज्यों-ज्यों ऊँचाई बढ़ती है, पृथ्वी का गुरुत्व कम होता जाता है। अन्ततः यह पृथ्वी के ऊपर, लगभग 150 मील की ऊँचाई पर पूर्णतः समाप्त हो जाता है। अतः इस ऊँचाई पर या इसके ऊपर पृथ्वी के गुरुत्व के अभाव में, वस्तु भारहीन हो जाती है। ऐसी स्थिति को भारहीनता कहा जाता है।

 कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite)

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  • कृत्रिम उपग्रह मानव निर्मित होते है। यदि हम किसी पिण्ड को पृथ्वी तल से कुछ सौ किलोमीटर ऊपर आकाश में भेजकर उसे लगभग 8 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड का क्षैतिज वेग दे दें तो वह पिण्ड पृथ्वी के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में परिक्रमण करता रहता है तथा इसका परिक्रमण काल लगभग 84 मिनट होता है। इसे ही हम कृत्रिम उपग्रह कहते है। कृत्रिम उपग्रह दो प्रकार के होते है-
    (i) कक्षीय उपग्रह (Orbiting Satellite)
    (ii) भूस्थिर उपग्रह (Geo-Stationary Satellite)
  • कक्षीय उपग्रह जो पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते रहते है लेकिन भूमि-स्थर उपग्रह पृथ्वी के किसी स्थान के सापेक्ष स्थिर रहते है, इसीलिये इन्हें भू-स्थिर उपग्रह कहा जाता है।
  • भू-स्थिर उपग्रहों की कक्षा पृथ्वी के विषुवतीय तल (Equatorial line) में होती है तथा इनका पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमण काल पृथ्वी के अपने अक्ष के  परितः घूर्णन काल के बराबर अर्थात् 24 घण्टे होता है। ऐसे उपग्रहों की पृथ्वी तल से ऊँचाई करीब 36000 किलोमीटर होती है।
  • भू-स्थिर उपग्रह संचार व्यवस्था के लिये अत्यधिक उपयोगी होते है, इसीलिये इन्हें संचार उपग्रह भी कहा जाता है। इन उपग्रहों का उपयोग जैसा कि इनके नाम से स्पष्ट है टेलीफोन, टेलीग्राफ एवं टेलीविजन सिग्नलों के संचार में किया जाता है।
  • पहले सिग्नलों को पृथ्वी से इन उपग्रहों की ओर भेजते है। उपग्रह इन्हें ग्रहण (Receive) करके इनका आवर्धन (Amplification)  करता है। इनको दुबारा उपग्रह से विभिन्न दिशाओं में प्रेषित किया जाता है। इन सिग्नलों को पृथ्वी पर विभिन्न केन्द्र ग्रहण करते है। पृथ्वी के चारों ओर उपग्रह केवल उसी कक्षा में परिक्रम करता है जिसमें पृथ्वी का केन्द्र सम्मिलित हो।
  • यदि घूमते हुए किसी उपग्रह से कोई वस्तु या पैकेट छोड़ दिया जाये तो वह पृथ्वी पर न गिरकर उपग्रह के साथ ही उसी चाल से उसी कक्षा में घूमता रहेगा।

 उपग्रहों में भारहीनता

  • जब हम किसी तल पर खड़े होते है, तो तल हमारे पैरों पर एक प्रतिक्रिया बल लगाता है, जिसके कारण हमें अपने भार का अनुभव होता है। यदि तल हम पर कोई प्रतिक्रिया बल न लगायें, अर्थात तल द्वारा लगाया गया प्रतिक्रिया बल शून्य हो, तो हमें अपना भार शून्य प्रतीत होगा। यही भारहीनता की अवस्था कहलाती है।
  • कृत्रिम उपग्रहों में भारहीनता की अवस्था पायी जाती है, अर्थात् उपग्रह के तल द्वारा यात्राी पर लगाया गया प्रतिक्रिया बल शून्य होता है। ऐसी स्थिति में यात्राी यदि किसी स्प्रिंग तुला पर खड़ा हो तो तुला की माप शून्य होगी। उपग्रहों में भारहीनता के कारण ही अन्तरिक्ष यात्राी अपना भोजन विशेष प्रकार की ट्यूब में ले जाते हैं व उन्हें अन्दर दबा कर भोजन निगल जाते है।
  • यात्रा के गिलास से जल पीने में कठिनाई होती है क्योंकि जैसे ही यात्राी पानी पीने के लिये गिलास टेढ़ा करता है, भारहीनता के कारण पानी मुँह में न जाकर बाहर छोटी-छोटी बूँदों के रूप में तैरने लगता है।
  • यहाँ यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि चन्द्रमा भी पृथ्वी का एक उपग्रह है, लेकिन वहाँ भारहीनता की अवस्था नहीं पायी जाती। इसका कारण है कि चन्द्रमा का द्रव्यमान अधिक है, जिससे यात्राी वहाँ अपने भार का अनुभव करते है। चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण का मान, पृथ्वी पर इसके मान का 1/6 होता है। अर्थात् यदि कोई व्यक्ति पृथ्वी पर 2 मीटर उछलता है तो वह चन्द्रमा पर 2 x 6 = 12 मीटर उछलेगा। गुरुत्वीय त्वरण का मान कम होने के कारण वहाँ यात्री स्वयं को हल्का महसूस करते हैं। कृत्रिम उपग्रह का द्रव्यमान कम होने के कारण उपग्रह स्वयं यात्राी पर अनुभव करने योग्य गुरुत्वीय बल नहीं लगा पाता, अतः कृत्रिम उपग्रहों में भारहीनता की अवस्था होती है।
  • इसी प्रकार नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाने पर भी हमें भारहीनता महसूस होती है।

 पलायन वेग (Escape velocity)

  • किसी वस्तु को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के लिए इसे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रा के बाहर निकालना पड़ता है। इसके लिए जिस वेग की आवश्यकता होती है उसे पलायन वेग कहा जाता है। यह 11.2 किमी. प्रति सेकेंड या 7 मील प्रति सेकेंड है।

 चन्द्रमा पर वायुमंडल की अनुपस्थिति

  • किसी ग्रह या उपग्रह पर वायुमण्डल का होना या न होना इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ पर पलायन वेग का मान कितना है। यदि ग्रह या उपग्रह पर पलायन वेग का मान बहुत अधिक है तो वहाँ बहुत सघन वायुमण्डल पाया जाता है और यदि पलायन वेग का मान बहुम कम है तो वहाँ वायुमण्डल नहीं पाया जाता है।

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  • पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल पाया जाता है, जबकि चन्द्रमा जो कि पृथ्वी का एक उपग्रह है, पर वायुमण्डल नहीं पाया जाता। इसका कारण है कि पृथ्वी के वायुमण्डल में पाये जाने वाले हल्के से हल्के गैस के अणुओं का उच्चतम ताप पर औसत वेग पलायन वेग से बहुत कम है। उदाहरण के लिये 5000K ताप पर हाइड्रोजन के अणुओं का औसत वेग 2.6 किमी/से. होता है जबकि पृथ्वी से पलायन वेग 11.2 किमी/से. है; अतः स्पष्ट है कि हाइड्रोजन के अणु पृथ्वी को छोड़कर नहीं जा सकते। इसी प्रकार पृथ्वी पर उपस्थित गैसों के अणु पृथ्वी को छोड़कर नहीं जा सकते। अतः पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल उपस्थित है।
  • चन्द्रमा की त्रिज्या, द्रव्यमान व गुरुत्वीय त्वरण, पृथ्वी पर इनके मानों की अपेक्षा कम है, अतः चन्द्रमा पर पलायन वेग पृथ्वी की अपेक्षा लगभग 2.4 किमी/से. होता है। चन्द्रमा के तल पर गैसों का औसत वेग इससे अधिक होता है, फलतः गैसों के अणु वहाँ नहीं ठहर पाते है, जिसके कारण वहाँ वायुमण्डल नहीं पाया जाता है।
  • कुछ अन्य ग्रहों में बृहस्पति, शनि आदि पर पलायन वेग का मान बहुत अधिक होता है, जिसके कारण इन ग्रहों पर बहुत सघन वायुमण्डल पाया जाता है। अतः वायुमण्डल की उपस्थिति या अनुपस्थिति पलायन वेग पर अप्रत्यक्षतः निर्भर करती है।
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FAQs on सामान्य भौतिकी (भाग - 1) - भौतिकी विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी क्या है?
उत्तर: न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी एक नियम है जिससे वस्तु के गतिशीलता और उसके उपयोगी प्रभाव को व्यक्त किया जाता है। यह नियम बताता है कि द्वितीय नियम के अनुसार एक वस्तु को कोई बाह्य बाधा नहीं मिलती है, तो वस्तु अपनी स्थिति बरकरार रखेगी या उसकी गति बरकरार रखेगी।
2. न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम गति, विस्तार, बल, मात्रक, तथा गति के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यह नियम न केवल भौतिकी विज्ञान में अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि किसी भी तकनीकी व्यावसाय में भी उपयोगी है।
3. न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी में कितने प्रकार के मात्रक होते हैं?
उत्तर: न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी में दो प्रकार के मात्रक होते हैं - मानक एकक और अव्यवस्थित एकक। मानक एकक भौतिक राशियों को निर्दिष्ट करने के लिए उपयोग होते हैं, जबकि अव्यवस्थित एकक राशियों को निर्दिष्ट करने के लिए उपयोग होते हैं जो आपस में संबंधित होते हैं।
4. न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी का उपयोग कहाँ होता है?
उत्तर: न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी का उपयोग विभिन्न तकनीकी व्यावसायों में होता है, जहाँ गति, विस्तार, बल, मात्रक, तथा गति के बारे में ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग यातायात नियमों, यानी वाहन नियमों को बनाने में भी होता है।
5. न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी किस प्रकार अध्ययन की जा सकती है?
उत्तर: न्यूटन के गति-नियमसामान्य भौतिकी को विभिन्न प्रकार की प्रयोगशालाओं और वाणिज्यिक संस्थानों में अध्ययन किया जा सकता है। इसका अध्ययन विद्यार्थियों को गतिशीलता और गति के सिद्धांतों को समझने में मदद करता है।
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