पशुपालन
• कृषि की वह शाखा जिसके अन्तर्गत पालतू जन्तुओं का पालन-पोषण, प्रजनन तथा उनकी उचित देखभाल करते है जिससे उनसे अधिक से अधिक उत्पाद (अंडे, मांस आदि) प्राप्त हो सके। ‘कार्य उपयोगी पशु’ उन्हें कहते है जो बोझा ढोने तथा सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए सहायक होते है- घोड़ा, गधा, बैल आदि।
रूक्षांश
• मवेशियों के भोजन में सामान्यतः रेशायुक्त, दानेदार, कम पोषणवाली घासों को रूक्षांश (Roughage) कहते है। पशु को रूक्षांश हरा चारा, बेरसीम, रिजका, लूसना तथा सूखी घास के रूप में या भूसे के रूप में प्राप्त होती है।
गो पशु
• भारतीय नस्ल को यूरोप तथा दक्षिण अमेरिका में जेबु तथा संयुक्त अमेरिका में ब्रह्मा या ब्राह्मण कहते है।
• भारवाही नस्ल: अमृतमहल (मैसूर), सीतामढ़ी, बाचैर (बिहार), बरगर (कोयंबटूर), बूंदेलखण्ड, बांदा (उत्तर प्रदेश), नागौर, नीकारी, सिरी (राजस्थान)।
• दुधारू नस्ल : देवली (उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश), गिर (दक्षिण काठियावार और जूनागढ़, 900-1600 लीटर), सिंधी (कराची, बलूचिस्तान, 1100 लीटर), साहीवाल या मान्टगोमरी (पाकिस्तान, 1350-3200 लीटर) आदि।
• द्विकाजी नस्ल (दूध तथा भारवाही दोना ): गुआलव (वर्धा, छिन्दवारा, मध्य प्रदेश), हरियाणा (गुड़गाँव और दिल्ली), कांकरेज (कच्छ), कृष्णा घाटी नस्ल, कृष्ण नदी की घाटी, महाराष्ट्र और कर्नाटक में वाट या कोसी मथुरा, अंगोलिया, नेलौर (आंध्र प्रदेश), राठी, थारपारकर आदि।
• विदेशी नस्ल : जर्सी (जर्सी द्वीप इंगलिश चैनल, 13,296 लीटर दूध, 365 दिनों में) हाॅलस्टीन (हॉलैंड), ब्राउन स्वीश (स्वीटजरलैण्ड 1580 लीटर (रेड डेन) डेनमार्क (जर्नसी)।
गौ पशुओं के परजीवी
• बाह्य परजीवीः स्क्रू वर्म, ग्रव, जूं, रींग वर्म, मक्खी, हार्नफ्लाई, स्टबफ्लाई, मच्छर, टीक्स तथा माइट्स।
• अन्तः परजीवी: काॅक्सीरिया, बवेसीया, लीवर फ्लूक आदि।
संक्रामक बीमारियां
• रिन्डर पेस्ट: विषाणु रोग जो प्राणघातक होता है। इसमें उच्च ताप, होठों, मसूड़ा और जीभ के निचली सतह पर अल्सर तथा बदबूदार दस्त होता है। इसके लिए वैक्सीन उपलब्ध है।
• हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया: उच्च ताप, प्राण घातक रोग है। कोई कारगर दवा नहीं।
• ब्लैक क्वाटर: जीवाणु से होने वाला प्राणघातक रोग जो 6 महीने से 2 वर्ष के गोपशु में होता है। तापमान में एकाएक वृद्धि, दर्द के साथ सूजन, कोई प्रभावी दवा नहीं पर वैक्सीन उपलब्ध है।
• चेचक: विषाणु रोग, हल्का बुखार, त्वचा पर दाने, बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध है।
• क्षय रोग: जीवाणु रोग, भारहीनता, जोड़ों की सूजन, सूखी खांसी, यह रोग मनुष्य में भी हो सकता है।
• एन्थ्रेक्स: जीवाणु रोग, अचानक मृत्यु, ऊंचा बुखार, नाक से खून तथा गुदा आना। इसके लिए वैक्सीन उपलब्ध है। इसके जीवाणु स्पोर बनाकर 60 वर्षों तक जीवित रह सकते है, इसलिए इसमें मरे पशु का पोस्टमार्टम नहीं किया जा सकता है। यह रोग मनुष्य में भी हो सकता है।
• मेस्टाइटीस: जीवाणु रोग, थन में सूजन तथा दर्द। एण्टीबायोटिक के प्रयोग से इलाज किया जाता है।
• खूर पका-मुँह पका: अत्यधिक संक्रामक रोग। जीभ, होंठ, गाल तथा खुर के पास त्वचा पर छाले। थन पर भी प्रभाव देखा जाता है। वैक्सीन उपलब्ध है।
• वार्टस: विषाणु रोग, गर्दन तथा सिर पर फोड़े। वैक्सीन उपलब्ध है।
• काफ स्काॅर: नवजात बछड़ों में।
• न्यूमोनिया: नवजात बछड़े के लिए घातक रोग।
• असंक्रामक रोग: विषैले पौधे, सूखे के मौसम में कुछ पौधों में वृद्धि रूक जाती है और इसमें प्रूसिक अम्ल जमा होने से यह पशु के लिए विषैला होता है।
• मिल्क बीवर: कैल्सियम की कमी से।
• किटोशिस: ब्लौट, टीम्पैनाइटिश आदि।
दूध के विभिन्न अवयव | ||
अवयव | कार्य | स्रोत |
प्रोटीन | शरीर में मांसपेशियों के निर्माण एवं प्रतिपूर्ति के लिए आवश्यक होता है। शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। | मांस, मछली, दूध,दाल, चीज आदि |
शर्करा | शरीर को ऊर्जा और गर्मी प्रदान करती है तथा शरीर को चिकनाई प्रदान करती है | घी, मक्खन, तेल आदि |
खनिज आदि | हड्डियों के निर्माण में | डेरी पदार्थ, फल,सब्जी |
विटामिन ए | आंख को स्वस्थ रखती है वसा युक्त डेरी पदार्थ, गाजर, टमाटर, अण्डा, मछली का तेल आदि। | मक्खन, क्रीम, अन्य |
विटामिन बी (थियोगिन) | भूख बेरी-बेरी को रोकने तथा भूख एवं शारीरिक विकास में वृद्धि | दानों , अण्डा, हरी सब्जी, यीस्ट आदि। |
विटामिनबी2 (एइबोफ्लोविन) | त्वचा और मुख को स्वस्थ रखने और आंख को | दूध, गोभी, गाजर, अण्डा, यीस्ट आदि स्वच्छ रखना। |
विटामिन सी | हड्डी एवं आंत के स्वस्थ विकास | मुख्यतः खट्टे फल |
विटामिन डी | कैल्सियम के अवशोषण में, सूखा रोग को रोकने में | अण्डा, दूध तथा मछली के जिगर के तेल |
पशुपालन संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
• पशु का गर्म होना: जब मादा पशु नर पशु से मिलने के लक्षण दिखाती है तो उस अवस्था को पशु का गर्म होना कहते है। गाय में 6 से 36 घंटे या औसतन 18 घंटे तथा बछियों में 15 घंटे गर्म काल होता है। सांड़ से मिलाने का उचित समय उस काल के मध्य से अंत तक होता है। मादा भैंस 21-23 दिनों बाद इसे दोहराती है और यह काल 18 से 36 घंटे का होता है। जितने दिनों बाद गर्म काल दुहराया जाता है, उसे जहतु काल कहते है।
पशुओं के प्रमुख रोग | ||
रोग | कारक | प्रभावित पशु |
एन्थ्रैक्स (Anthrax) | बैसिलस एन्थ्रैक्स (Bacillus anthrax) (बैक्टिरिया) | गाय, भैंस, घोड़ा, भेंड़ तथा बकरी (भेड़ों में विशेष रूप से होता है) |
गलाघोंटू (Haemorrhagic septicaemia) | पाश्च्यूरेला स्पीसीज (बैक्टिरिया) | गाय, भैंस तथा बैल |
लंगड़ी (Black Quarte) | लास्ट्रीडियम सेप्टिका (बैक्टिरिया) | गाय, भैंस तथा भेड़ |
क्षय रोग | माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (बैक्टिरिया) | प्रायः सभी पशुओं में। गाय-भैंस अधिक प्रभावित रहती है। |
जाॅन रोग (Johne's Disease) | माइकोबैक्टीरियम - पैरा ट्यूबरकुलोसिस (बैक्टिरिया) | गाय, भैंस, भेड़ तथा बकरी |
संक्रामक गर्भपात | ब्रुसेल्ला मल्टीसोडा (बैक्टिरिया) | गाय-भैंस, सुअर तथा बकरी |
थनैला (Mastitis) | स्ट्रेप्टोकोकस (बैक्टिरिया) | दुधारू पशु (गाय, भैंस तथा बकरी) |
न्यूमोनिया (Pneumonia) | न्यूमोकोकाई (बैक्टिरिया) | सभी पशुओं में मुख्य रूप से छोटे बच्चों को |
पशु प्लेग (Rinderpest) | विषाणु (वाइरस) | जुगाली करने वाले पशु जैसे गाय, भैंस, बकरी आदि |
खुरपक्का-मुँहपका (Mouth & Foot Disease) | वाइरस | गाय, भैंस, भेड़, बकरी तथा सुअर। सुअरों में विशेष रूप से होता है। |
गो-शीतला (Cow pox) | वाइरस | सभी पशुओं में |
चीचड़ी ज्वर (Tick Fever) | प्रोटोजोआ | गाय एवं भैंस |
अफरा (Tympany) | प्रदूषित आहार | जुगाली करने वाले पशुओं को |
अतिसार (Diarrahoea) | प्रदूषित आहार | जुगाली करने वाले पशुओं को |
आमाशय शोध (Gastritis) | प्रदूषित आहार | जुगाली करने वाले पशुओं को |
• गायों में वयस्कता आने का समय उसकी नस्ल, आहार, स्वास्थ्य, वातावरण आदि पर निर्भर करता है। भारत में 3 वर्ष की उम्र में ये अवस्था आती है, जबकि अधिकांश विदेशी नस्लों में ये 18 महीने से 2 वर्ष की उम्र में आ जाती है।
• गर्भावधि: गर्भ धारण से बच्चा देने की अवधि को गर्भावधि कहते है। गाय के लिए यह काल 280 + 5 दिनों का, जबकि भैंस के लिए 310+5 दिनों का होता है।
• कृत्रिम गर्भाधान: सांढ़ के वीर्य को गाय की योनि में प्रतिस्थापित करने को कृत्रिम गर्भाधान कहते है। उत्तम नस्ल के सांढ़ का वीर्य उसे कृत्रिम रूप से उत्तेजित कर संग्रह किया जाता है। जिसे हिमित करके सुरक्षित रखा जाता है। गाय के गर्म होने पर कृत्रिम गर्भाधान की क्रिया की जाती है।
• भ्रूण प्रत्यारोपण: अच्छी नस्ल की गाय या भैंस से अंडा प्राप्त कर उसे उत्तम नस्ल के सांढ़ के वीर्य से कृत्रिम माध्यम से निषेचित किया जाता है और भ्रूण के रूप में इसे प्रत्यारोपण के लिए तैयार किये गये किसी गाय-भैंस में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया आसान नहीं है क्योंकि जिस गाय में प्रत्यारोपण करना होता है उसके हार्मोन स्तर को पहले से नियंत्रित कर गर्भाधान के लायक बनाना होता है। कृत्रिम माध्यम में भ्रूण तैयार करना भी काफी महंगा होता है। इसलिए यह शोध कार्य तक सीमित है।
• सींग रोधन: सींग को हटाने को सींग रोधन कहते है। जबकि सींग कली को कम उम्र में ही नष्ट कर देना डिबडिंग कहलाता है। उसके कई तरीके है, जैसे आरी से काटकर या डिबडिंग के लिए काॅस्टिक स्टीक विधि, हाॅट आयरन विधि आदि। डिबडिंग जन्म के 10 दिन बाद करते है।
• बंधियाकरण: नर बछड़े को प्रजनन क्षमता से मुक्त करने के लिए बंधिया किया जाता है। इसके कई तरीके है। (i) अण्डकोश को हथौड़े या पत्थर से चोट मारकर। यह काफी पुराना और क्रूर तरीका है। (ii) इलास्ट्रेट-रबर के सख्त छल्ले को अण्डकोश पर चढ़ा देते है। (iii) बुर्डिजो कारस्ट्रेटर-इस उपकरण द्वारा स्परमेटिक काॅड को काट दिया जाता है। (iv) आॅपरेशन द्वारा।
• टिसरबुल: ‘गायों के गर्म होने का पता लगाने के लिए इनका उपयोग होता है। ये वे सांढ़ होते है जिनमें प्रजनन क्षमता नष्ट कर दी जाती है परंतु कामेच्छा बनी रहती है। इसकी छाती पर रंग लगा दिया जाता है जिससे यह जिस गाय पर फांदता है उस पर रंग लग जाने से उसे पहचाना जा सके।
भेड़
• भेड़ों की संख्या की दृष्टि से भारत विश्व का छठां बड़ा देश है। पिछले 30 वर्षों में 28000 से अधिक रायबोलेट, रूसी मेरीनो, आस्ट्रेलियाई मेरीनो, कोरीडेल तथा पालदार्थ भेड़ों का अमेरिका, रूस तथा आॅस्ट्रेलिया से आयात किया गया। 1990 में उत्पादन, परीक्षण और उत्तम उत्पादन सामग्री के विस्तार के लिए 1350 भेड़ों को अमेरिका से आयात किया गया जो जम्मू तथा कश्मीर एवं राजस्थान राज्यों तथा केंद्रीय भेड़ प्रजनन फार्म हिसार को वितरित की गई। केंद्रीय भेड़ प्रजनन फार्म हिसार में स्थित है। 6 भेड़ प्रजनन फार्म की स्थापना की गई है।
स्मरणीय तथ्य |
• सर्वप्रथम कृत्रिम गर्भाधान भारत में 1942 में इज्जतनगर बरेली में प्रारम्भ किया गया। |
• वीर्य एकत्रित करने की सबसे उपयुक्त विधि कृत्रिम योनि विधि है। |
• वीर्य की मात्रा बढ़ाने तथा देर तक संरक्षित रखने के लिए जिन पदार्थों का प्रयोग किया जाता है उन्हें वीर्य तनुकारक कहते है। |
• अण्डपीत फास्फेट, अण्डपीत साइट्रेट, अण्डपीत ग्लाइसीन, दुग्ध आदि प्रमुख तनुकारक है। |
• वीर्य को एल्कोहल एवं ठोस कार्बन डाई आक्साइड के टुकड़े में भण्डारित किया जाता है। आजकल ठोस कार्बन डाई आक्साइड की जगह तरल नाइट्रोजन का प्रयोग किया जाता है। इसमें वीर्य (Semen) को लम्बे समय तक संरक्षित किया जा सकता है। |
• विश्व में सबसे अधिक भेड़ आस्ट्रेलिया में (लगभग 18%) पायी जाती है। भारत में विश्व की कुल भेड़ों का 5% ही है। |
• मेरिनो, लिसिस्टर भेड़, कोरिडेल, रेम्बूलेट, साउथ डाउन, लिकन आदि प्रमुख विदेशी भेड़ें है। इनमें अधिकांश को संकरण हेतु प्रयोग किया जाता है। |
• मादरवाह, माकरकाल, मुरेज, रामपुर बुशायर, लोही, जालौनी, काठियावाड़ी, मारवाड़ी, बीकानेरी, कच्छी, नाली, हिसारडेल, चोकला, नेल्लोरी, दक्खनी, मंडिया, हसन, बैलरी, बजीरी भेड़ की प्रमुख नस्लें है। |
• भेड़ों का गर्भकाल लगभग 142-152 दिन का होता है। |
• भेड़ सामान्य तौर पर 17 दिन के अन्तराल पर पुनः ऋतुमयी होती है तथा औसतन 27 घण्टे तक ऋतुमयी रहती है। |
• सर्दी के बाद भेड़ों का ऊन उतारना सर्वोत्तम माना जाता है। |
• बकरी को ”गरीबों की गाय“ कहा जाता है क्योंकि उनकी देख रेख पर कम खर्च आता है। |
• बकरी के दूध में वसा कम एवं छोटे कणों के रूप में होने के कारण सुपाच्य होता है। |
• भारत में विश्व की कुल बकरियों की 20% बकरियाँ पायी जाती है। |
• भारत में सबसे अधिक बकरी राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में पाली जाती है। |
विश्व में बकरी की जनसंख्या के आधार पर भारत का अफ्रीका के बाद दूसरा स्थान है। |
• टोगेन्बर्ग, खोरसानी, बलुची, एग्लोनुबियन विदेशी बकरी की प्रमुख नस्ल है जिन्हें भारत में पाला जाता है। |
• अंगोला बकरी से मोहेर (एक प्रकार का ऊन) प्राप्त किया जाता है। |
• पश्मीना (कश्मीरी) बकरी से सबसे अच्छा ऊन प्राप्त किया जाता है। इनसे एक वर्ष में 1.5 से 2 कि. ग्रा. ऊन प्राप्त किया जाता है। |
• बकरियों के प्रजनन के लिए शीतकाल एवं वसन्त ऋतु सबसे उपयुक्त मौसम होता है। |
• बकरी का गर्भकाल 150 दिन का होता है। सामान्य तौर पर यह एक बार में 2.3 बच्चे देती है तथा एक वर्ष में दो बार बच्चे देती है। |
• भेंड़ की नस्ल : भाखरवाल, गुरेज, करूणा, गद्दी या मदरवाह, रामपुर वशीर, लोही, बीकानेरी, मारवारी, कुची, काठियावारी, दक्कनी, नेलौरी बेरी आदि।
• गर्भकाल: यह वह काल है जब वयस्क मादा भेड़ नर भेड़ से मिलने का लक्षण दिखाती है। इसकी अवधि 1 से 3 दिन होती है। जो 17 से 19 दिनों बाद दुहराई जाती है। मादा भेड़ मुख्यतः साल में तीन बार मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई तथा अक्टूबर-नवम्बर में गर्भधारण करती है। भेड़ में गर्भावधि 142 से 152 दिनों की या औसतन 147 दिनों की होती है।
• भेड़ में टैंगिंग अर्थात प्रजनन काल से पहले ऊन हटाना, आइंग अर्थात आंख के पास से ऊन को हटाना, रींगींग अर्थात नर भेड़ के पेट तथा जनन अंग के पास के ऊन हटाने का कार्य किया जाना जरूरी होता है। बंध्याकरण के वही तरीके अपनाये जाते है जो गोपशुओं में करते है। डाॅकींग या पूंछ काटने का कार्य बंध्याकरण के बाद चाकू से, गर्म लोहे से, रबड़ के छल्ले या इमेस्कुलेटर से करते है। भेड़ों को चिन्हित करने के लिए रंग, धातु टैग, इयर ब्रोच का प्रयोग करते है। भेड़ों में संक्रामक रोग-पैर का सड़ना, एच. एस. एन्थ्रेक्स, रिडरपेस्ट, ब्लैक क्र्वाटर, चेचक आदि है।
• असंक्रामक रोग: न्यूमोनिया, नेवन इल, ब्लाॅट, दस्त आदि।
ऊन के प्रकार (भेंड़)
• जोशीया: सफेद, गहरा सफेद, गहरा पीला, हल्का ग्रे।
• हर्नाई: सफेद, गे्र।
• राजपूताना: सफेद, पीला, ग्रे।
• बीकानेरी: अत्यधिक सफेद, हल्का पीला, गहरा पीला।
• ब्रिचिक: सफेद, पीला, ग्रे।
• ब्रीवर: सफेद, पीला, ग्रे।
• मारवार: सफेद, पीला, ग्रे।
• खींची हुई ऊन: सफेद, पीला।
बकरी
• प्रमुख नस्ल : जमनापारी (द्वीकाजी), बरबरी (दुधारू), बीतल या अमृतसर नस्ल, सुरती (दुधारू), कश्मीरी, गद्धी चम्बा, पश्मीना (पश्मीना ऊन इसी से मिलता है), मारबारी, मालाबारी, बंगाल बकरी, देशी।
• बकरी में गर्भकाल: यह दो से तीन दिनों का होता है जो 13.12 दिनों के बाद दुहराई जाती है। गर्भावधि 145-152 दिन या औसतन 150 दिनों की होती है।
• संक्रामक रोग: जीवाणु रोग, एन्थ्रेक्स, ब्रूशलोसीस या माल्टा बुखार, विब्रिओशिस, मेसटाइटिश, दस्त आदि।
• विषाणु रोग: एफ. एम. डी. चेचक, रिडपेस्ट।
• परजीवी: टीक जूँ, माइट्स, कोक्सीडिओसिस, ट्राइकोमोरी आसिस आदि।
• असंक्रामक रोग: मिल्क फिवर, बोन चेवींग, ब्लौट (टीम्पैनाइटीश) चैक, आदि।
सुअर
• सुअरों की सबसे ज्यादा संख्या चीन में पाई जाती है। भारत में पाई जानेवाली सुअरों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। भारत में सुअर की कोई मूल नस्ल नहीं है। सभी नस्ल विदेशों से आयातित है। एक सुअर औसतन 4-6 बच्चे एक बार में देती है। इनका प्रजनन मौसम अगस्त-सितम्बर तथा फरवरी-मार्च होता है। गर्भकाल 40-50 घंटे का होता है और गर्भावधि 112 से 115 दिनों की होती है।
पशुओं की प्रजनन समय सारणी | ||||||
पशु | संभोग काल | वर्ष में ऋतुमयी होना | ऋतुकाल की अवधि | पुनः ऋतुमयी होना | गर्भकाल | |
गर्भ न ठहरने पर | व्यांत के बाद | |||||
1. गाय | वर्ष भर तथा गर्मियों में अधिक | कई बार | 8.36 घण्टा | प्रत्येक 21 दिन बाद | 30.60 दिन में | 280 दिन |
2. भैंस | वर्ष भर तथा गर्मियों में अधिक | कई बार | 8.36 घण्टा | प्रत्येक 21 दिन बाद | 30.60 दिन में | 308 दिन में |
3. घोड़ी | फरवरी से जुलाई तक | मौसम में कई बार | 4.7 दिन | प्रत्येक 18.24 दिन बाद | 5 से 11 दिन में | 340 दिन |
4. भेंड़ | अगस्त से जनवरी तक | मौसम में कई बार | 24.48 घण्टा | 4 से 6 माह में प्रत्येक 16.17 दिन बाद | 4 से 6 माह में | 150 दिन |
5. बकरी | सितम्बर से फरवरी तक | मौसम में कई बार | 48.72 घण्टा | प्रत्येक 18 से 21 दिन बाद | 6.8 माह में | 150 दिन |
6. सुअरी | वर्ष भर परन्तु वसन्त ऋतु में अधिक | कई बार | 2.3 दिन | प्रत्येक 21 दिन बाद 7 से 8 माह में | 7.8 माह में | 112 दिन |
7. कुतिया | वसन्त से पतझड़ तक | एक बार कभी-कभी दो बार | 7.13 दिन | 180 दिन बाद | 8.9 माह में | 63 दिन |
• सुअर के रोग: हाँग कांलरा (स्पाइन फिवर); स्वाइन हरिसिपैलस, ब्रूसेलोशिस, स्वाई पोक्स (चेचक) एफ. एफ. डी., स्पाइन फ्लैग (एच. एस.) नेवल इल, पिगलेट इंफ्यलएंजा, एन्थ्रेक्स, टी. बी.।
• परजीवी: गोलकृमि, लंगवर्म, मेंज तथा जूँ।
मुर्गियों की नस्ल
• देशी: एसल, चीट्टागाॅग, धागम, न्यूहैम्पशायर, ह्नाहट लेगहाॅर्न, कोर्निय, स्टालापंलाइट ससेक्स, हाइट राॅक तथा हाइट केर्निश।
• रोग: सालमोनेब्लेशिस, कोक्सीडिओशिस, न्यू कैस्टल रोग या रानीखेत रोग, संक्रामक कोराइजा, ब्रा काइटिश, क्रोनिक रेस्पाइरेटरी रोग (CRD)। लैरिंगाट्रेकाइटीश, लिम्पोरैटोशिस या एबीयन ल्यूकेशिस कम्प्लेक्स (AIC), फाउन पाॅक्स या सोर हेड, फाइल काॅलरा, टी. वी. हस्टिोमोनीएशिस, मर्कस रोग आदि।
• परजीवी: लार्ज राउन्डवर्म, सीकल वर्म, फीता कृमि, जूँ माइट्स तथा टीक्स आदि।
कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial Insemination)
• लाभदायक नरों के वीर्य को मादा के जनन अंगों में किसी विशेष यंत्र की सहायता से पहुँचाने की क्रिया को कृत्रिम वीर्य सेचन अथवा गर्भाधान कहते है। यह विधि पशुओं तथा कीटों में भी अपनाई गई है। इससे अच्छी किस्म की नस्ल तैयार होती है। इस विधि से अन्तर्जातीय पशुओं में जनन संभव है जो कि प्रकृति में संभव नहीं है। कृत्रिम गर्भाधान हेतु इस समय अपने देश में 7 केन्द्रीय पशुपालन स्थान है-सूरतगढ़ (राजस्थान), धनरोड (गुजरात), पिप्लिमा और सिमिलीगुडा (उड़ीसा), अलमाधी (तमिलनाडु), अंदेश नगर (उत्तर प्रदेश) एवं हिस्सारगट्टा (कर्नाटक)।
प्रमुख रोगों की इन्क्यूवेशन अवधि | |
रोग का नाम | इन्क्यूवेशन अवधि |
1. एन्थ्रैक्स | 12.24 घण्टे या अधिक |
2. गलाघोंटू | 1.3 दिन |
3. लंगड़ी | 1.5 दिन |
4. क्षय रोग | अनिश्चित अवधि |
5. जाॅन रोग | अनिश्चित अवधि |
6. संक्रामक गर्भपात | 33.100 दिन |
7. पशु प्लेग | 3.8 दिन |
8. खुरपका-मुँहपका | 1.6 दिन |
9. गो-शीतला | 3.7 दिन |
10. चीचड़ी ज्वर | 7.17 दिन |
11. काम्क्सीडिओसिस | 7.21 दिन |
दूध
• दूध एक पौष्टिक एवं संतुलित आहार है। इसमें उचित मात्रा में प्रोटीन, वसा, लैक्टोज, खनिज, विटामिन ए तथा बी और कैल्सियम होता है। दूध से निम्न खाद्य पदार्थ प्राप्त होते है-
(1) टोन्ड दूध: दूध में से कुछ मात्रा वसा निकालने के बाद जो दूध बचता है उसे टोन्ड दूध कहते है।
(2) स्किम्ड दूध: इस दूध में वसा बिल्कुल नहीं होती। यह उच्च रक्त चाप से पीड़ित रोगियों तथा मोटे व्यक्तियों को दिया जाता है।
(3) संघनित दूध: इस दूध से पानी निकालकर तथा चीनी मिलाकर गाढ़ा कर लेते है। इसमें किसी भी प्रकार का प्रिजर्वेटिव नहीं मिलाया जाता। इस दूध में कम-से-कम 31% ठोस दूध तथा 9% वसा होती है।
(4) क्रीम: इसे दूध को बिलोकर निकालते है। इसमें मुख्यतः वसा होती है, 10.70% तक कुछ पानी और ठोस पदार्थ होते है। क्रीम में वसा की मात्रा मथने वाली मशीन तथा ताप पर निर्भर करती है। जिस क्रीम में 70% वसा हो उसे प्लास्टिक क्रीम कहते है। ‘हल्की क्रीम’ में 20%, ‘भारी क्रीम’ में 30% तथा ‘विप क्रीम’ में 40% वसा होती है।
(5) मक्खन: इसे दही से मथकर निकालते है। इसमें 90% से अधिक वसा होती है। क्रीमयुक्त मक्खन में 2.5% लवण होते है। देशी मक्खन में नमक, रंग इत्यादि नहीं डाले जाते।
(6) छाछ: दूध से क्रीम या मक्खन निकालने के बाद जो तरल पदार्थ बच जाता है उसे छाछ कहते है। इसकी अम्लता कम होती है और जीवाणु तथा लैक्टिक अम्ल की एक विशेष गंध, होती है।
(7) घी: यह क्रीम या मक्खन से बनाया जाता है। इसमें वसा लगभग 100% होती है।
(8) पनीर: यह एक जटिल खाद्य पदार्थ है।
स्मरणीय तथ्य |
• क्रीम एक प्रकार का दूध होता है जिसमें वसा की मात्रा बढ़ जाती है तथा पानी की मात्रा कम हो जाती है। |
• दूध से दही बनाने के लिए जामन के रूप में लेक्टोफिलस एसीडोफिलस (Lactophilous acidophilous) का प्रयोग किया जाता है। |
• मछली उत्पादन में वृद्धि के लिए चलाए जा रहे अभियान को नीली क्रान्ति (Blue Revolution) का नाम दिया गया है। |
• भारत में पायी जाने वाली मछलियों में रोहू, कतला, नैनी एवं टैंगन प्रमुख है। |
• पिंकटेडा समुदाय के जानवरों से मोती (Pearl) निकाले जाते है। |
• एपिस (Apis) मधुमक्खी को ही भारतीय मधुमक्खी के नाम से जाना जाता है। |
• शहद में 41% फलशर्करा तथा 35% दाक्ष शर्करा पायी जाती है। |
• एक किलोग्राम शहद से औसतन 3500 कैंलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। |
• मधुमक्खी से बी-वीनम (Bee-Venum) नामक एक पदार्थ मिलता है। इससे होम्योपैथिक दवा एवं ऐपिस टिंचर बनाया जाता है। इससे गठिया रोग का उपचार किया जाता है। |
• भारत में शहद के लिए एपिस इण्डिका (Apis indica) को पाला जाता है। |
• आपरेशन फ्लड परियोजना जो कि विश्व का सबसे बड़ा एकीकृत डेरी विकास कार्यक्रम है, 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा शुरू की गई थी। यह कार्यक्रम ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं से संबद्ध करने के लिए तैयार किया गया था। |
• दूसरा चरण 1981.85 तक चला। |
• आपरेशन फ्लड का तीसरा चरण 1985.94 विश्व ब®क की वित्तीय सहायता तथा यूरोपीय आर्थिक समुदाय से मखनियां दुग्ध चूर्ण और बटर आयल के रूप में प्राप्त वस्तु सहायता से कार्यान्वित किया गया। |
• डेरी विकास के लिए एक प्रौद्योगिकी मिशन (Technology mission) शुरू किया गया है, इसका उद्देश्य डेयरी विकास को क्षेत्रीय विकास के विभिन्न विकासात्मक कार्यक्रमों के साथ समन्वित और सुव्यवस्थित करना है। |
• विश्व की कुल गाय-भैंसों का 20% भारत में पाया जाता है। |
• साहीवाल, लाल सिंधी, गिर, देवनी, मावलाओ आदि गाय की दुधारू किस्म है। |
• हरियाणा, कोसी, निमाड़ी, राठ, अंगोल, कृष्णा घाटी, थारपारकर, कांकरेज आदि गाय की द्विकाजी नस्ले है। |
• द्विकाजी नस्ल वे होती है जिनको दूध तथा काजी बछड़े देने के लिए पालते है। |
• नागौरी, कनकथा, मालवी, खेरीगढ़, अमृतमहल, इल्लारी, कांगायाम, पंवार, हंल्लीकर, गंगातीरी, बछौर, सीरी, डांगी, वरगुल आदि प्रमुख भारवाही गाय की नस्ल है। |
मात्स्यिकी (Fisheries)
मात्स्यिकी के अन्दर मछली-पालन आता है। आवास के आधार पर मछलियों को तीन मुख्य भागों में बाँटा गया है। ये तीन भाग है- (1) समुद्री मछलियाँँ (2) अलवण-जलीय मछलियाँ (3) ब्रैकिश पानी की मछलियाँँ।
मछलियों के अतिरिक्त जल में पाये जाने वाले अनेक जंतु जैसे मोलस्क, प्रौन, केकड़े, इत्यादि भी इसके अन्तर्गत आते है।
(1) समुद्री मछलियाँ: इसके अंतर्गत समुद्र अथवा खारे पानी में पाये जाने वाली मछलियाँ आती है। लगभग 80% समुद्री मछलियाँ पश्चिमी घाट से पकड़ी जाती है। समुद्री मछलियाँ दो प्रकार की होती है।
(क) वेलापर्वती: ये मछलियाँ समुद्र की सतह पर मिलती है। इन मछलियों का उत्पादन अन्य मछलियों से दुगना होता है। उड़ीसा तथा बंगाल में 47% और केरल तथा गोवा में 81-87% ऐसी ही मछलियाँ पाई जाती है।
(ख) तलमजी: विभिन्न प्रकार की मछलियाँ जैसे प्रौन आदि गहरे पानी में रहती है। इन्हें अधिकतर तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश तथा उड़ीसा के तटों पर पकड़ा जाता है। इनका वार्षिक उत्पादन लगभग 1 लाख टन होता है। मुम्बई से ही लगभग 75 हजार टन मछलियां पकड़ी जाती है। इनमें मुख्य है-रिबन मछली, कैट फिश, सारडाइन, शार्क आदि।
(2) अलवण-जलीय मछलियाँ: भारत में इस प्रकार की मछली का उत्पादन अन्य देशों की तुलना में अधिक होता है। इन्हें नदियों, तालाबों, झीलों आदि से पकड़ा जाता है। इनमें मुख्य है-कतला, रोहु, काप्र्स, मुलट, मिस्टिस, मुरल आदि।
(3) ब्रैकिश-पानी की मछलियाँ: ये मछलियाँ लहरों से आए हुए एकत्र पानी में होती है। इसके मुख्य उत्पाद है-प्राॅन, केकड़े तथा मछलियाँ। केरल में पायी जाने वाली इस प्रकार की मछलियाँ है-पर्लस्थोट तथा मुलट।
स्मरणीय तथ्य |
• विश्व में सुअर पालन में चीन का प्रथम स्थान है। भारत में केवल 1% सुअर पायी जाती है । |
• भारत में सबसे ज्यादा सुअर उत्तर प्रदेश में पायी जाती है । |
• सुअरी प्रायः एक बार में 4 से 6 बच्चे देती है । |
• वे रोग जो माता-पिता से बच्चे में आते है पैतृक (Hereditary) रोग कहलाते है । |
• वे रोग जो बच्चों को पैदा होने से पहले ही लग जाते है जन्मजात (Congenital) रोग कहलाते है । |
• वे रोग जो जन्तुओं को पैदा होने के बाद लगते है अर्जित रोग कहलाते है । |
• एन्थ्रेक्स, गलघोटूँ, लंगड़ी, क्षयरोग, जोन्स रोग, संक्रामक गर्भपात, थनैला रोग आदि प्रमुख जीवाणु जनित रोग है । |
• पशुप्लेग, खुरपका, मुंहपका, गो-शीलता आदि प्रमुख विषाणु जनित रोग है । |
• अधिक दुध देने वाले पशुओं को दुग्ध ज्वर हो जाता है। |
• कुक्कुट पालन के अंतर्गत बत्तख, हंस, तुर्की, मुर्गी, कबूतर, मोर आदि पक्षियों का पालन आता है, परन्तु कुक्कुट उद्योग का 90% हिस्सा मुर्गियों का है अतएव आजकल, कुक्कुट मुर्गी पालन का पर्याय बनता जा रहा है। |
• 100 ग्राम अण्डे में 13.5 ग्राम प्रोटीन, 13.7 ग्राम वसा एवं 73 ग्राम पानी पाया जाता है। |
• वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार अनिषेचित अण्डा शाकाहारी भोज्य पदार्थ है। |
• रानीखेत रोग मुर्गियों का प्रचलित एवं खतरनाक रोग है। यह रोग सर्वप्रथम रानीखेत जिले में देखा गया था अतएव रानीखेत रोग के नाम से जाना जाता है। यह विषाणुजनित रोग है। |
• दूध तथा उससे सम्बन्धित उत्पादों के उद्योग को दुग्ध उद्योग कहते है । |
• विश्व दुग्ध उत्पादन में सं. रा. अमेरिका के बाद भारत का दूसरा स्थान है। |
• एक व्यक्ति को न्यूनतम 210 ग्राम दूध की आवश्यकता प्रतिदिन होती है। |
• मादा में बच्चे पैदा होने के बाद का पहला दूध का क्षरण (secretion) खीस कहलाता है। यह बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है। |
• गाय के दूध में वसा, प्रोटीन एवं दुग्धम की मात्रा क्रमशः 4.92% , 3.21% तथा 4.50% होती है। भैंस में यह मात्रा क्रमशः 7.16%, 3.77% तथा 4.81% होती है। |
• दूध का रंग कैरोटीन के कारण पीला होता है। |
• दुग्धम (Lectose) दूध के अन्दर पाया जाने वाला प्रमुख कार्बोहाइट्रेट है। |
• दूध की वसा कणिकाओं को छोटे-छोटे कणों में विखण्डित करने को समांगीकरण (Homogenization) कहते है । |
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