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आर्थिक नियोजन का इतिहास

  • आर्थिक नियोजन के लिए सैद्धान्तिक प्रयास स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ही प्रारम्भ हो गए थे। 
  • वर्ष 1934 ई. में सर एम. विश्वेश्वरैया ने भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था (planned economy for India) नामक पुस्तक लिखी। यह इस दिशा में प्रथम प्रयास था।
  • 1938 ई. में इण्डियन नेशनल कांग्रेस ने पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया जिसकी संस्तुतियाँ द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो जाने एवं भारत में राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव आने के कारण कार्यान्वित नहीं हो सकी।
  • 1944 ई. में मुम्बई के प्रमुख 8 उद्योगपतियों ने एक सूत्रबद्ध योजना बाॅम्बे प्लान प्रस्तुत की जो विभिन्न कारणों से क्रियान्वित नहीं हो सकी। 
  • अगस्त 1944 ई. में भारत सरकार ने एक पृथक विभाग नियोजन एवं विकास विभाग खोला तथा बाॅम्बे प्लान के एक सूत्रधार सर आदेशिर दलाल को इसका कार्यकारी सदस्य नियुक्त किया गया। 
  • इसने भारत की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लघु एवं दीर्घ अवधि के लिए योजनाएं तैयार की। महात्मा गांधी की आर्थिक विचारधारा से प्रेरणा पाकर श्री मन्नारायण ने 1944 ई. में एक योजना निर्मित की जिसे गांधीवादी योजना के नाम से जाना जाता है।
  • अप्रैल 1945 ई. में भारतीय श्रम संघ की युद्धोपरान्त पुनर्निर्माण समिति के अध्यक्ष श्री एम. एन. राय द्वारा जन योजना (people's plan)निर्मित की गई। 
  • जनवरी 1950 में जय प्रकाश नारायण ने एक योजना सर्वोदय योजना के नाम से प्रकाशित की इस योजना के कुछ अंशों को सरकार ने अपनाया लेकिन पूरी योजना को स्वीकार नहीं किया।

योजना आयोग

  • वर्ष 1946 में गठित ‘नियोगी समिति’ ने सम्पूर्ण आर्थिक क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिए भारत के केन्द्र में एक योजना आयोग गठित करने का सुझाव दिया। 
  • मार्च, 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित प्रस्ताव में योजना आयोग के गठन के संदर्भ में कहा गया।
  • आयोग अपनी संस्तुतियां देने के लिए केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार के मंत्रलयों से पूर्ण विचार-विमर्श तथा आपसी सहमति अवश्य करेगा।
  • आयोग अपनी संस्तुतियां केन्द्रीय मंत्रिमंडल को देगा।
  • आयोग की संस्तुतियों के क्रियावन्यन सम्बन्धी निर्णय की जिम्मेदारी केन्द्र तथा राज्य सरकारों पर होगी।
  • योजना आयोग ने एक सलाहकारी संस्था के रूप में 28 मार्च 1950 को कार्य करना प्रारम्भ किया। 
  • आयोग के प्रथम अध्यक्ष पं. जवाहर लाल नेहरू तथा प्रथम उपाध्यक्ष श्री गुलजारी लाल नन्दा थे।
  • योजना आयोग का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। 
  • अतः इसका गठन परामर्शदात्री व विशेषज्ञ संस्था के रूप में सरकार के एक प्रलेख द्वारा हुआ फलस्वरूप इसके स्वरूप एवं संगठन में विविध सरकारों द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहा।
  • 1967 में योजना आयोग के संगठन को लेकर विवाद हुआ। 
  • प्रधानमंत्री को योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष एवं वित्त मंत्री को सदस्य होने पर आपत्ति उठाई गई तथा इसे गैर-राजनीतिक संस्था बनाने पर बल दिया गया, लेकिन प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष बने रहे।
  • 1971 में प्रधानमंत्री योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष एवं नियोजन मंत्री पदेन उपाध्यक्ष बनाए गए तथा अधिकांश योजना का कार्य नियोजन मंत्रालय कौन सा पाया गया।
  • जनता सरकार ने इसमें प्रधानमंत्री को पदेन अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष (मंत्री होना आवश्यक नहीं) तथा तीन केबिनेट मंत्री वित्त, गृह एवं रक्षा को अंशकालिक पदेन सदस्य एवं तीन पूर्णकालिक सदस्यों को रखा। 
  • इसके सदस्यों एवं उपाध्यक्ष का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता। सदस्यों के लिए कोई निश्चित योग्यता नहीं है। 
  • प्रधानमंत्री की इच्छा से सदस्य नियुक्त होते है।
  • व्यवहार में सरकार के बदलते ही योजना आयोग का पुनर्गठन को जाता है। 
  • इसके सदस्यों की संख्या सरकार की इच्छा अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
  • आयोग के सभी सदस्य संगठित रूप से कार्य करते थे, परन्तु पूर्णकालिक सदस्यों में से प्रत्येक को एक अथवा दो क्षेत्रों का दायित्व दिया जाता था। 

ये क्षेत्र इस प्रकार है-
(i) प्राकृतिक संसाधन (सिंचाई, ऊर्जा, कोयला, तेल इत्यादि)
(ii) कृषि एवं सामुदायिक विकास
(iii) उद्योग, रेलवे, परिवहन एवं संचार
(iv) सामाजिक सेवाएं, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि।

  • सर्वप्रथम आयोग द्वारा पंचवर्षीय योजना का एक ज्ञापन तैयार किया जाता था जिसे यह केन्द्रीय सरकार तथा राष्ट्रीय विकास परिषद् के सम्मुख विचारार्थ रखता था। 
  • इन दोनों द्वारा ज्ञापन पर संस्तुति दिये जाने के बाद योजना की एक ‘रूप-रेखा’(Draft) बनाई जाती थी जिसमें योजना के उद्देश्य व प्रमुख लक्ष्य आदि उल्लिखित होते थे। 
  • इस रूप-रेखा पर संसद में तथा संसद के बाहर जनता द्वारा अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती थी। 
  • योजना आयोग इस पर विभिन्न राज्यों से भी विस्तार में चर्चा करता था। 
  • इन समस्त चर्चाओं एवं प्रतिक्रियाओं के आधार पर आयोग द्वारा योजना की रूप-रेखा में फेरबदल किये जाते है तथा योजना का अन्तिम स्वरूप निर्धारित कर दिया जाता था।

नीति आयोग

  • योजना आयोग अब इतिहास बन चुका है।
  • मंत्रिमंडल के एक प्रस्ताव के तहत यह नई संस्था 1 जनवरी, 2015 से अस्तित्व में आई। इस नई संस्था को ‘राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान’(National Institute of transforming india NITI) नाम दिया गया है
  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला यह आयोग सरकार के थिंक टैंक (बौधिक संस्थान) के रूप में कार्य करेगा तथा केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों  के लिए भी नीति निर्माण करने वाले संस्था की भूमिका निभाएगा।
  • केन्द्र एवं राज्य सरकारों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्व के महत्वपूर्ण मुद्दों पर रणनीतिक एवं तकनीकी सलाह भी यह देगा।
  • पंचवर्षीय योजनाओं के भावी स्वरूप आदि के सम्बन्ध में सरकार को सलाह भी यह आयोग देगा।
  • सभी राज्य के मुख्यमंत्रियों तथा केन्द्रशासित क्षेत्रों के राज्यपालों को आयोग की अधिशासी परिषद् (Governing counsil) में शामिल किया गया है।
  • इस प्रकार इसे योजना आयोग की तुलना में अधिक संघीय बनाया गया है।
  • इस आयोग में एक उपाध्यक्ष व एक कार्यकारी अधिकारी (chief executive officer) का प्रावधान किया गया है।
  • नीति आयोग ही अब 12वीं पंचवर्षीय योजना की मध्यावधि समीक्षा करेगा।

राष्ट्रीय विकास परिषद

  • राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्थापना केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 6 अगस्त, 1952 को पारित एक प्रस्ताव के अनुसार की गई। इसकी स्थापना योजना सम्बन्धी विषयों पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों के मध्य समन्वय के लिए की गई थी।

इसकी स्थापना के प्रमुख उद्देश्य निम्न थे

  • योजना के लिए संसाधनों को जुटाने
  • सभी प्रमुख क्षेत्रों में सामान्य आर्थिक नीतियों को प्रोत्साहित करना।
  • देश के सभी क्षेत्रों में तीव्र व सन्तुलित विकास सुनिश्चित करना।

राष्ट्रीय विकास परिषद के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है

  • समय-समय पर योजना संबंधित क्रियाकलापों का अवलोकन करना।
  • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्नों एवं आर्थिक नीतियों पर विचार करना
  • योजना में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न उपायों पर संस्तुति देना।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद् का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। योजना आयोग का सचिव ही इसका भी सचिव होता है।
  • इसमें सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री तथा सभी केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासक सम्मिलित होते हैं। योजना आयोग के सभी सदस्य इसके सदस्य होते है। इस कारण योजना के प्रस्तावों को इस परिषद् द्वारा स्वीकृत किये जाने का अर्थ वास्तव में सभी प्रदेशों की सहमति ही है।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद का ‘सुपर कैबिनेट’ का दर्जा प्राप्त है।
  • इस परिषद् के विचारों को योजना आयोग तथा केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अस्वीकृत नहीं किया जा सकता।

योजना अवधि

  • स्वतंत्रता के पश्चात् आर्थिक कार्यक्रमों को नियोजित स्वरूप प्रदान करने के लिए योजना आयोग का गठन किया गया तथा पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 से प्रारम्भ हुई। 
  • इसे वित्तीय वर्ष के रूप में 1951-52 भी कहा जाता है। 
  • भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का होता है। 
  • भारतीय योजनाओं का मूलभूत स्वरूप मध्यकालीन अवधि (medium period) का है, परन्तु समय-समय पर आवश्यकता पड़ने पर अल्पकालिक(short period )वार्षिक योजनाएं भी चलाई गई है।
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FAQs on आर्थिक नियोजन - पारंपरिक अर्थव्यवस्था, UPSC

1. पारंपरिक अर्थव्यवस्था क्या होती है?
उत्तर: पारंपरिक अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती है जो ऐतिहासिक रूप से चली आ रही है और जिसमें आय, व्यय, निवेश और उत्पादन का व्यवस्थित संचालन होता है। इसमें धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराएं भी आह्वानित होती हैं और लोगों के आधारभूत आर्थिक जीवन को प्रभावित करती हैं।
2. UPSC क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय संविधान के तहत स्थापित एक संघीय आयोग है जो भारत सरकार के विभिन्न संघीय स्तरीय पदों की भर्ती करने के लिए जिम्मेदार है। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह उम्मीदवारों के लिए एक मान्यता प्राप्त और बेहतरीन करियर विकल्प प्रदान करता है और सरकारी सेवा में उच्चतम स्तरीय पदों को भरने का जिम्मेदारी उठाता है।
3. आर्थिक नियोजन क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: आर्थिक नियोजन एक व्यक्ति या संगठन के आर्थिक संसाधनों को व्यवस्थित तरीके से प्रबंधित करने की प्रक्रिया है। इसका महत्व यह है कि यह संगठनों और देशों को आर्थिक सुरक्षा, स्थिरता और विकास की सुनिश्चितता प्रदान करता है। इसके माध्यम से विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में निवेशों, व्यवसाय, रोजगार, वित्तीय संरचना और अर्थव्यवस्था का संचालन संभव होता है।
4. आर्थिक नियोजन क्या परंपरागत अर्थव्यवस्था को बदल सकता है?
उत्तर: आर्थिक नियोजन का उपयोग करके परंपरागत अर्थव्यवस्था को बदला जा सकता है क्योंकि यह नई और उन्नत आर्थिक नीतियों और तकनीकों का उपयोग करके आर्थिक संसाधनों के उपयोग, व्यय और प्रबंधन को सुगम और अधिक उत्पादक बना सकता है। इसके माध्यम से अधिक निवेश और उद्यमिता प्रोत्साहित की जा सकती है जो परंपरागत अर्थव्यवस्था को मजबूत और स्थायी बनाने में मदद करता है।
5. UPSC परीक्षा में आर्थिक नियोजन का महत्व क्या है?
उत्तर: UPSC परीक्षा में आर्थिक नियोजन का महत्व यह है कि यह उम्मीदवारों को आर्थिक विज्ञान, आर्थिक नीति और आर्थिक प्रबंधन के क्षेत्र में जागरूकता प्रदान करता है। इससे उन्हें विभिन्न आर्थिक मुद्दों, नीतियों और नवीनतम अवधारणाओं के प्रतिस्पर्धी और व्यापक ज्ञान का अवलोकन होता है, जो उनके सिविल सेवा के करियर में उपयोगी होता है।
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