उच्चताप स्क्विड्स: स्क्विड्स (Squids) का पूरा रूप, ‘अतिचालकता क्वांटम व्यतिकरण युक्ति’ (Super-Conducting Quantum Interference Devices) होता है। ये ऐसे यंत्रा होते हैं, जिनके गुण उस चुम्बकीय क्षेत्रा पर निर्भर करते हैं, जिनमें ये रखे हों। स्क्विड्स की रचना पदार्थाें में किसी विशिष्ट तापमान पर अतिचालकता के गुण पर आधारित है। इस विशिष्ट तापमान पर पदार्थों में विद्युत धारा के विरुद्ध कोई प्रतिरोध नहीं रह जाता। स्क्विड्स दो या अधिक पदार्थों को वलय के आकार में जोड़कर बनाया जाता है ताकि पदार्थों के अंतरपृष्ठ पर दुर्बलतः युग्मित जोसेफमन संधि बन जाती है। इस प्रकार का वलय जब चुम्बकीय क्षेत्रों में रखा जाता है, तो अधिक मात्रा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। निम्न तापमान पर (हीलियम का द्रवणांक .269॰C) अतिचालकता का उपयोग बहुत समय से होता रहा है, किंतु यह कठिन एवं खर्चीला होता है। अब ऐसे पदार्थ से बने स्क्विड्स विकसित किये गये हैं, जो नाइट्रोजन के द्रवणांक अर्थात.196॰ सेल्सियस तापमान पर कार्य कर सकते हैं।
अपितु यह क्रिया शृंखला के रूप में प्रारम्भ हो जाती है। आक्सीजन पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा नहीं कर सकती। इस प्रकार क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के अणु को लगातार तोड़ता रहता है। इस प्रक्रिया में ओजोन के हजारों अणु टूटते हैं।
साइबर-स्पेस: साइबर-स्पेस (Cyberspace) तकनीकी रूप से विकसित संस्कृत की भाषा है जो विशेषकर कम्प्यूटरों के आगमन के उपरान्त पश्चिमी देशों पर छा गया। ‘साइबर-स्पेस’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग विलियम गिब्सन ने अपनी एक गल्प कथा ‘बर्निंग क्रोम’ में किया। साइबर-स्पेस वास्तव में एक स्थान है जहाँ विभिन्न महादेशों के भिन्न-भिन्न लोग भौतिक (शारीरिक) रूप से नहीं अपितु अपने विचार विनिमय के द्वारा या अपनी समस्याओं के समाधान की इच्छा के वशीभूत या विभिन्न बुलेटिन बोर्ड सेवाओं (BBS: Bulletin Board Services) की सहायता से विश्व से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के आँकडे़ अन्य लोगों को उपलब्ध कराकर मिलते हैं। संक्षेप में यह कम्प्यूटर प्रणाली का एक नेटवर्क है। इस तरह के तीन नेटवर्क-कम्प्यूसर्वे, पूरे विश्व में कार्यरत है। इनमें से इन्टरनेट सबसे बड़ा है। इन्टरनेट ‘सूचना राजपथ’(Information Highway) के नाम से भी जाता जाता है। मूलतः सन् 1969 में अर्पानेट (Arpanet) नाम से रक्षा मंत्रालय, अमरीका की उच्च शोध परियोजना एजेन्सी के एक नेटवर्क के रूप में प्रयोगात्मक आधार पर इसकी शुरुआत हुई थी।
कैट फिश: कैट फिश, साइलूरिफारमेस (Siluriformes) वर्ग का सामान्य नाम है। इनमें बारबेल्स (Barbels) काफी लम्बे होते हैं, जो बिल्लियों की मूँछों के समान दिखते हैं। इसीलिए इन्हें कैटफिश कहते हैं। यह मीठे जल (Fresh water) में पाई जाती है।
क्रिप्टोलाॅजी (Cryptology): क्रिप्टोलाॅजी के अन्तर्गत शैवाल, कवक, माॅस, लिवरवर्ट उवं फर्न का अध्ययन किया जाता है। इनमें जनन के लिए कोई प्रमुख अंग नहीं होता है।
अल्ट्रासाउण्ड: अल्ट्रासाउण्ड एक ऐसी ध्वनि है जिसे हम सुन नहीं सकते। इसकी आवृत्ति इतनी उच्च होती है कि हमारे कान इसे पकड़ नही सकते, परन्तु चमगादड़ें इन ध्वनियों को पकड़ लेती हैं, एक अल्ट्रासोनिक मशीन इनकी प्रतिध्वनि को ग्रहण कर लेती है। सोनार एक ऐसी प्रणाली है जो पानी की गहराई या नाव के नीचे मछलियों के आवास का पता लगा लेती है। अल्ट्रासाउंड स्कैनर द्वारा शरीर के अन्तरंगों का पता लगाया जाता है, विशेषकर गर्भस्थ शिशु का। इससे शिशु का लिंग परीक्षण भी किया जाता है। इसी प्रकार ब्रेन स्कैनर मस्तिष्क की गतिविधियों की खबर देते हैं। इवाई अड्डों पर भी यात्रियों के सामान की परख के लिए स्कैनरों का उपयोग किया जाता है।
सायनाइड (Cyanide): सायनाइड के रक्त द्वारा शोषण करने पर उपापचय क्रिया (Metabolism) में विघ्न पड़ता है। ऊतकों में रक्त से आॅक्सीजन शोषित करने की शक्ति का ह्रास होकर कुछ ही क्षणों में जीव की मृत्यु हो जाती है। ऊतकों की आॅक्सीहीमोग्लोबिन (Oxyhaemoglobin) को अवकरित (Reduce) करने की क्षमता नष्ट होने के कारण रक्त का रंग चमकीला लाल पड़ जाता है। विषपान होने पर प्रमुख लक्षण हैं एकाएक बेचैनी, प्यास, झागदार लार, श्लेष्मय झिल्लियों का रक्तवर्ण होकर नीला होना, बेहोशी एवं शीघ्र मृत्यु।
परमाणु पेन: परमाणु पेन से साधारण पेन की तरह ही लिखने का कार्य किया जाता है। यह पेन परमाणु माइक्रोस्कोप तकनीक पर आधारित है, जिसकी निब से 10 अरब बिट्स आँकड़ों को केवल 1 वर्ग सेंमी क्षेत्रा में ही लिखा जा सकता है। इसके बनाने की तकनीक 1986 में खोजी गई। इसमें आँकड़ों को स्टोर करने की विधि की खोज स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय, कैलीफोर्निया के वैज्ञानिक राॅबर्ट बैरेट ने की।
स्टैक पोल्यूशन कन्ट्रोलर: स्टैक पोल्यूशन (प्रदूषण) कन्ट्रोलर एक चिमनी प्रदूषक नियंत्राक है। यह अपने तरह की विश्व की नई प्रौद्योगिकी है जो उन सभी हानिकारक प्रदूषकों को कारखानों की चिमनियों से दूर कर देता है, जिनसे कई रोग उत्पन्न होते हैं। इस यन्त्रा प्रदूषकों को उदासीनीकरण के उपरान्त हानिरहित द्रव के रूप में बाहर निकाल दिया जाता है। यह सभी प्रकार की चिमनियों में सरलता से लगाया जा सकता है।
भूकंप लेखी (Seismograph) : भूकंप तरंगों की तीव्रता की माप भूकंप लेखी यंत्रा द्वारा की जाती है। इससे भूकंप की दिशा व दूरी मापी जाती है। इसके मुख्यतः तीन भाग हैंकृ
भूकंपमापी कृ पृथ्वी में गड़ा कंक्रीट का एक खंभा, जो भूकंप आने पर कंपन करने लगता है।
अंकन संयंत्रा - एक घूमता ड्रम, जिसपर कागज चढ़ाकर कंपन को अंकित किया जाता है।
घड़ी - कंपन शुरू व समाप्त होने के समय का अंकन करती है।
पृथ्वी के अन्दर का वह भाग जहां पर कम्पन की क्रिया आरम्भ होती है उसे अवकेन्द्र (Hypocentre) और उसके ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह के भाग को अधिकेन्द्र (Epicentre) कहते हैं। अधिकेन्द्र पर भूकम्प का धक्का सबसे तीव्र होता है। किसी भूकम्प की तीव्रता उसकी विनाशलीला को बताती है। इसको नापने के लिए इटली के वैज्ञानिक मरकोली ने 1931 में एक पैमाना (स्केल) बनाया। इसके पश्चात् दक्षिणी कैलिफोर्निया में भूकम्प का परिमाप मापक (Magnitude Scale) रिचर ने आविष्कृत किया, जो रिचर पैमाने के नाम से विख्यात हुआ।
जीन चिकित्सा: जीन चिकित्सा द्वारा आनुवंशिक रोगों का इलाज किया जाता है। भेषजीय वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पता लगाया है कि प्रत्येक सौ जन्म लेने वाले बच्चों में से एक बच्चा किसी न किसी प्रकार के आनुवंशिक रोग से ग्रस्त होता है। आनुवंशिक रोग में बच्चा शारीरिक या फिर मानसिक रूप से विकलांग होता है तथा पीड़ित बच्चे का निधन भी हो सकता है। जीन चिकित्सा पद्धति में पीड़ित व्यक्ति के दोषपूर्ण जीन को स्वस्थ जीन में परिवर्तित करने के प्रयास किये जाते हैं।
‘हाइड्रोपोनिक्स’: हाइड्रोपोनिक्स का विकास ब्रिटेन में किया गया था। यह एक विशेष वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें बिना मृदा या मिट्टी के पौधों को पोषक तत्त्वों से युक्त जल में उगाया जाता है। इसलिए इसे मृदाविहीन पादप संवर्धन (Soilless Agriculture) या जल कृषि (Water Culture) भी कहा जाता है। इस संबंध में भारत के अनुरूप और उपयोगी तकनीक का विकास भी कर लिया गया है। इसमें 500 वर्गमीटर भूमि पर 88 नालियां बनायी जाती हैं। इनकी भीतरी सतह पर प्लास्टिक का स्तर लगाया जाता है तथा उनमें पानी भी दिया जाता है। पानी में निश्चित मात्रा में पोषक तत्व मिला दिये जाते हैं। ऊपर पौधे लगाकर नालियों के किनारे पर टाट लगा दी जाती है, जो कि पोषक तत्व शोषित करके पौधे को भेजती रहती है।
‘फेमटो सेकेंड’: ब्रिटेन के लाॅर्ड पोर्टर के अनुसार समय के सबसे छोटे पैमाने सेकेंड को अब महाशंख हिस्से में बांटा जा सकता है। एक सेकंड के इस हिस्से को एक ‘फेमटो सेकेंड’ कहते हैं तथा गणित के शब्दों में एक फेमटो सेकेंड को 10.15 कहते हैं। इससे पहले सेकेंड’ को पीको सेकेंड अर्थात 10.12 तक तोड़ा जा सकता था। एक पीको सेकेंड से बड़ा पैमाना एक नैनो सेकेंड होता है। सबसे तेज कार्य करने वाला सुपर कम्प्यूटर नैनो सेकेंड तक ही काम कर सकता है। यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया के अध्ययन में उपयोग में लाया जा सकता है। इस विधि का रासायनिक और जैविक क्रियाओं के अध्ययन में भी व्यापक उपयोग संभव है।
‘प्रौक्सिमा सेन्टूरी’: प्रौक्सिमा सेन्टूरी (Proximacenturi) निकटतम तारों का एक समूह है, जिसमें ‘सेन्टूरी-ए’ (Centuri-A) ‘सेन्टूरी-बी’ और ‘प्रोक्सिमा सेन्टूरी’ है। सूर्य से इनकी दूरी की खोज 1839 में सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक टी-हैन्डिरसन ने की थी। तारों की दूरी सूर्य को आधार मानकर नापी जाती है क्योंकि पृथ्वी निरंतर सूर्य की परिक्रमा करती है जिससे पृथ्वी और तारे के बीच की दूरी स्थिर न रहकर सदैव बदलती रहती है।
फाइब्रेस्कोप: फाइब्रेस्कोप नामक यंत्रा लगभग साढ़े सात लाख प्रकाश तन्तुओं के समूह से बना होता है। प्रत्येक तन्तु का अर्द्धव्यास 5 माइक्रोन कोटि का होता है, प्रत्येक तंतु को लचीले प्लास्टिक या धातु के आवरण से ढक दिया जाता है। इसका निर्माण 1957 में अमेरिका के लारेंस कर्टिस एवं बोसल हर्षचोबित्व ने किया। फाइब्रेस्कोप से शरीर के आंतरिक भागों का परीक्षण तथा एन्डोस्कोपी किया जाता है। इसमें प्रकाश तंतुओं के दो बंडल प्रयोग किये जाते हैं। इसके एक बंडल के सिरे पर तीव्र प्रकाश स्रोत संलग्न होता है, जिससे प्रकाश संचरित होकर दूसरे सिरे तक पहुंचता है। दूसरे बंडल के सिरे पर लेंस रहता है। शरीर के आंतरिक प्रकाशित भाग से परावर्तित होकर प्रकाश इसके लंेस पर आता है, इसके बाद प्रकाश तंतुओं से संचरित होकर बंडल के बाह्य सिरे पर आता है, इससे प्रेक्षक को शरीर के आंतरिक अंगों का प्रतिबिम्ब दृष्टिगोचर होता है।
बायोमैग्नीफिकेशन: खाद्य शृंखला के द्वारा विषैले पदार्थों, डी.डी.टी., पारा आदि के एकत्राण तथा सांद्रण को बायोमैग्नीफिकेशन कहते हैं। जब खेतों, नालियों आदि में कीटनाशक रसायन छिड़का जाता है तो पानी में उसकी सान्द्रता बहुत अधिक नहीं होती, लेकिन जब यह पानी बहकर तालाबों और नदियों में जाता है और वहां रहने वाले कीड़े-मकोड़ों तथा पौधों को मछलियां खाती हैं तो इनके शरीर के ऊतकों में ये कीटनाशक एकत्रित होने लगते हैं और कीटनाशक स्तर बढ़ता रहता है। जब कोई पक्षी ऐसी प्रदूषित मछलियों को खाता है तो उसके शरीर में भी ये कीटनाशक एकत्रा होने लगते हैं। कभी-कभी इन विषैले रसायनों का स्तर इतना बढ़ जाता है कि इनकी मृत्यु भी हो जाती है।
रमन प्रभाव: यह एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरणों का अप्रत्यास्थ प्रकीर्णन है जिसमें प्रकाश तरंगों की आवृत्ति और कला में उस समय प्ररिवर्तन हो जाता है जब वे किसी पदार्थिक माध्यम से गुजरती हैं। रमन प्रकीर्णन की तीव्रता द्रवों में घटित रैले प्रकीर्णन की तीव्रता का लगभग एक हजारवां भाग होती है। यही कारण है कि इसकी खोज 1928 तक नहीं हो सकी। लेसर के विकास के साथ यह प्रभाव उपयोग में आया। रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी में लेसर का प्रकाश किसी पदार्थ से गुजारा जाता है और प्रकीर्णन का प्रकाशमितीय विधि से विश्लेषण किया जाता है। किसी पदार्थ से प्रकीर्णित एकवर्णी प्रकाश के रमन स्पेक्ट्रम में प्राप्त नई आवृत्तियां उस पदार्थ की विशिष्टता होती है। इस प्रकार आणविक संरचना के निर्धारण और रासायनिक विश्लेषण हेतु रमन प्रभाव का उपयोग होता है। इस प्रभाव की खोज भारतीय वैज्ञानिक सर सी.वी. रमन )(1888.1970) द्वारा की गई थी।
X. किरणें: जब उच्च ऊर्जा के इलेक्ट्राॅन किसी उच्च परमाणु संख्या और उच्च गलनांक के लक्ष्य, जैसे मौलिबडिनम या टंगस्टन से टकराते हैं तो इन इलेक्ट्राॅनों की गतिज ऊर्जा का अल्पांश विशेष प्रकार की किरणों में बदल जाता है। इन्हीं को ग्.किरणें कहते हैं। इनकी तरंग लम्बाई अत्यन्त कम (0.1 से 1Ao )होती है। ये उच्च आवृत्ति की विद्युत चुम्बकीय तरंगें होती हैं। ये चिकित्सा क्षेत्रा में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
रेडक्राॅस: रेडक्राॅस एक अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय संस्था है जो सभी प्रकार के मानवीय उत्पीड़न की रोकथाम और सहायता करती है। इस संस्था के जन्मदाताजीन हेनरी ड्यूनान्ट थे। 1864 में जेनेवा में हुए अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में 14 देशों ने रेडक्राॅस की स्थापना को स्वीकार किया। स्विट्जरलैण्ड के झण्डे में लाल आधार पर सफेद क्राॅस था। इसे बदलकर सफेद आधार पर लाल क्राॅस को इस संस्था का झण्डा मान लिया गया।
प्लेनेटेरियम: प्लेनेटेरियम एक ऐसा यंत्रा है जिसके द्वारा सूर्य, चन्द्रमा, तारे और ग्रहों की स्थितियां और गतियां एक गुम्बजाकार भवन की छत पर सिनेमा की तरह दिखाई जाती है। इसी गुम्बजाकार भवन को प्लेनेटैरियम कहते हैं। हमारे देश में अनेक स्थानों पर प्लेनेटेरियम बनाए गए हैं, जैसे कृ कलकत्ता, मुम्बई, दिल्ली, इलाहाबाद और पटना।संसार का सबसे बड़ा प्लेनेटेरियम 1987 में जापान के मियाजाकी में बना था।
अन्तर्राष्ट्रीय ग्रीन क्राॅस: जहां एक ओर विकास की अन्धी दौड़ चल रही है, वहीं दूसरी ओर अनेक बुद्धिजीवी और संवेदनशील लोग पर्यावरण को यथासम्भव सन्तुलित रखने में संलग्न हैं। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास अन्तर्राष्ट्रीय ग्रीन क्राॅस की स्थापना है। इसकी स्थापना अप्रैल, 1993 में क्योटो (जापान) में विभिन्न देशों के राजनीतिज्ञों, वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों व धार्मिक नेताओं की अन्र्तराष्ट्रीय गोष्ठी के दौरान की गई। पूर्व सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाच्योव की अध्यक्षता में हुई इस सभा में ग्रीन क्राॅस ने अपने संविधान को अंगीकृत किया और एक तीस सदस्यीय ट्रस्टी मण्डल का निर्माण किया। यह संस्था 1992 में रियो डि जेनेरो में हुए विश्व पृथ्वी सम्मेलन के दौरान सांसदों तथा धार्मिक नेताओं की सभा का परिणाम है जिनका यह विश्वास था कि पृथ्वी को पर्यावरणीय खतरा इस सीमा तक बढ़ गया है कि इस समस्या को अब सर्वदा नए दृष्टिकोण से देखने, समझने की आवश्यकता है। वस्तुतः ग्रीन क्राॅस का उद्देश्य रेडक्राॅस के समान संकटकाल में तत्काल सहायता प्रदान करना है। जिस प्रकार रेडक्राॅस युद्ध क्षेत्रा में कष्टों के निवारण का प्रयास करता है वही काम ग्रीनक्राॅस पारिस्थितिकी क्षेत्रा में करेगा।
आॅक्सलोक्सासिन-रिफैम्सिन चिकित्सा: आॅक्सलोक्सासिन-रिफैम्पिसिन कुष्ठ रोग के लिए एक नई औषधि है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रारम्भ किया गया है। भारत ने अपने यहां इसका परीक्षण करने से इन्कार कर दिया, क्योंकि औषधि की सुरक्षितता एवं विषाक्तता सम्बन्धी पर्याप्त सूचना उपलब्ध नहीं थी। इसके अतिरिक्त एक और कारण यह है कि बहु-औषधि उपचार को देश में पर्याप्त सफलता मिल रही है। इस नई औषधि की मुख्य विशेषता उपचार के तहत दो शक्तिशाली औषधियां रिफैम्पिसिन एवं क्लोफाजिमीन को 6 माह से 4 वर्ष तक लेना पड़ता है।
ग्रामनेट: भारतीय वैज्ञानिकों ने सार्वजनिक निर्माण क्षेत्रा के योजनाकारों के लिए नया साॅफ्टवेयर विकसित किया है। इस नये साॅफ्टवेयर का इस्तेमाल करने से योजनाकारों को निर्माण क्षेत्रा में व्यवहारिक व मौलिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस नये साॅफ्टवेयर का नाम ‘ग्रामनेट’ रखा गया है।
वैज्ञानिक के.सी. मूर्ति के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक समूह ने इस साॅफ्टवेयर को विकसित करने में सफलता प्राप्त की है। इस साफ्टवेयर से योजनाकारों को निर्माण योजना संबंधी सूचना एकत्रा करने में काफी मदद मिलेगी। इस साॅफ्टवेयर में भौगोलिक सूचना प्रणाली का समन्वय किया गया है। अब योजनाकारों को इस साॅफ्टवेयर से इस सूचना का लाभ मिलेगा।
ग्रोथ फैक्टर या जीन थेरेपी: दिल की बीमारियों के इलाज के लिए बिना आपरेशन वाली नई तकनीक ‘ग्रोथ फैक्टर’ भी प्रचलन में आ गई है। अब तक सबसे सुरक्षित और कारगर माने जाने वाले पी.एम.आर. लेजर नामक महंगी तकनीक का यह सस्ता और कामयाब विकल्प है। यह तकनीक जीन थेरेपी यानी गुणसूत्रों पर आधारित तथा बिना चीर-फाड़ वाली है।
जब दिल के चारों ओर लिपटी मांशपेशियों में से गुजरने वाली धमनियों में कोलेस्ट्रोल जम जाता है और वे शिथिल हो जाती हैं तो वहां खून की आपूर्ति कम हो जाती है। नतीजतन, उसके धड़कने पर असर पड़ता है। इसके लिए आधुनिक तकनीक परकोटोनिएस मायोकार्डियल रिवैस्क्यू- लराइजेशन (पी.एम.आर.) लेजर तकनीक से बिना कहीं चीरा लगाये शिथिल मांसपेशियों में लेजर किरणों से छेद किये जाते हैं। वहां खून की आपूर्ति होने लगती है और समय के साथ दो छेदों के बीच में कुदरती तौर पर नई रक्त नलिकाएं बनने लगती हैं और खून की ज्यादा और लगातार आपूर्ति होती रहती है।
नई जीन थेरेपी यानी ग्रोथ फैक्टर में लेजर का काम हार्मोन का इंजेक्शन लगाकर किया जाता है। इसमें पसलियों के बीच से या एंजियोग्राफी की तर्ज पर जांघ की मोटी रक्तवाहिनी में पंक्चर कर बेहद महीन कैथेटर को दिल तक पहुंचाया जाता है। वहां की मांसपेशियों में इंजेक्शन लगाया जाता है। इससे अपने आप नई रक्त नलिकाएं बनने लगती हैं। इस विशेष तरह की नलिका को लोकल ड्रग डेलीवरी कैथेटर कहते हैं। इसी तरह बिना चीर-फाड़ या सिलाई किए खून की नलियो मेें कोलेस्ट्रोल जमा होने वाले जाम को एंजियोप्लास्टी यानी बैलून सिस्टम से या किसी उम्दा धातु की स्प्रिंग लगाकर खोल दिया जाता है।